हिमाचल प्रदेश की हरियाली बढ़ाने के लिए यूं तो वन विभाग हर साल हर संभव प्रयास करता है। पर अब नई योजना से यह जन अभियान बन सकेगा। अब नवजात कन्या के नाम पर बूटा लगाकर हिमाचल प्रदेश में हरियाली बढ़ाई जाएगी । हिमाचल इस तरह की अनूठी पहल करने जा रहा है। प्रदेश में जहां भी बेटी पैदा होगी, उस परिवार को वन विभाग पौधा भेंट करेगा। इसे संबंधित क्षेत्र में रोपा जाएगा। कन्या कहां पैदा हुई, इसका पता लगाने की जिम्मेदारी वन रक्षक की रहेगी। वह पंचायतों से लेकर तमाम विभागों से संपर्क में रहेगा। किस प्रकार की भूमि में कौन से पौधे रोपे जाएंगे, यह जल्द ही तय होगा। इस सिलसिले में सरकार ने प्रारंभिक खाका खींच लिया है। इस योजना का नाम ‘एक बूटा बेटी के नाम’ होगा। इसे मंजूरी के लिए सरकार के पास भेजा जाएगा। रोपे पौधे की देखभाल बेटी के मां-बाप करेंगे। बजट सत्र में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने नई योजना शुरू करने का ऐलान किया था। इसका प्रस्ताव तैयार किया गया है। जैसे ही सरकार स्वीकृति देगी, यह धरातल पर उतरेगी।
The Central Board of Direct taxes has extended the deadline for filing income tax return for FY2018-19 by individuals. The last date to file ITR is extended to August 31, 2019 from July 31, 2019. Late ITR Filling Fee: If the ITR is not filed by an individual before August 31, then the individual would have to pay a late filing fee of Rs 5,000, if filed by December 31. But If the ITR is filed between January 1 and March 31, then late filing fees of Rs 10,000 will be levied.
हिमाचल प्रदेश के ज़िला मंडी के रामनगर में वेश्यावृत्ति का धंधा चलाने वाली एक महिला को पुलिस ने रंगे हाथ गिरफ्तार किया है। महिला पुलिस थाना में आरोपित के खिलाफ वेश्यावृत्ति का मुकदमा दर्ज कर लिया है। बता दें कि पुलिस प्रशासन को सूचना मिली थी कि रामनगर में कवाटर में रहने वाली एक महिला वेश्यावृत्ति में संलिप्त है। तभी पुलिस ने पैसे देकर नकली ग्राहक भेजा और मामले का फंडाफोड़ किया। पुलिस अधीक्षक गुरदेव शर्मा ने बताया कि पुलिस ने महिला को गिरफ्तार कर लिया है, मामले की जांच चल रही है।
बिजली खपत पर रहेगी निगरानी अब आप जल्द ही मोबाइल फ़ोन के ज़रिये अपने घर और कार्यालय में हो रही बिजली की खपत में नज़र रख सकेंगे। इसके लिए हिमाचल सरकार सभी पुराने मीटरों को बदल कर स्मार्टबिजली मीटर लगाने जा रही है। राज्य बिजली बोर्ड के प्रबंध निदेशक जे पी कालटा ने बताया कि स्मार्ट मीटर लगाने का काम जल्द शुरू होगा। एक मोबाइल एप्लीकशन करनी होगी डाउनलोड स्मार्ट बिजली मीटर लगने के बाद उपभोक्ताओं को एक मोबाइल ऐप्प अपने फ़ोन पर डाउनलोड करनी होगी। इसकी मदद से उपभोक्ता किसी भी समय यह जान सकेंगे कि उन्होंने कितनी बिजली इस्तेमाल की। इस मीटर को उपभोक्ता प्री-पेड मीटर के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकेंगे। प्री-पेड मीटर मोबाइल फ़ोन की तरह ही इस्तेमाल होंगे। इसके अलावाउपभोक्ताओं को बिल जमा करवाने का विकल्प भी मिलेगा। अब रीडिंग लेने के लिए उपभोक्ताओं के घर नहीं जायेंगे बिजली बोर्ड कर्मचारी स्मार्ट बिजली मीटर लगने के बाद बिजली बोर्ड कर्मचारियों को उपभोक्ता के घर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इस मीटर से ऑनलाइन रीडिंग ले ली जाएगी। लो