महेन्द्र सिंह ठाकुर ने धर्मपुर विधान सभा क्षेत्र के धवाली में 2.75 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित किसान भवन का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि इस भवन से किसानों को ठहरने की उचित सुविधा मिलेगी। इसके अलावा 81.94 लाख रुपये की लागत से निर्मित होने वाले पीडब्लयूडी मंडल धर्मपुर के कर्मचारियों के चार टाईप-टू आवासीय भवनों का धर्मपुर में शिलान्यास किया। उन्होंने धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र के तहत बहरी पंचायत के चक्याणा में 5 लाख रुपए की लागत से सम्पर्क सड़क में पीसीसी डालने के कार्य का शुभारंभ किया। 6.87 लाख रुपए की लागत से निर्मित होने वाले पंचायत भवन धर्मपुर के द्वितीय तल का नींव पत्थर रखा। उन्होंने नागरिक अस्पताल धर्मपुर के लिए 30 लाख रुपए की लागत से निर्मित होने वाली सम्पर्क सड़क का भूमिपूजन किया। सम्पर्क सड़क कांडापतन पर 15 लाख रुपए की लागत से सीमेंट कंकरीट पेवमैंट डालने के कार्य और 5 लाख रुपए की लागत से सम्पर्क सड़क आरली बहरी के कार्य का शुभारंभ किया। 10 लाख रुपए की लागत से बनने वाले राजकीय उच्च पाठशाला बहरी के खेल मैदान के कार्य और 10 लाख की लागत से बनने वाली सम्पर्क सड़क बाल्हड़ा के कार्य का शुभारंभ। इससे पहले उन्होंने धर्मपुर में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग द्वारा आयोजित वरिष्ठ नागरिक दिवस कार्यक्रम में शिरकत की। उन्होंने वरिष्ठ नागरिकों को सम्मानित किया तथा उनकी समस्याओं को भी सुना।
आज हम आपको दर्शन कराने जा रहे है माहुंनाग मंदिर के, जो की ज़िला मंडी की तहसील करसोग में स्थित है। माहुंनाग जी को दानवीर कर्ण का अवतार माना जाता है। देव बड़ेयोगी माहुंनाग जी के गुरु है। यह मंदिर ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ से दूर दूर तक बहुत सी पहाड़ियां दिखाई देती है। माहुंनाग जी मूल माहुंनाग के रूप में प्रसिद्ध है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने छल से कर्ण का वध किया परन्तु अर्जुन का हृदय ग्लानी से भर गया। कर्ण का अंतिम संस्कार करने के लिए अर्जुन ने अपने नाग मित्रों की सहायता से सतलुज के किनारे ततापानी के समीप कर्ण का शव लाकर अंतिम संस्कार कर दिया। उसी चिता से एक नाग प्रकट हुआ और वही समीप बस गया। पौराणिक कथा एक बार सेन वंश के एक शासक ने गुर की परीक्षा लेनी चाही। राजमहल में एक प्रकार की शिलाओं को रखा गया और एक एक शिला के नीचे माहुंनाग लिखा गया। अब गुर को उस शिला को पहचानना था। अगर वह ऐसा नहीं कर पाता तो उसके बाल व दाड़ी को मुंडवा कर उसे असत्य करार दिया जाता। अब गुर की परीक्षा सभी के सामने हुई। गुर के प्राण संकट में थे, वह ये निर्णय नहीं कर पा रहा था कि कौन सा स्थान सही है। ऐसा सोचते हुए एक मधुमक्खी उसके कान के पास आई और एक शिला में बैठ गई। अब गुर उसी शिला पर खड़ा हो गया और उसी पर माहुंनाग लिखा गया था। राजा अब देवता की शक्ति से आश्वस्त हो गया और देवता को पूज्य स्थान प्राप्त हो गया। विशेषताएं चैत्र मास के नवरात्रों में प्रतिवर्ष लगभग एक मास की रथ यात्रा माहुनाग सुंदरनगर क्षेत्र के लोक कल्याण हेतु करते है । देवता का रथ गुर , पुजारी , मेहते कारदार , बजंत्री व श्रद्धालु साथ चलते है । यहाँ दूर दूर से लोग अपनी मन्नते पूरी होने पर आते है और भेंट स्वरुप विभिन्न उपहार चढ़ाते है ।
