टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक आरके विश्नोई ने बताया कि 24 जुलाई को 1320 मेवा के खुर्जा सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश के स्टेशन ट्रांसफार्मर की सफलतापूर्वक चार्जिंग की गई। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि एचडीसीआईएल के लिए एक ऐतिहासिक है, जो परियोजना को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी। विश्नोई ने इस बात पर जोर दिया कि यहचार्जिंग समग्र परियोजना कमीशनिंग के लिए विभिन्न मुख्य और सहायक उपकरणों को चालू करने के लिए निर्बाध विद्युतआपूर्ति प्रदान करने के लिए बहुतआवश्यक है। उन्होंने आगे बताया कि स्टेशन ट्रांसफार्मर-1, 400 केवी पावर ग्रिड और सहायक विद्युत आपूर्ति आवश्यकता के मध्ययएक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह 120 एमवी क्षमता थ्री फेज ट्रांसफार्मर है। यह ऑन लोड टैप चेंजर के प्रावधान के साथ 400केवी वोल्टेज को 11केवी स्तर तक कम कर रहा है। साथ ही श्री विश्नोई ने बताया कि अत्याधुनिक स्टेशन ट्रांसफार्मर की आपूर्ति मैसर्स बीएचईएल-भोपाल यूनिट द्वारा की गई है। विश्नोई ने कहा कि यह उपलब्धि एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगी, जो परियोजना को तेजी से पूरा करने के लिए आवश्यक गति को ऊर्जा प्रदान करेगी। इस चार्जिंग ने संयंत्र की अन्य महत्वपूर्ण प्रणालियों को और अधिक शीघ्रचालू करने का मार्ग प्रशस्त किया है। यह परियोजना के पूर्णहोने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और फ़रवरी 24 तक सीओडी प्राप्त करने के लिए आगे की प्रगति और सफलता के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। विश्नोई ने पूरी टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड की टीम को बधाई दी कि यह महत्वपूर्ण उपलब्धि राष्ट्रीय थर्मल इंजीनियर दिवस के अवसर पर हुई है। यह ऐतिहासिक कार्य कुमार शरद, कार्यपालक निदेशक (परियोजना-केएसटीपीपी) एवं आरएमदुबे, महाप्रबंधक (विद्युत) तथाटीएचडीसीआईएल, एनटीपीसी और बीएचईएल के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की गरिमामयी उपस्थिति में संपन्न हुआ।
राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने आज केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को प्रदेश में प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान और राज्य में चलाए जा रहे राहत एवं बचाव कार्यों के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट दी। केंद्रीय गृह मंत्री ने दूरभाष पर बातचीत में राज्यपाल से प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों, भूस्खलन से क्षतिग्रस्त सड़कों और फंसे हुए पर्यटकों की सुरक्षित निकासी प्रक्रिया के बारे में बात की। केंद्रीय मंत्री ने आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार हिमाचल को हरसंभव सहायता प्रदान कर रही है और स्थिति सामान्य होने तक यह सहायता जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि इस विपदा में देश की जनता और केंद्र सरकार राज्य के लोगों के साथ है। उन्होंने कहा कि प्रभावितों की देखभाल हम सभी की प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टर और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल बचाव अभियान में प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन का सक्रिय सहयोग कर रहे हैं। राज्यपाल ने केन्द्र सरकार द्वारा की जा रही सहायता एवं सहयोग के लिए केन्द्रीय मंत्री का आभार व्यक्त किया।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण और युवा एवं खेल मामलों के मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के अंतर्गत तीन दिवसीय लेह- लद्दाख यात्रा पर हैं। इस दौरान उन्होंने लेह से 211 किलोमीटर दूर, भारत- चीन सीमा से लगे गांव करजोक में रात बिताई। मंत्री ने 14000 फुट की ऊंचाई पर पुगा आवासीय विद्यालय के अपने दौरे के दौरान युवाओं संग वॉलीबॉल भी खेला और युवाओं के आमंत्रण रात्रि में मोबाइल फ़ोन की रोशनी में टेबल टेनिस में भी हाथ आजमाया। ठाकुर ने कहा कि लेह लद्दाख के युवा प्रतिभा से भरे हैं। 2014 से पहले इनकी प्रतिभा को देखने वाला कोई नहीं था। आज मोदी जी के नेतृत्व में इनकी प्रतिभा को तराशा जा रहा है। ठाकुर ने कारजोक व पुगा में खेल उपकरण भी वितरित किए। भारत चीन सीमा से सटे गावों के विकास के प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार भारत-चीन सीमा पर स्थित इलाकों में प्रसारण तथा नेटवर्क कनेक्टिविटी बढाने के लिये कृत संकल्पित हो कर कार्य कर रही है। उन्होंने कहा, हम जल्द भारत-चीन सीमा पर सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रहने वालों को दूरदर्शन फ्री डिश का कनेक्शन उपलब्ध कराएंगे। इसके अलावा बेहतर मोबाइल कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने हेतु भी तेज़ी से कार्य किए जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि डीडी फ्री डिश प्लेटफार्म के जरिए सीमावर्ती और सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तक पहुंच बनाने का लक्ष्य हासिल करने के लिये सरकार ने सीमावर्ती इलाकों के गांवों में 1.5 लाख मुफ्त फ्री डिश वितरित करने का प्रस्ताव किया था। ठाकुर ने आगे कहा, 'हम लेह लद्दाख को विकास के मामले में बाकी भारत के समकक्ष लाने हेतु लगातार काम कर रहे हैं. फिजिकल कनेक्टिविटी जैसे सड़क, पुल, टनल इत्यादि के साथ साथ हम यहाँ डिजिटल कनेक्टिविटी भी सुनिश्चित कर रहे हैं। पर्यटन हो या खेल, मोदी सरकार लेह लद्दाख की सभी बुनियादी जरूरतों को जल्द से जल्द पूरा करेगी।
राजस्थान सरकार ने प्रदेश भर में जूनियर अकाउंटेंट के लिए 5190 और तहसील राजस्व लेखाकार के लिए 198 पदों पर भर्ती निकाली है। इसके लिए 18 से 40 साल तक की उम्र के उम्मीदवार राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड की ऑफिशियल वेबसाइट rsmssb.rajasthan.gov.in पर जाकर 26 जुलाई तक ऑनलाइन आवेदन कर सकते है । राजस्थान आयुर्वेद डिपार्टमेंट में आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी के 652 पदों पर भर्तियां हैं। इन पदों पर 45 साल तक की उम्र के उम्मीदवार राजस्थान आयुर्वेद डिपार्टमेंट dsrrau.info की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर 10 जुलाई 2023 तक ऑनलाइन अप्लाई कर सकते हैं।
बिहार के पटना में शुक्रवार को विपक्षी दलों की महाबैठक हुई। इस बैठक में 30 से अधिक विपक्षी नेताओं ने हिस्सा लिया। इस मीटिंग में आगामी लोकसभा चुनाव-2024 में बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर मैदान में उतरने की साझा रणनीति पर मंथन किया गया। विपक्षी दलों का ये महामंथन करीब 4 घंटे तक चला। इस बैठक के बाद ज्वाइंट पीसी में नीतीश कुमार ने कहा कि आज की विपक्ष की बैठक में देश की सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने भाग लिया। यह एक अच्छी बैठक थी जिसमें मिलकर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया गया। इसके बाद अब मल्लिकार्जुन खरगे की अध्यक्षता में अगली बैठक होगी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि हम सभी एक साथ लड़ने के लिए एक आम एजेंडे पर आने की कोशिश कर रहे हैं। हम अगली बार 10 या 12 जुलाई को शिमला में फिर मिलेंगे। 2024 के लोकसभा चुनावों को एक साथ लड़ने के लिए साझा एजेंडे को अगली बैठक में अंतिम रूप दिया जाएगा. हमें हर राज्य में अलग-अलग तरह से काम करना पड़ेगा। -ये सभी नेता रहे शामिल शुक्रवार को आयोजित विपक्ष एकता की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, पूर्व सांसद राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे, एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, नेशनल कांफ्रेस के नेता उमर अब्दुल्ला, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता महबूबा मुफ्ती, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी समेत कई दिग्गजों ने इस बैठक में भाग लिया।
केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में पूरे देश के विपक्षी दलों के नेता आज पटना में जुट रहे हैं। इस बिच विपक्ष की एकता बैठक से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, 'एकसाथ मिलकर हम बीजेपी को हराने जा रहे है। ' कर्नाटक में हम लोगों ने बीजेपी को हराया है। उन्होंने दावा किया कि तेलगांना, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनेगी। राहुल गांधी ने कहा, देश में दो विचारधाराओं की लड़ाई चल रही है एक हमारी भारत जोड़ो की और एक तरफ भाजपा की भारत तोड़ो विचारधारा की। बीजेपी हिंदुस्तान को तोड़ने का काम कर रही है। नफरत और हिंसा फैलाने का काम कर रही है और कांग्रेस पार्टी जोड़ने का काम कर रही है और मोहब्बत फैलाने का काम करते हैं। नफरत को नफरत से नहीं काटा जा सकता है, नफरत को मोहब्बत से ही काटा जा सकता है। - मल्लिकार्जुन खरगे बोले अगर बिहार जीत गए तो भारत जीत जाएंगे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी कांग्रेस कार्यालय पर कहा, इस कांग्रेस ऑफिस से जो भी नेता निकला वे देश के आजादी के लिए लड़ा। हमें गर्व है कि देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद इसी धरती से थे। अगर हम बिहार जीत गए तो सारे भारत में हम जीत जाएंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन गुरुवार को दोनों देशों के बीच होने वाली उच्चस्तरीय वार्ता से पहले व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में एकांत वार्ता करेंगे। जानकारी के अनुसार यह बैठक दोनों नेताओं के बीच अधिकारियों की मौजूदगी में होने वाली वार्ता से अलग होगी। दोनों नेता इस बैठक में क्या बात करेंगे उसका एजेंडा फिलहाल साफ नहीं है। दूसरी तरफ द्विपक्षीय बैठक को लेकर व्हाइट हाउस ने एजेंडा साफ कर दिया है। बताया गया है कि उच्चस्तरीय बैठक में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्तों पर बात होगी। इनमें रक्षा, स्पेस, स्वच्छ ऊर्जा और अहम तकनीक को साझा करने पर चर्चा होगी। पीएम मोदी इस बैठक के बाद अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करने के लिए रवाना होंगे। यहां वे संसद के साझा सत्र को संबोधित करेंगे, जिसमें सीनेट (उच्च सदन) और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (निचले सदन) के सांसद मौजूद होंगे। इसके अलावा भारतीय मूल के कई अमेरिकी भी इस संबोधन के गवाह बनेंगे।
*डिनर के बाद पीएम मोदी ने बाइडन दंपती को दिए ये उपहार *तोहफों में भारत के कई राज्यों की झलक पीएम नरेंद्र मोदी मंगलवार को अमेरिका की यात्रा पर पहुंच गए है। अमेरिका पहुंचने पर हर कोई खुले मन से पीएम मोदी का स्वागत कर रहा है। पीएम से मिलने के लिए सभी उत्सुक है और जिनकी मुलाकात हो चुकी वे लोग उनकी तारीफ करते नहीं थक रहे। दोनों देशों के लिए खास बताई जा रही पीएम मोदी की ये यात्रा आज अपने दूसरे दिन के चरण में है। इस दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्हाइट हाउस में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और प्रथम महिला जिल बाइडन को बेहद ही खास उपहार दिए हैं। उन्हें दिए गए सभी उपहारों में भारत की झलक दिखी। - 7.5 कैरेट का हरा हीरा किया भेंट पीएम मोदी ने अमेरिका की प्रथम महिला जिल बाइडन को एक हीरा दिया है। ये हीरा कोई मामूली हीरा नहीं है। दरअसल, पीएम मोदी ने जिल को एक 7.5 कैरेट का हरा हीरा दिया है। ये प्रयोगशाला में विकसित हुआ है। इस खास हीरे को ऐसे ही किसी बॉक्स में नहीं रख सकते, बल्कि एक बेहद ही सुंदर डिब्बा इसके लिए तैयार किया है। इस बॉक्स का नाम पपीयर माचे है। इसमें ही ये हरा हीरा रखा जाता है। इसे कार-ए-कलमदानी के नाम से भी जाना जाता है। - विशेष चंदन का डिब्बा किया भेंट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को एक विशेष चंदन का डिब्बा भेंट किया है। इसे जयपुर के एक शिल्पकार द्वारा हाथ से बनाया गया है। इसपर मैसूर से प्राप्त चंदन में जटिल रूप से नक्काशीदार वनस्पतियों और जीवों के पैटर्न हैं। इतना ही नहीं इस बॉक्स के अंदर काफी ऐसे सामान हैं, जो हमारी भारतीय संस्कृति के लिए काफी खास हैं। इस बॉक्स के अंदर भगवान गणेश जी की मूर्ति है, जो एक हिंदू देवता हैं, जिन्हें बाधाओं का विनाशक माना जाता है। इनकी सभी देवताओं में सबसे पहले पूजा की जाती है। मूर्ति को कोलकाता के पांचवीं पीढ़ी के चांदी कारीगरों के एक परिवार द्वारा हस्तनिर्मित किया गया है। इतना ही नहीं, इसमें एक दीया (तेल का दीपक) भी है, जो हर हिंदू घर में एक पवित्र स्थान रखता है। इस चांदी के दीये को भी कोलकाता में पांचवीं पीढ़ी के चांदी कारीगरों के परिवार के कारीगरों द्वारा हस्तनिर्मित किया गया है। -चार डिब्बों में दी गई है बेहद ख़ास चीज़े इसके अलावा पीएम मोदी ने चार अलग डिब्बे भी दिए हैं। ये कोई मामूली डिब्बे नहीं हैं, बल्कि इन डिब्बों में वो खास चीज है, जो भारत के लोगों के लिए बेहद खास मानी जाती है। ये भारतीयों के बीच बेहद ही प्रसिद्ध है। इन चार डिब्बों में अलग- अलग राज्यों को देखा जा सकता है। चार खास डिब्बों में से पहले में पंजाब का घी या मक्खन है। वहीं, दूसरे में झारखंड से प्राप्त हाथ से बुना हुआ बनावट वाला टसर रेशम का कपड़ा। तीसरे में उत्तराखंड से प्राप्त लंबे दाने वाला चावल। इसके अलावा, चौथे बॉक्स में गुड़ है, जो महाराष्ट्र से मंगाया गया है। - 'द टेन प्रिंसिपल उपनिषद' के पहले संस्करण की प्रति दी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंदन के फेबर एंड फेबर लिमिटेड द्वारा प्रकाशित और यूनिवर्सिटी प्रेस ग्लासगो में मुद्रित पुस्तक 'द टेन प्रिंसिपल उपनिषद' के पहले संस्करण की एक प्रति राष्ट्रपति जो बाइडन को उपहार में दी।
