कहा-सेब उत्पादक क्षेत्रों में सड़क बहाली को दी जाएगी प्राथमिकता मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आज यहां लोक निर्माण विभाग की बैठक की अध्यक्षता करते हुए अधिकारियों को राज्य के विभिन्न हिस्सों में भारी बारिश और भू-स्खलन के कारण क्षतिग्रस्त सड़कों की मरम्मत और शीघ्र बहाली सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। उन्होंने दोहराया कि सेब उत्पादक क्षेत्रों की सड़कों की बहाली को प्राथमिकता दी जाएगी ताकि बागवानों की उपज को समय पर बाजार तक पहुंचाया जा सके। सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आपदा प्रभावित सड़कों की शीघ्र बहाली के लिए 23 करोड़ रुपये और स्वीकृत किए हैं। उन्होंने कहा कि इस राशि में से पांच करोड़ रुपये यशवंत नगर से छैला तक की सड़क के मरम्मत कार्य पर खर्च किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, शिमला जिले के सेब उत्पादक क्षेत्रों के तहत लोक निर्माण विभाग के सात मण्डल में प्रत्येक को सड़कों की मरम्मत एवं बहाली के लिए एक-एक करोड़ रुपये प्रदान किए गए हैं। उन्होंने कहा कि उन लोक निर्माण विभाग मण्डलों को भी एक-एक करोड़ रुपये आबंटित किए गए हैं, जहां प्राकृतिक आपदा के कारण क्षति अधिक हुई है, जिनमें कुल्लू जिले के चार विकास खण्ड, सिरमौर जिले के शिलाई और राजगढ़ विकास खंड शामिल हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि शीघ्र ही वह चौपाल और जुब्बल-कोटखाई क्षेत्रों का दौरा करेंगे तथा इन क्षेत्रों में किए जा रहे मरम्मत कार्यों की समीक्षा करेंगे। उन्होंने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को वाहनों की सुचारू आवाजाही सुनिश्चित करने के निर्देश देते हुए कहा कि सड़कों पर गिरा मलबा हटाने के लिए मशीनरी खरीदने से लेकर उसे प्रभावित क्षेत्रों में तैनात करने का कार्य समयबद्ध सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने कहा कि सड़कों की मरम्मत के लिए राज्य सरकार धन की कोई कमी नहीं आने देगी। उन्होंने अधिकारियों को अग्रिम भुगतान के साथ लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृहों की ऑनलाइन बुकिंग प्रारम्भ करने को कहा साथ ही कहा कि जल शक्ति विभाग को भी इस प्रक्रिया का अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने निर्माण कार्यों की अनुमानित लागत में बढ़ोतरी की प्रथा को रोकने पर बल देते हुए अधिकारियों को क्लॉज 10 सीसी को हटाने के भी निर्देश दिए। बैठक में शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर, लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह, मुख्य संसदीय सचिव संजय अवस्थी, विधायक चंद्रशेखर और चैतन्य शर्मा, प्रधान सचिव राजस्व ओंकार शर्मा, प्रधान सचिव लोक निर्माण विभाग भरत खेड़ा, सचिव वित्त अक्षय सूद, उपायुक्त शिमला आदित्य नेगी, प्रमुख अभियंता लोक निर्माण विभाग अजय गुप्ता एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।
Himachal CM Sukhu has said that “He was responding to the suggestion made by MLA Lakhanpal during the budget session to safeguard the forest riches from fire, flood, and landslides.” Himachal government is planning to bring a concrete policy to save the forests. Additionally, a new scheme to provide a 50 % subsidy to those who want to set up the pine needle industry. The Pine leaves will be used for manufacturing various products such as plates, cups, paper, and other biodegradable articles. The final policy and procedure for setting up of pine-based industry will be formulated soon. This policy can help provide additional income to lower to middle-income Himachal households and can help boost the overall GPD of the state if the policy is implemented correctly. Apart from generating employment, this move can also become helpful in reducing forest fire incidences, as Pine forests are most affected by forest fires in Himachal. But, the impact of taking a large number of pine needles from forest floors is still unknown. On one side, this move can help reduce forest fire; on the other, it can increase weed and insect infestation incidences in Pine forests. It can also affect the nutrient status of the forest soil and increase soil erosion by the removal of organic carbon from the forest floor. Overall, it is a good move by the state govt to boost the economy of Himachal households, but it will require proper inspection by forest departments also. So, that forest should also not suffer from it.
हिमाचली सेब दुनिया भर में अपने स्वाद के लिए प्रसिद्ध है, पर अब हिमाचल प्रदेश न सिर्फ सेब उत्पादक प्रदेश के तौर पर जाना जाता है अपितु हिमाचल हिंदुस्तान का फ्रूट बास्केट बन गया है। हिमाचल प्रदेश में बागवानी क्षेत्र आय के स्तोत्र उत्पन्न कर न सिर्फ लोगों की आर्थिकी सुदृढ़ करने में सहायक सिद्ध हो रहा है बल्कि प्रदेश की प्रगति में भी इसका बड़ा हाथ है। हिमाचल में करीब ढाई लाख हेक्टेयर भूमि पर 25 से भी अधिक किस्म के फलों का उत्पादन होता है। इसमें आधी भूमि पर तो अकेले सेब का उत्पादन होता है। इसके अतिरिक्त चेरी, स्ट्रॉबेरी, आम, किन्नू, माल्टा, कीवी, अखरोट, बादाम, अनार, अमरूद, आडू, खुमानी, लीची, नाशपाती का उत्पादन भी होता है। अब तो प्रदेश के ऊना में ड्रैगन फ्रूट को भी सफल तौर पर उगाया जाने लगा है। हॉर्टिकल्चर प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ है और चार लाख से अधिक लोग इससे जुड़े हैं। गत चार साल में प्रदेश में 31.40 लाख मीट्रिक टन फल उत्पादन हुआ है। इस अवधि में बागवानी क्षेत्र की वार्षिक आय औसतन 4,575 करोड़ रही। बागवानी के ज़रिये नौ लाख लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है। हिमाचल की जलवायु और उपजाऊ ज़मीन के कारण यहां पैदा होने वाले फल यहां के लोगो के लिए वरदान है। ईरान और तुर्की का सेब चुनौती हिमाचल की खुशहाली की तकदीर कहे जाने वाली सेब बागबानी वैश्विक प्रतिस्पर्धा से कदमताल नहीं कर पा रही है। सेब पैदावार से लेकर बाजार पहुँचने तक की हर प्रक्रिया अव्यवस्थित है और इसमें व्यापक सुधार की दरकार है। कभी मौसम की मार सेब की गुणवत्ता पर असर डालती है, तो कभी निजी कंपनियों द्वारा दिए जा रहे कम दाम। इस पर कम दामों पर आयात हो रहे सेब से भी बाजार के सेंटीमेंट बिगड़ रहे है। हिमाचल की करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपये की सेब की आर्थिकी के लिए ईरान और तुर्की का सेब चुनौती बन गया है। बाजार में इस बार ईरान का सेब हिमाचली सेब को पछाड़ रहा है। ईरान का सेब रंग और स्वाद में श्रीनगर और किन्नौर की सेब की बराबरी करता है। बागवानों के अनुसार भारत में अफगानिस्तान के रास्ते ईरान और तुर्की से सेब का अनियंत्रित और अनियमित आयात होता आ रहा है जो परेशानी का कारण है। बागवान चाहते है कि ईरान और तुर्की से सेब आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगे। अफगानिस्तान साफ्टा (SAFTA) दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र का हिस्सा है और यहां से सेब के आयात पर कोई शुल्क नहीं लगता है। ईरान इस समझौते का हिस्सा नहीं है और माना जा रहा है कि इसलिए ईरान अपना सेब अफगानिस्तान से पाकिस्तान के रास्ते अटारी बॉर्डर से भारत भेजता हैं। ऐसा हो रहा है तो एक कंटेनर पर आठ लाख के करीब आयात शुल्क की चोरी हो रही है। इसके कारण ईरान का सेब सस्ता बिकता है। यदि ये सेब ईरान के रास्ते आए तो इसमें पंद्रह प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी और 35 प्रतिशत सेस लगेगा। लॉन्ग टर्म प्लानिंग की दरकार : सेब के दामों पर नियंत्रण के लिए एक लॉन्ग टर्म प्लानिंग की जरुरत है। फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स और सीए स्टोर्स की उपलब्धता के साथ ही सेब की प्रोडक्शन में गुणवत्ता का ध्यान रखने की ज़रूरत है। जानकार मानते है कि तीन क्षेत्रों में ध्यान देने की ज़रूरत है। पहला है सेब की प्रोडक्शन, दूसरा है सप्लाई चेन और तीसरा है मार्केटिंग। इन तीनों में ही बहुत सी खामियां है जिन्हें दुरुस्त किया जाना चाहिए। चिलगोजा : किन्नौर के लोगों के लिए वरदान है ये सूखा मेवा जनजातीय क्षेत्र किन्नौर बेहतरीन गुणवत्ता वाले सेब उत्पादक के तौर पर जाना जाता हैं, लेकिन ये ही किन्नौर उत्कृष्ट गुणवत्ता का एक मेवा भी उत्पादित करता है, जिसे चिलगोजा के नाम से जाना जाता है। चिलगोजा भारत के उत्तर में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में 1800-3350 मीटर की ऊंचाई वाले इलाके में फैले जंगलों में चीड़ के पेड़ पर लगता है। पर्सियन में चिलगोजा का अर्थ होता है 40 गिरी वाला शंकु के आकार का फल। चिलगोजा को अंग्रेजी में पाइन नट कहा जाता है। किन्नौर तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में विवाह के अवसर पर मेहमानों को सूखे मेवे की जो मालाएं पहनाई जाती हैं, उसमें अखरोट और चूली के साथ चिलगोजे की गिरी भी पिरोई जाती है। चिलगोजा स्थानीय आबादी के लिए नकदी फसलों में से एक है, क्योंकि बाजार में यह काफी ऊंचे दाम पर बिकता है। चिलगोजा के पेड़ों के फलदार होने में 15 से 25 वर्ष का समय लगता है और इसके फल को परिपक्व होने में करीब 18-24 महीने लगते हैं। पीच वैली को एक नियोजित योजना की दरकार जिला सिरमौर का राजगढ़ व आसपास लगता क्षेत्र पीच वैली के नाम से जाना जाता है। राजगढ़ क्षेत्र में फागू, भणत, हालोनी ब्रिज, बठाऊधार और शावगा आदि क्षेत्रों में आडू की खासी पैदावार होती है। इस क्षेत्र में आडू की कई किस्में उगाई जा रही है, जिनकी खासी डिमांड है। पहले यह आडू एनसीआर मार्किट में खूब धूम मचा रहा था, मगर बीते कुछ वक्त में इसके रेट कम हुए है। लिहाजा उत्पादकों का भी इससे कुछ मोह भंग हुआ है। इस पर कृषि रोगों ने भी इसके उत्पादन को