वोल्टेज, बिजली बंद होने और बिजली चोरी होने की भी कण्ट्रोल रूम में जानकारी पहुंचेगी। बिल जमा न करने पर कंट्रोल रूम से ही कनेक्शन काट लिया जाएगा। मीटर लगाने के लिए उपभोक्ताओं को भी चुकाना होगा शुल्क एक स्मार्ट बिजली मीटर 2800 से 3000 रूपए में पडेगा। इसके लिए केंद्र करीब 1200 रूपए प्रति मीटर सब्सिडी देगा। शेष खर्च राज्य बिजली बोर्ड और उपभोक्ताओं को उठाना पडेगा। पुराने बिजली मीटरों की राशि उपभोक्ताओं के शेयर में एडजेस्ट करने की भी योजना है। 2022 तक लगेंगें प्रदेश में 24 लाख स्मार्ट बिजली मीटर पहले चरण में शिमला और धर्मशाला दोनों शहरों में इस साल 1.35 लाख मीटर बदले जायेंगें। इसके बाद पुरे प्रदेश में साल 2021-22 तक 24 लाख स्मार्ट बिजली मीटर लगाने का लक्ष्य है।
भारत एक धार्मिक देश है और यहां पर ऐसे मंदिर हैं जहां जो भी चढ़ावा आता है उसे तिजोरियों में बंद करके रखा जाता है। पर क्या आपने ऐसा मंदिर देखा है जहां अरबों का चढ़ावा सामने खुले में ही पड़ा रहता है। इसेआप अपनी आँखों से देख तो सकते हैं मगर उसे छू नहीं सकते।जी हाँ ये वो खजाना है जिसे सरकार तक नहीं छू पाई। आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे ही रहस्मयी मंदिर की, जो हज़ारों भक्तों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है। हिमाचल प्रदेश के मंडी से लगभग 68 किलोमीटर दूर रोहांडा में स्थित है कमरुनाग मंदिर। यह मंदिर कमरूनाग देवता को समर्पित है। मंदिर के पास ही एक झील है, जिसे कमरुनाग झील के नाम से जाना जाता है। इसी झील में अरबों का खजाना दबा पड़ा है। दरअसल मान्यता है कि भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए इस झील में सोने-चांदी के गहने और पैसे चढ़ाते हैं।भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए ऐसा करते हैं और ऐसा हजारों साल पहले से ही होता आ रहा है। इसलिए झील पर आप अरबों - खरबों के खजाने की चमक दूर से ही देख सकते हैं। झील के खजाने पर लोगों की बुरी नज़र नहीं रहती क्योंकि इसकी रक्षा नाग करता है। एक मान्यता ये भी है कि इस पूरे पहाड़ पर और इस झील के आस-पास नाग रूपी छोटे-छोटे पौधे लगे हुए हैं, जो कि दिन ढलते ही इच्छाधारी नाग के रूप में आ जाते हैं। अगर कोई भी इस झील में इस खजाने को हाथ लगाने की कोशिश करता है, तो यही इच्छाधारी नाग इस खजाने की रक्षा करते हैं। ये हैं इतिहास:- पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर का इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है। दरअसल महाभारत के सबसे महान योद्धा ‘बर्बरीक’ जब युद्ध में लड़ने के लिए आए तो भगवान श्री कृष्ण जान चुके थे कि वह सिर्फ कमज़ोर पक्ष की तरफ से ही लड़ेंगे, तो रास्ते में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का भेष बनाकर उन्हें रोक लिया। उन्हें मालूम था कि बर्बरीक अगर कौरवों की तरफ से लड़े तो पांडवों की हार तय है। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी धनुष विद्या की परीक्षा ली। इस दौरान बर्बरीक ने एक ही तीर से पीपल के सारे पत्ते बींध डाले। एक पत्ता श्रीकृष्ण ने अपने पांव के नीचे दबा रखा था लेकिन वह भी बींध चुका था। ब्राह्मण बने भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से वरदान के रूप में उनका शीश मांग लिया। बर्बरीक ने अपना शीश उन्हें दे दिया लेकिन बदले में वचन मांगा कि जब तक महाभारत युद्ध खत्म नहीं होता उनके शीश में प्राण रहे और वह पूरा युद्ध देख सके। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वचन दिया कि ऐसा ही होगा। युद्ध खत्म होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण पांडवों को उनके पास लाए और उनकी पूजा अर्चना की तथा उन्हें वरदान दिया युगों युगों तक तुम्हारी महिमा जारी रहेगी तथा लोग तुम्हें देवता के रूप में पूजा करेंगे। इसके बाद पांडवों ने उन्हें अपना कुलदेवता मानकर पूजा की। माना जाता है कि कमरूनागघाटी में स्थापित मूर्ति भी पांडवों ने आकर स्थापित की थी। युद्ध के बाद इस झील का निर्माण भीम द्वारा किया गया। इसलिए विशेष है कमरुनाग मंदिर :- कमरुनाग झील मंडी जिले से 9 हजार फीट ऊपर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 8 किलोमीटर ऊंचे पहाड़ों और घने जंगलों से होकर गुज़रना पड़ता है। कमरुनाग मंदिर के समीप स्थित है कमरुनाग झील जिसके अंदर अरबों का खजाना है। भगवान कमरुनाग को सोने-चांदी व पैसे चढ़ाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। झील के खजाने पर नहीं लोगों की बुरी नज़र नहीं पड़ती क्योंकि इसकी रक्षा नाग करता है। बरसात के दिनों में कमरूनाग मंदिर में गहरी धुंध होती है। कमरुनाग मंदिर में ठंड के दिनों में जाना काफी कष्टकारी होता है। इस वक्त पूरा इलाका बर्फ की मोटी चादर से ढक जाता है। कमरूनाग को बड़ा देव और बारिश का देवता भी कहा जाता है। मंदिर को जाने वाली खड़ी चढ़ाई वाले रास्तों पर पेयजल की व्यवस्था नहीं है। ऐतिहासिक कमरूनाग झील की हर चार साल के बाद एक बार मंदिर कमेटी की ओर से सफाई की जाती है। हर साल जून महीने में 14 और 15 जून को बाबा कमरुनाग भक्तों को दर्शन देते हैं। कमरुनाग में लोहड़ी पर भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है। कमरुनाग मंदिर के पहाड़ों पर नाग की तरह दिखने वाले कई पेड़ हैं। किसी भी सरकार ने नहीं ली सुध:- इस मंदिर का आकार काफी छोटा है। यहां हर साल आने वाले भक्तों की तादाद बढ़ती ही जाती है। विडम्बना की बात यह है कि महाभारत कालीन कमरूनाग मंदिर को सहेजने में प्रदेश की अब तक की सरकारों की ओर से कोई ईमानदार प्रयास नहीं हुए हैं। यही कारण है कि कमरूनाग के मंदिर तक पहुँचने के लिए उपयुक्त सड़क तो दूर की बात, पैदल चलने वालों के लिए मुकम्मल रास्ते तक नहीं बनाए गए हैं।
हमारे देश में ऐसे कई देवी-देवताओं के मंदिर हैं जिनके पीछे अद्भुत और रोचक रहस्य छुपे हुए हैं। आदिकाल के मंदिरों और देवी-देवताओं से सम्बंधित कई बातें आज के वैज्ञानिक युग में हमें रहस्यमय लगती हैं, पर आस्था के आगे विज्ञान कहाँ ठहरता हैं। ऐसा ही एक मंदिर जिला मंडी में है जहां माता की शक्ति के आगे कभी भी मंदिर में छत नहीं लग पाई। बारिश हो, आंधी हो, या तूफान हो, ये मां खुले आसमान के नीचे रहना ही पसंद करती हैं। हम बात कर रहे हैं शिकारी देवी मंदिर के बारे में। हिमाचल के मंडी में 2850 मीटर की ऊंचाई पर बना यह शिकारी माता का मंदिर जंजैहली से लगभग 18 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर अध्भुत चमत्कारों के लिए विख्यात है। सर्दियों के दौरान इस स्थान पर चारों तरफ बर्फ की चादर होती हैं, लेकिन मंदिर परिसर बर्फ से अछूता रहता हैं। हैरत की बात ये हैं कि इस मंदिर पर कोई छत नहीं है। मंदिर से जुड़ी हैं कई पौराणिक कथाएं पौराणिक कथाओं के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि ने यहां सालों तक तपस्या की थी। उन्हीं की तपस्या से खुश होकर माता दुर्गा अपने शक्ति के रूप में इस स्थान पर स्थापित हुई।एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब पांडव अपना वनवास काट रहे थे तो वो इस क्षेत्र में आये और कुछ समय यहाँ पर रहे।एक दिन अर्जुन एवं अन्य भाईयों ने एक सुंदर मृग देखा तो उन्होंने उसका शिकार करना चाहा, मगर वो मृग उनके हाथ नहीं आया। सारे पांडव उस मृग की चर्चा करने लगे कि वो मृग कहीं मायावी तो नहीं। तभी आकाशवाणी हुई कि मैं इस पर्वत पर वास करने वाली शक्ति हूँ और मैनें पहले भी तुम्हें जुआ खेलते समय सावधान किया था, पर तुम नहीं माने। इसलिए आज वनवास भोग रहे हो। इस पर पांडवो ने उनसे क्षमा प्रार्थना की तो देवी ने उन्हें बताया कि मैं इसी पर्वत पर नवदुर्गा के रूप में विराजमान हूँ और यदि तुम मेरी प्रतिमा को यहाँ स्थापना करोगे तो तुम अपना राज्य पुन हासिल कर सकोगे। इस दौरान उन्होंने माता की पत्थर की मूर्ति तो स्थापित कर दी मगर पूरा मंदिर नहीं बना पाए। चूंकि माता मायावी मृग के शिकार के रूप में मिली थी इसलिये माता का नाम शिकारी देवी कहा गया। एक अन्य मान्यता यह भी है कि इस वन क्षेत्र में शिकारी वन्य जीवों का शिकार करने आते थे। शिकार करने से पहले शिकारी इस मंदिर में सफलता की प्रार्थना करते थे और उनकी प्रार्थना सफल भी हो जाती था।इसी के बाद इस मंदिर का नाम शिकारी देवी पड़ गया। रोचक पहलु :- हिमाचल के मंडी ज़िले की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है माता शिकारी देवी का यह चमत्कारी मंदिर। हर साल यहाँ बर्फ तो खूब गिरती है मगर माता की पिंडियों पर कभी नहीं टिकती बर्फ। माता मंदिर में छत नहीं करती सहन, खुले आसमान के नीचे रहना चाहती है विराजमान। मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बेहद ही सुंदर हैं, चारों तरफ दिखती है हरियाली ही हरियाली । सर्वोच्च शिखर होने के नाते इसे मंडी का क्राउन कहा जाता है। विशाल हरे चरागाह, मनोरंजक सूर्योदय और सूर्यास्त, बर्फ सीमाओं के मनोरम दृश्य प्रकृति प्रेमियों को अपनी और आकर्षित करते हैं। माता का दर्शन करने हर साल पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु। करीब तीन माह बंद रहते हैं कपाट माता शिकारी देवी मंदिर हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। शिकारी देवी मंदिर परिसर में चौसठ योगनियों का वास है जो सर्व शक्तिमान है। मंडी जनपद में शिकारी देवी को सबसे शक्तिशाली माना जाता है।देवी के दरबार में प्रदेश ही नहीं अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु देवी के दरबार में शीश नवाने दूर-दूर से पहुंचते हैं।बर्फबारी में माता शिकारी देवी में कड़ाके की ठंड पड़ने से देवी के मंदिर के कपाट करीब तीन माह के लिए बंद हो जाते हैं। बर्फबारी में माता के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं और पर्यटकों पर प्रशासन प्रतिबंध लगाता है। मगर, माता के अनेक भक्त बर्फबारी में भी देवी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुंच जाते हैं।