कांग्रेस और भाजपा के बिच पोस्टर वॉर की ये तस्वीर तेज़ी से वायरल हो रही है। दरअसल बीते दिनों कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडल पर अभिनेता मनोज बाजपेयी की फिल्म 'सिर्फ एक बंदा काफी है' से मिलता जुलता पोस्टर बनाया, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर के साथ लिखा था- "देश की बर्बादी के लिए सिर्फ एक बंदा ही काफी है"। जिसके जवाब में बीजेपी ने भी उससे मिलता जुलता पोस्टर ट्वीट किया, जिसमें लिखा था "9 साल सिर्फ सेवा नहीं समर्पण भी" और नीचे कांग्रेस के तंज पर जवाब में लिखा गया है- "बर्बादी के लिए सिर्फ एक बंदा ही काफी है..... बर्बादी परिवाद की। बर्बादी भ्रष्टाचार की। बर्बादी लुटेरों की बर्बादी आतंकवादी की। बर्बादी अलगाववाद की "
* महागठबंधन में दोनों का साथ होना मुश्किल 2024 में भाजपा से मुकाबले को महागठबंधन की मुहिम चली है। पर इस मुहिम में कांग्रेस और आप का साथ आना माहिरों को 'आग और पानी' के साथ आने जैसा लग रहा है। दरअसल, अब तक कांग्रेस की सियासी जमीन छीन कर ही आप की जमीन तैयार हुई है। केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली में आप और कांग्रेस के बीच सियासी आंखमिचौली ही दिखी है, ऐसे में दोनों का गठबंधन बेहद मुश्किल है। बाकी सियासत में कुछ भी मुमकिन है। साल 2012 के अंत में आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई थी और दस साल में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पा चुकी है। दो राज्यों में आप की सरकार है - दिल्ली और पंजाब। खास बात ये है कि इन दोनों ही राज्यों में आप ने कांग्रेस को न सिर्फ सत्ता से बेदखल किया है बल्कि एक किस्म से उसकी जमीन ही कमजोर कर दी है। दिल्ली में कांग्रेस की पतली हालत किसी से छिपी नहीं है और वहां तो मुकाबला ही अब आप और भाजपा में दिखता है। वहीं पंजाब में पिछले साल विधानसभा चुनाव जीतने के बाद आप ने लोकसभा उपचुनाव जीतकर भी कांग्रेस को झटका दिया है। हालांकि पंजाब में अब भी मुकाबला आप और कांग्रेस के बीच ही है, लेकिन कांग्रेस निसंदेह पहले से खासी कमजोर है। कैप्टन अमरिंदर सिंह का विकल्प अब तक पार्टी के पास नहीं दिखता। पर पंजाब में भाजपा और अकाली दल भी कमजोर है और ये ही कांग्रेस के लिए राहत की बात है। विशेषकर अकाली दल के एनडीए से बाहर आने के बाद समीकरण बदल चुके है। यानी मुख्य मुकाबला आप और कांग्रेस के बीच हो सकता है। जाहिर है दोनों ही दल एक दूसरे के लिए सीटें नहीं छोड़ेंगे। ऐसे में इनके बीच गठबंधन की सम्भावना मुश्किल लगती है। केजरीवाल की मुहिम को कांग्रेस का समर्थन नहीं ! केंद्र सरकार द्वारा देश की राजधानी में अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर अध्यादेश लागू करने के बाद से दिल्ली में राजनीति चरम पर है। अध्यादेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता की मुहिम चला रहे हैं। इस मुद्दे पर कांग्रेस से सपोर्ट की भी मांग की थी, लेकिन अभी तक कांग्रेस ने उनके इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया है।
*एक मंच पर आएंगे राहुल-ममता-अखिलेश *जो राज्यों में आमने-सामने, क्या केंद्र में साथ आएंगे दिन मुकर्रर हुआ है 23 जून और जगह होगी पटना, नितीश के बुलावे पर विपक्ष का जमावड़ा होगा और तय होगा संभावित महगठबंधन का स्वरूप। कांग्रेस सहित तमाम भाजपा विरोधी दलों को न्यौता भेजा गया है और अब ये देखना रोचक होगा कि विपक्षी दलों के महागठबंधन की नितीश की हसरत पूरी होती है या नहीं। राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता, इसकी झलक पटना में फिर देखने को मिल सकती है। सम्भवतः मंच पर एक-दूसरे का हाथ पकड़कर खड़े बीजेपी विरोधी नेताओं की एक तस्वीर सामने आएगी जिसमें आपसी टकराव और मनमुटाव ढककर विपक्ष की एकता दिखाने का प्रयास होगा। माना जा रहा है कि इस बैठक में कांग्रेस और आप सहित देश की 15 से अधिक विपक्षी पार्टियां शिरकत करने वाली हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के शामिल होने को लेकर चल रहा सस्पेंस भी अब खत्म हो गया है और वे भी इसमें शामिल होंगे। समाजवादी पार्टी भी इसमें शामिल होगी, और तृणमूल कांग्रेस भी। बताया जा रहा है उद्धव ठाकरे, शरद पवार, केजरीवाल, हेमंत सोरेन, स्टालिन भी इसमें शामिल होंगे। बैठक में लेफ्ट के नेता भी शामिल होंगे, जिनमें सीताराम येचुरी, डी राजा, दीपांकर भट्टाचार्य जैसे नाम शामिल हैं। हिंदुस्तान ने बहुत सारे विचित्र गठबंधन देखे हैं, लेकिन अगर ये सभी दल एक साथ आएं तो ये एक हाइब्रिड अलायंस होगा। जो दल राज्यों में एक दूसरे के शत्रु है वो लोकसभा के लिए गठबंधन करें, तो विचित्र तो होगा ही। मसलन कांग्रेस और आप का एक साथ आना हो या ममता और लेफ्ट का साथ, दोनों ही मुश्किल लगते है। फिर भी कोशिश तो हो ही रही है। हालाँकि 2019 में भी उत्तर प्रदेश में ऐसा ही विचित्र गठबंधन हुआ था जहां सपा - बसपा और कांग्रेस एक साथ आएं थे, यानी सियासत में कुछ भी मुमकिन है। बदलती रही है खुद नितीश की निष्ठा : महागठबंधन बनाने का प्रयास करने वाले नितीश कुमार खुद कई बार निष्ठा बदल चुके है। कभी भाजपा के साथ गए तो कभी भाजपा विरोधियों के साथ। ऐसे में नितीश कुमार क्या इस महागठबंधन की धुरी हो सकते है, ये बड़ा सवाल है।
*अमृता प्रीतम ने बटालवी को कहा था 'बिरह का सुल्तान' ' बिरहा बिरहा आखीए, बिरहा तू सुल्तान। जिस तन बिरहा ना उपजे, सो तन जाण मसान ...' प्रसिद्ध कवयित्री अमृता प्रीतम के शब्दों में वो ‘बिरह का सुल्तान’ था। पंजाब का एक ऐसा शायर जिसके जैसा न कोई था, न है और न कोई और होगा। वो हिंदुस्तान में भी खूब छाया और पाकिस्तान ने भी उसे जमकर चाहा. वो था पंजाब का पहला सुपरस्टार शायर शिव कुमार बटालवी। वो शायर जिसने शराब में डूबकर वो रच दिया जिसे होश वाले शायद कभी न उकेर पाते। वो शायर जो मरने की बहुत जल्दी में था। 'असां तां जोबन रुत्ते मरनां, जोबन रूत्ते जो भी मरदा फूल बने या तारा, जोबन रुत्ते आशिक़ मरदे या कोई करमा वाला'.. बटालवी का कहना था कि जवानी में जो मरता है वो या तो फूल बनता है या तारा। जवानी में या तो आशिक मरते हैं या वो जो बहुत करमों वाले होते हैं। जैसा वो कहते थे वैसा हुआ भी, महज 35 की उम्र में बटालवी दुनिया को अलविदा कह गए। पर जाने से पहले इतना खूबसूरत लिख गए कि शायरी का हर ज़िक्र उनके बगैर अधूरा है। शिव कुमार बटालवी 23 जुलाई 1936 को पंजाब के सियालकोट में पैदा हुए, जो बंटवारे के बाद से पाकिस्तान में है। उनके पिता एक तहसीलदार थे पर न जाने कैसे शिव शायर हो गए। आजादी के बाद जब देश का बंटवारा हुआ तो बटालवी का परिवार पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत में पंजाब के गुरदासपुर जिले के बटाला में आ गया। उस वक़्त शिव कुमार बटालवी की उम्र महज़ दस साल थी। नका कुछ बचपन और किशोरावस्था यहीं गुजरी। बटालवी ने इन दिनों में गांव की मिट्टी, खेतों की फसलों, त्योहारों और मेलों को भरपूर जिया, जो बाद में उनकी कविताओं में खुशबू बनकर महका। उन्होंने अपने नाम में भी बटालवी जोड़ा, जो बटाला गांव के प्रति उनका उन्मुक्त लगाव दर्शाता है। बटालवी जिंदगी के सफर में बटाला, कादियां, बैजनाथ होते हुए नाभा पहुंचे लेकिन अपने नाम में बटालवी जोड़ खुद को ताउम्र के लिए बटाला से जोड़े रखा। कुछ बड़े होने के बाद उन्हें गांव से बाहर पढ़ने भेजा गया। वो खुद तो गांव से आ गए मगर उनका दिल गांव की मिटटी पर ही अटका रहा। कहते है उनका गांव छूट जाना उन पर पहला प्रहार था, जिसका गहरा जख्म उन्हें सदैव पीड़ा देता रहा। गांव से निकलकर आगे की पढ़ाई के लिए शिव कादियां के एस. एन. कॉलेज के कला विभाग गए। पर दूसरे साल ही उन्होंने उसे बीच में छोड़ दिया। उसके बाद उन्हें हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ के एक स्कूल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हेतु भेजा गया। पर पिछली बार की तरह ही उन्होंने उसे भी बीच में छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने नाभा के सरकारी कॉलेज में अध्ययन किया। उनका बार-बार बीच में ही अभ्यास छोड़ देना, उनके भीतर पल रही अराजकता और अनिश्चितता का बीजारोपण था। पिता शिव को कुछ बनता हुआ देखना चाहते थे। जो पिता शिव के लिए चाहते थे वो शिव ने अपने लिए कभी नहीं चाहा, इसीलिए पिता - पुत्र में कभी नहीं बनी। बटालवी की छोटी सी जीवन यात्रा तमाम उतार चढ़ाव समेटे हुए है, किसी खूबसूरत चलचित्र की तरह जिसमें स्टारडम है, विरह का तड़का है और जिसका अंत तमाम वेदना समेटे हुए है। शिव कुमार बटालवी के गीतों में ‘बिरह की पीड़ा’ इस कदर थी कि उस दौर की प्रसिद्ध कवयित्री अमृता प्रीतम ने उन्हें ‘बिरह का सुल्तान’ नाम दे दिया। शिव कुमार बटालवी यानी पंजाब का वह शायर जिसके गीत हिंदी में न आकर भी वह बहुत लोकप्रिय हो गया। कहते है उन्हें मेले में एक लड़की से मोहब्बत हो गयी थी। मेले के बाद जब लड़की नज़रों से ओझल हुई तो उसे ढूंढने के लिए एक गीत लिख डाला। गीत क्या मानो इश्तहार लिखा हो; ‘इक कुड़ी जिहदा नाम मुहब्बत ग़ुम है’ ओ साद मुरादी, सोहनी फब्बत गुम है, गुम है, गुम है ओ सूरत ओस दी, परियां वर्गी सीरत दी ओ मरियम लगदी हस्ती है तां फूल झडदे ने तुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी... ये वहीँ गीत है जो फिल्म उड़ता पंजाब में इस्तेमाल हुआ और इस नए दौर में भी युवाओं की जुबा पर इस कदर चढ़ा कि मानो हर कोई बटालवी की महबूबा को ढूंढ़ते के लिए गा रहा हो। कहते है बटालवी का ये लड़कपन का प्यार अधूरा रहा क्यों कि एक बीमारी के चलते उस लड़की की मौत हो गयी। खैर ज़िंदगी बढ़ने का नाम है सो बटालवी भी अवसाद से निकलकर आगे बढ़ने लगे। फिर एक लड़की मिली और फिर शिव को उनसे मोहब्बत हो गई। पर इस मर्तबा भी अंजाम विरह ही था। दरअसल, जिसे शिव दिल ओ जान से मोहब्बत करते थे उसने किसी और का घर बसाया और शादी करके विदेश चली गयी। एक बार फिर शिव तनहा हुए और विरह के समुन्दर में गोते खाने लगे। तब शराब और अवसाद में डूबे शिव ने जो लिखा वो कालजयी हो गया ........... माए नी माए मैं इक शिकरा यार बनाया चूरी कुट्टाँ ताँ ओह खाओंदा नाहीं वे असाँ दिल दा मास खवाया इक उड़ारी ऐसी मारी इक उड़ारी ऐसी मारी ओह मुड़ वतनीं ना आया, ओ माये नी! मैं इक शिकरा यार बना शिकरा पक्षी दूर से अपने शिकार को देखकर सीधे उसका मांस नोंच कर फिर उड़ जाता है। शिव ने अपनी उस बेवफा प्रेमिका को शिकरा कहा। हालांकि वो लड़की कौन थी इसे लेकर तरह तरह की बातें प्रचलित है । पर इसके बारे में आधिकारिक रुप से आज तक कोई जानकारी नहीं है और ना वो ख़ुद ही कभी लोगों के सामने आई। शिव की उस बेवफा प्रेमिका के बारे में एक किस्सा अमृता प्रीतम ने भी बयां किया है। शिव एक दिन अमृता प्रीतम के घर पहुंचे और उन्हें बताया कि जो लड़की उनसे इतनी प्यार भरी बातें किया करती थी वो उन्हें छोड़कर चली गयी है। उसने विदेश जाकर शादी कर ली है। अमृता प्रीतम ने उन्हें जिंदगी की हकीकत और फ़साने का अंतर समझाने का प्रत्यन किया पर शिव का मासूम दिल टूट चूका था। कहते है शिव उसके बाद ताउम्र उसी लड़की के ग़म में लिखते रहे। सिर्फ 24 साल की उम्र में शिव कुमार बटालवी की कविताओं का पहला संकलन "पीड़ां दा परागा" प्रकाशित हुआ, जो उन दिनों काफी चर्चित रहा। उसी दौर में शिव ने लिखा ........ अज्ज दिन चढ़ेया तेरे रंग वरगा तेरे चुम्मण पिछली संग वरगा है किरणा दे विच नशा जिहा किसे चिम्मे सप्प दे दंग वरगा आखिरकार, 1967 में बटालवी ने अरुणा से शादी कर ली और उनके साथ दो बेटियां हुई। शिव शादी के बाद चंडीगढ़ चले गये। वहां वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत रहे। पर कहते है बटालवी उस लड़की को नहीं भूल नहीं सके और उसकी याद में लिखते गए। की पुछ दे ओ हाल फ़कीरां दा साडा नदियों बिछड़े नीरां दा साडा हंज दी जूने आयां दा साडा दिल जलया दिलगीरां दा धीरे-धीरे, बटालवी शराब की दुसाध्य लत के चलते 7 मई 1973 को लीवर सिरोसिस के परिणामस्वरूप जग को अलविदा कह गए। कहते है कि जीवन के अंतिम दौर में उनकी माली हालत भी ठीक नहीं थी और अपने ससुर के घर उन्होंने अंतिम सांस ली। पर बटालवी जैसे शायर तो पुरानी शराब की तरह होते है, दौर भले बदले पर नशा वक्त के साथ गाढ़ा होता जाता है। ‘लूणा’ के लिए मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार : ऐसा नहीं है कि शिव कुमार बटालवी सिर्फ विरह के शायर थे। बटालवी का नाम साहित्य के गलियारों में बड़े अदब के साथ लिया जाता है। ऐसा हो भी क्यों ना इस दुनिया को अलविदा कहने से पहले वे ‘लूणा’ जैसा महाकाव्य लिख गए। इसी के लिए उन्हें सबसे कम उम्र में यानी महज 31 वर्ष की उम्र में साहित्य अकादमी पुरूस्कार भी मिला। ये सम्मान प्राप्त करने वाले वे सबसे कम उम्र के साहित्यकार है। ‘लूणा’ को पंजाबी साहित्य में ‘मास्टरपीस’ का दर्ज़ा प्राप्त है और साहित्य जगत में इसकी आभा बरक़रार है। कहा जाता था कि कविता हिंदी में है और शायरी उर्दू में। पर शिव ने जब पंजाबी में अपनी जादूगरी दिखाई तो उस दौर के तमाम हिंदी और उर्दू के बड़े बड़े शायर कवि हैरान रह गए। नायाब गायकों ने गाये बटालवी के गीत : बटालवी की नज्मों को सबसे पहले नुसरत फतेह अली खान ने अपनी आवाज दी थी। उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान ने उनकी कविता 'मायें नी मायें मेरे गीतां दे नैणां विच' को गाया था । जगजीत सिंह ने उनका एक गीत 'मैंनू तेरा शबाब ले बैठा' गाया तो दुनिया को पता चला की शब्दों की जादूगरी क्या होती है। नुसरत साहब और जगजीत सिंह - चित्रा सिंह के अलावा रबी शेरगिल, हंस राज हंस, दीदार सिंह परदेसी सहित एक से बढ़कर एक नायाब गायकों ने बटालवी की कविताएं गाई। उनकी लिखी रचनाओं को गाकर न जाने कितने गायक शौहरत पा गए। बटालवी आज भी हर दिल अजीज है। बटालवी और विरह जुदा नहीं । बटालवी तो आखिर बटालवी है।