प्रभावित किया है। बहरहाल, पीच वैली को एक विशेष योजना की दरकार है जिससे आडू उत्पादन का बीता हुआ सुनहरा वक्त फिर लौट आएं। हिमाचल में सेब का विकल्प बन रही चेरी, इस साल मिल रहे दोगुने दाम हिमाचल में सेब के अतिरिक्त चेरी भी बागवानों के लिए एक अहम नकदी फसल बनती जा रही है। बागवानों के सेब के बगीचों में पिछले कुछ सालों से चेरी की भी बड़ी पैदावार होने लगी है। एक तरफ जहां सेब की फसल लेने में बागवानों को साल भर कमरतोड़ मेहनत करनी पड़ती है, वहीं दूसरी तरफ कम मेहनत वाली चेरी की फसल अब बागवानों के लिए वरदान साबित हो रही है। हिमाचल प्रदेश में करीब 400 हेक्टेयर भूमि में चेरी का उत्पादन किया जाता है। राज्य में सेब बगीचों के साथ ही चेरी के पौधे भी लगाए जाते हैं लेकिन चेरी 15 मार्च के बाद तैयार होती है और सिर्फ एक माह तक चेरी का सीजन चलता है। हिमाचल में चेरी की प्रमुख किस्में रेड हार्ट, ब्लैक हार्ट, विंग, वैन, स्टैना, नेपोलियन, ब्लैक रिपब्लिकन हैं। स्टैना परागण किस्म है और इसके बिना चेरी की अच्छी पैदावार नहीं ली जा सकती। चेरी के अच्छे रूट स्टॉक नहीं हैं। अगर चेरी के रूट स्टॉक अच्छे हो तो फसल और बेहतर हो सकती है। प्रदेश में चेरी की सबसे अधिक पैदावार शिमला जिले के ननखड़ी, कोटगढ़ और नारकंडा क्षेत्रों में होती है। इस बार भी हिमाचल की रसीली चेरी ने बाजार में दस्तक दे दी है। इस साल चेरी का सीजन करीब 10 दिन पहले शुरू हो गया है। समय से पहले तापमान बढ़ना इसका कारण बताया जा रहा है। सीजन की शुरुआत में ही बागवानों को 300 रुपये प्रति किलो तक रेट मिल रहे हैं, जो पिछले साल के मुकाबले दोगुने हैं। ढली मंडी में चेरी 200 से 300 रुपये प्रति किलो के रेट पर बिकी। पिछले साल एक मई को चेरी बाजार में पहुंची थी और कीमत अधिकतम 150 रुपये थी। सीजन की शुरुआत में चेरी लोकल मार्केट में ही खप रही है। आने वाले दिनों में शिमला से चेरी बंगलूरू, महाराष्ट्र और गुजरात तक भेजी जाएगी। आम की बंपर फसल हिमाचल प्रदेश में इस बार आम की फसल बंपर होने की उम्मीद है। आम के पेड़ों पर आया फूल इसी ओर इशारा कर रहा है कि इस बार बागवानों को आम की फसल मालामाल करने वाली है। हालांकि, अभी भी मौसम पर काफी कुछ निर्भर करेगा। गौरतलब है कि वर्ष 2021 में आम की फसल का ऑफ़ सीज़न रहा था। इस बार सीजन के ऑन होने की संभावनाएं पहले ही जता दी गई थी। नूरपुर, इंदौरा, ऊना व हिमाचल के अन्य निचले क्षेत्रों में आम की दशहरी, आम्रपाली, रामकेला, लंगडा चौंसा, तोता, अल्फेंजो, ग्रीन, फजली आदि किस्में पाई जाती है। जिनमें मुख्य दशहरी अगेती किस्म है। इसकी जून के मध्य माह में फसल तैयार हो जाती है।
सलूणी घाटी में लैवेंडर की खेती को बढ़ावा देने के लिए 30 एकड़ के क्षेत्रफल में लैवेंडर की खेती की जाएगी।हिमालयन जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान के साथ ज़िला में किसानों-बागवानों की आर्थिकी को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों और जलवायु के आधार पर नगदी फसलों को बढ़ावा देने के लिए कार्य योजना को तैयार किया गया है । बता दें कि हिमालयन जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान के साथ गत वर्ष साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके तहत ज़िला में सुगंधित पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को तकनीकी जानकारियां उपलब्ध करवाने के साथ विभिन्न फसलों की पौध, डिस्टलेशन यूनिट और तैयार उत्पाद की बिक्री के लिए बाजार भी उपलब्ध करवाना शामिल किया गया है। वर्तमान में संस्थान द्वारा ज़िला में विभिन्न स्थानों में 13 डिस्टलेशन यूनिट (सघन तेल आसवन इकाई) स्थापित किए जा चुके है। सलूणी घाटी में लैवेंडर की खेती को बढ़ावा देने के लिए संस्थान के माध्यम से 30 एकड़ के क्षेत्रफल को लैवेंडर खेती के तहत लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस लक्ष्य को पूरा करने में जिला प्रशासन द्वारा हर संभव सहायता उपलब्ध करवाई जाएगी। कैसे होती हैं खेती --- लैवेंडर की खेती करने की तकनीक बिल्कुल लेमन ग्रास की ही तरह ही है। लैवेंडर की खेती बीज और पौधों दोनों तरीके से की जा सकती हैं। लेकिन पौध लगाने से इसकी पैदावार अच्छी मिलती हैं। नवम्बर और दिसम्बर माह में इसकी नर्सरी तैयार की जाती है। इसकी पौध तैयार करने के लिए कटिंग के माध्यम से इसके एक या दो साल पुराने पौधों की शाखाओं का उपयोग किया जाता है। उन शाखाओं को नर्सरी में उर्वरक देकर तैयार की गई क्यारियों में 5 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाकर पौध तैयार करते हैं। लैवेंडर की खेती के लिए सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती हैं। इसके पौधों को खेत में लगाने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए। उसके बाद खेत में नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकता के अनुसार पानी देते रहना चाहिए। इसके पौधों में पानी अधिक मात्रा में नही देना चाहिए। ज्यादा समय तक जल भराव रहने की वजह से पौधों को कई तरह के रोग लगने की संभावना बढ़ जाती हैं। साल में दो बार खिलते हैं फूल विशेषज्ञों के अनुसार लैवेंडर के फूल साल में दो बार खिलते हैं। इसके पौधे को एक बार रोपने पर इसकी उम्र कम से कम पंद्रह साल तक रहती है। खास बात यह है कि इसे बंजर, ढलान और पथरीली जमीन पर भी उगाया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार अप्रैल में रोपने के बाद जून में और फिर अक्टूबर, नवंबर में फूल खिलते हैं। अधिकतर फूल जून महीने में ही खिलते हैं। रोग और उनकी रोकथाम इसकी पौध में कई तरह के कीटों का प्रकोप होता है, जिसकी वजह से पौधों के विकास और उत्पादन में कमी आ सकती है। इन सभी तरह के कीटों का जैविक तरीके से नियंत्रण करने के लिए पौधों पर नीम के तेल या अन्य जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा इसमें जलभराव की वजह से पौध की जड़ में गलन का रोग भी होता है, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए जड़ों में बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए। किसानों और बागवानों की आय को दोगुना करने के लिए कुछ अलग तरह की खेती शुरू करना चाहते हैं, जिससे किसानों को अधिक से अधिक लाभ हो सके। इसके लिए जिला प्रशासन ने सीएसआईआर आईएचबीटी के साथ एक एमओयू साइन किया था।किसानों-बागवानों के लिए बीते दिनों प्रशिक्षण शिविर का आयोजन भी हुआ है। हमारा प्रयास है कि आने वाले समय में किसानों बागवानों को लैवेंडर से अधिक से अधिक मुनाफा हो , इसलिए जिला प्रशासन द्वारा भी हर संभव सहायता की जाएगी। -डीसी राणा, उपायुक्त, चंबा जिले में औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती के लिए अनुकूल जलवायु उपलब्ध है । परंपरागत फसलों से हटकर संस्थान द्वारा जिला में लैवेंडर, जंगली गेंदा, केसर और हींग के उत्पादन के लिए किसानों को तकनीकी जानकारी के साथ उच्च गुणवत्ता युक्त बीज और पौधे भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं । किसानों को डिस्टलेशन यूनिट स्थापित करने के साथ बाजार के साथ भी जोड़ा जा रहा हैं। बीते दिनों आयोजित शिविर में किसानों-बागवानों को 13 हजार लैवेंडर के पौधे भी वितरित किए गए । - डॉ संजय कुमार, निदेशक, सीएसआईआर- हिमालयन जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने वीरवार को सिरमौर जिले के शिलाई विधानसभा क्षेत्र में 20 करोड़ रु पए लागत की विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं के लोकार्पण और शिलान्यास किए। इसमें 11.61 करोड़ के तीन लोकार्पण और 8.14 करोड़ के 11 शिलान्यास शामिल हैं। वहीं इस दौरान कफोटा में उमंडलाधिकारी (नागरिक) कार्यालय, 11.15 करोड़ की लागत से निर्मित राजकीय महाविद्यालय कफोटा के भवन और ग्राम पंचायत कोटा पब में कियाना बस्ती के लिए 46 लाख से बनी उठाऊ जलापूर्ति योजना का लोकार्पण किया। वहीं सीएम ने कॉलेज के परिसर में पौधरोपण भी किया। उन्होंने उपमंडलाधिकारी (नागरिक) के नवनिर्मित कार्यालय परिसर में अर्जुन का पौधा रोपा। मुख्यमंत्री ने जल जीवन मिशन के अन्तर्गत तहसील शिलाई में खुन बाग और धोची व्यास बिजुई के लिए सोलर आधारित 1.01 करोड़ लागत से निर्मित होने वाली जलापूर्ति योजना, नाबार्ड के तहत तहसील पांवटा साहिब में 1.60 करोड़ रुपये लागत से निर्मित होने वाली उठाऊ जलापूर्ति योजना कंडू चियोग-थाना, नाबार्ड के अन्तर्गत ग्राम पंचायत कंडू चियोग में 60 लाख लागत से निर्मित होने वाली बहाव सिंचाई योजना सैंगा, जल जीवन मिशन के अन्तर्गत तहसील कामरू की ग्राम पंचायत चांदनी के लिए 1.03 करोड़ लागत से निर्मित होने वाली भू-जल जलापूर्ति योजना, 1.38 करोड़ लागत से निर्मित होने वाले प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र टिम्बी और कामरू में 2.53 करोड़ लागत से निर्मित होने वाले राजकीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र भवन का शिलान्यास किया। कफोटा के पब गांव में सीएम ने कहा कि शिलाई और सराज क्षेत्र में न केवल भौगोलिक रूप से समानता है, बल्कि यह क्षेत्र समान परम्परा, संस्कृति और विकास संबंधी आवश्यकताओं को भी साझा करते हैं। इस कार्यकाल के दौरान प्रदेश सरकार ने क्षेत्र की सभी विकासात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित की है। उन्होंने कहा कि देश के चार राज्यों में हाल ही में हुए चुनावों के बाद प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व की स्थिति दयनीय है। हिमाचल में भी भाजपा सरकार को पुन: सत्ता में लाने का मन बना लिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान प्रदेश कुछ भी नहीं किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार ने जनकल्याण के लिए एक भी योजना आरम्भ नहीं की, जबकि वर्तमान राज्य सरकार ने गरीबों और पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। मुख्यमंत्री ने सतौन में डिग्री कॉलेज खोलने, कफोटा में चिकित्सा खंड, बालीकोटी और हलाह में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोलने, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कामरो को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्तरोन्नत करने, काहरका और शिल्ली अगाद में स्वास्थ्य उप केंद्र खोलने, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाखना में 10 बिस्तर उपलब्ध करवाने की घोषणा की। उन्होंने इस अवसर पर क्षेत्र के कुछ स्कूलों के स्तरोन्नयन की भी घोषणा की। उन्होंने क्षेत्र की सम्पर्क सड़कों के लिए पर्याप्त धन राशि की व्यवस्था करने, सतौन में उप-तहसील खोलने तथा कफोटा में मुद्रिका बस चलाने की भी घोषणा की। उन्होंने कफोटा डिग्री कॉलेज का नाम स्वामी विवेकानंद तथा डिग्री कॉलेज शिलाई को वीर सावरकर के नाम पर नामित करने की भी घोषणा की। उन्होंने इस अवसर पर जाखना में स्पोर्ट्स हॉस्टल आरम्भ करने तथा आयोजन स्थल पाब मैदान के लिए 10 लाख रुपए देने की भी घोषणा की। राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के उपाध्यक्ष बलदेव तोमर ने मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया। ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी, नाहन के विधायक एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल, पच्छाद की विधायक रीना कश्यप, राज्य कृषि विपणन बोर्ड के अध्यक्ष बलदेव भंडारी, सिरमौर जिला भाजपा अध्यक्ष विनय गुप्ता, शिलाई भाजपा मंडल के अध्यक्ष सूरत सिंह चौहान, सिरमौर जिला परिषद की अध्यक्ष सीमा कनियाल, उपायुक्त सिरमौर आरके गौतम, पुलिस अधीक्षक ओमापति जम्वाल सहित अन्य गणमान्य भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
उद्यांश सूद ग्राम पंचायत रोपा पधर का शिष्टमंडल बीडीसी भुवनेश्वर की अध्यक्षता में विधायक प्रकाश राणा से गोलवां में मिला। इस शिष्टमंडल ने विधायक के समक्ष सड़क की समस्या रखी। इस पर विधायक ने कहा कि बगीचा-थुलन सड़क के लिए पहले भी प्रयास किए गए थे। मगर किसी कारण से यह सड़क नहीं निकल पाई। इस संबंध में उन्होंने फिर से विभागीय अधिकारियों को आदेश पारित कर दिए हैं। वहीं बीडीसी गुम्मा वार्ड से भुवनेश्वर कुमार ने बताया कि सदियों से कधार बदन सड़क के लिए वन विभाग ने मंजूरी दे दी है। इसके लिए उन्होंने विधायक का आभार जताया। उन्होंने कहा कि गलू, भटवाड़, बदन सड़क की वन विभाग से मंजूरी मिलने के लिए लोगों में खुशी है और उन्होंने विधायक का आभार जताया है। ग्राम पंचायत तलकेहड़ का जागृति महिला मंडल विधायक प्रकाश राण से मिला। विधायक ने उनके महिला मंडल के लिए 10 हजार रुपए सहयोग राशि देने की घोषणा की। महिला मंडल जगतपुर रोपड़ी के लिए भी विधायक प्रकाश राणा ने 10 हजार रुपए सहयोग राशी देने की घोषणा की।
हिमाचल प्रदेश के 2.50 लाख आयकर दाताओं को डिपो में एपीएल उपभोक्ताओं की तर्ज पर अगले महीने से सस्ता राशन मिलना शुरू हो जाएगा। हिमाचल सरकार की ओर से सब्सिडी पर मिलने वाला राशन अब उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध होगा। उपभोक्ताओं को आटा चावल 9 और 10 रुपए प्रति किलो और दालें, तेल, नमक और चीनी बाजार रेट से 4 से 5 रुपए तक सस्ती मिलेगी। सब्सिडी पर दी जाने वाली 3 दालें, 2 लीटर तेल मार्केट रेट या इससे कुछ कम रेट पर मिलेगा। बता दें सरकार ने कोरोना काल में करदाताओं को डिपो से सस्ते राशन देने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद सरकार के निर्देशों व कैबिनेट में फैसला होने के बाद करदाताओं के राशन कार्ड ब्लॉक कर दिए गए थे। खाद्य नागरिक एवं उपभोक्ता मंत्री राजेंद्र गर्ग ने बताया कि आयकर दाताओं को डिपो में सस्ता आटा चावल देने के लिए फाइनल स्वीकृति दे दी गई है। निगम को निर्देश दिए गए हैं कि वह जल्द राशन बहाल करें। दाल और तेल भी मार्केट रेट से कुछ सस्ता मिलेगा।
तैयोहारी सीजन में जहाँ शहर की बसें भरी हुई और ओवर लोड चलती थी वहीं अब कोरोना संकट के कारण लोग बसों सफर करने से भी डर रहे है। इस बात का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि बुधवार को महिलओं के सबसे बड़े पर्व करवाचौथ पर शहर की बसों में भीड़ देखने को नहीं मिली औऱ बसों में गिने चुने लोग ही सफर करते नजर आए। वहीं लोग रूट की बसों में भी लोग सफर करने से कतरा रहे है कोरोना से बचने के लिए निजी गाडियो का ही प्रयोग कर रहे है। दिल्ली से शिमला आने वाली बस भी रही खाली प्रदेश सरकार ने बीते मंगलवार से दिल्ली के लिए 21 रूट पर बस सेवा शुरू कर दी है। लेकिन कोरोना काल के बाद दिल्ली से शिमला आने वाली पहली बस भी खाली आई जबकि त्योहारी सीजन में अधिकतर लोग अपने घर जाते है। इससे पहले प्रतिवर्ष लोगों की भीड़ अधिकतर रूट की बसों में रहती थी लेकिन अब कोरोना का डर लोगों मे इस तरह फैल चुका है कि एचआरटीसी द्वारा कोरोना नियमों के पालन के बाद भी लोग बस में सफर करने से बच रहे है। इस संबंध में एचआरटीसी शिमला के डिविजनल मैनेजर दलजीत सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि त्योहारों के समय में भी लोग बस में सफर नहीं कर रहे हैं। लोगो में कोरोना का ख़ौफ़ है और लोग निजी गाड़ियों में ही सफर करने को प्राथमिकता दे रहे हैं। उनका कहना था कि आज दिल्ली से पहली बस जो आई है वह भी खाली ही रही जबकि इससे पहले त्यौहारों के समय में अतिरिक्त बसे लगानी पड़ती थीं। उनका कहना था कि विभाग, सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का पालन कर रहें है और स्टाफ को सेनेटाइज करने मास्क पहनने के निर्देश दिए गए है।
सुजानपुर के विधायक राजेंद्र राणा ने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा है कि चंद उद्योगपतियों की इस सरकार ने देश को गृह युद्ध की ओर धकेल दिया है। जाति-धर्म में बांटकर लड़ाई-झगड़े करवाए जा रहे हैं, जोकि इनका विकास का एजैंडा बन गया है। उन्होंने कहा कि यह सरकार सदियों तक याद रखी जाएगी, क्योंकि 70 साल में इस सरकार के समय कमरतोड़ महंगाई ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। बेरोजगारी से युवा दुखी व परेशान हैं। देश की जनता का ध्यान बांटने के लिए नित नए-नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि गलत नीतियों के चलते देश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई है। लोकतंत्र की परिभाषा बदल दी गई है और ज्वलंत मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए लड़ाई-झगड़ों में जनता को उलझाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि गृह युद्ध से ऐसे हालात बना दिए गए हैं, जिसमें तिल-तिल पूरा देश जल रहा है। उन्होंने कहा कि देश की जी.डी.पी. दर की इतनी गिरावट आज तक नहीं देखी। अर्थव्यवस्था चकनाचूर हो चुकी है। बैंक कंगाल हो चुके हैं तथा आर.बी.आई. को खोखला किया जा रहा है। ई.डी. व सी.बी.आई. को अपने हिसाब से सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों के खिलाफ चलाया जा रहा है। राजेंद्र राणा ने कहा कि देश का हरेक वर्ग इस समय सरकार से त्रस्त हो चुका है। अब नागरिकता संशोधन कानून से सरकार ने पूरे देश में अशांति व अराजकता का माहैल बना दिया है। विद्यार्थियों को भी निशाना बनाया जा रहा है। जिस सरकार में विद्यार्थी ही सुरक्षित नहीं हैं तथा महिलाएं रात को अकेले घर से बाहर नहीं जा सकती हैं। ऐसी सरकार कोई क्या उम्मीद कर सकती है।
हिमाचल प्रदेश विद्युत बोर्ड लिमिटिड द्वारा उन उपभोक्ताओं के विद्युत कुनैक्शन काट दिए जाएंगे, जिन्होंने नवम्बर, 2019 में अपने बिजली के बिल जमा नहीं करवाए हैं। यह जानकारी आज यहां प्रदेश विद्युत बोर्ड निगम लिमिटिड के सहायक अभियंता रमेश कुमार शर्मा ने दी। उन्होंने कहा कि काटे जाने वाले कुनैक्शन की कुल संख्या 748 है। उपभोक्ताओं द्वारा जमा न करवाई गई कुल राशि 26,27,036.04 रुपये है। इनमें 450 घरेलू उपभोक्ता हैं। इनकी कुल राशि 11,28,558.97 रुपये है। कुल उपभोक्ताओं में से 274 व्यवसायिक उपभोक्ता हैं। इनकी कुल राशि 13,06,746.95 रुपये है। अन्य 24 उपभोक्ताओं की राशि 1,91,730.12 रुपये है। उन्होंने सभी उपभोक्ताओं से आग्रह किया है कि वे अपने बिल 24 दिसम्बर, 2019 तक जमा करवा दें। उन्होंने कहा कि बिल जमा करने के लिए इस दिन एक काउंटर सेर चिराग (जौणाजी) तथा दूसरा काउंटर ब्रूरी में लगाया जाएगा। उन्होंने कहा कि उपभोक्ता अपने बिल पेटीएम, गूगल पे, अमेजॉन, भीम ऐप, फोन पे अथवा वैबसाईट www.hpsebl.in द्वारा भी जमा करवा सकते हैं। उन्होंने सभी उपभोक्ताओं से अनुरोध किया वे अपने बिजली तुरंत जमा करवा दें ताकि उनकी विद्युत आपूर्ति यथावत रहे।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा सहकारिता मंत्री डॉ. राजीव सैजल 17 दिसम्बर, 2019 को सोलन जिला के कसौली विधानसभा क्षेत्र के प्रवास पर रहेंगे। डॉ. सैजल 17 दिसम्बर को कसौली विधानसभा क्षेत्र के धर्मपुर स्थित लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह में प्रातः 11.00 बजे हिमाचल गृहिणी सुविधा योजना के तहत पात्र लाभार्थियों को रसोई गैस कुनैक्शन वितरित करेंगे। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री तदोपरांत दिन में 2.00 बजे परवाणू के सैक्टर-1 एचआईजी-24सी में हिमाचल गृहिणी सुविधा योजना के तहत पात्र लाभार्थियों को रसोई गैस कुनैक्शन वितरित करेंगे।
दाड़लाघाट पंचायत से लगते वार्डों में बटेड, सुल्ली,खाता,रौडी एक और दो के ग्राम वासियों जिसमें गांव बटेड,सुल्ली,पछिवर, कुन,डुगली,रौडी,खाता,जाबलु व बागा के लोगों द्वारा दाड़लाघाट की तीन पंचायतें बनवाने में ग्राम पंचायत की आमसभा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हुए नगर पंचायत के प्रस्ताव को ध्वनि मत से खारिज करवाने के बाद तीन पंचायतों के पुनर्गठन का पूरे जोर-शोर से समर्थ के लिए धार क्लब बहुत-बहुत आभारी है।धार क्लब के सदस्य अनूप शर्मा ने कहा कि जनता के सहयोग से ही पंचायतों में किए जाने वाले कार्य पर असर पड़ता है। ग्राम पंचायत दाड़लाघाट से आग्रह है कि जो उपरोक्त वार्डों के कार्य रुके हैं उन्हें जल्द से जल्द शुरू करवाया जाए। वार्डों के सदस्यों द्वारा सभी प्रकार की आपत्तियां बारे कागजात ग्राम पंचायत सचिव को सौंपे जा चुके है।
