वर्षा जल संग्रहण के प्रति गंभीर क्यों नहीं हिमाचल सरकार

-हर वर्ष बचेंगे करोड़ों, रुकेगा भूमि कटाव और सरकारी नलों पर निर्भरता भी होगी कम
-छावनी बोर्ड सुबाथू, जतोग कैंट और एमसी सोलन बचा रहे लाखों लीटर पानी
प्रदेश में हर वर्ष जल संकट बढ़ता जा रहा है, लेकिन सरकार ने आज तक वर्षा जल संग्रहण के लिए कोई कारगर योजना तैयार नहीं की है। बारिश के दिनों में लाखों-करोड़ों लीटर पानी आकाश से बरसता है और यदि उसका सही तरीके से संग्रहण किया जाए तो न केवल हिमाचल में किसी भी मौसम में जल संकट समाप्त हो जाएगा, बल्कि सरकार का करोड़ों रुपये बचेगा, भूमि कटाव की समस्या कम होगी और लोगों की सरकारी पेयजल योजनाओं पर निर्भरता कम हो जाएगी। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रदेश के पारंपरिक प्राकृतिक जलस्त्रोत फिर से पुनर्जीवित हो उठेंगे।
दिन-प्रतिदिन पानी की बढ़ रही समस्या को देखते हुए पिछले कई वर्षों से यह कहा जा रहा है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा, लेकिन यदि इंसान प्रकृति से खिलवाड़ न करे और उसके विरुद्ध न चले तो इस कथित विश्वयुद्ध को टाला जा सकता है। इसके लिए सरकारों की इच्छाशक्ति का होना बेहद जरूरी है। कुछ दशकों पहले तक बरसात के मौसम में जोहड़ों और कच्चे तालाबों के माध्यम से बारिश के पानी का संग्रहण किया जाता था, जिससे साल भर तक प्राकृतिक जलस्त्रोत रिचार्ज रहते थे और उनमें पानी की कमी नहीं आती थी, लेकिन समय के बदलाव के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में जोहड़ और तालाब मिट्टी से भर गए और लोगों की निर्भरता पूरी तरह से सरकारी नलों पर हो गई। शहरों की बात छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग नलों के पानी पर ही निर्भर हो गए हैं, बहुत कम क्षेत्रों में लोग कुओं या बावडिय़ों से पानी ढोते हुए नजर आते हैं।
केंद्र सरकार के जलशक्ति मिशन के तहत अब सरकार ने आने वाले समय में हर घर को नल देने की विस्तृत योजना तैयार की है और हर माह देश भर में लाखों पानी के कनेक्शन दिए भी जा रहे हैं, लेकिन सरकार ने यह नहीं सोचा कि जब हमारी नदियों या बड़े जलाश्यों में ही पानी नहीं बचेगा तो अरबों रुपये की यह योजनाएं किस काम की रहेंगी। सरकार को चाहिए कि बारिश के पानी का संग्रहण करने की विस्तृत योजना तैयार करे और जिन लोगों के पास अपनी भूमि है, वहां पानी के बड़े भंडारण टैंकों का निर्माण सुनिश्चित किया जाए। शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक निर्माणधीन भवन का नक्शा तभी पास किया जाए जब उसमें वर्षा के जल संग्रहण टैंक के निर्माण का प्रावधान हो। टीसीपी में हालांकि यह प्रावधान तो है, लेकिन इन टैंकों को सरकारी नलों में आने वाले पानी से भर कर रेन वाटर हार्वेस्टिंग के नाम पर मात्र खानापूर्ति की जा रही है।
वर्षा के पानी को बनाया जा सकता है सौ प्रतिशत शुद्ध
प्रदेश के सबसे पुराने छावनी क्षेत्र सुबाथू के अलावा शिमला के जतोग कैंट और नगर परिषद सोलन में हजारों लीटर वर्षा के पानी को संरक्षित किया जा रहा है। यह पानी मिनरल वॉटर की तरह शुद्ध हो कर हजारों लोगों की प्यास बुझा रहा है। लैबोरेटरी से इस पानी में शून्य प्रतिशत बेक्टीरिया होने की पुष्टि की गई है। हालांकि सुबाथू में तो छावनी बोर्ड ने पानी को और अधिक शुद्ध बनाने के लिए अतिरिक्त फिल्टर लगाए हैं, लेकिन मात्र 85 सौ रुपये लागत का फिल्टर लगा कर कर एक मध्यम वर्गीय परिवार भी एक वर्ष में कम से कम 100 दिनों का पानी बचा सकता है। प्रदेश में औसतन 70 से 120 सेंटीमीटर बारिश होती है और एक सेंटीमीटर बारिश होने पर एक हजार वर्ग मीटर छत से एक हजार लीटर पानी बर्बाद होता है या यूं कहें कि उसे बचाया जा सकता है। सीमित संसाधनों वाले स्वायत्त छावनी बोर्ड प्रशासन ने वर्षा जल संग्रहण में रुचि दिखाई और इसका नतीजा यह हुआ कि आज इन क्षेत्रों में पेयजल संकट दूर हो गया है। छावनी बोर्ड कार्यालय की सभी छतों का पानी पाइप के माध्मय से फिल्टर होकर बड़े भंडारण टैंक में एकत्रित किया जाता है और उसके बाद उसे लोगों को सप्लाई किया जा रहा है।
किसी भी मौसम में नहीं होगी पानी की किल्लत
हिमाचल सरकार भी यदि पहल करे तो किसी भी मौसम में पानी की किल्लत नहीं होगी। गर्मियों में नदियों व जलस्त्रोतों का पानी सूख जाता है, वहीं, भारी बारिश होने पर गाद से पेयजल योजनाएं बंद हो जाती हैं, जिससे सरकार को मशीनरी बर्बाद होने पर करोड़ों रुपये का नुकसान झेलना पड़ता है। टैंकरों पर भी सरकार हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च करती है। ऐसे में यदि हर स्कूल की छत, सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक भवनों और हर घर की छत से वर्षा जल संग्रहण किया जाए तो हर वर्ष करोड़ों रुपये बच सकते हैं, बस आवश्यकता है तो सरकार के संकल्प व इच्छा शक्ति की, क्योंकि अभी तक प्रदेश सरकार ने छावनी परिषदों की भांति वर्षा के जल संग्रहण में कोई रुचि नहीं दिखाई है।