हनुमान जी के पद चिह्न देखने यहां पर लोग दूर- दूर से आते हैं। प्रकृति की गोद में बसे इस स्थान पर लोगों को बेहद सुकून मिलता हैं। मान्यता हैं कि जो भी भक्त यहाँ सच्चे मन से आते हैं, उन्हें हनुमान जी खाली हाथ नहीं भेजते। शिमला मुख्य शहर से 7 कि.मी और रिज से दो कि.मी की दूरी पर स्थित जाखू हिल्स शिमला की सबसे ऊंची चोटी है और यहीं विराजमान हैं भगवान हनुमान। जाखू मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति देश की सबसे ऊंची मूर्तियों में से एक है जो 33 मीटर (108 फीट) ऊंची है। इस मूर्ति के सामने आस-पास लगे बड़े-बड़े पेड़ भी बौने लगते हैं। ये स्थान बजरंबली के भक्तों में लिए बेहद ख़ास हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब श्री राम और रावण के बीच हुए युद्ध में लक्ष्मण शक्ति लगने से घायल हो गए थे, तो उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय पर्वत पर गए थे। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी जब संजीवनी लेने जा रहे थे तो वो कुछ देर के लिए इस स्थान पर रुक गए थे, जहां पर अब जाखू मंदिर है। ऐसा भी माना जाता है कि औषधीय पौधे (संजीवनी) को लेने जब हनुमान जी जा रहे थे तो इस स्थान पर उन्हें ऋषि ‘याकू’ मिले थे। हनुमान संजीवनी पौधे के बारे में जानकारी लेने के लिए यहां उतरे थे। हनुमान द्रोणागिरी पर्वत पर आगे बढ़े और उन्होंने वापसी के समय ऋषि याकू से मिलने का वादा दिया था लेकिन समय की कमी के कारण और दानव कालनेमि के साथ उनके टकराव के कारण हनुमान उस पहाड़ी पर नहीं जा पाए। इसके बाद ऋषि याकू ने हनुमान जी के सम्मान में जाखू मंदिर का निर्माण किया था। पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर को हनुमान जी के पैरों के निशान के पास बनाया गया है। इस मंदिर के आस-पास घूमने वाले बंदरों को हनुमान जी का वंशज कहा जाता है। माना जाता हैं कि जाखू मंदिर का निर्माण रामायण काल में हुआ था। इसलिए ख़ास हैं जाखू मंदिर :- भगवान हनुमान को समर्पित जाखू मंदिर 'रिज' के निकट स्थित है। घने देवदार के पेड़ों के बीच हनुमान की मूर्ति लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। जाखू मंदिर में हनुमान जी की एक विशाल प्रतिमा हैं जिसकी ऊँचाई 108 फीट हैं। ये मूर्ति दूर से दिखाई देती हैं। जाखू मंदिर में दर्शन सुबह 5 से दिन के 12 बजे तक और फिर शाम को 4 से रात के 9 बजे तक होते है। जाखू मंदिर के दर्शन करने के लिए आप को लगभग एक से दो घंटा लग सकता है। मंदिर तक गाड़ी या पदयात्रा कर के भी पहुंचा जा सकता है। रोपवे यात्रा के दौरान आस-पास के दृश्य अपनी सुंदरता से आपको हैरान कर देंगे। जाखू मंदिर में दशहरे (विजयदशमी) का त्योहार बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है। यात्रा के दौरान बंदरों से सावधान रहे और उनके सामने खाने की कोई भी चीज अपने हाथ में न लें। बंदरों को दूर रखने के लिए अपने हाथ में छड़ी लेकर चलें। मंदिर परिसर से बाहर निकलने से पहले घंटी बजाना अच्छा माना जाता है। पहाड़ी पर राज्य सरकार द्वारा विभिन्न ट्रैकिंग और पर्वतारोहण गतिविधियाँ भी आयोजित की जाती है। जाखू मंदिर में स्थित भगवान हनुमान की मूर्ति से बच्चन परिवार का भी खास कनेक्शन हैं। अमिताभ बच्चन की पुत्री श्वेता नंदा के ससुर ने इस मूर्ति का निर्माण करवाया था। सोलन में हैं सबसे ऊँची हनुमान जी की मूर्ति वर्तमान में जाखू स्थित भगवान हनुमान की मूर्ति हिमाचल प्रदेश में हनुमान जी की सबसे ऊँची मूर्ति हैं। पर अब सोलन के सुल्तानपुर स्थित मानव भारती विवि में दुनिया की सबसे ऊँची बजरंबली की मूर्ति बनकर तैयार हैं। ये मूर्ति 156 फ़ीट ऊँची हैं और जल्द इसका अनावरण होने जा रहा हैं।