रविवार को महा शिव पुराण कथा का शुभारम्भ हो गया। इस अवसर पर पावन महाशिव पुराण कथा ग्रंथ और कथा वाचक पंडित सुरेश भारद्वाज के साथ उनकी टीम को गाजे बाजे के साथ आयोजन स्थल तक लाया गया। इस दौरान महिलाओं ने भव्य कलश यात्रा भी निकाली। ब्रहमलीन बाबा हंसा गिरी जी महाराज द्वारा शुरू की गई इस परंपरा को अब बाबा भोला गिरी आगे बढ़ा रहे हैं। विधिवत रूप से मंत्रोच्चारण के साथ कथा कार्यक्रम को शुरू किया गया। प्रथम दिन कथा का शुभारंभ करते हुए पंडित सुरेश भारद्वाज ने कहा कि त्रिलोकी के स्वामी भगवान शंकर के लिए भी गणपति महाराज प्रथम पूज्यनीय थे। उन्होंने सर्वप्रथम भगवान शिव ने ही गणेश पूजन किया था। इस मौके पर पंडित सुरेश भारद्वाज ने एक रोचक प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि जब भगवान शिव द्वारा गणेश जी का शीश काटा गया तो काफी बवाल मचने के बाद माता पार्वती को शंकर ने वचन दिया कि सबसे पहले हमारे पुत्र गणपति की पूजा होगी तभी इसका लाभ सर्व जन को मिलेगा। उन्होंने बताया कि भगवान शंकर जब त्रिपुरासुर नामक राक्षस के साथ जब युद्ध करने के लिए गए तो उन्हें रणभूमि में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। कैलाश पति जी के रथ का पहिया टूट गया और वे घायल हो गए। वापस कैलाश पर आकर माता पार्वती ने शंकर से कहा कि आप बिना गणपति पूजन के गए थे इसलिए आपको विपत्ति का सामना करना पड़ा है। इसलिए अपने वचन का पालन करें। भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर बड़ी धूम-धाम से गणपति पूजन का उत्सव किया और त्रिपुरासुर राक्षस पर विजय प्राप्त की। भगवान शिव ने कहा कि जो भी किसी कार्य करने से पूर्व गणपति महाराज का पूजन करेगा उसे यश, वैभव, धन-धान्य की कमी नहीं रहेगी। कथा के अंत में बम भोले के सुंदर भजन भी गाए गए।
प्रदेश सरकार द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे मादक पदार्थ एवं मदिरा व्यसन पर रोक अभियान के अन्तर्गत आज यहां भाषा एवं संस्कृति विभाग सोलन द्वारा नशा निवारण पर भाषण एवं नारा लेखन प्रतियोगिताएं आयोजित की गई। जिला के विभिन्न विद्यालयों के छात्रों ने नशे से होने वाली हानियों व नशे के पीडि़तों के लक्षण व बचाव के संबंध में भाषण व नारा लेखन प्रतियोगिता के माध्यम से अपने विचार प्रकट किए। कार्यक्रम का शुभारंभ जिला भाषा अधिकारी कान्ता नेगी ने किया। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रतियोगिताओं के आयोजन का उद्देश्य युवाओं को नशे जैसी बुराई से दूर रखना है। उन्होंने कहा कि युवाओं के कलात्मक गतिविधियों में भाग लेने से जहां उनका कलात्मक कौशल निखर कर सामने आएगा वहीं उन्हें समाज में जिम्मेदार नागरिक बनने की प्रेरणा मिलेगी। उन्होंने कहा कि युवा दृढ़ संकल्प व इच्छा शक्ति से नशे जैसी दुष्प्रवृति से छुटकारा पा सकते हैं। भाषण प्रतियोगिता में गीता आदर्श विद्यालय सोलन के सौरभ प्रथम, राजकीय छात्र वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला सोलन के अजय द्वितीय तथा राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला गौड़ा की महक कंवर ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। नारा लेखन प्रतियोगिता के वरिष्ठ वर्ग में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला गौड़ा की महक कंवर पहले, राजकीय छात्र वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला सोलन के चंद्रशेखर दूसरे तथा राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला गौड़ा की मानसी कंवर तीसरे स्थान पर रहीं। राजकीय छात्र वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला सोलन के नवीन को सांत्वना पुरस्कार प्रदान किया गया। प्रतियोगिता के मध्यम वर्ग में राजकीय छात्र वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला सोलन के सागर दीप्टा प्रथम, इसी पाठशाला के अमन द्वितीय तथा राजकीय छात्रा वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला सोलन की खुशी यादव तृतीय स्थान पर रही। सरस्वती विद्या मंदिर सोलन की सोनाली को सांत्वना पुरस्कार प्रदान किया गया। नशा निवारण अभियान के तहत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा जिला के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों, ग्राम पंचायतों एवं आंगनबाड़ी केंद्रों में 877 प्रतिभागियों को नशे से होने वाली हानियों व इससे बचाव के संबंध में जागरूक किया गया। शूलिनी विश्वविद्यालय के रेड रिबन क्लब में 10, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान सोलन में 150, धर्मपुर विकास खंड की ग्राम पंचायत जाबली में 130, ग्राम पंचायत दियोठी में 70, चिकित्सा खंड अर्की की राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला नवगांव में 68, चिकित्सा खंड चंडी के अंतर्गत ग्राम पंचायत नालका में 60, आंगनबाड़ी केंद्र लोअर बटेड़ में 20, चिकित्सा खंड सायरी के राजकीय माध्यमिक विद्यालय में 50, धर्मपुर के राजकीय महाविद्यालय में 225, चिकित्सा खंड अर्की के आंगनबाड़ी केंद्र भूमती में 29, चिकित्सा खंड चंडी के आंगनबाड़ी केंद्र बटेड़ में 50 तथा चिकित्सा खंड सायरी के आंगनबाड़ी केंद्र दाउंटी में 15 प्रतिभागियों को नशे के दुष्प्रभावों से अवगत करवाया गया। नशा निवारण अभियान के तहत राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान सोलन में भी 86 प्रशिक्षुओं को नशे से होने वाली हानियों व इसके बचाव के बारे में अवगत करवाया गया।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की दिशा में आगे बढ़ते हुए डॉ॰ वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी ने विवि द्वारा विकसित तीन प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के लिए हिमाचल की कंपनियों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह तीन प्रौद्योगिकी- अदरक और लहसुन के मूल्य संवर्धन के लिए प्रोटोकॉल; सेब प्रसंस्करण इंडस्ट्री और प्रौद्योगिकी की स्थापना के लिए तकनीकी कार्यज्ञान और जंगली खुरमानी की गिरी का तेल निकालने के लिए प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना का तकनीकी कार्यज्ञान को डॉ देविना वैद्य, डॉ मनीषा कौशल और अनिल गुप्ता द्वारा विकसित किया गया है। यह तीनों वैज्ञानिक विश्वविद्यालय के खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में कार्यरत हैं। इन प्रौद्योगिकियों को आईसीएआर की पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित किया गया है। पहली तकनीक अदरक और लहसुन की विभिन्न मूल्य वर्धित उत्पादों के विकास के लिए मददगार है। विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पूर्ण उत्पाद विकास पर काम किया है और अदरक लहसुन के पेस्ट के निर्माण के दौरान उद्यमियों के सामने आने वाली तकनीकी समस्याओं को हल करने का प्रयास किया है। यह तकनीक राज्य के सिरमौर बेल्ट के किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है, जहां किसानों को अक्सर सीजन के दौरान अपनी उपज के लिए सही मूल्य नहीं मिल पाता। इस प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिए कसौली की कंपनी पूर्वा खाद्य उद्योग के साथ हस्ताक्षर किया गया है। कंपनी इस प्रौद्योगिकी का उपयोग राज्य में अच्छी गुणवत्ता वाले अदरक लहसुन के पेस्ट के विकास के लिए करेगी। दूसरी तकनीक सेब के प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन से संबंधित है। वर्तमान में, राज्य के कुछ क्षेत्रों में बाज़ार के लिए अप्रयुक्त सेब को बिना किसी पूर्व-उपचार किए बिना जूस निकालने, किण्वन आदि के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। परिणामस्वरूप कम गुणवत्ता वाला अंतिम उत्पाद तैयार हो रहा है। इसकी खराब गुणवत्ता के कारण किसानों को इसका अच्छा दाम नहीं मिल पा रहा है। विश्वविद्यालय ने उपरोक्त समस्याओं को दूर करने के लिए प्रसंस्करण के लिए सेब के पूर्ण उपयोग का एक प्रोटोकॉल विकसित किया है। इस तकनीक को सोलन की कंपनी वाइल्ड हिमालय को स्थानांतरित किया गया है। तीसरी तकनीक जंगली खुरमानी की गिरी का तेल के प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना के लिए है। किन्नौर, चंबा, ऊपरी शिमला और मंडी जिले के कुछ हिस्सों के किसान पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके खुरमानी की गिरी का तेल निकाल रहे हैं। हालांकि, तेल की खराब गुणवत्ता और उपभोक्ताओं के बीच पोषण प्रोफ़ाइल की जानकारी का आभाव के कारण किसानों को अपने उत्पाद से उचित लाभ नहीं मिल रहा है। विश्वविद्यालय पिछले 10 वर्षों से इस तकनीक पर काम कर रहा है और खुरमानी की गिरी का तेल के निष्कर्षण के लिए एक पूर्ण प्रक्रिया प्रोटोकॉल विकसित किया है। यह तकनीक किन्नौर जिला के गांव उरनी स्थित कंपनी नेगी एंटरप्राइजेज को हस्तांतरित की गई है। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ परविंदर कौशल, डीन और विभाग के वैज्ञानिकों की उपस्थिति में अनुसंधान निदेशक डॉ जेएन शर्मा द्वारा एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। इस अवसर पर डॉ परविंदर कौशल ने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को उद्योग की कुछ समस्याओं से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करने और प्रगतिशील उद्यमियों को इस शोध को उपलब्ध कराने के लिए बधाई दी। डॉ कौशल ने कहा कि तकनीकी विशेषज्ञता के अलावा, उद्यम स्थापित करने के लिए विश्वविद्यालय इन कंपनियों की मदद करेंगे। तीनों कंपनियां अपने उत्पाद लेबल पर विश्वविद्यालय प्रौद्योगिकी का नाम लिखेगें।