"....विपक्ष बीजेपी के खिलाफ अधिकांश एक उम्मीदवार उतारने की रणनीति बना रहा है। माना जा रहा है कि विपक्ष 475 लोकसभा सीटों पर बीजेपी के खिलाफ एक साझा उम्मीदवार उतारने की कोशिश में है। विपक्ष की मंशा साफ है कि वह अधिकांश सीटों पर एकजुट होकर भाजपा का सामना करें। हालांकि मौजूदा समय में ये ख़याली पुलाव ज्यादा है। दरअसल कांग्रेस के बिना ये संभव है नहीं और आम आदमी पार्टी जैसे दलों के साथ कांग्रेस के आने की सम्भावना कम है। जो दल राज्यों में एक दूसरे के खिलाफ तलवारें खींचे खड़े है वो केंद्र में भी एकसाथ आएं, ये व्यावहारिक नहीं लगता। छोटे दलों को ये भी डर है कि कांग्रेस के साथ आने से उनका वोट बैंक फिर कांग्रेस की तरफ खिसक सकता है, जो मोटे तौर पर उन्होंने कांग्रेस से ही छिटका है..." हर पार्टी के पास चुनाव लड़ने का समान अवसर होना लोकतंत्र की बुनियादी ज़रूरत है, लेकिन मौजूदा समय में साधन और कैडर के मामले में बीजेपी सभी दलों पर भारी दिखती है। इसी अंतर को पाटने की कोशिश में विपक्षी दल एक साथ आने लगे है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बड़ी जीत से केंद्र की राजनीति में बीजेपी विरोधी दलों की हैसियत कम हुई है। तब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को अकेले करीब 45 प्रतिशत वोट मिले थे। तब से अब तक स्थिति में बड़ा बदलाव होता नहीं दिख रहा। ऐसे में जाहिर है विपक्ष भी जानता है कि एकजुट होकर ही भाजपा का सामना किया जा सकता है। आगामी लोकसभा चुनाव में महज़ 10 महीने का वक्त बचा है और भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए इसी विपक्ष के करीब 55 फीसदी वोट को एकजुट करने की बात हो रही है, जिसके लिए विपक्षी दलों की कोशिश जारी है। कर्नाटक के हालिया विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्षी एकता की कोशिशों को नया बल मिला है। इसका ताज़ा उदाहरण नए संसद भवन के उद्घाटन को छिड़े विवाद में दिखा है। इस मुद्दे पर पहली बार विपक्ष एकजुट नज़र आया और ये कवायद अब आगे भी बढ़ती दिख रही है। वहीं प्रशासनिक सेवाओं पर दिल्ली सरकार के अधिकार को नहीं मानने से जुड़े अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों को लामबंद करने में भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगे हैं। इन दोनों मुद्दों पर जिस तरह से विपक्षी दल ने नरेंद्र मोदी सरकार को घेरा, उससे सियासी गलियारे में इस पर बहस और तेज हो गई है कि क्या 2024 में चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ मजबूत विपक्षी गठबंधन बन सकता है। जिस विपक्षी गठबंधन की संभावना है, उसमें ज्यादातर वहीं दल शामिल हो सकते हैं, जिन्होंने संसद के नए भवन के उदघाटन समारोह का सामूहिक रूप से बहिष्कार करने की घोषणा की थी। इनमें मुख्य तौर पर 19 दल हैं, जिनमें कांग्रेस के साथ ही तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, जेडीयू, आरजेडी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, एनसीपी, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), सीपीएम और सीपीआई, राष्ट्रीय लोकदल और नेशनल कांफ्रेंस शामिल हैं। इनके अलावा इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (मणि), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, विदुथलाई चिरुथिगल काट्ची, मारुमलार्ची द्रविड मुन्नेत्र कड़गम शामिल हैं। निर्विवाद तौर पर इनमें से एकमात्र कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है, जिसका पैन इंडिया जनाधार है और बाकी विपक्षी दलों की पकड़ मौटे तौर पर राज्य विशेष तक ही सीमित है। कांग्रेस के अलावा टीएमसी पश्चिम बंगाल में, डीएमके तमिलनाडु में जेडीयू और आरजेडी बिहार में वहीं झामुमो झारखंड में प्रभावशाली है। समाजवादी पार्टी का प्रभाव उत्तर प्रदेश, एनसीपी और शिवसेना (ठाकरे गुट) का महाराष्ट्र, और नेशनल कांफ्रेंस का जम्मू-कश्मीर और राष्ट्रीय लोकदल का सीमित प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है। इनमें से आम आदमी पार्टी दो राज्यों पंजाब और दिल्ली में बेहद मजबूत स्थिति में है, वहीं गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में धीरे-धीरे जनाधार बनाने की कवायद में है। सीपीएम का प्रभाव केरल में सबसे ज्यादा रह गया है, जबकि पश्चिम बंगाल में भी उसके कैडर अभी भी मौजूद हैं। 19 दलों में से बाकी जो दल हैं उनका केरल और तमिलनाडु में छिटपुट प्रभाव है। क्या है विपक्ष का फॉर्मूला? गौरतलब है कि बीते एक माह में दो बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की है। कांग्रेस और सीएम नीतीश भी इस फार्मूला पर काम कर रहे हैं। अगले साल होने वाले चुनाव में विपक्ष साल 1974 का बिहार मॉडल लागू करना चाहता है। जिस तरह पूरा विपक्ष 1977 में कांग्रेस के खिलाफ हो गया था, वैसा ही कुछ अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में करने की कोशिश है। 1989 में राजीव गांधी की सरकार के खिलाफ वीपी सिंह मॉडल को सभी विपक्षी दलों ने अपनाया था, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है। इन दोनों चुनाव के दौरान विपक्ष ने एक सीट पर एक उम्मीदवार को उतारा था और सफलता हासिल हुई थी। हम इस बार के लोकसभा चुनाव में भी इसी रणनीति के तहत काम किया जा सकता है। विपक्ष की रणनीति : जिस सीट पर बीजेपी मजबूत स्थिति में दिखाई देगी, वहां पर सभी विपक्षी दल एक साथ मिलकर उसके (बीजेपी) खिलाफ उम्मीदवार उतारेंगे। अगर विपक्ष ऐसा करने में सफल रहे तो बीजेपी बेहद कम सीटों पर सिमट कर रह सकती है। इस रणनीति के तहत विपक्ष बिहार और महाराष्ट्र में मजबूत दिखाई दे रहा है। बिहार में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस एकजुट है तो वहीं महाराष्ट्र में उद्धव वाली शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस एकजुट है। इन दोनों राज्यों में बीजेपी को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। बिहार और महाराष्ट्र में लोकसभा की क्रमश: 40 और 48 सीटें आती है। ऐसे में यदि विपक्ष यहां पर अपनी स्थिति मजबूत करता है तो इससे यूपी की भरपाई हो सकती है, क्योंकि यूपी में बीजेपी की स्थिति काफी ज्यादा मजबूत है। यहां लोकसभा की कुल 80 सीटें है। पश्चिम बंगाल में भी अगर ममता और कांग्रेस साथ आते है, तो कुछ लाभ स्वाभाविक है। क्या कहते हैं आंकड़े? 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करीब 38 फ़ीसदी वोट के साथ 303 सीटें मिली थीं। वहीं दूसरे नंबर पर कांग्रेस रही थी, जिसे क़रीब 20 फ़ीसदी वोट और महज़ 52 सीटें मिली थी। इसमें ममता बनर्जी की टीएमसी को 4 फीसदी से ज़्यादा वोट मिले थे और उसने 22 सीटें जीती थी। जबकि एनसीपी को देश भर में क़रीब डेढ़ फीसदी वोट मिले थे और उसके 5 सांसद जीते थे। वहीं शिवसेना 18, जेडीयू 16 और समाजवादी पार्टी 5 सीटें जीत सकी थी। इन चुनावों में एनडीए को बिहार की 40 में से 39 सीटें मिली थी, लेकिन अब जेडीयू और बीजेपी के अलग होने के बाद राज्य में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदले नजर आते हैं। इसमें बीजेपी को 24 फीसदी वोट मिले थे, जबकि उसकी प्रमुख सहयोगी जेडीयू को क़रीब 22 फ़ीसदी और एलजेपी को 8 फीसदी वोट मिले थे। इन चुनावों में एलजेपी से दोगुना वोट पाने के बाद भी आरजेडी को एक भी सीट नहीं मिली थी, जबकि कांग्रेस को क़रीब 8 फीसदी वोट मिलने के बाद महज़ एक ही सीट मिल पाई थी। इन्हीं आंकड़ों में विपक्षी एकता की ज़रूरत भी छिपी है और इसी में नीतीश कुमार को एक उम्मीद भी दिखती है। बिहार में एलजेपी और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक जनता दल के अधिकतम वोट एनडीए के पास आने पर ये 35 फीसदी के क़रीब दिखता है। जबकि राज्य में महागठबंधन के पास 45 फीसदी से ज़्यादा वोट हैं। 1. बीजेपी बनाम कांग्रेस (161 सीटें ) 12 राज्य और 3 केंद्र शासित प्रदेश जिसमें 161 लोकसभा सीटें शामिल हैं, यहाँ बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला देखने को मिला था। 147 सीटें ऐसी जहां दोनों के बीच सीधा मुकाबला था। वहीं 12 सीटों पर क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दल को चुनौती देते दिखे। 2 सीटों पर क्षेत्रीय दलों के बीच ही मुकाबला था। इसमें मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, असम, छत्तीसगढ़, हरियाणा राज्य शामिल हैं। यहां बीजेपी को 147 सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस को 9 और अन्य के खाते में 5 सीट गई। 2.बीजेपी बनाम क्षेत्रीय दल (198 सीटें) यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा, इन 5 राज्यों की 198 सीटों पर अधिकांश में बीजेपी और रीजनल पार्टी के बीच ही मुकाबला रहा। 154 सीटों पर सीधा बीजेपी और क्षेत्रीय दलों के बीच मुकाबला था। 25 सीटों पर कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच मुकाबला था। 19 सीटों पर क्षेत्रीय दलों के बीच ही मुकाबला था। बंगाल की 42 सीटों में से 39 सीटों पर बीजेपी या तो पहले या दूसरे नंबर पर थी। पिछले चुनाव में बीजेपी को यहां 116 सीटों पर, कांग्रेस 6 और अन्य को 76 सीटों पर जीत मिली। 3.कांग्रेस बनाम क्षेत्रीय दल (25 सीटें ) 2019 के चुनाव में कांग्रेस केरल, लक्षद्वीप, नागालैंड, मेघालय और पुडुचेरी की 25 सीटों में से 20 पर पहले या दूसरे नंबर पर रही। यहां बीजेपी लड़ाई में भी नहीं दिखी। केरल की केवल एक सीट थी जहां बीजेपी को दूसरा स्थान हासिल हुआ था। यहां 17 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली। वहीं अन्य को 8 सीटें मिलीं। 4.यहां कोई भी मार सकता है बाजी (93 सीटें ) 6 राज्य ऐसे हैं जहां की 93 सीटों पर सबके बीच मुकाबला देखा गया। 93 सीटों पर बीजेपी, कांग्रेस और क्षेत्रीय दल सभी मजबूत नजर आए। महाराष्ट्र इसका उदाहरण है जहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों गठबंधन के साथ में हैं। यहां पिछले चुनाव में बीजेपी को 40, अन्य को 41 और कांग्रेस को 12 सीटों पर जीत हासिल हुई। 5.सिर्फ क्षेत्रीय पार्टी का ही दबदबा (66 सीटें ) तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मिजोरम और सिक्किम की 66 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां सिर्फ क्षेत्रीय दलों का ही दबदबा है। तमिलनाडु की 39 सीटों में से सिर्फ 12 सीटों पर ही कांग्रेस या बीजेपी का थोड़ा आधार है, वह भी गठबंधन के सहारे। यहां 58 सीटों पर अन्य और 8 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली। बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था। कई विपक्षी दल एकजुटता से रहेंगे बाहर ऐसे तो विपक्ष में और भी दल हैं, जिनकी पकड़ राज्य विशेष में है। इनमें बीजेडी का ओडिशा में, बसपा का यूपी में, वाईएसआर कांग्रेस का आंध्र प्रदेश में, बीआरएस का तेलंगाना में अच्छा-खासा प्रभाव है। जेडीएस का कर्नाटक के कुछ सीटों पर प्रभाव है। हालांकि नवीन पटनायक, मायावती, जगन मोहन रेड्डी, के. चंद्रशेखर राव, और एच डी कुमारस्वामी का फिलहाल जो रवैया है, उसके मुताबिक इन दलों के कांग्रेस की अगुवाई में बनने वाले किसी भी गठबंधन में शामिल होने की संभावना बेहद क्षीण है। ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों पर जीत की संभावना के नजरिए से बीजेपी के लिए सबसे निर्णायक राज्यों में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, हरियाणा, उत्तराखंड, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और असम शामिल हैं।
मेडिकल कोर्स में एडमिशन लेने का इंतजार कर रहे उम्मीदवारों को अब नीट यूजी रिजल्ट का ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। उम्मीदवार जल्द ही एनटीए नीट की आधिकारिक वेबसाइट neet.nta.nic.in पर अपना स्कोरकार्ड चेक कर सकेंगे। एनटीए ने परीक्षा की आंसर की पिछले सप्ताह जारी की थी जिसपर ऑब्जेक्शन प्राप्त कर लिए गए हैं. अब सभी आपत्तियों पर विचार के बाद फाइनल आंसर की तैयार होगी और रिजल्ट जारी किए जाएंगे। एनटीए आज-कल में नीट यूजी का रिजल्ट जारी करने वाला है। एनटीए यूजी का रिजल्ट जून के दूसरे सप्ताह में जारी करने वाला था लेकिन अभी तक जारी नहीं किया गया है। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि एनटीए किसी भी समय नतीजे घोषित कर सकता है। पिछले पैटर्न पर नजर डाली जाए तो एनटीए देर रात नीट के नतीजे घोषित करता है। बता दें कि इस बार 20,87,449 उम्मीदवारों ने नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट यूजी (NEET UG) -2023 की परीक्षा दी थी। परीक्षा 7 मई, 2023 को भारत के बाहर 14 शहरों समेत पूरे देश के 499 शहरों में स्थित विभिन्न 4097 विभिन्न केंद्रों पर आयोजित की गई थी, जिसमें 97.7 प्रतिशत उपस्थिति दर्ज की गई थी
पंजाब सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए पेट्रोल-डीजल पर लगने वाला वैट बढ़ा दिया है। अब पंजाब के लोगों को एक लीटर पेट्रोल के बदले ज्यादा कीमत देनी होगी। वहीं डीजल के दामों में भी इजाफा हुआ है। अब राज्य में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 98.65 रुपये होगी। वहीं डीजल की कीमत 88.95 रुपये प्रति लीटर हो चुका है।
भिलाई में मैत्री बाग में सफेद शेरनी ने एक साथ तीन शावको को जन्म दिया है। सभी शावको को डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है सफेद शेरनी रोमा ने डेढ़ माह पूर्व एक नन्हे शावक को जन्म दिया था वर्तमान में मैत्री बाग में नौ सफेद शेर मौजूद हैं। मैत्री बाग उद्यान विभाग प्रबंधन के डॉ. एनके जैन द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार शेरनी रक्षा ने तीन नन्हें शावकों को जन्म दिया है। इनके पिता का नाम सुल्तान है इसके एक वर्ष पूर्व भी शेरनी रोमा ने एक नन्हें शावक को जन्म दिया गया था। जन्म के पश्चात चार माह तक नन्हें शावकों को मां के सानिध्य में डाक्टरों की विशेष निगरानी में स्तनपान एवं अन्य कारणों से डार्क रूम में रखा जाता है। मैत्री बाग में जन्मे नन्हें शावकों को भी डॉक्टर द्वारा अपनी निगरानी में रखा गया है और मेडिसिन के रूप में उन्हें विशेष प्रकार की विटामिन युक्त दवाइयां दी जा रही है।