पूरी दुनिया को अपने सुरों से कायल बनाने वाली आशा भोसले आज अपना 86वां जन्मदिन मना रही हैं। आशा ने 20 भाषाओँ में लगभग 14 हज़ार से अधिक गीतों को अपनी आवाज से अमर किया है और स्वर कोकिला लता मंगेशकर के बाद संभवतः वे हिंदुस्तान की सबसे बड़ी और नायाब गायिका है। उनके जन्मदिन पर हम आपको अवगत करवा रहे है उनके जीवन के कुछ पहलुओं से: 10 साल की उम्र में शुरू किया गाना आशा भोसले लता मंगेशकर की छोटी बहन हैं। आशा ने बड़ी बहन लता मंगेशकर की जिम्मेदारियों को कम करने के लिए 10 साल की उम्र में ही गाना शुरू कर दिया था। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर मशहूर क्लासिकल सिंगर थे। लता के सेक्रेटरी से हुआ प्यार आशा ने 16 साल की उम्र में भागकर शादी की थी। दरअसल आशा को लता मंगेशकर के सेक्रेटरी गणपतराव भोसले से प्यार हो गया था। उस समय वे सिर्फ 16 साल की थी और गणपतराव 31 साल के थे। परिवार के विरडोह क बाद आशा और गणपतराव ने भागकर शादी कर ली थी। पति के घर से भाग आई प्रेग्नेंट आशा आशा और गणपतराव की शादी ज्यादा दिन नहीं चल पाई।आशा भोसले के अनुसार गणपतराव के परिवार ने उनके साथ मारपीट की कोशिश भी की जिसके बाद वह गणपतराव का घर छोड़कर आ गई। जब आशा ताई अपने घर वापिस आईं उस समय प्रेग्नेंट थीं। 6 साल छोटे आरडीए बर्मन से हुआ प्यार फिल्म 'तीसरी मंजिल' के दौरान आशा की मुलाकात आरडी बर्मन से हुई और उन्हें फिर से प्यार हो गया। इसके पंचम दा और आशा ने 1980 में शादी कर ली। यहां एक बात खास है कि आरडी बर्मन, आशा से 6 साल छोटे थे। पंचम के जाने के बाद टूट गई थी आशा शादी के 14 साल बाद पंचम दा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया और आशा इस हादसे से पूरी तरह टूट गयी। पर खाना बनाने की आदत से उनकी जिंदगी बच गई। वे अक्सर उदास मन के साथ रसोई में चली जातीं और खाना बनाने लगतीं। धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि वो जो खाना बना रही हैं उसको लोगों के हिसाब से स्वादिस्ट होना चाहिए। और खाना बनाते हुए आशा ने जिंदगी को ख़ूबसूरती के साथ जीना शुरू कर दिया। छोटे बेटे आनंद करते है देखभाल आशा के बड़े बेटे का नाम हेमंत था जिनका निधन हो चुका है। भोसले की बेटी वर्षा ने 8 अक्टूबर 2012 में सुसाइड कर लिया था। आशा ताई के सबसे छोटे बेटे आनंद भोसले इन दिनों उनकी देखभाल कर रहे हैं। ग्रैमी के लिए नॉमिनेट होने वाली पहली भारतीय आशा को 7 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड , 2 बार नेशनल अवॉर्ड, पद्म विभूषण और दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है। 1997 में आशा भोसले पहली भारतीय सिंगर बनी जिन्हें ग्रैमी अवॉर्ड्स के लिए नॉमिनेट किया गया था।