उपायुक्त हरिकेश मीणा ने कहा कि हमीरपुर जिला में भूमि बैंक तैयार किया जाएगा जिसमें विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपलब्ध सरकारी व गैर-सरकारी भूमि की जानकारी शामिल की जाएगी। हमीर भवन में आयोजित साप्ताहिक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि हमीरपुर जिला मुख्यालय के आस-पास पांच किलोमीटर की परिधि में यह भूमि चिह्नित की जाएगी। भूमि बैंक (लैंड बैंक) का डाटा तैयार करने के लिए कलर कोडिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा ताकि उपलब्ध सरकारी व निजी भूमि की पहचान आसानी से हो सके। उन्होंने कहा कि इसके लिए 15 जनवरी, 2020 तक का लक्ष्य तय किया गया है। उपलब्ध भूमि का नक्शा तैयार होते ही इसे जिला प्रशासन की वेबसाईट पर अपलोड किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हमीरपुर जिला में रेडक्रास सोसायटी की गतिविधियां बढ़ाने पर भी बल दिया जा रहा है, ताकि पीड़ितों व असहायों की सहायता के लिए अधिक से अधिक राशि जुटाई जा सके। उन्होंने सोसायटी पदाधिकारियों को निर्देश दिए कि वे रेडक्रास की सदस्यता बढ़ाने के लिए अपने प्रयासों में गति लाएं और इसकी नियमित जानकारी उपलब्ध करवाएं। उन्होंने जिला में आंगनबाड़ी केंद्रों के भवन निर्माण के लिए भूमि चयन तथा आवश्यक स्वीकृतियों की प्रक्रिया में तेजी लाने के भी निर्देश संबंधित अधिकारियों को दिए। उपायुक्त ने हमीरपुर शहर में अवैध कब्जों के कारण हो रही सड़क दुर्घटनाओं पर कड़ा संज्ञान लिया है। उन्होंने नगर परिषद अधिकारियों को निर्देश दिए कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए समय रहते सभी आवश्यक कदम उठाए जाएं। उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि नगर परिषद अपने आय के संसाधन बढ़ाने पर विशेष ध्यान दे, ताकि कूड़े-कचरे के निस्तारण सहित अन्य मदों पर होने वाले व्यय व नगर परिषद की आय में एकरूपता लाई जा सके। उन्होंने स्लॉटर हाऊस के लिए भूमि चिह्नित कर एक सप्ताह में इसका प्रतिवेदन प्रस्तुत करने को भी कहा। उन्होंने कहा कि शहर में रेहड़ी-फड़ी धारकों की समस्याओं के हल के लिए वेंडिंग कमेटी की बैठक शीघ्र आयोजित की जाएगी। इसमें वर्तमान व्यवस्था की समीक्षा कर इन्हें स्थायी पहचान दिलाने के लिए सुझाव भी लिए जाएंगे। उन्होंने शहर में शौचालयों के रख-रखाव पर विशेष ध्यान देने के भी निर्देश दिए। बैठक में कृषि, पशुपालन, कल्याण विभाग, खनन, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति सहित विभिन्न विभागों से जुड़ी मदों पर भी चर्चा की गयी। इस अवसर पर अतिरिक्त उपायुक्त रत्तन गौत्तम, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विजय सकलानी, सहायक आयुक्त राजकिशन, उपमंडलाधिकारी डॉ. चरंजी लाल सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी उपस्थित थे।
राजकीय छात्रा वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला सोलन के ‘युवा संसद’ में भाग लेने पहुंचे विद्यार्थियों ने शिमला स्थित विधानसभा का अवलोकन किया। यह जानकारी विद्यालय के अंग्रेजी विषय के प्रवक्ता अनिल कुमार वर्मा ने दी। उन्होंने कहा कि विद्यालय की 10वीं, 11वीं तथा 12वीं कक्षा की छात्राओं ने प्रदेश विधानसभा की दर्शक दीर्घा में बैठकर विधानसभा की कार्यवाही देखी। उन्होंने कहा कि छात्राओं ने व्यवहारिक रूप से पूरी प्रक्रिया का अवलोकन किया और यह जाना कि किस प्रकार प्रदेश विधानसभा में राज्यहित के मामलों पर सारगर्भित चर्चा की जाती है। इस दौरान छात्राओं को प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल सहित वरिष्ठ मंत्रियों एवं विधायकों से मिलने का अवसर भी प्राप्त हुआ।मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस अवसर पर छात्राओं का विधानसभा परिसर में स्वागत किया और उनसे आग्रह किया कि अपने छात्र जीवन में लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ें। उन्होंने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए छात्राओं को एकाग्रता के साथ कठिन परिश्रम करने की सलाह दी। उन्होंने छात्राओं का आह्वान किया कि वे अपने क्षेत्र में स्वच्छता के दूत बनें और लोगों को स्वच्छ रहने के लिए जागरूक बनाएं। उन्होंने छात्राओं से आग्रह किया कि नशे जैसे अभिशाप को हराने के लिए एकजुट होकर कार्य करें। उन्होंने विद्यालय के अध्यापकों से आग्रह किया कि वे छात्राओं को केंद्र व प्रदेश सरकार की कल्याणकारी नीतियों की जानकारी दे ,ताकि छात्राएं अपने घर एवं आसपास के क्षेत्रों में लोगों को इनसे अवगत करवा सकें। प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल ने इस अवसर पर छात्राओं को हिमाचल प्रदेश विधानसभा के गौरवमयी इतिहास एवं परम्पराओं की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा को अपनी कार्यप्रणाली के लिए पूरे देश में जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा ई-विधान प्रणाली को लागू करने वाली पहली अत्याधुनिक कागज रहित विधानसभा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के विधायकों के लिए ई-निर्वाचन क्षेत्र प्रबंधन भी आरंभ किया गया है। इस प्रणाली के लागू होने से विधायकों, अधिकारियों व जनता के मध्य बेहतर संवाद कायम करने में सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि लड़कियां आज विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही है और केंद्र व प्रदेश सरकार के विभिन्न कार्यक्रम महिला सशक्तिकरण की दिशा में कारगर सिद्ध हो रहे हैं।छात्राओं ने विधानसभा में अपने अनुभव के विषय में जानकारी दी विधानसभा के भीतर नेताओं की चर्चा उन्होंने पहली बार देखी। छात्राओं के इस समूह के साथ राजनीति शास्त्र की प्रवक्ता रेणुका मेहता, जीव विज्ञान की प्रवक्ता हितैषी शर्मा एवं प्रवक्ता सीताराम ठाकुर भी उपस्थित थे।
University’s team meets delegation from 17 African Nations The Dr YS Parmar University of Horticulture and Forestry (UHF), Nauni has set sights on achieving working international collaborations in the field of horticulture, forestry and allied disciplines to broaden the learning environment of students and faculty working in the university. The move is part of the university’s initiative to strengthen its global linkages and partnership in order to achieve its goal of competing with the leading institutions of repute in the field. As part of this initiative towards forging new partnerships, a three-member team of the university lead by Vice-Chancellor Dr Parvinder Kaushal attended the India Africa Higher Education and Skill Development Summit held at New Delhi earlier this week. The summit was organized by Confederation of Indian Industry (CII), and was attended by over 75 delegates from 17 African countries. Several university and institutes from India also took part in the event. Besides Dr Kaushal, the UHF team also included Dr Rajesh Bhalla and Dr Kulwant Rai, who held discussions with the delegates from several African countries and discussed the possibility of a formal tie-up for collaborative research, student and faculty exchange. Several countries including Ghana, Ethiopia, Nigeria, Kenya and Sudan showed keen interest in developing an alliance with the university for agri-horticulture, forestry and allied disciplines. “International linkages are key to the development of any institution and the university has decided to strengthen this area and forge new international partnership. The major areas for collaboration will be in the area of academic and research and students and faculty exchange,” said Dr Kaushal. He added that UHF received a very positive response in the summit with representatives from most countries showing keen interest to collaborate with the university. “The university will soon be getting in touch with the embassies of these countries in India for signing Memorandum of Understanding for collaborating in our many areas of expertise. The university will welcome any foreign partnership as it not only allows us to showcase our skills and expertise but also gives valuable exposure to our scientists and students. Further, to usher in a new era in international academic and research collaboration, the university will look to start certificate, diploma and degree level vocational courses and need-based region-specific international programmes to cater to the specific needs of any foreign partner” said Dr Kaushal. The university delegation also met the representatives from the National Skill Development Council and discussed the possibility of funding support for vocational courses. The NSDC members were of the view that funding support can be provided for trainer’s training with scope for introducing subjects of Horticulture and Forestry as skill development ventures