नाचन हलके के जड़ोली में परिवहन निगम की बस में न बिठाने पर यात्रियों ने जमकर हंगामा किया। विरोध करते हुए यात्रियों ने सड़क पर बैंच लगाकर बस रोक दी। इसके बाद ग्रामीण बैंच पर बैठ गए और बस को रूट पर चलने नहीं दिया। ये विरोध करीब सवा घंटा चला , जिसके baad परिवहन निगम के अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर दूसरी बस में यात्रियों को गंतव्य की ओर रवाना किया। ये मामला सुंदरनगर से स्यांजी रूट पर चलने वाले निगम की बस का है। इस रूट पर प्रतिदिन निगम की बस खचाखच भरी होती है, लेकिन बस 42 सीट होने के कारण कई यात्रियों को बस में जगह नहीं मिल पाती। वीरवार सुबह पौने नौ बजे यह बस जयदेवी से सुंदरनगर के लिए रवाना हुई। 42 सीटर बस में कंडक्टर द्वारा 71 सवारियों के टिकट काट दिए गए, जिसके बाद यात्रियों ने विरोध स्वरुप बस रोक दी।
मोदी सरकार भाग दो का पहला बजट शुक्रवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश कर दिया है। बजट में पेट्रोल-डीजल पर एक रूपया सेस बढ़ाने की घोषणा की गई है जिससे आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ सकती है। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई पर आने वाला खर्च बढ़ जाएगा, जिसका प्रभाव लगभग हर सामान की कीमत पर होना तय माना जा रहा है।बजट में सोना पर शुल्क 10 फीसद से बढ़ाकर 12.5 फीसदी कर दिया गया है। साथ ही ये भी घोषणा की गई है कि आने वाले दिनों में तंबाकू पर भी अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। सरकार ने इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल को भी प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया हैं। बजट में इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर जीएसटी रेट 12 पर्सेंट से घटाकर 5 पर्सेंट कर दिया गया। इसके अलावा, इलेक्ट्रिक गाड़ियां खरीदने हेतु लिए गए लोन पर चुकाए जाने वाले ब्याज पर 1.5 लाख रुपये की अतिरिक्त इनकम टैक्स छूट भी देने का एलान किया है। मुख्य बिंदु... ''हर घर जल, हर घर नल'' के तहत 2024 तक हर घर में नल से होगी जल की आपूर्ति। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तीसरे चरण में 1,25,000 किलोमीटर लंबी सड़क को अगले पांच सालों में अपग्रेड किया जाएगा। मार्च 2020 तक 45 लाख रुपये तक की घर खरीद पर ब्याज के पुनर्भुगतान पर 1.5 लाख की अतिरिक्त छूट मिलेगी। 114 दिनों में जरूरतमंदों को घर बनाकर देने का लक्ष्य। 1.95 करोड़ घर बनाने का लक्ष्य। सालाना एक करोड़ रुपये से अधिक की नकदी निकासी पर अब दो फीसदी टीडीएस। सोने के आयात शुल्क पर 2.5 फीसदी की बढ़ोतरी की है। सालाना 2-5 करोड़ रुपये की कमाई वाले व्यक्तियों के सरचार्ज में 3 फीसदी व 5 करोड़ रुपये से अधिक की आय पर सरचार्ज में सात फीसदी का इजाफा। 400 करोड़ रुपये तक के रेवेन्यू वाले कंपनियों को अब 30 फीसदी के मुकाबले 25 फीसदी कॉरपोरेट टैक्स देना होगा। ये हुआ सस्ता - साबुन, शैंपू, हेयर ऑयल, टूथपेस्ट, डिटरजेंट वाशिंग पाउडर, बिजली का घरेलू सामानों पंखे, लैम्प, ब्रीफकेस, यात्री बैग, सेनिटरी वेयर, बोतल, कंटेनर, रसोई में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों के अलावा गद्दा, बिस्तर, चश्मों के फ्रेम, बांस का फर्नीचर, पास्ता, मियोनीज, धूपबत्ती, नमकीन, सूखा नारियल, सैनिटरी नैपकिन, ऊन खरीदना सस्ता हुआ।