दिल्ली में बीजेपी की शानदार जीत के बाद सीएम फेस के लिए जद्दोजहद जारी है।कई दावेदार लॉबिंग में जुटे है पर सबसे ज्यादा चर्चा है प्रवेश वर्मा के नाम की, जिन्हें GIANT किलर भी कहा जा रहा है। प्रवेश वर्मा ने नई दिल्ली सीट से अरविन्द केजरीवाल को हराया है।अगर प्रवेश वर्मा दिल्ली के सीएम बनते है तो दिलचस्प रिकॉर्ड भी बनेंगे। पहला, वो बीजेपी के ऐसे पहले नेता होंगे जिनके पिता भी सीएम रहे है । साहिब सिंह वर्मा फरवरी 1996 से लेकर अक्टूबर 1998 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे है। दूसरा, लगातार सातवीं बार दिल्ली का सीएम नई दिल्ली सीट से होगा। 1998, 2003 और 2008 में शीला दीक्षित इस सीट से विधायक बनकर सीएम पद संभाल चुकी है। हालाँकि परिसीमन से पहले इस सीट को गोयल मार्किट के नाम से जाना जाता था। फिर 2013 में अरविन्द केजरीवाल ने शीला दीक्षित को हराया और दिल्ली से सीएम बने। 2015 और 2020 में भी केजरीवाल ही चुनाव जीते और सीएम बने। अब प्रवेश वर्मा ने अरविन्द केजरीवाल को हराया है और यदि वे सीएम बनाते है तो नई दिल्ली के नाम लगातार सात सीएम देने का अनूठा रिकॉर्ड भी बन जायेगा।
बीजेपी और आप के बीच दिल्ली में सिर्फ 1.99 प्रतिशत वोट शेयर का अंतर रहा लेकिन सीटों के लिहाज से देखे ये तो अंतर 26 सीटों का है। आंकड़े साफ़ बताते है की दिल्ली में बीजेपी का चुनाव मैनेजमेंट शानदार रहा है और इसका श्रेय पार्टी के संगठन को भी जाता है । दरअसल, दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की इस शानदार जीत के पीछे संगठन मंत्री पवन राणा की भी बड़ी भूमिका रही है। अप्रैल 2023 में बीजेपी ने उन्हें दिल्ली का जिम्मा सौपा था और उसके बाद से ही दिल्ली में लगातार बीजेपी का संगठन मजबूत होता दिखा। बीजेपी संगठन में पन्ना प्रमुख मॉडल की शुरुआत करने वाले पवन राणा अपने पॉलिटिकल माइक्रो मैनेजमेंट के लिए जाने जाते है और दिल्ली में राणा का ये ही माइक्रो मैनेजमेंट बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत बना। मसलन, बीजेपी ने दिल्ली में मंदिर प्रकोष्ठ शुरू किया और दिल्ली के करीब पंद्रह हजार मंदिरों को इस प्रकोष्ठ से जोड़ा गया। इसका बीजेपी को अच्छा लाभ हुआ है। माना जा रहा है आने वाले दिनों में अन्य राज्यों में भी इसे अपनाया जा सकता है। वहीं, झुग्गी बस्ती सम्मलेन जैसे अभियानों का जमीनी असर भी खूब दिखा। केजरीवाल के झुग्गी वोट को तोड़ने के लिए बीजेपी चुनाव से कई महीने पहले झुग्गी क्षेत्रों में प्रो. एक्टिव दिखी। न सिर्फ झुग्गी प्रधानों को पार्टी के साथ जोड़ा गया, बल्कि खुद गृह मंत्री अमित शाह के साथ उनका संवाद करवाया गया। इसके अलावा चाहे उत्तराखण्ड हो, हिमाचल या फिर पूर्वांचल के वोटर इनके प्रभाव वाली सीटों पर इस मर्तबा बीजेपी का माइक्रो मैनेजमेंट साफ़ दिखा। इन राज्यों से सम्बन्ध रखने वाले नेताओं को कोंस्टीटूएंसी टू कोंस्टीटूएंसी जिम्मा सौंपा गया और इसका भी बीजेपी को फायदा मिला।