ऑफिसर्स प्रशिक्षण अकादमी (OTA) में आयोजित 23वीं पासिंग आउट परेड में 82 जेंटलमैन कैडेट पास आउट हुए, 1वर्ष के बुनियादी सैन्य प्रशिक्षण पूरा करने के बाद इंजीनियरिंग ट्रेनिंग के लिए देश के विभिन्न सैन्य इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट, मिलिट्री इंजीनियरिंग कॉलेज और 3 साल की ट्रेनिंग के बाद कमीशन पाते हैं। ओटीए ने 82 सैन्य अधिकारियों को देश के लिए किया समर्पित पासिंग आउट परेड व शपथ ग्रहण के साथ ओटीए ने 82 सैन्य अधिकारियों को देश के लिए समर्पित कर दिया। वहीं 82 जेंटलमैन कैडेट, टेक्निकल एंट्री स्कीम क्रमांक- 37 के अंतर्गत देश के विभिन्न सैन्य तकनीकी संस्थानों जैसे- मिलिट्री इंजीनियरिंग कॉलेज सिकंदाराबाद, मऊ और पुणे इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने के लिए रवाना हुए। अन्य देशों के 11 कैडेट्स भी शामिल अन्य देशों के 11 कैडेट्स ने भी अपनी देश की सेना में कमीशन प्राप्त किया है, जिसमे भूटान के पांच कैडेट्स, श्रीलंका के तीन कैडेट्स , म्यामार के दो और नेपाल के एक कैडेट्स शामिल हैं।
बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में की गई। इस बैठक में किसान, गुरुग्राम सिटी सेंटर मेट्रो सहित कई कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए। बैठक में एक बड़ा फैसला बीएसएनएल (BSNL) को लेकर लिया गया है। कैबिनेट ने बीएसएनएल के लिए 89,000 करोड़ रुपये के पैकेज को मंजूरी दे दी है। इस रकम का इस्तेमाल BSNL की 4G और 5G सर्विसेज को बढ़ाने के लिए किया जाएगा। BSNL को तीसरा रिवाइवल पैकेज कैबिनेट बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि मोदी कैबिनेट ने बीएसएनएल के लिए तीसरे रिवाइवल पैकेज को मंजूरी दी है। गौरतलब है कि BSNL के लिए यह केंद्र द्वारा घोषित पहला रिवाइवल पैकेज नहीं है इससे पहले सरकार ने पिछले साल जुलाई 2022 में भी टेलीकॉम पीएसयू को अधिक लाभदायक संगठन में तब्दील करने के उद्देश्य से 4जी और 5जी सेवाएं प्रदान करने के लिए एक पैकेज की घोषणा की थी। जो बीएसएनएल की सेवाओं को बढ़ावा देना और गुणवत्ता में सुधार के साथ ही बीएसएनएल के ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के विस्तार पर केंद्रित था। MSP में बंपर इजाफा पीयूष गोयल ने बताया कि 2023-24 के लिए धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को 143 रुपये बढ़ाकर 2,183 रुपये प्रति क्विंटल करने की मंजूरी दी गई। वहीं मूंग का न्यूनतम समर्थन मूल्य सबसे अधिक बढ़ाकर 8,558 रुपये प्रति क्विंटल किया गया। मूंग दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सबसे ज्यादा 10.4 फीसदी, मूंगफली पर 9%, सेसमम पर 10.3%, धान पर 7%, जवार, बाजरा, रागी, मेज, अरहर दाल, उड़द दाल, सोयाबीन और सूरजमुखी बीज पर वित्त वर्ष 2023-2024 के लिए लगभग 6 से 7 प्रतिशत की वृद्धि की गई है।
झारखंड स्टाफ सेलेक्शन कमीशन ने झारखंड इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग ऑफिसर कांपटीटिव एग्जामिनेशन 2023 के लिए योग्य उम्ममीदवारों से आवेदन मांगे हैं। कैंडिडेट्स जो इन भर्तियों के लिए अप्लाई करना चाहते हों, वे आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर फॉर्म भर सकते हैं। इस रिक्रूटमेंट ड्राइव के माध्यम से इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग ऑफिसर के कुल 904 पद भरे जाएंगे। बता दे इन पदों के लिए केवल ऑनलाइन आवेदन कर सकते है। इसके लिए जेएसएससी की ऑफिशियल वेबसाइट jssc.nic.injssc.nic. पर आवेदन किया जा सकता है। अप्लाई करने की लास्ट डेट इन पद पर अप्लाई करने के लिए कैंडिडेट किसी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से आईटीआई/एनसीटी/डिग्री/डिप्लोमा (इंजीनियरिंग) में होना अनिवार्य है या इसके समकक्ष योग्यता रखने वाले उम्मीदवार भी आवेदन कर सकते हैं। इन पद के लिए एज लिमिट 21 से 35 साल तय की गई है। आरक्षित श्रेणी को ऊपरी आयु सीमा में छूट मिलेगी। इन वैकेंसी के लिए अभी केवल नोटिस जारी हुआ है। इसके लिए 23 जून 2023 से रजिस्ट्रेशन शुरू होंगे और फॉर्म भरने की लास्ट डेट 22 जुलाई 2023 है। आवेदन शुल्क 100 रुपये है। आरक्षित श्रेणी को शुल्क के रूप में 50 रुपये देने हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल वाजपेयी ने 1991 में कहा था, "अगर आज मैं जिंदा हूं तो राजीव गांधी की वजह से।" दरअसल भारतीय राजनीति में एक दौर ऐसा भी था जब विरोध के बावजूद नेता एक दूसरे का सम्मान करते थे, एक दूसरे की फ़िक्र करते थे, सहायता करते थे और उसका ढिंढोरा भी नहीं पिटते थे। मदद भी हो और सामने वाले का आत्मसम्मान भी बना रहे। ऐसे ही एक वाक्या है राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ा। जिस शालीनता के साथ राजीव गाँधी ने अटल बिहारी वाजपेयी की मदद की थी, उसकी मिसाल मुश्किल है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में कांग्रेस की आंधी थी और 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने विरोधी दल के बड़े बड़े बरगद उखड़ गये। अटल बिहारी वाजपेयी जो विपक्ष के सबसे लोकप्रिय नेता थे, वे खुद ग्वालियर से चुनाव हार गए। इस चुनाव में भाजपा के सिर्फ दो सांसद ही जीते थे। एक गुजरात से और दूसरे आंध्र प्रदेश से। पर इस हार से न तो अटल बिहारी वाजपेयी का कद कम हुआ और न ही और प्रधानमंत्री राजीव गांधी से उनके निजी रिश्तों पर कोई असर पड़ा। कुछ वक्त बाद अटल बिहारी वाजपेयी को किडनी संबंधी बीमारी से परेशान रहने लगी। बीमारी गंभीर थी और उस वक्त भारत में इसका उचित इलाज संभव न था। डॉक्टरों ने सलाह दी कि अमेरिका जा कर इलाज कराने की सलाह दी थी। पर अटल जी की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे अमेरिका जा कर अपना इलाज करवा ले। ये बात किसी तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को मालूम हो गयी। एक दिन अटल उन्होंने बिहारी वाजपेयी को औपचारिक मुलाकात के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय आने के निमंत्रण दिया। वाजपेयी जी गये तो राजीव गांधी ने कहा, सरकार ने तय किया है कि आपके नेतृत्व में भारत का एक प्रतिनिधिमंडल संयुक्त राष्ट्र भेजा जाएँ। सरकार आपके अनुभव का फायदा उठाना चाहती है। इस सरकारी दौरे में आप अमेरिका में अपनी बीमारी का इलाज भी करा सकते हैं। इस तरह वाजपेयी अमेरिका गए और उन्होंने अपनी बीमारी का इलाज कराया, जिससे उनकी जान बच सकी। अपने जीवित रहते हुए राजीव गांधी ने कभी किसी दूसरे से इस मदद की चर्चा नहीं की। सब लोगों को ये ही लगा कि अटल जी बड़े नेता है और शानदार वक्ता भी , सो उनकी योग्यता के आधार पर संयुक्त राष्ट्र भेजा गया है। अटल जी भारत के वे पहले नेता थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दे कर देश का गौरव बढ़ाया था। राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और अटल बिहारी वाजपेयी विपक्षी दल के नेता थे। भाजपा और कांग्रेस के बीच विरोध का रिश्ता था। राजीव गांधी चाहते तो वाजपेयी जी को मदद करने की बात सार्वजनिक कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। अटल बिहारी वाजपेयी की जब तबीयत ठीक हो गयी तो उन्होंने एक पोस्टकार्ड लिख कर राजीव गांधी का आभार जताया था। ये राज शायद राज ही रह जाता, लेकिन 1991 में राजीव गांधी की हत्या ने अटल बिहारी वाजपेयी को विचलित कर दिया। तब उन्होंने राजीव गांधी की उदारता और विशिष्टता को बताने के लिए ये किस्सा बयां किया। राजनीति के दो परस्पर विरोधी, लेकिन दोनों एक दूसरे के प्रति उदार, दोनों के मन में एक दूसरे के लिए सम्मान, भारतीय राजनीति ने ऐसे नेता और ऐसा दौर भी देखा है।
अपमान और प्रतिशोध, यूपी में मायावती का राजनीतिक करियर भी लगभग जयललिता जैसा है। जयललिता 25 मार्च 1989 में सदन में हुई बदसलूकी के बाद 6 बार सीएम बनी, तो उत्तर प्रदेश में मायावती, 1993 में गेस्ट हाउस कांड के बाद दलितों की एकमात्र नेता बनकर उभरी। दरअसल, 1993 में सपा और बसपा की गठबंधन में सरकार बनने के बाद मुलायम सिंह सीएम थे। साल 1995 में जब बसपा ने गठबंधन से अपना नाता तोड़ा तो मुलायम सिंह के समर्थक आग बबूला हो गए। इसी बीच 2 जून को अचानक लखनऊ का गेस्ट हाउस घेर लिया गया जहां मायावती मौजूद थी। मायावती पर हमला हुआ, उन्हें जान से मारने की कोशिश हुई। इस बीच भाजपा ने बसपा को समर्थन देने का ऐलान किया और घटना के अगले ही दिन मायावती पहली दफा यूपी की सीएम कुर्सी पर विराजमान हुईं। 1993 में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और बीएसपी प्रमुख कांशीराम ने गठजोड़ किया था। तब उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश का हिस्सा था और कुल विधानसभा सीट थी 422। चुनाव पूर्व हुए गठबंधन में मुलायम सिंह 256 सीट पर लड़े और बीएसपी को 164 सीट दी थी। एसपी- बीएसपी गठबंधन की जीत हुई जिसमें एसपी को 109 और बीएसपी को 67 सीट मिली थी। मुलायम सिंह यादव बीएसपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने, लेकिन आपसी मनमुटाव के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई और सरकार को बचाने के लिए जोड़-घटाव होने लगा लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद नाराज सपा के कार्यकर्ता और विधायक लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच गए, जहां मायावती कमरा नंबर-1 में ठहरी हुई थी। तदोपरांत जो हुआ वह शायद ही कहीं हुआ होगा। मायावती पर गेस्ट हाउस में हमला हुआ था। उस वक्त मायावती अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थी, तभी कथित समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की भीड़ ने अचानक गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया। बताया जाता है कि अपनी जान पर खेलकर बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी मौके पर पहुंचे और सपा विधायकों और समर्थकों को पीछे ढकेला। द्विवेदी की छवि भी दबंग नेता की थी। ब्रम्हदत्त द्विवेदी संघ के सेवक थे और उन्हें लाठी चलानी भी बखूबी आती थी इसलिए वो एक लाठी लेकर हथियारों से लैस गुंडों से भिड़ गए थे। ये कांड भारत की राजनीति के माथे पर कलंक है और यूपी की राजनीति में इसे गेस्ट हाउस कांड कहा जाता है। खुद मायावती ब्रम्हदत्त द्विवेदी को भाई कहती है और सार्वजनिक तौर पर कहती रही कि अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने मायावती की जान बचाई थी। मायावती ने कभी उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। पूरे राज्य में मायावती बीजेपी का विरोध करती रहीं, लेकिन फर्रुखाबाद में ब्रम्हदत्त द्विवेदी के लिए प्रचार करती थी।
देश की राजनीति में जब कोई नेता एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होता है तो उसके लिए 'आया राम गया राम' वाले जुमले का इस्तेमाल होता है। राजनीति में इस कहावत की शुरुआत कैसे और कहां से हुई, इसका किस्सा भी बेहद रोचक है। कैसे दलबदलू नेताओं के लिए इस जुमले का इस्तेमाल होने लगा? इसका जवाब हरियाणा की राजनीति में छुपा है। साल था 1967 का और इस कहानी के मुख्य किरदार थे, उस समय के विधायक गया लाल। गया लाल हरियाणा के हसनपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे। गया लाल निर्दलीय विधायक चुनकर आए थे। 1967 में हरियाणा विधानसभा के लिए पहली बार चुनाव हुआ था और कुल 16 निर्दलीय विधायक जीतकर आए थे जिनमें गया लाल भी एक थे। उस समय हरियाणा विधानसभा में 81 सीटें थी।चुनाव नतीजे आने के बाद हरियाणा में तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदले और गया लाल कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन बाद में वे संय़ुक्त मोर्चा में वापस आ गए। नौ घंटे बाद उनका मन फिर बदला और गया लाल फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए। यानी गया लाल ने एक ही दिन में 3 बार अपनी पार्टी बदली थी। बाद में कांग्रेस नेता राव बीरेंद्र सिंह जब विधायक गया लाल को लेकर प्रेस वार्ता करने के लिए चंडीगढ़ पहुंचे तो उन्होंने पत्रकारों के सामने कहा कि ‘गया राम अब आया राम हैं।’ राव बीरेंद्र सिंह के इस बयान ने बाद में ‘आया राम गया राम’ कहावत का रूप ले लिया और देशभर में जब भी नेताओं के दल बदल की खबरें आई तो इसी कहावत का इस्तेमाल होने लगा। हरियाणा की पहली विधानसभा में ‘आया राम गया राम’ की रवायत ऐसी रही कि बाद में विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा और 1968 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। इसके बाद 28 जून 1979 को भजन लाल हरियाणा नें जनता पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री बने थे। 1980 में जब इंदिरा गांधी लोकसभा चुनाव जीत कर फिर से सत्ता में आई तो भजन लाल ने फिर पाला बदला और जनवरी 1980 में भजन लाल जनता पार्टी के सारे विधायकों को लेकर पूरे दल बल के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। भजन लाल को इसलिए 'आया राम, गया राम' की रवायत का पुरोधा माना जाता है।