इन दिनों देश भर में गणेश उत्सव की धूम देखने को मिल रही है। जगह-जगह भगवान गणेश की महिमाओं का गुणगान हो रहा है तो चलिए हम आज आपको एक ऐसे गणेश मंदिर के बारे में बताते है जो तांत्रिक शक्तियों से परिपूर्ण है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश की छोटी काशी के नाम से विख्यात मंडी ज़िले में स्थित है। यह मंदिर उत्तरी भारत का इकलौता सिद्ध मंदिर है। पौराणिक कथा इस मंदिर में जो भगवान गणेश की मूर्ति है। उसे 1686 ई में मंडी रियासत के तत्कालीन राजा सिद्ध सेन ने स्थापित करवाया था। राजा, तंत्र विद्या में काफी रूचि रखते है इसीलिए उन्होंने इस मूर्ति की सिद्धि करवाई और इसे ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए तांत्रिक शक्तियों से परिपूर्ण किया गया। बताया जाता है की पश्चिम बंगाल की तरफ भगवान गणेश के ऐसे अनेको मंदिर विराजमान है लेकिन उत्तरी भारत में यह इकलौता है। साँप का तंत्र विद्या से पर्याप्त महत्व है। इसी के चलते जब राजा ने मूर्ति का निर्माण करवाया तो इसमें नाग देवता की छवि को भी उभरा गया, जिसके बाद इसकी सिद्धि करके इसे सिद्ध गणपति का नाम दिया गया। जानकारी के मुताबिक मंडी में सेन वंशज पश्चिम बंगाल से आए थे और वंशज के राजा सिद्धसेन ने एक अन्य राज्य पर जीत का परचम लहराने की मनोकामना मांगी थी। विशेषताएं ये मंदिर हिमाचल के मंडी ज़िले में स्तिथ है। मंदिर के इतिहास पर विधायक दीनानाथ शास्त्री किताब लिख चुके है। इस मंदिर में गणेश जी की मूर्ति पर सिंदूर से लेप किया गया है। यहाँ पर लगातार 21 बुधवार आकर पूजा अर्चना करने पर मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। हर वर्ष यहाँ गणेश उत्सव बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है। तांत्रिक शक्तियों वाला हिमाचल में यह इकलौता मंदिर है। गणेश उत्सव के दौरान प्रशासनिक अधिकारों से लेकर मंत्री भी यहाँ आते है। मूर्ति के गले में हर वक़्त नाग देवता भी विराजमान रहते है।
इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 23 अगस्त दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करने से पापों का नाश और सुख की वृद्धि होती है। इस वर्ष श्री कृष्ण जन्म का मुहूर्त रात्रि में 10:44 से 12:40 के मध्य है। इस शुभ समय में भगवान की विधि विधान से पूजा करने से सभी मनोरथ पुरे होते है। पूजन में देवकी, वसुदेव, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा, और लक्ष्मी का स्मरण भी अवश्य करना चाहिए। स्कंद पुराण के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म करीब पांच हज़ार वर्ष पूर्व द्वापरयुग में हुआ था। माता देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान थे श्री कृष्ण स्कंद पुराण के अनुसार द्वापरयुग में मथुरा में महाराजा उग्रसेन राज करते थे। उनके क्रूर बेटे कंस ने अपने पिता को सिंहासन से हटा दिया और खुद राजा बन गया। कंस का अत्याचार प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। कंस की एक बहन देवकी थी जिसका विवाह वासुदेव से हुआ। कंस अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल छोड़ने जा रहा था, तभी रास्ते में एक आकाशवाणी हुई, 'हे कंस जिस देवकी को तू इतने प्रेम से विदा कर रहा है उसका ही आठवां पुत्र तेरा काल होगा।' यह सुनते ही कंस ने देवकी और वासुदेव को बंधक बना लिया। कंस ने सोचा कि अगर वह देवकी के हर पुत्र को मारता गया तो वह अपने काल को हराने में कामयाब होगा। इसके बाद देवकी की जैसे ही कोई संतान पैदा होती, कंस उसे मार देता। सात संतानों के मारे जाने के बाद देवकी के 8वें पुत्र के जन्म की बारी आई। पर इस बार कंस की सारी योजनाएं धरी की धरी रह गईं। अष्टमी की रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जैसे ही जन्म हुआ, उसी समय संयोग से नंदगांव में यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ।ईश्वर की कृपा से वासुदेव के हाथ-पैरों में बंधी सारी बेड़िया अपने आप खुल गईं, कारागार के दरवाजे खुल गये और सभी पहरेदार मूर्छित हो गए। वासुदेव ने एक टोकरी में नवजात शिशु (श्री कृष्ण )को रखा और नंद गांव की ओर चल पड़े। पूरे मथुरा में उस दौरान तेज बारिश हो रही थी ऐसे में शेषनाग स्वयं शिशु के लिए छतरी बनकर वासुदेव के पीछे-पीछे चलने लगे। वासुदेव यमुना पार कर नंदगांव पहुंचे और यशोदा के साथ बाल कृष्ण को सुला दिया और स्वयं कन्या को लेकर मथुरा गये। यह कन्या दरअसल माया का एक रूप थी। वासुदेव जैसे ही कारागार पहुंचे, सबकुछ सामान्य और पहले की तरह हो गया। कंस को आठवें संतान के जन्म की खबर पहरेदारों से मिली तो वह उसे मारने वहां आ पहुंचा। कंस ने कन्या को अपने गोद में लिया और एक पत्थर पर पटकने की कोशिश की। हालांकि,वह कन्या आकाश में उड़ गई और माया का रूप ले लिया। साथ ही उसने कहा,' तुझे मारने वाला तो पहले ही कहीं और सुरक्षित पहुंच चुका है।' कंस बेहद क्रोधित हुआ और कृष्ण की खोज शुरू कर दी। कंस ने उन्हें मारने का प्रयास किया लेकिन असफल रहा। आखिर में श्रीकृष्ण ने युवावस्था में कंस का वध किया अपने माता-पिता को कारागार से बाहर निकाला।
मंडी विधायक और पूर्व मंत्री अनिल शर्मा भाजपा में ही हैं। पहले उन्हें लेकर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती जहां कह रहे हैं कि उनकी पार्टी से प्राथमिक सदस्यता खत्म है तो सीएम जयराम ठाकुर ने कहा था कि वह भाजपा में ही हैं।पर सोमवार को मानसून सत्र के शुरू होने से पहले अनिल शर्मा को भाजपा के वरिष्ठ विधायकों के बीच बैठाया गया। इसके साथ ही उनके भाजपा में होने की भी पुष्टि हो गई। पर सीएम और सत्ती के विरोधाभासी बयानों के बाद भाजपा में आपसी समन्वय और तालमेल की कमी जरूर उजागर हुई है।
सरदार पटेल ने लगाया था आरएसएस पर प्रतिबन्ध अगर देशभक्ति की कसौटी तिरंगा फहराना है, तो राष्ट्रीय स्वयं संघ (आरएसएस ) तो अभी नया-नया देशभक्त हुआ है। आपको और हमे आरएसएस से देशभक्ति सीखने की जरुरत नहीं है। शायद आप नहीं जानते कि दिन रात देश भक्ति की नसीहत देने वाला संघ 2002 के पहले तिरंगा नहीं फहराता था। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे अवसरों पर भी आरएसएस के दफ्तरों में कभी तिरंगा नहीं फहराया जाता था। वर्ष 2002 तक सिर्फ दो मर्तबा ऐसा हुआ जब आरएसएस ने तिरंगा फहराया, पहला 15 अगस्त 1947 को और दूसरा 1950 में। दरअसल महात्मा गाँधी की हत्या के बाद तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। जी हाँ वहीँ पटेल जिनका गुणगान करते हुए संघ आज थकता नहीं है।तब जब सरदार पटेल ने गांधीजी की हत्या में संलिप्तता के मामले में संघ पर लगा प्रतिबंध हटाने के पहले तिरंगे को राष्ट्रध्वज मानने के लिए गोलवलकर को मजबूर किया था, जिसके बाद संघ को तिरंगा फहराना पड़ा। आपको एक और दिलचस्प किस्सा सुनाते है। 