'येन केन प्रकारेण' बीजेपी जीतना चाहेगी तीनों दिग्गजों की सीटें कांग्रेस के संदीप दीक्षित और अलका लाम्बा ने भी बना दिया है चुनाव ! ये चुनाव नहीं आसाँ बस इतना समझ लीजिए, एक आग का दरियाँ है और डूब के जाना है। कुछ ऐसी ही स्थिति इस बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी की नज़र आ रही है। इस बार दिल्ली में आप की राह आसान नहीं है और दिलचस्प बात ये है कि पार्टी के तीनों मुख्य चहेरे, यानी सीएम आतिशी, पूर्व व प्रोजेक्टेड सीएम अरविन्द केजरीवाल और पूर्व डिप्टी व प्रोजेक्टेड डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी अपनी -अपनी सीटों पर फंसे देख रहे है । इन तीनों दिग्गजों की सीटों पर इस बार मुकाबला टक्कर का है। 'येन केन प्रकारेण' बीजेपी इन सीटों को जीतना चाहती है और जमीनी स्तर पर इसका असर दिख भी रहा है। सिलसिलेवार बात करें तो नई दिल्ली से, अरविन्द केजरीवाल के सामने बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ने पूर्व मुख्यमंत्रियों के पुत्रों को मैदान में उतारा है। बीजेपी से पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा है तो दूसरी तरफ कांग्रेस से पूर्व सीएम शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित। ये दोनों ही दो -दो मर्तबा सांसद भी रहे है और दोनों ने ही पूरी ताकत झोंकी है। ऐसे में इस सीट पर केजरीवाल की राह आसान जरा भी नहीं है। वहीं कालका जी सीट में भी आतिशी और भाजपा प्रत्याशी रमेश बिधूड़ी तो आमने-सामने थे ही, लेकिन इस सीट पर अब कांग्रेस प्रत्याशी अलका लाम्बा भी मजबूती से लड़ रही है। यहाँ भी मुकाबला त्रिकोणीय है और माहिर भविष्यवाणी करने से बचते दिख रहे है। बात मनीष सिसोदिया की करें तो इस बार आप ने उन की सीट बदल दी है और उन्हें पटपड़गंज की जगह जंगपुरा से मैदान में उतारा है। इस सीट पर बीजेपी के तरविंदर सिंह तो बेहद मजबूती के साथ चुनाव लड़ ही रहे है, कांग्रेस के फरहाद सूरी को भी हल्का नहीं लिया जा सकता। माहिर मान रहे है कि सूरी इस सीट पर सिसोदिया संकट में है। चर्चा सिसोदिया की पटपड़गंज सीट की भी करते है जहाँ से इस बार आप ने अवध ओझा को मैदान में उतारा है। यहाँ मुख्य रूप से यहाँ मुकाबला अवध ओझा और बीजेपी से रविंद्र नेगी के बीच माना जा रहा है। पिछले चुनाव में भी नेगी ने सिसोदिया को कड़ी टक्कर दी थी और इस बार भी ओझा यहाँ उलझे दिखे है। बहरहाल कल मतदान है और आठ फरवरी को नतीजा सामने होगा। अब आप के ये तीन दिग्गज इस चुनावी अग्नि परीक्षा को पास करते है या नहीं, ये जनता तय करेगी।
केजरीवाल पर सीधे और तीखे प्रहार असरदार...पर देरी क्यों ? सुस्त प्रचार के बावजूद दिल्ली की कई सीटों पर टक्कर में कांग्रेस ! चुनाव दिल्ली में है, उस दिल्ली में जहाँ बीते दो चुनाव में कांग्रेस का खाता नहीं खुला। उस दिल्ली में जहाँ पिछले चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर घटकर पांच प्रतिशत से भी कम हो गया था। पर बीते दिनों कांग्रेस पहुंच गई महू, मध्य प्रदेश के महू। कोई ख़ास मौका नहीं था, लेकिन संविधान रैली कर कांग्रेस ने रोष व्यक्त किया। देश भर के दिग्गज महू में पहुंचे। तब सवाल उठा कि दिल्ली में भी तो ऐसा हो सकता था, या दिल्ली चुनाव के बाद हो सकता था। माहिरों ने तब माना कि शायद दिल्ली में कांग्रेस और आप के बीच कोई गुप्त समझौता हुआ है, इसलिए हाथ थोड़ा हल्का रखा गया है। माना गया कि इसी लिए राहुल और प्रियंका उस तरह प्रचार करते नहीं दिखे जैसा केजरीवाल ने किया, जैसा प्रचार भाजपा के नेता कर रहे है। पर प्रचार के अंतिम चरण में मानो कांग्रेस अचानक जाग गई। राहुल गाँधी के सीधे निशाने पर अरविन्द केजरीवाल आ गए। भ्रष्टाचार के सीधे और तीखे आरोप लगाए गए और इसका असर भी पार्टी काडर के जोश में दिखा। राहुल गाँधी की तरफ से ये भ्रम तोड़ दिया गया कि कोई गुप्त समझौता हुआ है। तो फिर कांग्रेस