25 मार्च 1989 को तमिलनाडु विधानसभा में जो हुआ था वो भुलाया नहीं जा सकता। उस दिन एक महिला के स्वाभिमान और अस्तित्व पर हमला हुआ था। दरअसल तमिलनाडु विधानसभा में बजट पेश किया जा रहा था। जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके ने हाल के ही विधानसभा चुनाव में 27 सीटें जीती थीं और तमिलनाडु की विधानसभा को विपक्ष में एक महिला नेता मिली थी। डीएमके सरकार में थी और मुख्यमंत्री थे एम करुणानिधी। सदन में जैसे ही बजट भाषण पढ़ा जाना शुरू हुआ जयललिता और उनकी पार्टी के नेताओं ने विधानसभा में हंगामा शुरू कर दिया। इसी बीच अन्नाद्रमुक के किसी नेता ने करुणानिधी की तरफ फाइल फेंकी, जिससे उनका चश्मा गिरकर टूट गया। करुणानिधि पर हुए हमले का बदला लेने के लिए न केवल जयललिता का विरोध किया गया बल्कि हद पार की गई। हंगामा बढ़ता देख जयललिता सदन से बाहर जाने लगी, तभी एक मंत्री ने उन्हें बाहर जाने से रोका और उनकी साड़ी खींची, जिससे उनकी साड़ी फट गई और वो खुद भी जमीन पर गिर गईं। भरी सभा में उनकी साड़ी खींचकर, बाल नोचकर उन्हें चप्पल मारी। इस बीच उनके कंधे पर लगी सेफ्टी पिन खुल गई और चोट के कारण खून बहने लगा। फटी हुई साड़ी के साथ जयललिता विधानसभा से बाहर आ गईं। जयललिता ने सदन से निकलते हुए कसम खाई थी कि वो मुख्यमंत्री बनकर ही इस सदन में वापस आएंगी वरना कभी नहीं आएंगी। इसके दो साल बाद 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद चुनाव में जयललिता के नेतृत्व वाले एआईएडीएमके ने कांग्रेस से समझौता किया। दोनों दलों को तमिलनाडु के चुनाव में 234 में 225 पर जीत मिली। इसके बाद जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बन गईं और उनकी कसम पूरी हुई। एक इंटरव्यू में जयललिता ने कहा था, “25 मार्च 1989 में विधानसभा में हुए हमले से ज्यादा मेरे लिए कुछ अपमानजनक नहीं है। मुख्यमंत्री करुणानिधि वहीं थे। उनकी दोनों पत्नियां भी वीआईपी बॉक्स में बैठकर देख रही थीं। उनके हर विधायक और मंत्री ने मुझे खींच-खींचकर शारीरिक शोषण किया। उनका हाथ जिस पर गया उन्होंने उसे खींचा चाहे कुर्सी हो, माइक हो या भारी ब्रास बेल्ट। अगर वह उस दिन सफल होते तो आज मैं जिंदा न होती। मेरे विधायकों ने उस दिन मुझे बचाया। उनमें से एक ने मेरी साड़ी भी खींची। उन्होंने मेरे बाल खींचे और कुछ तो नोच भी डाले। उन्होंने मुझ पर चप्पल फेंकी। कागज के बंडल फेंके। भारी किताबें मारी। उस दिन मैंने सदन को आँसुओं और गुस्से के साथ छोड़ा। मैंने कसम खाई कि जब तक ये आदमी मुख्यमंत्री बनकर सदन में होगा मैं यहाँ नहीं बैठूंगी और जब मैं उस सदन में दोबारा गई तो मैं चीफ मिनिस्टर थी। मैंने दो साल में अपनी कसम पूरी की।”
बात 1979 की है। शाम के करीब छह बज रहे थे और यूपी के इटावा इलाके के ऊसराहार पुलिस स्टेशन में करीब 75 साल का एक परेशान किसान धीमी चाल से थाना परिसर में दाखिल होता है। थाने में अकेला एक फटेहाल, मजबूर किसान, पुराना धोती कुर्ता पहने थाने में तैनात पुलिसकर्मियों से पूछता है, 'दरोगा साहब हैं।' जवाब मिला, वो तो नहीं है। वहां मौजूद एएसआई और अन्य पुलिसकर्मी पूछते हैं कि आप कौन हैं, यहां, क्यों आए हैं? जवाब में वो बुजुर्ग कहता है कि रपट लिखवानी है। पुलिस वालों ने कारण पूछा तो उसने कहा कि मेरी किसी ने जेब काट ली है, जेब में काफी पैसे थे। इस पर थाने में तैनात एएसआई कहता है कि ऐसे थोड़े रपट लिखा जाता है। बुजुर्ग कहता है कि मैं, मेरठ का रहने वाला हूं, खेती-किसानी करता हूं और यहां पर सस्ते में बैल खरीदने के लिए पैदल ही वहां से आया हूं। पता चला था यहां पर बैल सस्ते में मिलता है। जब यहां आया तो जेब फटी मिली जिसमें कई सौ रुपए थे। पॉकेटमार वो रुपए लेकर भाग गया। उस दौर में कई सौ रुपए का मतलब बहुत कुछ होता था। बुजुर्ग की बात सुनकर पुलिस वालों ने कहा कि तुम पहले ये बताओ मेरठ से चलकर इतनी दूर इटावा आए हो। कैसे मान लें जेबकतरों ने मार लिए पैसे, पैसा गिर गया हो तो, यह कैसे कहा जा सकता है। थाने में मौजूद पुलिसकर्मी ने कहा, हम ऐसे रपट नहीं लिखते। परेशान बुजुर्ग ने कहा कि मैं, घर वालों को क्या जवाब दूंगा। बड़ी मुश्किल से पैसे लेकर यहां आया था। इस पर पुलिसकर्मियों ने कहा कि समय बर्बाद मत करो और यहाँ से चले जाओ। किसान मिन्नत करता रहा और कुछ देर तक इंतजार करने के बाद फिर किसान ने रपट लिखने की गुहार लगाई, मगर सिपाही ने अनसुना कर दिया। आख़िरकार किसान निराश हो गया और उसके कदम थाने से बाहर की तरफ मुड़ गए। इतने में, थानेदार साहब भी वहां आ गए, और किसान की उम्मीद फिर बंध गई। किसान ने उनसे भी गुहार लगाई लेकिन वो भी रपट लिखने को तैयार नहीं हुए। परेशान होकर घर लौटने के इरादे से वो किसान थाने के गेट तक बाहर जा पहुंचा और वहीं पर खड़ा हो सोचने लगा। पर तभी थोड़ी देर बाद एक सिपाही को उस पर रहम आ गया। उस सिपाही ने पास आकर कहा, 'रपट लिखवा देंगे, पर खर्चा पानी लगेगा'। इस पर किसान ने पूछा, कितना लगेगा। बात सौ रुपए से शुरू हुई और 35 रुपए देने की बात पर रपट लिखने का सौदा हो गया। ये बात सिपाही ने जाकर सीनियर अफसर को बताई और अफसर ने रपट लिखवाने के लिए किसान को बुला लिया। रपट लिख ली गया और अंत में मुंशी ने किसान से पूछा, ‘बाबा हस्ताक्षर करोगे या अंगूठा लगाओगे। थानेदार के टेबल पर स्टैंप पैड और पेन दोनों रखा था। बुजुर्ग किसान ने कहा, हस्ताक्षर करूंगा। यह कहने के बाद उन्होंने पैन उठा लिया और साइन कर दिया और साथ ही टेबल पर रखे स्टैंप पैड को भी खींच लिया। मुंशी सोच में पड़ गया, जब हस्ताक्षर करेगा तो अंगूठा लगाने की स्याही का पैड क्यों उठा रहा है? किसान ने अपने हस्ताक्षर में नाम लिखा, ‘चौधरी चरण सिंह’ और मैले कुर्ते की जेब से मुहर निकाल कर कागज पर ठोंक दी, जिस पर लिखा था ‘प्रधानमंत्री, भारत सरकार।’ इसके बाद थाने में हड़कंप मच गया, आवेदन कॉपी पर पीएम की मुहर लगा देख पूरा का पूरा थाना सन्न था। कुछ ही देर में पीएम का काफिला भी वहां पहुंच गया। जिले के सभी आला अधिकारी धड़ाधड़ मौके पर पहुंचे और थाने के पुलिसकर्मियों सहित डीएम एसएसपी, एसपी, डीएसपी, अन्य पुलिसकर्मी, आईजी, डीआईजी सबके सकते में आ गए। सभी यह सोच रहे थे कि, अब क्या होगा? किसी को भनक नहीं थी कि पीएम चौधरी चरण सिंह खुद इस तरह थाने आकर औचक निरीक्षण करेंगे। पीएम चौधरी चरण सिंह ने उक्त थाने के सभी कर्मचारियों को सस्पेंड करने का आदेश दिया और चुपचाप रवाना हो गए। कौन थे चौधरी चरण सिंह चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को मेरठ जिले के बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव में हुआ था। वे स्वतंत्रता सेनानी थे और 1940 में सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जेल भी गए। 1952 में चौधरी चरण सिंह कांग्रेस सरकार में राजस्व मंत्री बने और किसान हित में जमींदारी उन्मूलन विधेयक पारित किया। फिर 1967 में वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और लेकिन1968 में उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। 1970 में वे फिर यूपी के सीएम बने। उसके बाद वो केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने और उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। कांग्रेस से अलग होने के बाद वे 1977 की जनता पार्टी की सरकार में भी शामिल हुए। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बने।
तारीख थी 10 जनवरी 1981, जयपुर में रविन्द्र मंच पर एक कार्यक्रम में कवयित्री महादेवी वर्मा मुख्य अतिथि थी और कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्ननाथ पहाड़िया। तब पहाड़िया ने मंच पर बोलते हुए कहा था कि महादेवी वर्मा की कविताएं मेरे कभी समझ नहीं आईं कि वे क्या कहना चाहती हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कह दिया था कि साहित्य ऐसा हो कि जो सबके समझ में आना चाहिए। इसके बाद लेखकों की मंडली ने इंदिरा गांधी से जमकर शिकायत की और आलाकमान ने पहाड़िया को हटा दिया। हिंदुस्तान की सियासत में ऐसा किस्सा कोई दूसरा नहीं है। हालांकि, जानकारों का कहना है कि इसकी पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी, इसके पीछे कई और भी कारण थे। जगन्ननाथ पहाड़िया राजस्थान के पहले दलित मुख्यमंत्री थे। 15 जनवरी 1932 को जन्मे पहाड़िया 6 जून 1980 से जुलाई 1981 तक 11 महीने राजस्थान के सीएम रहे थे। पहाड़िया को 1957 में सबसे कम उम्र का सांसद बनने का मौका मिला, जब वो सांसद चुने गए तब उनकी उम्र महज 25 साल 3 माह थी। उस समय के प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू पहाड़िया से इतने प्रभावित हुए कि पहली मुलाकात में ही कांग्रेस का टिकट दे दिया था। पहाड़िया की राजनीति में एंट्री का एक रोचक किस्सा है, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनसे कहा था कि आप चुनाव क्यों नहीं लड़ते! तब जगन्नाथ पहाड़िया ने जवाब में कहा कि आप मुझे टिकट दे दीजिए मैं चुनाव लड़ लूंगा। इसके बाद 1957 में जगन्नाथ पहाड़िया को सवाई माधोपुर सीट से लोकसभा टिकट दे दिया गया और दूसरी लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद बनकर सदन में पहुंचे। कहते है पहाड़िया को सीएम की कुर्सी पर लाने वाले खुद संजय गांधी थे। जगन्ननाथ पहाड़िया संजय गांधी के करीबी माने जाते थे। संजय की बदौलत ही वे राजस्थान के एकमात्र दलित सीएम भी रहे। 13 महीने के कार्यकाल में उन्होंने राजस्थान में पूरी तरीके से शराब बंदी कर दी थी। हालांकि कुर्सी छोड़ने का कारण बड़ा ही अजीब बताया जाता है। एक कार्यक्रम में कवित्री महादेवी वर्मा पर उनकी टिप्पणी उनकी सियासत पर भारी पड़ गई। इसके बाद वह राजनीति में मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं, राज्यपाल के तौर पर वापिस आए। वे बिहार और हरियाणा राज्य के राज्यपाल रहे।
6 जून 1981, ये वो दिन है जब बिहार में देश का सबसे बड़ा रेल हादसा पेश आया था। बरसात का मौसम चल रहा था और शाम का समय था, यात्रियों से खचाखच भरी 9 बोगियों वाली गाड़ी संख्या 416dn पैसेंजर ट्रेन, मानसी से सहरसा के लिए जा रही थी। ट्रेन बदला घाट और धमारा घाट स्टेशन के बीच पड़ने वाली बागमती नदी पर बनें पुल संख्या-51 से गुजर ही रही थी कि अचानक दुर्घटनाग्रस्त हो गई। तब पिछले 7 डिब्बे ट्रेन से अलग होकर नदी में गिर गए। बरसात का मौसम था और बागमती नदी का जलस्तर भी बढ़ा हुआ था, पलक झपकते ही ट्रेन नदी में डूब गई। ट्रेन के उन 7 डिब्बों में सवार यात्रियों को बचाने वाला वहां कोई नहीं था। आसपास के लोगों के नदी के पास पहुंचने तक सैकड़ों लोगों की नदी में डूबकर मौत हो चुकी थी। इस हादसे को भारत का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा बताया गया। इस हादसे के कई दिनों बाद तक सर्च ऑपरेशन जारी रहा। बताया जाता है कि गोताखोरों की 5 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद नदी से 200 से भी ज्यादा लाशें निकालीं गई। बताया जाता है कि इस रेल हादसे में करीब 800 लोगों ने अपनी जान गवाई थी।
खून के सैलाब के बीच चारों ओर चीख-पुकार ओर क्षत-विक्षत अंगविहीन शव। रोते-बिलखते हुए, अपनों को तलाशते लोग। कुछ को अपनों का धड़ मिला, तो किसी को सिर। जो कुछ वक्त पहले जीवित थे, उन्हें टुकड़ों में बटोरा गया। इस हादसे से कई परिवार बिखर गए। ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार शाम करीब 7 बजे हुए ट्रेन हादसे में कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन के कई कोच तबाह हो गए। एक इंजन तो मालगाड़ी के रैक पर ही चढ़ गया। आलम ये था कि भीषण टक्कर में खिड़कियों के कांच टूट गए और करीब 50 लोग बाहर जाकर गिरे। इस हादसे में मरने की संख्या 280 पार है, वहीं, 900 से ज्यादा लोग घायल हैं। मरने वालों का आंकड़ा और भी बढ़ सकता है। मिली जानकारी के मुताबिक, पहले शालीमार-चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस डिरेल हुई। इसके कुछ डिब्बे दूसरी पटरी पर पलटे और दूसरी तरफ से आ रही यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस से टकरा गए। इसके बाद दोनों ट्रेन की 15 बोगियां पटरी से उतर गईं। ये बोगियां दूसरे ट्रैक पर खड़ी मालगाड़ी से भिड़ गईं। टक्कर इतनी भीषण थी कि पैसेंजर ट्रेन का इंजन मालगाड़ी पर चढ़ गया। NDRF की 9 टीमें तैनात: NDRF की 9 टीमें मौके पर तैनात हैं। घटना के सवा घंटे के अंदर पहली टीम वहां पहुंच गई थी। बचाव अभियान में 300 से ज्यादा लोग लगे हुए हैं।
साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी दल एक बार फिर इकट्ठे होते दिखाई देंगे। भाजपा को सत्ता से बाहर करने की चाह रखने वाले दलों के नेता पटना में एक बैठक करने वाले हैं। इस मीटिंग को जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने 12 जून को बुलाया है। इस बैठक में 24 विपक्षी दलों के शामिल होने की संभावना है। पार्टी के नेतृत्व ने पहले ही 18 दलों के साथ योजना पर चर्चा की है, शेष दलों से कुछ दिनों में विचार-विमर्श किया जाएगा। बताया जा रहा है कि विभिन्न दलों और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच लंबे समय तक बातचीत हुई है। पटना में 12 जून को होने वाले विपक्षी मीट में कम से कम 24 राजनीतिक दलों के शामिल होने की संभावना है। जेडीयू 18 दलों से चर्चा कर चुकी है, बाकी 6 दलों से बातचीत कुछ ही दिनों में हो जाएगी।
अमृतसर से जम्मू-कश्मीर आ रही एक बस के गहरी खाई में गिर जाने से 10 लोगों की मौत हो गई। जम्मू जिला कलेक्टर कार्यालय ने कहा कि दुर्घटना में एक दर्जन यात्री घायल हो गए और उन्हें अस्पताल ले जाया गया। बस कटरा के रियासी जिले में हादसे का शिकार हुई। बताया जा रहा है कि बस तीर्थयात्रियों को माता वैष्णो देवी मंदिर ले जा रही थी। कटरा त्रिकुटा पहाड़ियों के ऊपर स्थित प्रसिद्ध तीर्थस्थल के लिए आधार शिविर है। वहीं, जम्मू के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक चंदन कोहली ने पीटीआई बताया, "10 लोगों की मौत की पुष्टि हो गई है और 20 अन्य घायल हुए हैं। बचाव अभियान जारी है।" स्थानीय निवासी और पुलिस मौके पर पहुंची और बचाव अभियान शुरू किया। घायलों को जम्मू के जीएमसी अस्पताल ले जाया गया। बताया जा रहा है कि बस में बिहार के लोग थे जो कटरा जा रहे थे।
