न भूतो न भविष्यति, जो सुक्खू ने कर दिखाया वह इतिहास
'न भूतो न भविष्यते', मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में जो कांग्रेस ने नगर निगम शिमला के चुनाव में कर दिखाया, वो इतिहास बन गया है। 11 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस ने 34 में से 24 वार्डों में अपना परचम लहराया। आज से पहले कभी भी किसी राजनीतिक दल को नगर निगम शिमला में 24 सीटें नहीं मिली थी। वीरभद्र सिंह जैसे 'मास लीडर' भी जो कभी नहीं कर पाए, वो मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कर दिखाया। शिमला नगर निगम के चुनाव नतीजों के बाद इस जीत का श्रेय सभी मुख्यमंत्री को दे रहे है। इसी नगर निगम से सुक्खू ने मुख्यधारा की राजनीति में कदम रखा था और निसंदेह शिमला वासी भी सीएम सुक्खू को अपना मानते है। ये सुक्खू की राजनैतिक सूझबुझ, उनका जमीनी अनुभव और अनूठी कार्यशैली का ही नतीजा है कि कांग्रेस को शिमला नगर निगम में ग्रैंड विक्ट्री मिली है।
छात्र राजनीति से निकल कर प्रदेश की सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने वाले सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक लम्बी राजनीतिक दूरी तय की है। एक आम कार्यकर्ता से मुख्यमंत्री बनने का उनका सफर और अनुभव निसंदेह कांग्रेस के लिए पूंजी है। सुक्खू प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे है और सियासत के सभी दाव पेंचो में निपुण माने जाते है। इसकी झलक शिमला नगर निगम चुनाव में भी दिखी जहाँ कांग्रेस हर रणनीतिक मोर्चे पर भाजपा से इक्कीस दिखी। चाहे क्षेत्रीय समीकरणों के लिहाज से नेताओं को प्रभार देने का निर्णय हो या खुद प्रचार को रफ़्तार देने का जिम्मा उठाना, सुक्खू हर मोर्चे पर हिट रहे और भाजपा चारों खाने चित हो गई।
शिमला नगर निगम के चुनाव को मिनी विधानसभा का चुनाव भी कहा जाता है। दरअसल शिमला में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से लोग बसते है। साल 2017 में हुए नगर निगम चुनाव में कांग्रेस ने सिर्फ 13 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा ने 17 सीटों पर कब्जा जमाया था। सुखविंदर सिंह सुक्खू के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश में यह पहला चुनाव था। सुक्खू भी प्रचार में उतरे थे और इस चुनाव को उनकी प्रतिष्ठा से जोड़ा जा रहा था। इस बार कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल करते हुए 24 सीटें जीती हैं। ज़ाहिर है ये कांग्रेस की रणनीति का कमाल है। प्रदेश में सुक्खू सरकार बनने के पांच महीने के भीतर हुए इस चुनाव के नतीजे बयां करते है कि जनता का सुक्खू सरकार पर भरोसा बरकरार है। खुद सीएम सुक्खू भी इसे सरकार की नीतियों की जीत मानते है। चाहे सुखाश्रय कोष की स्थापना जैसी मानवता से परिपूर्ण पहल हो या ओपीएस सहित कर्मचारियों को मिली सौगातें, अपने फैसलों से सुक्खू सरकार लगातार जनता के बीच लोकप्रिय भी हुई है और मजबूत भी। बहरहाल अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले मिली ये जीत कांग्रेस में नया जोश भरने वाली है। जीत की पटरी पर लौटी कांग्रेस को उम्मीद है कि 2024 में भी पार्टी बेहतर करेगी।