26 जनवरी 2001 को आरएसएस मुख्यालय नागपुर ने तीन युवक जबरन घुस गए और उन्होंने वहां राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लहरा दिया। वे तीन युवक राष्ट्रप्रेमी युवा दल के थे और इस बात से क्षुब्ध थे कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर भी आरएसएस कभी तिरंगा नहीं फहराता। तीनो युवकों पर मुक़दमा दर्ज हुआ, जिसे उन्होंने 12 साल तक झेला। इस प्रकरण के बाद आरएसएस की देश भक्ति पर भी सवाल उठने लगे। आखिरकार तिलमिलायें हुए आरएसएस ने 2002 से तिरंगा फहराना शुरू किया। आरएसएस तिरंगा क्यों नहीं फहराता था, आज तक आरएसएस इसका जवाब नहीं दे पाया है।
- कसौली से धधकी थी क्रांति की ज्वाला हिंदुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम में हिमाचल प्रदेश का योगदान भी कम नहीं रहा। देवभूमि हिमाचल वीर योद्धाओं और स्वतंत्रता सेनानियों की जन्म और कर्म भूमि भी रहा है। वर्ष 1857 में जब देशभर में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह प्रखर हुआ तो पहाड़ों की शांतवादियों में भी क्रांति की ज्वाला धधक उठी। करीब चार महीने में देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम के लिए लगभग 50 देशभक्त फांसी के फंदे में झूल गए थे। इसकी शुरुआत हुई थी कसौली से। 20 अप्रैल, 1857 को ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ हिमाचल में विद्रोह की चिंगारी कसौली अंग्रेज सैनिक छावनी से भड़की थी। तब 6 भारतीय सैनिकों ने कसौली पुलिस थाने को फूंक दिया था। देखते ही देखते विद्रोह की ये चिंगारी कसौली से डगशाई, सुबाथू, जतोग व कालका छावनियों में फैल गई। तब सिर्फ 45 हिन्दुस्तानियों ने करीब 200 अंग्रेज़ों को परास्त किया था। कसौली की तत्कालीन एडिशनल कमिश्नर पी. मैक्सवेल ने इस घटना के बारे में लिखा कि ये हैरत की बात थी कि कैसे सिर्फ 45 भारतीय सैनिकों ने 200 अंग्रेज सैनिकों को हराया था। उधर, जतोग में गोरखा रेजिमेंट ने सूबेदार भीम सिंह के नेतृत्व में छावनी व खजाने पर कब्जा कर लिया। वहीँ, एक गोरखा सैनिक ने अपनी खुखरी से शिमला बाजार में एक अंग्रेज अधिकारी की गर्दन उड़ा दी।आलम ये था किफिरनगी अपनी जान बचाकर भागने लगे। इस दौरान बुशहर के राजा ने ब्रिटिश हुकूमत को नजराना सहित अन्य सहायता बंद कर दी और क्रांतिकारियों का खुलकर सहयोग किया। हालांकि बिलासपुर सहित कुछ अन्य शासकों ने अंग्रेजों का साथ दिया। इंग्लैंड के समाचार पत्रों में इस घटना का जिक्र Shimla Terror (शिमला आतंक) के तौर पर किया। 1857 की पहली क्रांति का विद्रोह कांगड़ा, कुल्लू-सिराज, चंबा व मंडी-सुकेत तक में हुआ। 11-12 मई के मेरठ व दिल्ली विद्रोह की सूचना कांगड़ा सहित आसपास के पूरे क्षेत्र में फैल गई थी, जिससे ब्रिटिश अधिकारियों ने अपने क्षेत्रों की सुरक्षा के उपाय कर लिए। 19 मई को ऊना-होशियारपुर में क्रांतिकारियों व देशी पुलिस ने भयानक विद्रोह कर दिया। सुजानपुर टीहरा के राजा प्रताप चंद अपने किले में क्रांति की तैयारियां करते रहे, लेकिन इसकी भनक अंग्रेजों को हो गई और महल में ही नजरबंद कर दिया गया। उधर, जसवां, गुलेर, हरिपुर, नौदान, नूरपुर, पठानकोट सहित अन्य क्षेत्र के लोग भी कंपनी के खिलाफ हो गए। नालागढ़ में भी क्रांतिकारियों ने मलौण किले से अंग्रेजों के हथियार कब्जे में ले लिए और 10 जून को जालंधर के दस्ते ने नालागढ़ पहुंचकर वहां के खजाने को लूट लिया। 