ने देरी क्यों की ? क्या कांग्रेस खुद नहीं जानती कि उसे करना क्या है ? या दिल्ली चुनाव पहले कांग्रेस को आसां या गैरजरूरी लग रहा था। दरसअल, कांग्रेस आलाकमान के ये हाल और हालात, ये लेटलतीफ कार्यशैली ही आज कांग्रेस की इस दशा के जिम्मेदार है। बहरहाल दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के लिए अच्छी खबर ये है कि कई सीटों पर पार्टी टक्कर में दिख रही है। वो कहते है न अंत भला तो सब भला। कांग्रेस भी ये ही चाहेगी कि दिल्ली की जनता उसका कुछ तो भला कर ही दे।
दिल्ली से आगाज़, दिल्ली से अंत...जीत के साथ विदाई चाहेंगे नड्डा ! बंगाल में दीदी के आगे बीजेपी जीरो साबित हुई तो अपने ही होम स्टेट हिमाचल में नड्डा बीजेपी को गुटबाजी और बगावत से बचाने में फेल साबित दिखे। ठीक पांच साल पहले साल 2020 का दिल्ली विधानसभा चुनाव बीजेपी सुप्रीमो जेपी नड्डा का पहला इम्तिहान था। तब भाजपा को करारी हार मिली थी और तमाम दावे हवा हवाई सिद्ध हुए थे। दिल्ली की 70 में से सिर्फ आठ सीटें ही बीजेपी के खाते में आई थी। अब वक्त घूमकर फिर वहीं लौट आया, फिर दिल्ली में चुनाव है और फिर बीजेपी की साख दांव पर। फर्क सिर्फ इतना है कि बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष ये जेपी नड्डा का अंतिम इम्तिहान है। ऐसे में जाहिर है नड्डा भी चाहेंगे कि जाते-जाते उनकी सियासी बैलेंस शीट में दिल्ली की जीत भी जुड़ जाएं। बहरहाल बीजेपी ने इस बार दिल्ली में पूरा जोर लगाया है, पार्टी की माइक्रो मैनेजमेंट जमीन पर दिखी भी है। इस पर मोदी के मिडिल क्लास वाला बजट भी बीजेपी को लाभ पहुंचा सकता है। बावजूद इसके बीजेपी दिल्ली फतेह करेगी या दिल्ली अभी दूर रहेगी, ये कहना जल्दबाजी होगा। वैसे नड्डा के पांच साल के कार्यकाल में बीजेपी ने केंद्र की सत्ता में तो वापसी की ही, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे मुश्किल माने जा रहे राज्यों में भी कमाल दिखाया। कुल मिलाकर नड्डा के कार्यकाल में बीजेपी ने बेहतर किया। पर तीन राज्य ऐसे है जहां पूरी ताकत झोंकने के बावजूद बीजेपी ने मुंह की खाई, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और नड्डा का होम स्टेट हिमाचल प्रदेश। यूँ तो फेहरिस्त में झारखंड, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे कई अन्य राज्य भी है, लेकिन जितनी ताकत भाजपा ने बंगाल और दिल्ली ने झोंकी, उतनी शायद अन्य राज्यों में नहीं। वहीँ हिमाचल तो नड्डा का गृह राज्य है, बावजूद इसके हिमाचल में भाजपा दिशाहीन दिखी है। बंगाल में दीदी के आगे बीजेपी जीरो साबित हुई तो अपने ही होम स्टेट हिमाचल में नड्डा बीजेपी को गुटबाजी और बगावत से बचाने में फेल साबित दिखे। यहां न सिर्फ बीजेपी ने सत्ता गंवाई, बल्कि आज भी जमीन पर सहज नहीं दिखती। हिमाचल को मिशन लोटस के फेल होने के लिए भी याद किया जाता रहेगा। वहीं दिल्ली में भी केजरीवाल के आगे बीते दो चुनाव में बीजेपी का हर दांव पीटा है। ऐसे में नड्डा चाहेंगे कि बेशक हिमाचल और पश्चिम बंगाल की विफलता उनके साथ जुड़ी रहेगी, लेकिन जाते-जाते कम से कम दिल्ली ही मिल जाए।