The Dr YS Parmar University of Horticulture and Forestry (UHF), Nauni, and Satluj Jal Vidyut Nigam Foundation have joined hands to improve the skill set of Himachal farmers. The two organisations have inked a Memorandum of Understanding (MoU) for one year for Rs 55 lakh under which UHF will organize 32 farmer trainings at its main campus and different stations located in the state. The MOU was signed between Dr Rakesh Gupta, Director Extension Education and Awadhesh Prasad, Senior AGM (HR), SJVN in the presence of Dr Parvinder Kaushal, Vice-Chancellor of the university. Dr JN Sharma, Director Research, Rajeev Kumar, Registrar, Dr Raj Kumar Thakur, Joint Director (Communication), Dr Mai Chand, Joint Director (Training) and Harsh Jain, Deputy Manager (HR) from SJVN were also present on the occasion. The MOU is part of SJVN’s Corporate Social Responsibility under which they have set themselves a target for training over 6000 farmers in the latest farm techniques by 2022. Over the next year, the university will conduct six-day residential skill development programmes in farm technology for 800 farmers from different districts of the state including SJVN’s project areas. The SJVN Foundation will bear the total cost of these trainings. It is worthwhile to mention that over 2100 farmers have already benefitted from 86 camps organized by the university under this agreement since 2016. The participants will be trained on the various aspects of agriculture and horticulture including the usage of modern technologies in these fields. The skill development would be under the areas of natural farming, fruit, vegetable and mushroom production, floriculture, post-harvest technology, beekeeping, medicinal and aromatic plants and nursery production of horticulture and forestry crops. Topics like Agripreneurship, plant protection, organic farming and environment impact assessment would also be covered. Besides, to promote Swachh Bharat activities, special reference to awareness on bio-diversity, conversion of bio-waste into compost and usage of wastewater for agriculture. Speaking on the occasion, Dr Parvinder Kaushal said that university would focus on enhancing the practical aspect so that farmers gain the most out of these trainings and look towards starting their enterprises in the agricultural sector. Every year, the university trains thousands of farmers from Himachal and other states in the country at the main campus, research stations and Krishi Vigyan Kendras located in the different agroclimatic zones. Here it is worthwhile to mention that SJVN undertakes its CSR and Sustainability projects in six verticals namely, Health and Hygiene, Education and Skill Development, Sustainable Development, Infrastructural and Community Development, Assistance during natural disasters, Promotion of Culture and Sports. SJVN is also active in the development of Panchayat Ghar, Mahila Mandal, playgrounds and in the past few years more than 200 community assets have been created.
A parthenium eradication campaign was organized at the Dr YS Parmar University of Horticulture and Forestry (UHF), Nauni on Friday. The Department of Environmental Science and the Estate Office of the University organized the event under the Swachh Bharat Abhiyaan. All the university students, faculty and staff took part in the drive. To undertake the drive, the staff and students were divided into nine teams with each group assigned the task of removing parthenium from different areas of the university. The drive was carried out under the watchful eyes of group facilitators and field guides. The proper disposal of the uprooted weeds was ensured by the disposal team. Addressing the gathering of staff and students, Dr Parvinder Kaushal, UHF Vice-Chancellor said it was important to organize such events along with tree plantation drives because they were important to conserve the biodiversity. He asked the university staff and students to focus on the removal of the weed throughout the year. Dr Kaushal urged the university scientists to conduct further studies for the complete eradication of this weed. Dr JN Sharma, Director Research of the university also spoke about the impact of parthenium on biodiversity and agricultural production. Earlier Dr SK Bhardwaj, Professor and Head, Department of Environmental Science gave an overview of the programme and the need for the eradication of the parthenium weed. Parthenium weed is considered to be a cause of allergic respiratory problems, contact dermatitis, mutagenicity in human and livestock. Owing to this weed’s aggressive growth, it leads to the reduction in crop production and threatens biodiversity.
KVK Shimla bags best KVK Award for Himachal Two Krishi Vigyan Kendras (KVKs) of Dr YS Parmar University of Horticulture and Forestry (UHF), Nauni bagged awards at the Annual Zonal Workshop of the KVK (Zone 1) held at GB Pant University of Agriculture and Technology, Pantnagar, Uttarakhand earlier this week. The KVK of District Shimla located at Rohru bagged the award for ‘Best Krishi Vigyan Kendra’ in Himachal Pradesh while KVK Lahaul and Spiti II at Tabo bagged the ‘Best Presentation Award’. UHF Nauni operates both the KVKs. The workshop was organised by ICAR Agricultural Technology Application Research Institute (ATARI), Ludhiana to review the progress made during 2017-18 and 2018-19 and to finalize the Action Plan for the period of 2019-20. Sixty-nine KVKs of Zone-I (Punjab-22, Jammu & Kashmir-21, Himachal Pradesh-13 and Uttarakhand-13) and five ATICs participated and presented their progress reports in six different technical sessions.The team of UHF Nauni was lead by Dr Rajkumar Thakur, Joint Director (Communication). Dr NS Kaith, Incharge KVK Shimla and Dr Sudhir Verma, Incharge KVK Tabo presented the reports of their respective KVKs. The KVK Shimla is the only KVK in the state that has successfully started the Diploma in Agriculture Extension for input dealers. Initiatives such as the introduction of coloured strains of apple for enhancing income in mid-hills under climate change scenario, crop diversification by introducing cultivation of dhingri and exotic vegetables and the publication of ‘Krishi Vaani’, a magazine of the Kendra has helped it to emerge as the best among 13 KVKs of the state.
• Over 1000 farmers from HP, Uttarakhand and J&K A one-day state-level training programme on ‘Prakritik Kheti Khushal Kisan’ was held at Village Baagi Gwas in Rohru on Saturday. Dr Parvinder Kaushal, Vice-Chancellor of Dr YS Parmar University of Horticulture and Forestry (UHF), Nauni was the Chief Guest on the occasion. The training was organized by the Department of Horticulture in association with Singh Apple Orchards, Baagi. The natural farming team of UHF Nauni provided technical support to the training. Over 1000 farmers from Himachal, Uttarakhand and Jammu and Kashmir, scientists from the main campus of the University and Krishi Vigyan Kendra (KVK) Rohru and officers from the horticulture department took part in the event. Pitching for more and more farmers to take up natural farming, Dr Kaushal said that the farming model suits the environment of the state and the farmers can benefit from increased income due to low input cost while the consumers will easily get healthy foodstuff. Calling for people’s participation in making Himachal a role model in natural farming, Dr Kaushal said, “We have to make natural farming a mass movement because the excessive use of chemicals has reduced the fertility of the soil. The way we produce our food need to be changed. Besides productivity, we also need to look at the quality of the food that we produce.” said Dr Kaushal. He added that the university would establish a dedicated task force and protocol for the propagation and promotion of Subhash Palekar Natural Farming at the main campus, research stations and the KVKs of the university. Dr Kaushal said that over 600 natural farming demonstration models will be established in all the districts of the state through the KVKs and research stations of the university. Moreover, experts from the university’s main campus at Nauni will carry out regular training of farmers and master trainers. Fifty farmers, five from each block, will be chosen to visit natural farming models in other states. Progressive farmers in natural farming will also be honoured by the university and made ambassadors of natural farming in the state. Earlier, Dr JN Sharma, UHF Director Research said that it was very encouraging to see youngsters taking a keen interest in agricultural activities and leading a change in this direction. Dr Rajeshwar Chandel, Executive Director of the natural farming programme of the Himachal Government said that around 24 per cent people in the hill states were not practising agriculture and moving towards the plains as they were not getting the right value for their produce. He added that natural farming was an excellent solution, which can help to realize the goal of doubling farmers’ income. Jagat Singh ‘Jangli’, green ambassador of Uttarakhand government urged everyone to preserve the nature and the biodiversity of the region and called for greater attention towards the forest wealth. Jitender Singh and his brother Joginder Singh, apple growers from Baagi shared their experiences of working on natural farming for the past two years. They also talked about the marketing of natural produce. Progressive farmers from the area were also honoured on the occasion.