नए संसद भवन के उद्घाटन के मुद्दे पर सियासित गरमाई हुई है। इसे लेकर बिहार के राष्ट्रीय जनता दल ने ट्विटर पर एक विवादित फोटो भी पोस्ट की है। राष्ट्रीय जनता दल ने एक ताबूत की तस्वीर के साथ नए संसद भवन की तुलना करते हुए लिखा कि ये क्या है? हालांकि विवाद बढ़ने पर राष्ट्रीय जनता दल ने सफाई दी है। राष्ट्रीय जनता दल नेता शक्ति सिंह यादव ने कहा कि लोकतंत्र को दफन कर दिया गया है, इसलिए हमारे ट्वीट में ताबूत प्रतीकात्मक तौर पर दिखाया गया है। देश इसे स्वीकार नहीं करेगा। संसद, लोकतंत्र का मंदिर होती है और ऐसी जगह होती है, जहां चर्चाएं होती हैं। इस पर भाजपा का पलटवार राष्ट्रीय जनता दल के इस ट्वीट की आलोचना भी शुरू हो गई है। भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने राष्ट्रीय जनता दल के इस ट्वीट पर पलटवार करते हुए लिखा कि 'आज एक ऐतिहासिक पल है और देश गौरवान्वित है। आप नजरबट्टू हैं और कुछ नहीं। छाती पीटते रहिए। 2024 में देश की जनता आपको इसी ताबूत में बंद करके गाड़ देगी और नए लोकतंत्र के मंदिर में आप को आने का मौका भी नहीं देगी। चलिए यह भी तय हुआ कि संसद देश की और ताबूत आपका।'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज नए संसद भवन का उद्घाटन किया। इससे पहले पीएम मोदी ने अधीनम (संतों) की मौजूदगी में ऐतिहासिक 'सेंगोल' को स्थापित किया। उद्घाटन से एक दिन पहले तमिलनाडु से आए अधीनम ने इस ऐतिहासिक राजदंड को पीएम मोदी को सौंपा था। सेंगोल तमिल शब्द सेम्मई से बना है, इसका अर्थ होता है- नीतिपरायणता। नई संसद में स्थापना के बाद अब सेंगोल को देश के पवित्र राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर जाना जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि ब्रिटिश हुकूमत की तरफ से भारत को हस्तांतरित किए गए सत्ता के प्रतीक ऐतिहासिक ‘सेंगोल’ को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। ‘सेंगेाल’ अभी प्रयागराज के एक संग्रहालय में रखा गया था । तमिलनाडु का चोल साम्राज्य भारत का एक प्राचीन साम्राज्य था। तब चोल सम्राट सत्ता का हस्तांतरण सेंगोल सौंपकर करते थे। भगवान शिव का आह्वाहन करते हुए राजा को इसे सौंपा जाता था। नेहरू को राजा गोपालचारी ने इसी परंपरा के बारे में बताया। इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सेंगोल परंपरा के तहत सत्ता हस्तांतरण की बात को स्वीकार किया और तमिलनाडु से इसे मंगाया गया। सबसे पहले लॉर्ड माउंट बेटन को ये सेंगोल दिया गया और फिर उनसे हत्तांतरण के तौर पर इसे वापस लेकर नेहरू के आवास ले जाया गया। जहां गंगाजल से सेंगोल का शुद्धिकरण किया गया। उसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ नेहरू को इसे सौंप दिया गया। बताया जाता है कि प्रयागराज म्यूजियम में यह गोल्डन स्टिक पहली मंजिल पर बनाई गई नेहरू गैलरी के एंट्रेंस गेट पर बने शोकेस में रखी गई थी। इस गैलरी में पंडित नेहरू के बचपन की तस्वीरों से लेकर उनके घरों के मॉडल ऑटो बॉयोग्राफी और उपहार में मिली हुई तमाम वस्तुएं रखी गईं हैं। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के निर्देश पर यह सेंगोल तकरीबन 6 महीने पहले 4 नवंबर 2022 को प्रयागराज म्यूजियम से दिल्ली के नेशनल म्यूजियम भेज दी गई थी।
जेठ के महीने में तपते राजस्थान में सियासत भी खूब गरमाई हुई है। इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने है और सत्ताधारी कांग्रेस का भीतरी सियासी पारा रिकॉर्ड तोड़ रहा है। कभी गहलोत के को-पायलट रहे सचिन पायलट अपनी ही सरकार की किरकिरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। उधर, गहलोत भी हमेशा की तरह अपने चिर परिचित अंदाज में सियासी बिसात जमाने में लगे है। पांच साल से खींची आ रही दोनों नेताओं के बीच की अदावत शायद अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। संभवतः पायलट और कांग्रेस की राह जुदा होने का समय अब आ चुका है। राजस्थान कांग्रेस का पिछले पांच साल का सियासी घटनाक्रम किसी सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं रहा है। 2018 में सचिन पायलट के सियासी अरमान क्रैश कर अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे और साबित किया था कि उन्हें 'सियासत का जादूगर' क्यों कहा जाता है। दरअसल 2013 में कांग्रेस के चुनाव हारने के बाद से वो सचिन पायलट ही थे जो राजस्थान में बतौर अध्यक्ष कांग्रेस की वापसी की जमीन तैयार करते रहे। वहीँ गहलोत बतौर राष्ट्रीय महासचिव केंद्र में सक्रिय थे। पर 2018 का विधानसभा चुनाव नजदीक आते -आते गहलोत राजस्थान लौटे और इसी के साथ ये लगभग तय था कि पायलट के हाथ खाली रहने वाले है। नतीजे आएं तो जो कांग्रेस डेढ़ सौ सीट का दावा कर रही थी वो 99 पर अटक गई जो बहुमत से दो कम था। पायलट के कई करीबी चुनाव हारे और चुनकर आएं विधायकों में गहलोत समर्थकों का बहुमत था। वहीं बाहरी समर्थन से सरकार बनानी भी थी और पांच साल चलानी भी थी, सो लाजमी था कि अनुभवी गहलोत को ही कमान मिले। हुआ भी ऐसा ही, गहलोत सीएम बने और पायलट डिप्टी सीएम। सचिन पायलट को डिप्टी सीएम का पद दिल से मंजूर नहीं था, ये तो सर्वविदित है। उधर गहलोत के अपने तेवर, अपना तरीका है। भविष्य की झलक शपथ ग्रहण में ही दिख गई थी जब डिप्टी सीएम के लिए सीएम के बगल में अलग से कुर्सी लगवानी पड़ी। आखिर, खींची तलवारें कब तक मयान में रहती, आहिस्ता -आहिस्ता तल्खियों की झलकियां दिखने लगी और स्पष्ट हो गया कि राजस्थान कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं है। साल था 2020 और मार्च महीने में सचिन पायलट के दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी का दामन थाम चुके थे और मध्य प्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था। गहलोत भी इस बात को समझ रहे थे कि भाजपा का अगला निशाना वे ही होंगे। जून में राजस्थान में 3 राज्यसभा सीटों का चुनाव था और अशोक गहलोत को दगाबाजी का डर था, इसलिए 19 जून को चुनाव से करीब एक सप्ताह पहले ही विधायकों की बाड़ेबंदी कर दी गई थी। इसके साथ ही गहलोत ने इशारों इशारों में सचिन पायलट पर निशाना- साधना शुरू कर दिया था। गहलोत आक्रामक होते गए और विधायकों की खरीद-फरोख्त मामले में राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने कई निर्दलीय विधायकों के साथ ही डिप्टी सीएम सचिन पायलट को भी नोटिस भेजा। कहा गया कि अशोक गहलोत के इशारों पर सचिन पायलट को नोटिस भेजा गया है, हालांकि खुद गहलोत को भी नोटिस मिला था। इसके बाद पायलट और उनके साथी विधायक शिकायत लेकर दिल्ली पहुंच गए और इसी नोटिस को वजह बताकर बगावत कर दी। सत्ता के उड़न खटोले को उड़ाने की इच्छा लिए पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर के एक रिज़ॉर्ट में शिफ्ट हो गए। बताया गया उनके साथ 25 विधायक थे और पायलट ने अशोक गहलोत सरकार के अल्पमत में आ जाने का ऐलान कर दिया। उधर भाजपा पूरा तमाशा देख रही थी और मौके की तलाश में थी। पर गहलोत को यूँ ही सियासत का जादूगर नहीं कहा जाता। दरअसल खतरे को भांपते हुए गहलोत पहले ही अपनी रणनीति पक्का करने में जुटे थे और कभी भी बैकफुट पर नहीं दिखे। पायलट खेमे से कुछ विधायक को गहलोत ले ही आएं, बसपा के 6 और अन्य छोटे दलों के विधायकों के अलावा निर्दलीय भी गहलोत ने पहले ही साध रखे थे। सीएम आवास पर 13 जुलाई को विधायक दल की बैठक बुलाई गई और मौजूदा विधायकों की संख्या करीब 106 बताई गई जो बहुमत से 5 ज्यादा थी। इसके बाद पायलट गुट के तीन विधायक भी गहलोत के साथ हो लिए और पायलट के पास कुछ नहीं बचा। गहलोत ने अपने सियासी दाव पेंचों को साधते हुए सरकार बचा ली। उधर, सचिन पायलट को भी कांग्रेस आलाकमान मनाने में कामयाब हो गया और पायलट लौट आएं लेकिन कमजोर होकर। उनके पास न डिप्टी सीएम का पद रहा और न प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का। सरकार और संगठन, दोनों में बैकफुट पर चल रहे सचिन पायलट की उम्मीद 2022 के अंत में फिर जगी। दरअसल, अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए गांधी परिवार की पसंद थे। माना जा रहा था कि गहलोत सीएम का पद छोड़ पार्टी की कमान संभालेंगे, पर गहलोत का इरादा सीएम की कुर्सी छोड़ने का नहीं था। खासतौर से पायलट के लिए छोड़ने का तो बिलकुल नहीं था। गहलोत ने खुलकर कहा कि जिसने सरकार गिराने की साजिश की वो विधायकों को मंजूर नहीं है। आलाकमान सीएम पद पर पायलट को सेट करना चाह रहा था, पर गहलोत के मन में कुछ और ही चल रहा था। नए राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव की गहमागहमी के बीच पार्टी आलाकमान ने जयपुर में विधायक दल की बैठक बुलाई ताकि नए मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति बन सके। माना जाता है कि आलाकमान पायलट को कमान देने का मन बना चुका था लेकिन गहलोत को ये मंजूर नहीं था। बैठक में गहलोत समर्थित विधायक नहीं पहुंचे और ये गहलोत का आलाकामन को सन्देश था कि पायलट नहीं चलेंगे। आलाकामन भी गहलोत के आगे बेबस हुआ और गहलोत सीएम पद पर बने रहे। हालांकि राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए उनकी जगह मालिकार्जुन खरगे को बढ़ाया गया। अब बीते कुछ दिनों से फिर राजस्थान कांग्रेस में खींचतान चरम पर है। पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। पायलट भी जानते हैं कि इस बार बगावत का नतीजा काफी अलग हो सकता है। सचिन पायलट, गहलोत सरकार पर भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाते हुए सरकार को घेर रहे हैं। वे विशेषकर वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत के बीच मिलीभगत के आरोप लगा रहे है। पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ यात्रा निकाल रहे है। यानी पानी सर से ऊपर उठता दिख रहा है और जानकार मान रहे है कि उन्हें पार्टी से निष्कासित भी किया जा सकता है। शायद पायलट खुद ऐसा चाहते हों ताकि उन्हें सहानुभूति मिल सके। उधर गहलोत खेमे का कहना है कि सचिन पायलट छोटी छोटी बातों पर रुठ जाते हैं, वह नाखून कटवा कर शहीद बनने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच निगाहें टिकी है आलाकमान पर। ये देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी आलाकमान किस तरह इस समस्या का हल निकालता है। उलझे सियासी समीकरण, क्या होगा अगला कदम ? अगर पायलट और कांग्रेस की राह अलग होती है तो उनका अगला ठिकाना क्या होगा, इसे लेकर भी कयासबाजी हो रही है। दरअसल, राजस्थान भाजपा में भी कई गुट है और पायलट इनमें से एक वसुंधरा राजे के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोले हुए है। ऐसे में पायलट का भाजपा में जाना मुश्किल लगता है बशर्ते वसुंधरा भाजपा में पूरी तरह दरकिनार हो जाएँ। पर वसुंधरा की जमीनी पकड़ को देखते हुए भाजपा के लिए ऐसा करना आत्मघाती हो सकता है। उधर, बीते दिनों वसुंधरा को उनकी सरकार बचाने में सहायक बताकर गहलोत पहले ही बड़ा सियासी दांव चल चुके है जिसने सबको कंफ्यूज किया हुआ है। ऐसे में जब तक भाजपा आलाकमान अपना मन न बना ले, कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। वहीँ सचिन पायलट के सामने अपनी अलग पार्टी बनाने का विकल्प भी है और माहिर मान रहे है कि पायलट इसी नीति पर आगे बढ़ेंगे। यदि पायलट जाते है और कांग्रेस में बड़ी टूट होती है तो निसंदेह गहलोत की सत्ता वापसी मुश्किल होगी। वहीँ भाजपा के लिए भी पायलट शायद ऐसी स्थिति में जायदा फायदेमंद हो।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने पर सिद्धारमैया को बधाई दी है। सुखविंदर सिंह सुक्खू भी आज बेंगलुरु में आयोजित उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। मुख्यमंत्री ने उम्मीद जताई कि सिद्धारमैया के दूरदर्शी और सक्षम नेतृत्व में कर्नाटक राज्य विकास के नए आयाम स्थापित करेगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी गरीब और शोषित वर्गों का विशेष ध्यान रखने के साथ समाज के प्रत्येक वर्ग के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।
राष्ट्रीय पेंशन योजना कर्मचारी संघ, कर्नाटक के सदस्यों ने आज बेंगलुरु में मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू से भेंट की तथा हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए आभार व्यक्त किया। संघ के अध्यक्ष शांताराम तेजा के नेतृत्व में सदस्यों ने राज्य में कांग्रेस सरकार के गठन के बाद से सरकारी कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय लेने के लिए मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया। उन्होंने उम्मीद जताई कि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार के गठन के बाद अब यहां भी जल्द ही पुरानी पेंशन योजना बहाल होगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने से लगभग 1.36 लाख कर्मचारियों को लाभ हुआ है। उन्होंने राज्य की विकास यात्रा में कर्मचारियों के महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार किया और उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने कर्मचारियों और पेंशनरों दोनों को तीन प्रतिशत महंगाई भत्ता दिया है। उन्होंने राज्य की वित्तीय स्थिति में सुधार होने पर कर्मचारियों को अतिरिक्त लाभ प्रदान करने का आश्वासन दिया।