बीते कई चुनावों में फलौदी सट्टा बाजार की भविष्यवाणियां लगातार हुई है फेल चुनावी नतीजों को लेकर फलौदी सट्टा बाजार का लम्बा इतिहास है। अलबत्ता बीते कई चुनावों में फलौदी सट्टा बाजार की भविष्यवाणियां लगातार फेल हुई हो, लेकिन सियासी गलियारों में इसी चर्चा जरा भी कम नहीं हुई। दिल्ली चुनावों को लेकर भी फलौदी सट्टा बाजार की भविष्यवाणियां लगातार सामने आ रही है। हालांकि, यह केवल एक अनुमान है और इसकी सटीकता पर भरोसा नहीं किया जा सकता, फिर भी सट्टा बाजार में चल रही दरों से यह समझने की कोशिश की जा रही है कि दिल्ली में चुनावी परिस्थितियां किस दिशा में जा सकती हैं। सूत्रों की माने तो दिल्ली में फलौदी सट्टा बाजार ने कांग्रेस का कोई भाव नहीं खोला है, यानी सट्टा बाजार कांग्रेस को लेकर बिलकुल नाउम्मीद है। आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच मुकाबले में सट्टा बाजार आप को अब भी मजबूत मान रहा है। फलोदी सट्टा बाजार में बीजेपी की सरकार बनने के लिए भाव 1 रुपया 50 पैसे का खोला गया है, जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए सट्टा बाजार में भाव 70-80 पैसे के बीच चल रहा है। सट्टा बाजार में किसी पार्टी का भाव जितना कम होता है, यह उतनी ही कम जीत की संभावना को दर्शाता है। बहरहाल इस बार क्या फलौदी सट्टा बाजार की भविष्यवाणी सही होती है, इसका पता तो आठ फरवरी को लगेगा। नोटः यहां पर दी गई जानकारी फलोदी में सट्टा बाजारों के जानकारों के माध्यम से दी गई है। हमारा उद्देश्य सट्टा को किसी भी प्रकार से प्रोत्साहन करना नहीं है। सट्टा अवैधानिक है।
केजरीवाल को घेरने को भाजपा का माइक्रो मैनेजमेंट क्या संदीप दीक्षित बिगाड़ साकेत है केजरीवाल का खेल ? नई दिल्ली वो विधानसभा सीट है जो विधायक ही नहीं सीएम भी बनाती है, पिछले छ चुनावों में ऐसा ही हुआ है। जो भी नई दिल्ली सीट से जीता वो ही दिल्ली का सीएम बना। पहले साल 1998 से 2008 तक यहाँ से शीला दीक्षित लगातार तीन चुनाव जीती और दिल्ली की सीएम भी बनी। हालांकि 2008 से पहले इस सीट को गोयल मार्किट के नाम से जाना जाता था। फिर 2013 से इस सीट से अरविन्द केजरीवाल लगातार जीत रहे है और तीनो मर्तबा जीतने के बाद वे दिल्ली के सीएम भी बने है। इस बार भी अरविन्द केजरीवाल इसी सीट से मैदान में है और आम आदमी पार्टी के सीएम फेस भी। अरविन्द केजरीवाल के मुकाबले दोनों ही मुख्य पार्टियों, यानी कांग्रेस और भाजपा ने इस बार पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों को टिकट दिया है। भाजपा ने जहाँ साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को टिकट दिया है, वहीँ कांग्रेस ने शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को मैदान में उतारा है। वैसे एक दिलचस्प बात और है, ये दोनों ही एक्स सीएम पुत्र दो -दो बार सांसद भी रह चुके है। यानी नई दिल्ली सीट पर इस बार हाई वोल्टेज मुकाबला देखने को मिल सकता है। कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित अपनी मां शीला दीक्षित द्वारा किये गए काम के नाम पर वोट मांग रहे है। माहिर मान रहे है कि अगर कांग्रेस का थोड़ा भी पुराना वोट उसके पास लौटता है तो केजरीवाल के लिए मुश्किल हो सकती है। उधर भाजपा ने भी पूरी ताकत झोंक दी है, प्रवेश वर्मा को हल्के में नहीं लिया जा सकता। वर्मा 'करो या मरो' के जज्बे से इस चुनाव को लड़ रहे है। झुग्गी वालों को रिझाने में जुटे भाजपा और आप ! नई दिल्ली विधानसभा सीट के दायरे में झुग्गी बस्तियां भी आती है और ये वोट केजरीवाल की ताकत माना जाता है। इस वोट बैंक को साधने के लिए इस बार भाजपा ने विशेष रणनीति बनाई है। झुग्गियों में बड़े नेताओं का प्रवास हो या अमित शाह का झुग्गी बस्ती