बरसात के मौसम में भी शहर में पेयजल आपूर्ति ठप है। ऐसा पहली बार नहीं है बल्कि सालों से ऐसा होता चला आ रहा है। दरअसल बरसात शुरू होते ही पेयजल स्तोत्रों में गाद आना शुरू हो जाती है जिससे पानी की लिफ्टिंग नहीं हो पाती। इसके चलते आईपीएच पर्याप्त पानी मुहैया नहीं करवा पाता। हालांकि एलम का इस्तेमाल कर विभाग कुछ हद तक पानी लिफ्ट करने क प्रयास करता है लेकिन गाद अधिक होने की स्थिति में ये पुरानी तकनीक कारगार सिद्ध नहीं हो पाती। इस वर्ष भी ऐसा ही हुआ है, दोनों मुख्य पेयजल योजनाओं, अश्वनी व गिरी में गाद के चलते लिफ्टिंग नहीं हो पा रही। आइये जानते है किस तरह शहर में पेयजल आपूर्ति होती है और इस समस्या क स्थायी हल क्या हैं। शहर को पेयजल आपूर्ति देने के लिए दो मुख्य योजनाएं हैं, अश्वनी पेयजल योजना और गिरी योजना। इन योजनों से आईपीएच विभाग पानी लिफ्ट करता हैं और वार्ड दस में बने मुख्य पेयजल टैंकों तक पहुंचाता हैं। पहले पानी को योजना के समीप बने टैंक में पहुंचाया जाता हैं, जहाँ से ट्रीटमेंट के बाद पानी लिफ्ट कर वार्ड दस के टैंक तक पहुँचता हैं। बरसात के मौसम में जब गाद आती हैं तो वाटर ट्रीटमेंट नहीं हो पाता और पानी वार्ड दस के मुख्य टैंकों तक लिफ्ट नहीं हो पाता। वार्ड दस में बने टैंकों से शहर में पेयजल वितरण का ज़िम्मा नगर परिषद् का हैं। परक्युलेशन वेल हैं समाधान: अश्वनी पेयजल योजना में काफी समय से परक्युलेशन वेल बनाने की योजना हैं। करीब 15 करोड़ की ये योजना अब तक सिरे नहीं चढ़ पाई हैं। यदि परक्युलेशन वेल बन जाता हैं तो गाद की समस्या से निजात मिल सकता हैं।आईपीएच विभाग ने करीब एक वर्ष पहले इस हेतु सरकार को योजना भेजी थी लेकिन अब तक इसे मंजूरी नहीं मिली हैं।एक्सईएन आईपीएच सोलन ई सुमित सूद काफी वक्त से इस योजना के लिए प्रयासरत हैं। उनका मानना हैं कि बहुत जल्द इसका शिलान्यास होगा और शायद अगली बरसात में शहर को पेयजल किल्लत का सामना नहीं करना पड़ेगा। धारों की धार टैंक ठीक होने से मिलेगी राहत: धारों की धार में वर्ष 2006 में 38 लाख लीटर क्षमता का एक स्टरगे टैंक बनाया गया था। ये वाटर टैंक लेकज़ हैं जिसके चलते इसका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा। यदि इसे दुरुस्त कर दिया जाए तो किल्लत के समय शहर को कुछ राहत मिल सकती हैं। हालांकि आईपीएच एक्सईएन की पहल पर इसे अमेरिकी तकनीक से ठीक किये जाने को स्वीकृति मिली हैं। यदि ये टैंक ठीक होता हैं तो शहर को कुछ राहत जरूर मिलेगी। लीकेज बड़ी समस्या: अनुमान के अनुसार करीब तीस प्रतिशत पेयजल लीकेज के चलते व्यर्थ बहता हैं। नगर परिषद् को इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने की सख्त आवश्यकता हैं।काफी समय से नप पेयजल पाइप लाइन बदलने की बात कह रही है लेकिन कुछ वार्डों को छोड़ कर इस दिशा में पर्याप्त कार्य नहीं हुआ है। वैकल्पिक योजना का अभाव : क्षेत्र में गिरि व अवश्वनी दो बड़ी पेयजल योजनाएं हैं। गिरि पेयजल योजना से शहर सहित कसौली विस क्षेत्र के करीब 40 गांव के लिए पेयजल की सप्लाई की जाती है। वहीं अश्वनी योजना से शहर के कुछ हिस्से सहित लगभग 8 गावों में पेयजल आपूर्ति की जाती है। शहर में सुचारू पेयजल आपूर्ति हेतु एक नई योजना की सख्त आवश्यकता है गिरी पेयजल योजना सिर्फ सोलन शहर के लिए शुरू की गई थी ,लेकिन वर्तमान में अनेक गांव भी इस योजना से जोड़ दिए गए है। ऐसे में इस योजना पर अतिरिक्त भार पड़ रहा है।सम्बंधित विभाग व सरकार को दूरदृष्टि दिखा कोई वैकल्पिक योजना तैयार करने की जरुरत है।
-Late DC Mehta was a farmer with Midas Touch -First Tomato Harvesting to The City of Red Gold He was a farmer with Midas touch. He was a visionary and due to his dedication & struggle , today Solan is known as the City of Red Gold. We are talking about late Devi Chand Mehta, the man who first started harvesting tomato in Solan. (the man who introduced commercial production of tomato to Solan.) It was the year 1942 when Saproon valley of Solan witnessed first harvesting of tomato by Late D.C. Mehta. According to the information available, Mehta had sown the Kolkatta based Stuns and Sons Company seeds in his fields. The packets of tomato seed are still lying safe in his home. Influenced by DC Mehta, in the year 1943-44, the other farmers of the valley also started planting and harvesting tomato. However, at that time it was not at all easy for them to carry the crop to the market. During that time the farmers used to transport the tomato crop to Delhi in locked tins via train. Interesting thing is that the tin had two keys the one of which was with the farmer and another with the aadti (reseller). In 1945 the farmers started to dispatch their produce packaged in Sunlight soap cartons and boxes used to pack oranges. This mechanism of tomato trading continued for around one decade. DC Mehta was well aware of marketing and distribution as well. He established tomato collection centres in Saproon, Kandaghat, Occhghat, Kaalaghat and Naarag. He used to collect tomatoes from these centres in his Willys Jeep to be further transported to Calcutta (now Kolkatta), Bombay (now Mumbai ) and Delhi agriculture markets. In 1956, DC Mehta took another initiative and established a manufacturing unit of pine boxes. After this farmers started using pine boxes to supply the huge quantity of produce. Gradually the tomato production in Solan is raising the par with every passing year. Tomato has undoubtedly electrified the economy of Solan. According to the information, in 1992-93, the tomato was grown on only 1200-hectare area in Solan. In 2004, farmers produced 92,220 MT of tomato on 2,500 hectares of land in Solan. However, in 2018, they produced 1,25,400 MT on 4,200 hectares. It is disappointing that the government has failed to set up a cold storage and food processing unit for tomato farmers in Solan. Sometimes due to over production or low demand, the prices of table tomato fell as low as Rs 5 per kg . At such times the farmers are forced to destroy tomato on roadsides or fields during the peak season, as they don’t have any other option.
Adoption of natural farming can substantially increase the farmers' incomes and help to realize the goal of doubling farmers income. Natural Farming expert Subhash Palekar expressed these views at the meeting with Dr Parvinder Kaushal, Vice Chancellor of Dr YS Parmar University of Horticulture and Forestry (UHF), Nauni. The meeting focused on promoting the natural farming technique in Himachal so that the farmers of the state can reap rich dividends through minimal input cost. Subhash Palekar, a native of Maharashtra, has been advocating his natural farming model with no external inputs of any sort for around 20 years. He worked extensively on this area in the tribal belt of Maharashtra. This model was rechristened as ‘Subhash Palekar Natural Farming’ last year. The model has found favour in several states including Himachal where thousands of farmers have been trained in this farming model under the state government’s ‘Prakritik Kheti-Khushhal Kisan’ programme. During the meeting, which took place at Solan on Saturday evening, Padam Shree awardee Subhash Palekar said that farmers must get the right prices for their produce and natural products can help to fetch handsome return. He exhorted that the adoption of natural farming will lead to the easy availability of natural and healthy food to consumers and will reduce the overdependence on the use of chemicals in agricultural activities thereby reducing the input cost. He added that loan waiver was not feasible and is leading to dependence and instead efforts should be made towards sustainable loan liberation. The farming model recently received a major boost when Finance Minister Nirmala Sitharaman in this year’s Budget speech mentioned the method as one of the innovative models through which farmers’ income could be doubled by the year 2022. The Food and Agricultural Organization of the United Nations has also recognized this farming model and has dedicated a chapter on it in its profiles on Agroecology. Palekar said that natural farming was also environmental friendly while both chemical and organic farming besides being expensive also release greenhouse gases on large scale causing environmental pollution. He said that industrialization, chemical and organic farming were the major contributors to global warming. He shared examples of farmers from Himachal who had benefitted from switching over to natural farming. Subhash, an apple orchardist from Rohru had nearly tripled his apple production since switching over to natural farming two years back. Tapeshwar Mahantan from Jubbal has also experienced similar results in his orchards. Over 100 vegetable growers from Basantpur have been engaged in natural farming through the government-sponsored programme. Dr Kaushal assured him that the University will make efforts to promote the natural farming system among the farmers of the state by establishing model points at the Krishi Vigyan Kendras located in various location in the state for systematic propagation of natural farming practices. Besides the university has already established a natural farming experimental block and fruit block at the university campus.
फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट - 2014 में किया था वादा, 2019 में पीएम मोदी ने ज़िक्र तक नहीं किया सिटी ऑफ रेड गोल्ड सोलन के किसान लम्बे समय से टमाटर आधारित फ़ूड प्रोसेसिंग प्लांट की मांग करते आ रहे है। अमूमन हर चुनाव में सियासी दल फ़ूड प्रोसेसिंग प्लांट का वादा करते है और ऐसा दशकों से होता आ रहा है, किन्तु अब तक सोलन को फ़ूड प्रोसेसिंग पालनट नहीं मिला। टमाटर का समर्थन मूल्य तय करने की मांग भी किसान संगठन लम्बे वक्त से करते आ रहे है पर इस दिशा में भी किसानों को आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला।ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि जो टमाटर जिला के हजारों किसान परिवारों के लिए जीवनयापन का जरिया है वो शायद शासन और तंत्र के लिए सिर्फ राजनीति की वस्तु है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वर्ष 2014 में सोलन रैली में किसानों से टमाटर के समर्थन मूल्य व फूड प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की बात कह चुके है। तब वे प्रधानमंत्री नहीं थे, प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। खेर, नरेंद्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद उम्मीद जगी कि शायद सरकार टमाटर किसानों की सुध लेगी। परंतु कुछ नहीं बदला। दिलचस्प बात ये है कि 2019 में जब नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री सोलन आये तो उन्होंने न फ़ूड प्रोसेसिंग प्लांट का ज़िक्र किया और न ही टमाटर के समर्थन मूल्य का। मवेशियों को खिलने पड़ते है टमाटर कूल उत्पादन का करीब 70 फीसदी सोलन-सिरमौर से उल्लेखनीय है कि सोलन प्रदेश का सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक है। प्रदेश के कूल टमाटर उत्पादन का करीब 40 फीसदी से अधिक अकेले सोलन शहर से आता है। वहीं संसदीय क्षेत्र के एक अन्य जिला सिरमौर का योगदान कुल उत्पादन का करीब 30 फीसदी है। यहां के हजारों परिवार जीवन यापन के लिए टमाटर खेती पर आश्रित है। विडंबना ये है कि अधिक उत्पादन की स्थिति में किसानों को टमाटर का उचित मूल्य नहीं मिल पाता। कई मर्तबा तो हालात इतने बदतर हो जाते है कि टमाटर मवेशियों को खिलाने पड़ते है। दो दशकों से है चुनावी मुद्दा सोलन में टमाटर आधारित फूड प्रोसेसिंग यूनिट करीब दो दशकों से चुनावी मुद्दा है। अमुमन हर चुनाव में किसान वोट हतियाने के लिए नेता फूड प्रोसेसिंग यूनिट का ख्वाब दिखाते है , वोट बटोरते है और फिर भूल जाते है । खासतौर से लोकसभा पहुंचने के लिए टमाटर फैक्टर का भरपूर इस्तेमाल होता आया है। बॉर्डर पर तनाव, किसानों का नुक्सान गौर हो कि सोलन से टमाटर आमतौर पर पाकिस्तान एक्सपोर्ट किया जाता है । इसी के चलते किसानो को अधिक उत्पादन होने पर राहत मिलती है । साथ ही उन्हें उचित मुल्य भी मिलता है। किन्तु अगर बॉर्डर पर तनाव हो तो व्यापारी एक्सपोर्ट से परहेज करते है जिसका खमियाजा किसानो को भी भुगतना पड़ता है। ऐसे में स्थानीय फूड प्रोसेसिंग यूनिट होने से किसानो का आर्थिक नुक्सान कम किया जा सकता है। वोट के लिए हुआ है किसान का इस्तेमाल - हिमाचल किसान सभा भाजपा व कांग्रेस दोनों ही राजनैतिक दलों ने सिर्फ वोट के लिए टमाटर किसान का इस्तेमाल किया है।खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने भी मई 2014 में सोलन में हुई रैली में फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट व एमएसपी का वादा किया था, लेकिन हुआ कुछ नहीं। इतना ही नहीं जो टमाटर बाजार में किलोग्राम के हिसाब से बेचा जाता है, उसे किसान से क्रेट के हिसाब से ख़रीदा जाता है , जो किसान के साथ नाइंसाफी है। -डॉ कुलदीप तंवर, अध्यक्ष, हिमाचल किसान सभा।
सोलन से करीब 12 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है निर्मल ग्राम पंचायत नौणी जो किसी परिचय की मोहताज नहीं है। स्वच्छता और विकास के नए आयाम स्थापित कर रही नौणी हिमाचल प्रदेश की वो पंचायत है जो अन्य पंचायतों के लिए एक मिसाल बन चुकी है। ग्राम पंचायत नौणी अब तक सैकड़ों पुरस्कार जीत चुकी है। आंकड़ों के अनुसार अब तक इस पंचायत ने करीब तीस लाख राशि बतौर पुरस्कार जीती हैं। वर्ष 2006 से नौणी पंचायत अस्तित्व में आई और बलदेव ठाकुर इसके प्रधान चुने गए। तब से अब तक बलदेव ठाकुर ही इस पंचायत के प्रधान है और काम के बुते आज उनकी छवि एक विकास पुरुष की है। उन्होंने सुनिश्चित किया है कि पंचायत के लोगों की मूलभूत जरूरतों को आधुनिक तकनीक के साथ पूरा किया जाए और पर्यावरण से भी कोई खिलवाड़ न हो। जानिये निर्मल ग्राम पंचायत नौणी को ... वर्ष 2006 में अस्तित्व में आई नौणी पंचायत वर्ष 2007 में प्रदेश की पूर्ण खुला शौच मुक्त पंचायत बनी। वर्ष 2007 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित होने वाली प्रदेश की पहली पंचायत बनी। महर्षि वाल्मीकि राज्य स्वच्छता पुरस्कार (ब्लॉक, जिला, डिवीज़न व प्रदेश विजेता) राज्य पर्यावरण लीडरशिप अवार्ड 2018 पंचायत के सभी परिवार एम्बुलेंस सड़क से जुड़ चुके हैं। नौणी गांव में करीब एक हज़ार वाहनों के लिए फ्री पार्किंग सुविधा उपलब्ध है। किसानों की बेहतर उपज का ध्यान रखते हुए 50 सिंचाई टैंको का निर्माण किया गया है। पंचायत में वर्षा जल संग्रहण टैंक बनाए गए हैं। पंचायत में दुधारू पशुओं की चिकित्सा के लिए पशु चिकित्सालय मौजूद हैं। किसानों के लिए कई ग्रीन हाउस बनाये गए हैं। नौणी स्थित डॉ वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय से पंचायत को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। लोगों की सुविधा के लिए पक्के रास्ते, पर्याप्त शौचालय, हाई टेक पंचायत घर, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, , पटवारखाना, कई बैंक, डाकघर सहित कई आवश्यक संस्थान है। पंचायत में एक वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल, दो निजी स्कूल, एक प्राइमरी स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्र भी मौजूद हैं। पर्यटन बढ़ने के लिए नौणी गांव में पंचायत द्वारा निर्मित नौणी ताल, बाग ताल, दो सुंदर पार्क, निर्मल वाटिका नौणी सहित कई निर्माण कार्य करवाए गए हैं। अत्याधुनिक सामुदायिक भवन का निर्माण किया जा रहा हैं। अब ये है बलदेव का इरादा...... नौणी गांव स्थित पुलिस बूथ को चौकी में तबदील करने की जरूरत है। बच्चों को तकनीकी पढ़ाई के लिए यहां एक आईटीआई की भी दरकार है। धारों की धार स्थित किले को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की आवशयकता है। नौणी के नजदीक गिरी नदी है जिसे भी नए पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता हैं । पर्यटन विभाग क्षेत्र में कुछ फ्लड लाइटें लगा दे तो इस खूबसरत क्षेत्र की सुंदरता और भी बढ़ सकती है।
With the flowering time of Gladiolus, Chinese Aster and Marigold in the month of July, farmers are gearing up for the upcoming harvest season. The harvest time of Alstroemeria, Gerbera and Lilium has just passed in June and now it is time to prepare for new income. The preparations would require the gathering of packaging material, take care of the buds, pinching of the unwanted shoots and support the shoots. Some areas and varieties of carnation are also expected to flower in July. The crop is expected to get a good price in the major megacities of India. Farmers with forward marketing skills can avail from their agile efforts. Aside from the crop, it is also time for pinching of Chrysanthemum heads to prepare more buds and dividing Gerbera plants. Marigold seeds are to be spread into the nurseries and fields for germinations. Bulbs of daffodils are also to be collected and stored. Opportunities in Floriculture in Himachal Pradesh The Pushp Kranti Yojna with a budget of 10 crores was flagged last year by CM Jai Ram Thakur with the objective of providing training and facilities to farmers for the commercial production of flowers. Apart from generating awareness, the scheme will also encourage farmers to deploy hi-tech poly houses. This will open better opportunities and earnings for farmers. Presently, there are six floriculture nurseries and two model centres and laboratories in the state. The topography and climatic conditions of Himachal Pradesh allow floriculture to thrive in the region. The state observes extremely hot, extremely cold to moderate climates. Overall, the state of Himachal Pradesh has best agro-climatic conditions for floriculture to sustain through even off-season and produce export quality flowers. Advanced farmers can also introduce new flowers to the market such as Gypsophila, Bird of Paradise, Limonium, Freesia, Tulips, Orchid, Iris and Zantedeschia.
The three-day ‘National Seminar on Doubling Income through Sustainable and Holistic Agriculture (DISHA)’ concluded at the Dr. YS Parmar University of Horticulture and Forestry (UHF), Nauni on Friday. The seminar was jointly organized by the Society for Advancement of Human and Nature (SADHNA), Solan and UHF Nauni with the Indian Council of Agricultural Research and the Central Potato Research Institute, Shimla as technical collaborators. The seminar saw highly successful deliberations on various topics and 218 abstracts were received. The participants covered a wide range of topics through poster and oral presentations. Several new crops, technologies and tools for production, protection and dissemination of technology were presented and discussed in the technical sessions of the seminar. There was a consensus among all the scientists on the need to develop eco-friendly technologies and improved cultivars. Many presentations also emphasized on the need to diversify through new crops and value addition. In addition, there were several new ideas for reducing the cost of farm inputs, plant protection, reduction of post-harvest losses, improvement of market access and infrastructure for enhancing farmers' income. Exciting presentations on nutritional quality enhancement and innovative products were also given by the participants. Founder of SADHNA Sh. Roshan Lal was the Chief Guest for the valedictory session of the seminar. While congratulating the participants, he spoke about the journey of the society and the work done by it in the field of education to the underprivileged. Dr. Amit Vikram presented the report of the seminar. Dr. Rakesh Gupta, Advisor of DISHA shared that the society has grown to over 2000 members from all over the country in a short period. He hoped that the recommendations coming out of this seminar will be received positively by the policymakers, researchers and other stakeholders and can play a role in developing sustainable agriculture and improving farmers’ income. Nine research papers; six in the oral and three in the poster category were awarded under various categories. Dr. Rakesh Sharma, MS Kanwar, Urvashi, Preeti Sagar Negi, Vipasha and Dhanapriya were awarded under the best oral research presentation category. In the poster category, research papers presented by Pooja Bhardwaj, Debasis Golui and Sakshi Sharma bagged the award.