कर्नाटक में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और पार्टी ने बहुमत का जादुई आंकड़ा पार कर लिया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री कौन होगा इसे लेकर भी माथपच्ची शुरू हो गई है। सीएम पद की रेस में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार सबसे आगे हैं और इन दोनों में से किसी एक नेता का चुनाव पार्ट के लिए सरदर्द साबित हो सकता है। सिद्धारमैया ज्यादा अनुभवी और वरिष्ठ नेता हैं और उनके पास सरकार चलाने का अनुभव है, जबकि डीकेएस चुनौती देने वाले नेता हैं और सोनिया गांधी करीबी हैं। ऐसे में आलाकमान के लिए फैसला मुश्किल होने वाला है। वैसे माहिर मान रहे है कि अगर सभी विधायकों के बहुमत के साथ भी फैसला लिया जाता है तो सिद्धारमैया अधिक स्वीकार्य मुख्यमंत्री चेहरा हो सकते है। सिद्धारमैया : बड़ा कद, लम्बा राजनैतिक अनुभ राज्य में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता सिद्धारमैया को फिर से मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। सिद्धारमैया साल 2013 से लेकर साल 2018 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं। ऐसे में सिद्धारमैया पार्टी की पहली पसंद हो सकते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपने कार्यकाल के दौरान कई सामाजिक-आर्थिक सुधार योजनाएं शुरू की थी जिन्होंने उन्हें आर्थिक कमजोर वर्ग के बीच ख़ासा लोकप्रिय बनाया। पर अपनी पिछली सरकार के दौरान उन्होंने कुछ ऐसे फैसले भी लिए थे जिनसे लिंगायत, विशेष रूप से हिंदू वोटरों के बीच में उनकी लोकप्रियता घटी, मसलन टीपू सुल्तान को इतिहास से हटाकर उनका महिमामंडन करना, जेल से आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे पीएफआई और एसडीपीआई के कई कार्यकर्ताओं को रिहा करना इत्यादि। 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी उनके नेतृत्व में रिपीट करने में कामयाब नहीं रही थी जिसके बाद कांग्रेस ने जेडीएस के साथ गठबंधन सरकार बनाई। हालाँकि वो सरकार महज एक साल ही चल सकी। अब दोबारा बहुमत मिलने पर क्या कांग्रेस फिर सिद्धारमैया को सीएम पद सौपेंगी, ये देखना रोचक होगा। डीके शिवकुमार: प्रदेश अध्यक्ष, कमतर नहीं दावा चुनाव नतीजे के एक दिन पहले ही डीके शिवकुमार ने एक ट्वीट किया है, जिससे यह साफ संकेत मिल रहा है कि डीके शिवकुमार की दावेदारी कम नहीं है। दरअसल, कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों से ठीक एक दिन पहले डीके शिवकुमार ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अपनी तीन सालों की मेहनत का ट्रेलर का वीडियो साझा करते हुए, एक किस्म से अप्रत्यक्ष तौर पर मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश कर दी है। डीके शिवकुमार कनकपुरा सीट से लगातार 9वीं बार विधायक हैं। इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हराने में शिवकुमार की अहम् भूमिका है। हालाँकि मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स चोरी के आरोप में उन्हें साल 2019 में दिल्ली के तिहाड़ जेल में दो महीने बिताने पड़े थे। शिवकुमार कई बार कह चुके है कि जेल में रहने के दौरान उनके साथ नियम पुस्तिका के खिलाफ सबसे कठोर व्यवहार किया गया था क्योंकि उनकी गिरफ्तारी राजनीतिक प्रतिशोध थी। अब कांग्रेस क्या राज्य के सबसे अनुभवी नेता माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर उन्हें वरीयता देगी, इस पर सबकी निगाह टिकी है। सरप्राइज की सम्भावना भी खारिज नहीं ! कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी कर्नाटक से आते है और खरगे के नाम को लेकर भी कयास लगते रहे है। कर्नाटक कांग्रेस में दो ताकतवर गुट यानी सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार गुट आमने- सामने है और दोनों नेताओं के समर्थक खुलकर एक दूसरे पर वार करते नजर आए हैं। दोनों नेताओं के बीच खींचतान बनी हुई है, ऐसे में क्या खरगे सरप्राइज हो सकते है, ये देखना रोचक होगा। हालाँकि इसकी संभावना कम है पर राजनीति में कुछ भी मुमकिन होता है। लोग बदलाव चाहते थे और बदलाव हुआ - सीएम सुक्खू मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम में कांग्रेस की जीत का श्रेय सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को दिया। सुक्खू ने कहा कि कर्नाटक के लोग बदलाव चाह रहे थे और बदलाव हो गया है। कर्नाटक में लंबे समय से 40 हजार सरकारी नौकरी के पदों पर भर्ती नहीं हो सकी थी। उन्होंने कहा कि कर्नाटक में गवर्नेंस नाम की चीज ही नहीं थी। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी बतौर स्टार प्रचारक कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रचार किया था। कर्नाटक की जीत ने दिए 2024 के संकेत : प्रतिभा सिंह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सांसद प्रतिभा सिंह ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणामों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि लोगों ने भाजपा की धुव्रीकरण की राजनीति को पूरी तरह ठुकरा दिया हैं। हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत से साबित हो गया है कि देश में भाजपा के खिलाफ हवा चल रही हैं। उन्होंने कहा कि देश मे अब भाजपा की उल्टी गिनती शुरू हो गई हैं, और 2024 में केंद्र में कांग्रेस की लोकप्रिय सरकार बनेगी।
अन्य राज्यों में भी कांग्रेस अपनी जीत का लहराएंगी परचम: प्रतिभा सिंह हिमाचल कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणामों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि लोगों ने भाजपा की धुव्रीकरण की राजनीति को पूरी तरह ठुकरा दी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व सांसद प्रतिभा सिंह ने कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत पर खुशी व्यक्त करते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व मालिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी सहित सभी नेताओं को बधाई दी है। उन्होंने कर्नाटक के मतदाताओं का भी आभार व्यक्त करते हुए कहा है कि पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल से अब देश के अन्य राज्यों में भी कांग्रेस अपनी जीत का परचम लहराएंगी। ** 3.30 तक बजे की अपडेट.. "इस देश को मोहब्बत अच्छी लगती है"- राहुल गांधी कर्नाटक में कांग्रेस बहुमत से जीत दर्ज कराने के बेहद नजदीक है। रुझानों में पार्टी को अभी 130 तक सीटें मिलती दिखाई दे रही हैं। इसी बीच राहुल गांधी दिल्ली स्थित पार्टी दफ्तर पहुंचे। उन्होंने मीडिया के सामने आए 6 बार नमस्कार बोले। उन्होंने कहा " सबसे पहले मैं कर्नाटक की जनता को, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को, सब नेताओं को और उनके काम को बधाई देता हूं"। उन्होंने कहा कि कर्नाटक के चुनाव में एक तरफ सरकार के करीबी पूंजीपतियों की ताकत थी, तो दूसरी तरफ गरीब जनता की शक्ति थी। इस चुनाव में शक्ति ने ताकत को हरा दिया। यही हर राज्य में होगा। कांग्रेस कर्नाटक में गरीबों के साथ खड़ी हुई। हम उनके मुद्दों पर लड़े। हमने नफरत और गलत शब्दों से ये लड़ाई नहीं लड़ी। हमने मोहब्बत से ये लड़ाई लड़ी। कर्नाटक ने दिखाया कि इस देश को मोहब्बत अच्छी लगती है। राहुल ने कहा कि कर्नाटक में नफरत का बाजार बंद हुआ है, मोहब्बत की दुकानें खुली हैं। ये सबकी जीत है। सबसे पहले यह कर्नाटक की जनता की जीत है। हमने चुनाव में कर्नाटक की जनता से 5 वादे किए थे। हम इन वादों को पहली कैबिनेट मीटिंग में पूरा करेंगे। **10.30 बजे तक की अपडेट.. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना शुरू हो चुकी है। शुरुआती रुझानों में कांग्रेस आगे चल रही है। सुबह 10.25 बजे तक के रुझानों के मुताबिक, कांग्रेस 118 सीटों पर बढ़त बनाए है। यानी कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है और अगर कोई बड़ा उलटफेर न हो तो इसमें अब अधिक नंबर का बदलाव होने की उम्मीद नहीं है। सत्ताधारी बीजेपी 76 सीट पर आगे चल रही है, जो बहुमत के नंबर से काफी पीछे है. वहीं,राज्य में किंगमेकर बनने की उम्मीद लगाए बैठी जेडीएस 24 सीटों पर आगे है। अन्य को 6 सीटों पर बढ़त है।रुझानों में कांग्रेस को दिख रही बढ़त के बाद कांग्रेस ने सरकार बनाने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। यदि पार्टी पर्याप्त नंबर हासिल करती है तो रविवार को कांग्रेस के विधायक दल की बैठक हो सकती है। बैठक के लिए आज शाम तक विधायक राजधानी बेंगलुरु पहुंच सकते हैं।
Maharashtra forest officials retrieved seventeen tiger whiskers from three poachers in Nagpur. The accused were Maharashtra residents from Nagpur and Bhandara regions. The Forest Department acted after receiving word from their credible source that a tiger whisker sale was about to take place. Deputy Forest Conservator B S Hada added, "We were keeping a close eye on the accused." We closed in on the three culprits on May 1, apprehended them, and seized 17 whiskers." The origin of the tiger whiskers and the forest division to which they belong are being investigated. Illegal poachers have a high demand for tiger whiskers since they are utilized by godmen and tantriks, making it a very profitable business for them.
The ongoing construction of Noida international airport faces yet another obstacle after starting its construction in 2021. First, it was clearance issues, and now the construction company is facing the problem of ongoing wildlife intrusions. The major wildlife species found around the airport area are Indian Blackbuck, Nilgai, Jackels, wild cats, and the Sarus crane. The operator of the Noida airport, Yamuna International Airport Pvt Ltd (YIAPL), sent a letter to the state authorities requesting that wildlife be taken away from the project site as the animals hinder construction. This is the fourth letter from Feb 2022 to the local authorities by the construction agency. In the letter, the YIAPL CEO Christoph Schnellmann wrote, “Since full-fledged construction started at the site with manpower and machinery, it has affected the habitation of the animals. The presence of wildlife will also impede the smooth and unhindered progress of construction activities". Measures Proposed: The biodiversity action plan prepared by the WII, Dehradun, will be executed by state-concerned authorities. The Aviation Authority will ensure that the WII regulations are implemented smoothly. A new survey will be undertaken in order to carry out the evacuation strategy. The state forest department has proposed the construction of an animal rescue and rehabilitation centre with a budget of Rs 5 crores and an area of around 5 hectares. As per the WII report, the two keystone species that reside in and around the airport area are the Blackbuck and Sarus crane. In the survey of 1,334 hectares area, 258 blackbucks were reported, while 76 Sarus cranes were recorded in independent sightings. DFO Srivastava said, "The Forest department would conduct a fresh survey to ascertain the exact population of the wildlife around the project site for carrying out an evacuation plan". In addition, Yamuna Expressway Industrial Development Authority (YEIDA) CEO Arun Vir Singh had promised to provide all ground support for it.
Following the birth of two Cheetah cubs in March to parents Siyaya and Freddie in India, which were translocated from Nambia (South Africa) to the Indian national park Kuno (India) in September 2022. The world is watching to see if the Cheetah can thrive in India again after its extinction in the 1950s caused by overhunting and poaching. In February, 12 cheetahs were relocated from South Africa to India to introduce 50 cheetahs from various African countries into several Indian national parks as part of "Project Cheetah." First Indian Cheetah conservation specialist P Giradkar said, “Cheetah is the only animal in recorded history to become extinct from India due to unnatural causes. Therefore, scientific studies on the ecological interaction between habitat composition, habitat quality, and demography of cheetahs and their prey are required to maintain viability,” Giridkar told DW. She was satisfied with the birth of cubs and added, “Increases in the number of reproductive events with longevity are key processes that influence annual individual performance that follows multiple generations. Of course, reproductive success depends on phenotypic, environmental, and genetic factors.” Key concerns that could hinder the effective reintroduction of cheetahs in India: Inadequate Habitat area: Experts indicated that the birth of cubs in captivity doesn’t indicate the success of the project. The major problem for effective rehabilitation is the appropriate habitat area for the wild cat's natural life cycle. Cheetahs, being solitary cats, require approximately 9800 Km2 for mating and survival. Wildlife biologist Ravi Chellam also showed concern and said, “India has erred…by bringing the cats much before habitats of adequate size and quality were ready. This prolonged captivity will have negative impacts on the cats. I sincerely hope that we do not import more cheetahs from Africa until we have secure and good quality habitats to host them.” Diseases and health issues: Recently, right before the birth of cubs, a female Cheetah (Sasha) died in captivity of Kidney disease. According to experts, the birth of cubs does not signify project success. Similarly, an individual's death does not reflect failure. However, this death foreshadows upcoming challenges that, if not controlled effectively, could lead to the project's downfall. Upcoming challenges for the project: The Cheetahs are currently in captivity, but once released into the wild, they will encounter a variety of issues. "Human-wildlife conflict, loss of habitat, prey population, poaching, and illegal wildlife trafficking, with cubs being taken for smuggling into the exotic pet trade" are among the issues.
हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में दस साल के बाद आईपीएल मैच होने जा रहा है। यह आईपीएल मैच मई में होगा। आईपीएल मैचों को देखने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा स्टेडियम में आ सकते हैं। दरअसल हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन दलाई लामा को निमंत्रण देने की तैयारी कर रहा है। मैचों को लेकर इसी माह होने वाली बैठक में दलाई लामा सहित अन्य मेहमानों के नामों की लिस्ट फाइनल की जाएगी। 2010 में धर्मशाला स्टेडियम में पहली बार हुए आईपीएल मैच में तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा ने पंजाब और डेक्कन चार्जर के मैच में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की थी। जिसमें उन्होंने मैदान में उतरकर क्रिकेट खिलाड़ियों के साथ मुलाकात की थी और आशीर्वाद दिया था। करीब 13 साल बाद एक बार फिर एचपीसीए तिब्बती धर्मगुरू को मैचों में बुलाने की तैयारी कर रहा है। एचपीसीए के सचिव अवनीश परमार ने कहा कि धर्मशाला में होने वाले दो आईपीएल मैचों में तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को न्योता दिया जाएगा। इसके बाद सभी मेहमानों को मैच का न्योता दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर तिब्बती धर्मगुरू दलाईलामा मैच में आते है तो यह एचपीसीए सहित क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए गौरव की बात होगी। क्रिकेट जगत के कई खिलाड़ी तिब्बती धर्मगुरू दलाईलामा में आस्था रखते हैं। जब धर्मशाला में मैच होते हैं तो क्रिकेट खिलाड़ी एचपीसीए के सहयोग से दलाई लामा से उनके निवास स्थान पर मिलकर आशीर्वाद लेते हैं। इसके अलावा टीमों की फ्रेंचाइजी के मालिक और पदाधिकारी भी दलाई लामा से मिलते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में इस बार कोई बढ़ोतरी नहीं की है और लोगों को राहत दी है। तीन दिन से चल रही आरबीआई की माॅनिटरी पाॅलिसी कमिटी के बैठक के बाद RBI गर्वनर शक्तिकांत दास ने कहा कि रेपो रेट में बढ़ोतरी का फैसला नहीं लिया गया है। हालांकि ग्लोबल स्थितियां चुनौतीपूर्ण हैं और इसके असर से भारतीय स्थितियों पर भी असर देखा गया है। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने बहुमत के साथ ये फैसला लिया है। वित्त वर्ष 2024 के लिए आरबीआई ने आर्थिक विकास दर में इजाफा ना करते हुए इसे 6.4 फीसदी से 6.5 फीसदी कर दिया है. इस तरह आरबीआई को ग्रोथ में बढ़ोतरी का भरोसा है। 6.5 फीसदी पर रहेगा रेपो रेट वित्त वर्ष 2023-24 के पहले मॉनिटरी पॉलिसी के तहत गर्वनर शक्तिकांत दास ने रेपो रेट में बढ़ोतरी नहीं करने की जानकारी दी है। अब आरबीआई रेपो रेट 6.50 फीसदी पर ही रहेगा। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए सरकार ने रेपो रेट में आखिरी बढ़ोतरी 8 फरवरी 2023 को की थी। पिछली आठ मॉनिटरी पॉलिसी में से छह बार हुई है बढ़ोतरी केंद्रीय बैंक ने आठ मॉनिटरी पॉलिसी बैठकों में से छह बार रेपो रेट में इजाफा किया है। पिछले साल मई से ये सिलसिला शुरू हुआ था। तब आरबीआई रेपो रेट 4 फीसदी पर था और अब रिजर्व बैंक का रेपो रेट 6.5 फीसदी पर पहुंच चुका है। आरबीआई गर्वनर शक्तिकांत दास का कहना है कि ग्लोबल स्तर पर बढ़ रहे संकट को ध्यान में रखते हुए भी ये फैसला लिया गया है। खुदरा महंगाई दर आरबीआई के लक्ष्य के ऊपर खुदरा महंगाई दर फरवरी में साल दर साल आधार पर 6.44 फीसदी बढ़ी थी, जो जनवरी के 6.52 प्रतिशत से कम रही है। हालांकि पिछले 12 रीडिंग में से 10 के लिए महंगाई दर केंद्रीय बैंक के अनिवार्य लक्ष्य सीमा 2 फीसदी से 6 फीसदी से ऊपर रही है।
After nearly seven decades of extinction, India recently celebrated the birth of two cheetah cubs via artificial insemination. Conservationists have successfully reintroduced cheetah cubs into India's protected areas through collaboration between the Wildlife Institute of India, the National Tiger Conservation Authority, and the Wildlife Trust of India. This news has revived interest in cheetah protection efforts in India and neighboring countries such as Nepal, where the big cats have been extinct for more than a century. Due to India’s success, Nepalese experts are now asking for the reintroduction of cheetahs into the country's protected areas, where they once roamed openly before becoming extinct due to hunting and habitat loss. Conservationists are hopeful that successful cheetah breeding in India can be replicated in other parts of the world, including Nepal. "Seeing the success of India's cheetah breeding program has inspired us to think that maybe we can also do something similar here in Nepal," said Tika Ram Adhikari, a senior wildlife conservation officer with the Department of National Parks and Wildlife Conservation in Nepal. "We are interested in exploring the possibility of reintroducing cheetahs into our protected areas and providing them with a safe habitat." India project's success has given conservationists working to protect endangered species and restore ecosystems around the globe renewed enthusiasm, resulting in renewed interest in cheetah conservation efforts.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है और चुनाव पूर्व हुए कई ओपिनियन पोल कांग्रेस के लिए उत्साहजनक है। दरअसल, कई ओपिनियन पोल कर्नाटक में पूर्ण बहुमत के साथ कांग्रेस की वापसी का दावा कर रहे है और यदि ऐसा होता है तो हिमाचल प्रदेश के बाद देश के एक और राज्य में कांग्रेस काबिज होगी। जाहिर है कर्नाटक जैसे बड़े राज्य में सत्ता वापसी कठिन दौर से गुजर रही पार्टी के लिए संजीवनी का काम कर सकती है। बहरहाल कांग्रेस का प्रयास ये ही होगा कि ओपिनियन पोल सही साबित हो और पार्टी चुनावी बेला में कोई बड़ी चूक न करें। राहुल गाँधी को सुनाई गई सजा के बाद उनकी संसद सदस्यता रद्द हुई है और निसंदेह कांग्रेस के लिए ये मुश्किल घड़ी है। पर जाहिर है कांग्रेस इस आपदा को अवसर में तब्दील करने के प्रयास में है। गौर करने लायक बात ये भी है कि राहुल गांधी की सदस्यता के मुद्दे पर कई विपक्षी दल खुलकर उनके साथ आएं है, यानी ये मुद्दा विपक्ष को एक मंच पर लाता दिखा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी की सदस्यता जिस तरह निरस्त की गई, उस पूरे घटनाक्रम ने उन विपक्षी दलों को भी कांग्रेस के साथ खड़ा कर दिया है, जिन दलों ने कांग्रेस से दूरी बनाई हुई थी। राहुल गांधी की सदस्यता ख़त्म करने के मामले ने विपक्ष के दूसरे दलों को भी सोचने को मजबूर कर दिया है। हालाँकि कांग्रेस की सरपरस्ती कबूल करने में कुछ दल अब भी हिचक रहे है, मगर फिर भी ये मसला तूल पकड़ता जा रहा है। इस बीच अगर कर्नाटक के नतीजे कांग्रेस के लिए अनुकूल रहते है तो जाहिर है कांग्रेस को लेकर अन्य विपक्षी दलों के रुख में भी कुछ लचीलापन आ सकता है। कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक में भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाया है। इस चुनाव को अभी से राहुल बनाम अदाणी मामले में जारी सियासी महाभारत के जनादेश से जोड़ कर देखा जा रहा है। साथ ही ये कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का गृह क्षेत्र है। उम्मीद है कि खड़गे के अध्यक्ष पद पर रहने से कर्नाटक में कांग्रेस को सियासी फायदा मिलेगा और दलित वोटों पर कमजोर हो रही पकड़ फिर से मजबूत होगी। वहीँ कर्नाटक में भाजपा को अपने नेता पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा पर बड़ा भरोसा है। प्रधानमंत्री मोदी उन्हें अपने विश्वसनीयों में गिनते हैं। येदियुरप्पा के नेतृत्व में ही पार्टी ने कर्नाटक में पहली बार कमल खिलाया था। लिंगायत समुदाय का येदियुरप्पा को समर्थन हासिल है। हालंकि येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाए जाने के बाद समीकरण बहुत अनुकूल नहीं दिखते। साल 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बीएस येदियुरप्पा को साथ बनाए रखने की है। बीजेपी ने 2021 में उन्हें सीएम पद से हटाकर बसवराज बोम्मई को सीएम बनाया था। माहौल बदल सकता है कर्नाटक : कांग्रेस अगर कर्नाटक में बेहतर कर पाती है तो छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश के आगामी चुनाव में भी कांग्रेस को एज मिल सकता है। जाहिर है कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनेगा। इसका असर 2024 में आम चुनाव पर पड़ने से भी इनकार नहीं किया जा सकता
खालिस्तान समर्थक और वारिस पंजाब दे का मुखिया अमृतपाल सिंह अभी भी पुलिस गिरफ्त से बाहर है। दो हफ्ते बाद भी पंजाब पुलिस अमृतपाल को पकड़ने में नाकाम है। अमृतपाल की तलाश में 300 से ज्यादा डेरों में सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है। पुलिस को सीसीटीवी और वीडियो के अलावा अमृतपाल कहीं नहीं दिख रहा। पंजाब पुलिस उसके सहयोगियों को पकड़ रही है, लेकिन अमृतपाल को अभी तक नहीं पकड़ पाई है। पंजाब पुलिस ने भगोड़े अमृतपाल सिंह के साथ मौके से फरार सहयोगी जोगा सिंह को बीते दिनों गिरफ्तार कर लिया है और उसे लुधियाना के पास सानेहवाल से पकड़ा गया था। अमृतपाल अपने सहयोगी पपलप्रीत और ड्राइवर जोगा के साथ होशियापुर से फरार हुआ था। उसने जोगा से कहा था कि वो अपना मोबाइल लेकर भाग जाए। पंजाब पुलिस जोगा सिंह का मोबाइल ट्रैक कर रही थी और उसी आधार पर अमृतपाल की लोकेशन ट्रैक कर रही थी। अमृतपाल ने एक वीडियो भी जारी किया था, जिसमें उसने कहा था कि मैं भगोड़ा नहीं हूं, बस बगावत के दिन काट रहा हूं। वहीं, पंजाब पुलिस ने अमृतपाल की तलाश में राज्य के सैकड़ों धार्मिक स्थानों में सर्च किया है।
सूरत कोर्ट द्वारा कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाने के बाद लोकसभा सचिवालय द्वारा उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई। जिस पर कांग्रेस भड़क गई है और भाजपा पर सोची समझी साजिश के तहत उनकी सदस्यता रद्द करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता कुलदीप सिंह राठौर ने भी इसको लेकर भाजपा पर निशाना साधा और इस उनकी सदस्यता रद्द करने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। उन्होंने कहा कि देश के लोकतंत्र में ऐसा पहली बार हुआ है।अभी तक फैसला सूरत कोर्ट ने सुनाया है और इसमें कानून की लंबी प्रक्रिया है उन्हें अपील करने का समय भी दिया गया था और हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने के रास्ते भी अभी खुले थे, लेकिन लोकसभा सचिवालय द्वारा जल्दबाजी में उनकी सदस्यता रद्द करने का फैसला लिया गया है। एआईसीसी प्रवक्ता कुलदीप सिंह राठौर ने कहा कि राहुल गांधी से केंद्र की मोदी सरकार डर गई है। जिस तरह से राहुल गांधी ने 4000 किलोमीटर की पैदल यात्रा कन्याकुमारी से कश्मीर तक की है, उससे देश में अलग माहौल बन गया है और वह जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी पदयात्रा में लाखों की संख्या में लोग जुड़े जिसे भाजपा की जमीन खिसकनी शुरू हो गई है। इसके अलावा अडानी प्रकरण को लेकर कांग्रेस जेपीसी का गठन करने की लगातार मांग कर रहा है, लेकिन उसका गठन नहीं कर रहे हैं और सोची-समझी रणनीति के तहत राहुल गांधी की घेराबंदी शुरू की गई। राठौर ने कहा कि राहुल गांधी द्वारा भाजपा सरकार की अधिनायकवादी शासन के खिलाफ राहुल गांधी खड़े हुए हैं। पहले उन्हें लोकसभा में बोलने का मौका नहीं देगा और अब उनकी सदस्यता को रद्द कर दिया गया है जो कि लोकतंत्र के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के इस फैसले से याफ है कि 2024 की इबारत लिखा जा रहा है। सत्ता में बैठे लोगों को लग रहा है कि उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक रही है लेकिन इससे कांग्रेस डरने वाली नहीं है। देश की जनता और कांग्रेस राहुल गांधी के साथ खड़ी है और जिस तरह से उनके साथ केंद्र सरकार बर्ताव कर रही है वह देश की जनता सहन करने वाली नहीं है और इसका जवाब भी जनता उन्हें आने वाले समय में देगी। केंद्र सरकार को ये फैसला महंगा पड़ने वाला है।
Recent sightings of stubble burning have been reported in Hoshiarpur region of Punjab. Stubble burning is a recurring annual problem in the northern Indian states of Punjab, Haryana and UP, which are major wheat and paddy producers. As per the ICAR data, these three states generate around 23 million tonnes of crop residue every year. This occurrence is not only a major contributor to air pollution and climate change but also has negative impacts on soil health, agriculture productivity, and human health. Moreover, the burning of crop residues reduces soil fertility and microbial activity, and leads to soil erosion. This, in turn, affects agricultural productivity and the livelihoods of farmers. Additionally, the smoke from burning crop residues reduces visibility on roads, leading to accidents and other hazards. To address the problem of stubble burning, the Indian government and state govts has taken several measures such as 'PM-Ash scheme', providing financial incentives to farmers, setting up of 'happy seeders' and educating farmers about the harmful effects of stubble burning. While these measures have helped to some extent in reducing stubble burning, much more is required to be done to address the issue. It is imperative for the government to take more stringent actions and engage in better implementation of policies to curb this dangerous practice and promote sustainable agricultural practices. The health and well-being of millions of Indians depend on it, and the future of the country's agriculture sector is at stake.
इतनी काम सैलरी लेते है CRED के CEO सीआरईडी के सीईओ ने बीते 26 फरवरी को इंस्टाग्राम पर आस्क मी एनीथिंग नामक एक आयोजन से जुड़े सत्र में अपने वेतन का खुलासा किया था। शाह ने बताया था कि उन्हें महज 15 ,000 का मासिक वेतन ही मिलता है। उनका मानना है कि उन्हें तब तक अच्छा वेतन नहीं मिलना चाहिए जब तक कि कंपनी लाभदायक नहीं बन जाती। कम से कम वेतन लेने की घोषणा करने वाले कंपनी के सीईओ की लिस्ट लंबी होती जा रही है। ऐसे सीईओ मानते हैं कि कंपनी के सीईओ का वेतन कंपनी के प्रदर्शन का प्रतिबिंब होना चाहिए। कंपनी सीईओ को तब तक भारी-भरकम सैलरी नहीं लेनी चाहिए जब कि कंपनी बढ़िया मुनाफा कमाने की स्थिति में ना हो। हालिया उदाहरण CRED के सीईओ कुणाल शाह का हैं। उन्होंने हाल ही में खुलासा किया कि वह एक सफल फिनटेक कंपनी का नेतृत्व करने के बावजूद 15,000 रुपये का ही मासिक वेतन लेते हैं। शाह का मानना है कि जब तक क्रेड मुनाफा कमाने वाली कंपनी नहीं बनती है तब तक वे भारी भरकम सैलरी लेने के अधिकारी नहीं है। शाह ने यह भी उल्लेख किया कि वह इस वेतन पर जीवित रहने में सक्षम हैं क्योंकि उन्होंने अपनी पिछली कंपनी फ्रीचार्ज को पर्याप्त राशि में बेचा था। शाह के इस खुलासे पर मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली है। कुछ लोग कंपनी के लाभदायक होने तक उच्च वेतन नहीं लेने के उनके फैसले की सराहना की है वहीं कुछ लोगों का मानना है कि ऐसी घोषणाएं महज आयकर से बचने की कवायद है। उनका तर्क है कि कुछ लोगों को ऐसी चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि उनके पास इसकी भरपाई करने के कई अन्य तरीके हैं।
पीएम मोदी ने कहा, "आज मुझे एक बार फिर कर्नाटक के विकास से जुड़े हजारों-करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट्स के लोकार्पण और शिलान्यास का अवसर मिला है। आज शिवमोगा को अपना एयरपोर्ट मिला है, यह बहुत ही भव्य और सुंदर है। यह सिर्फ एयरपोर्ट नहीं है बल्कि इस क्षेत्र के जवानों के सपनों की नई उड़ान का अभियान है।" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में तेजी से बढ़ते विमानन उद्योग पर प्रकाश डालते हुए सोमवार को कहा, ‘हवाई चप्पल पहनने वालों को हवाई जहाज में यात्रा करनी चाहिए और मैं ऐसा संभव होते देख रहा हूं। ’ प्रधानमंत्री मोदी ने शिवमोगा हवाई अड्डे का उद्घाटन करने के बाद एक जनसभा में कहा कि आने वाले दिनों में भारत को हजारों विमान चाहिए होंगे। जल्द ही भारत में बने (मेड-इन-इंडिया) यात्री विमान उपलब्ध होंगे। मोदी ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ‘एअर इंडिया’ 2014 से पहले अक्सर नकारात्मक वजहों से चर्चा में रहती थी और कांग्रेस शासन के दौरान उसे घोटालों के लिए पहचाना जाता था। 'गाड़ी हो या सरकार, डबल इंजन से स्पीड कई गुना बढ़ जाती है' कोई गाड़ी हो या सरकार... डबल इंजन लगता है तो उसकी स्पीड कई गुना बढ़ जाती है। पीएम मोदी ने कहा कि पहले जब कर्नाटक के विकास की चर्चा होती थी तो यह सब बड़े -बड़े शहरों तक ही सीमित रहती थी, लेकिन हमारी सरकार विकास को कर्नाटक के गांवों तक पहुँचाने का काम कर रही है।
राजधानी दिल्ली में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक होनी है। ये बैठक बेहद अहम मानी जा रही है जिसकी अध्यक्षता खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंग। इस बैठक में प्रधान मंत्री कैबिनेट मंत्रियों के साथ कई अहम मुद्दों पर चर्चा करेंगे। पिछले हफ्ते भारतीय जनता पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक हुई थी। इस बैठक में पीएम मोदी ने हिस्सा लेते हुए कहा था कि हमें देश के विकास के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर देना चाहिए और नए-नए कदम उठाने चाहिए, जिससे देश प्रगति की और अग्रसर हो। पीएम मोदी नें 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 चुनाव को लेकर जीत मंत्र भी दिया। इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि मुझे यकीन है कि पीएम मोदी और जेपी नड्डा के नेतृत्व में बीजेपी साल 2024 चुनाव बहुमत से जीतेगी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर देश के पीएम बनेंगे। इस बैठक में पीएम मोदी के साथ जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, निर्मला सीतारमण, एस जयशंकर समेत तमाम भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता शामिल हुए थे।
चीन में लगातार बढ़ रहे कोरोना के मामलों और फैलाव को रोकने के लिए चीन में लागू प्रतिबंधों के खिलाफ प्रदर्शन तेज हो गया है। इस बीच चीन में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे है। सोमवार को करीब 40,000 मामले सामने आए। ड्रैगन के देश चीन के लोगों ने उन पर जबरन थोपे गए लॉकडाउन का विरोध करने के लिए अनोखा तरीका अपनाया है। चीन की जनता हाथों में ए-4 साइज के सफेद पेपर लेकर सड़कों पर उतर आई है। ये सफेद पेपर महज पेपर नहीं है ये बोलने की आजादी पर लगाम लगाने के प्रतिरोध का प्रतीक है। इसमें बगैर कुछ कहे जनता साफ तौर पर सरकार को अपना विरोध जता रही है और वो सब कह रही है जो वो कह नहीं सकती है। कुछ लोग इस तरह के विरोध को सफेद पेपर क्रांति का नाम दे रहे है। एक ऐसे देश में जहां खुले विरोध के लिए अधिकारियों की सहनशीलता बेहद कम है। वहां कोविड प्रतिबंधों के खिलाफ प्रदर्शनकारी के क्रिएटिव तरीकों का ईजाद किया जाना अपने आप में अनोखा प्रयोग है।