सम्मलेन, भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी। पीएम आवास योजना के तहत झुग्गी वालों को घर दिए जाने का वादा भी भाजपा नेता जोर शोर से कर रहे है। उधर, आम आदमी पार्टी ने झुगियों में फ्री बिजली-पानी तो दिया ही है, शौचालयों का निर्माण भी बड़े पैमाने पर हुआ है जिससे निसंदेह यहाँ रहने वाले लोगों का जीवन कुछ बेहतर हुआ है। पार्टी इसे तो भुना ही रही है, साथ ही केजरीवाल लगातार कह रहे है की यदि भाजपा आई तो झुग्गियों की जमीन उद्योगपतियों को दे दी जाएगी। यदि ये नैरेटिव बनता है, तो भाजपा को नुक्सान उठना पड़ा सकता है। वहीँ बात अगर कांग्रेस की करें तो पार्टी जातिगत जनगणना के वादे के सहारे उम्मीद में है कि उसका परंपरागत वोटर वापस लौटेगा। झुग्गी क्षेत्रों में पार्टी के प्रचार में माइक्रो मैनेजमेंट नहीं दिख रहा।
बीते दो चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला कांग्रेस को उम्मीद, 'किंग' न सही 'किंगमेकर' सही ! विरोधियों का दावा, कांग्रेस न तीन में न तेरह में दिल्ली के दिल में क्या है ये तो आठ फरवरी को स्पष्ट होगा, किन्तु दिल्ली में कांग्रेस की राह आसां जरा भी नहीं है। प्रचार -प्रसार और मुद्दों को भुनाना, कांग्रेस की धार को लेकर अभी से सवाल उठ रहे है। हालंकि पार्टी को उम्मीद है कि अल्पसंख्यक वोट के साथ -साथ उसका पारम्परिक दलित वोटर भी वापस लौट सकता है, और इसी आधार पर बताया जा रहा है कि कांग्रेस को डबल डिजिट में पहुचंने कि उम्मीद है। पर अगर ऐसा नहीं होता है, कांग्रेस दिल्ली में में बेहतर नहीं करती है तो इसका असर राष्ट्रीय राजनीति में भी दिखेगा। इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की पकड़ और कमजोर पड़ सकती है। यानी दिल्ली अगर पूरी तरह कांग्रेस के साथ न भी जाए तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर दिल्ली दिल खोल कर आम आदमी पार्टी का साथ देती है, तो कांग्रेस को डबल झटका लगना तय है। दिल्ली में कांग्रेस को बेशक सत्ता न मिले लेकिन पार्टी का ठीक ठाक करना बेहद जरूरी है। इंडिया गठबंधन के अधिकांश सहयोगी आम आदमी पार्टी के साथ है। ऐसे में दिल्ली में अगर आप फिर दमदार तरीके से सत्ता वापसी करती है और कांग्रेस का खराब प्रदर्शन जारी रहता है, तो इसका असर गठबंधन में कांग्रेस कि भूमिका पर भी तय मानिये। ममता बनर्जी पहले ही गठबंधन का नेतृत्व करने की मंशा जता चुकी है और कांग्रेस के करीबी लालू यादव और शरद पवार जैसे नेता भी ममता के पक्ष में है। यानी मुमकिन है दिल्ली में अगर कांग्रेस का जादू नहीं चला तो राष्ट्रीय राजनीति में भी उसके जोर का झटका लगे। ऐसे में कांग्रेस ये ही चाहेगी की दिल्ली में सत्ता न सही , कम से कम किंगमेकर की भूमिका ही उसे मिल जाए। पिछले दो चुनावों में खाता नहीं खोल सकी कांग्रेस पंद्रह साल दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहने के बाद दिल्ली में कांग्रेस लगातार पतन की तरफ बढ़ी है। 2013 में आठ सीटें मिलने के बाद पार्टी को 2015 और 2020 में एक भी सीट नहीं मिली, साथ ही पार्टी का वोट शेयर भी घटा है। ऐसे में विरोधी दावा कर रहे है की इस बार गोल्डन डक का खिताब कांग्रेस अपने नाम कर लेगी। आम आदमी पार्टी और भाजपा , दोनों का ये दावा है की दिल्ली में कांग्रेस न तीन में है न तेरह में। हालांकि कांग्रेस को लगता है कि वो दिल्ली में अच्छा करेगी। अब इसकी वजह क्या है , ये कांग्रेस जाने।