30 जुलाई को कांगड़ा में विभिन्न स्थानों पर देशी सैनिकों व क्रांतिकारियों की अंग्रेजों के साथ मुठभेड़ हुई और कई ने सुरक्षा के बावजूद शहर में प्रवेश कर लिया। क्रांतिकारी ब्रिगेडियर रमजान को नूरपुर में फांसी दे दी गई, कांगड़ा में पांच व धर्मशाला में छह देशभक्त व क्रांतिकारी फांसी पर चढ़ाए गए। कुल्लू के युवराज प्रताप सिंह ने भी अंग्रेजों के खिलाफ खूब लोहा लिया, लेकिन अपने कुछ साथियों के पकड़े जाने के बाद वह भी गिरफ्तार कर लिए गए और तीन अगस्त को उन्हें व उनके साथी बीर सिंह को फांसी दी गई। मंडी के राजा विजय सेन केवल 10वर्ष के थे और सुकेत रियासत में आपसी गृहयुद्ध के कारण क्रांतिकारियों ने यहां अधिक सहयोग नहीं मिल पाया, लेकिन जनता में देशभक्ति की भावना प्रबल थी। ऐसे में अगस्त 1857 तक पहाड़ों में फैले विद्रोह को शांत कर लिया गया था I
ऐसा माना जाता है कि माता शक्ति ने यहाँ कोलासुर नामक राक्षस का वध किया था और लोगों को उसके प्रकोप से बचाया था। यहाँ माता के दर्शन के लिए दूर -दूर से लोग आते है। हम बात कर रहे है कोयला माता मंदिर की। यह मंदिर जिला मंडी मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। प्राचीन समय में राजगढ़ की पहाड़ी पर यह मंदिर एक चट्टान के रूप में ही था। बाद में यह मंदिर कैसे अस्तित्व में आया और कोयला माता की पूजा अर्चना कैसे शुरू हुई इसके बारे में एक कथा प्रचलित है। बहुत पहले राजगढ़ में हर दिन किसी न किसी के घर पर मातम छाया रहता था क्यूंकि आए दिन यहाँ कोई न कोई व्यक्ति मृत्यु का शिकार हो जाता था। इस तरह राजगढ़ क्षेत्र का दाहुल शमशान घाट किसी भी दिन बिना चिता जले नहीं रहता था। यदि किसी दिन शमशान घाट में शव नहीं पहुंचता तो उस दिन वहां पर घास का पुतला जलाना पड़ता था। वहां के लोगों का मानना था कि चिता के न जलने से किसी प्राकृतिक प्रकोप व् आपदा होने की संभावना होती थी। इस तरह घास के पुतले को जलाने की प्रथा से यहाँ के तंग आ गए थे। काफी सोच समझ कर क्षेत्र के लोगों ने इस प्रथा से छुटकारा पाने के लिए देवी माँ के आगे प्रार्थना की। लोगों की प्रार्थना से माँ काली प्रसन्न हो गयी देखते ही देखते एक व्यक्ति में देवी प्रकट हो गयी और उसने “खेलना ” शुरू कर दिया। खेलते-खेलते वह व्यक्ति कहने लगा “मैं यहाँ की कल्याणकारी देवी हूँ……तुम्हें घास के पुतले जलाने की प्रथा मुक्त करती हूँ। सुखी रहो और मेरी स्थापना यहीं कर दो। लोगों ने जब व्यक्ति के मुख से देवी के वाक् सुने तो उन्होंने देवी से कही गयी बातों का प्रमाण माँगा। इस पर उस खेलने वाले व्यक्ति ने पास की विशाल चट्टान की ओर इशारा किया और देखते ही देखते चट्टान से देसी घी टपकने लगा। उसी दिन से चट्टान व देवी की पूजा अर्चना शुरू हो गयी। इस तरह जब भी किसी शुभ कार्य के लिए देसी घी की ज़रूरत होती थी तो चट्टान के नीचे बर्तन रख दिए जाते थे और देखते ही देखते वो भर जाते थे। वहीं अचानक कुछ समय बाद चट्टान से घी टपकता बंद हो गया। इस के बारे में बताया जाता है कि पहले जब सड़कें व आने-जाने के साधन नहीं होते थे तो उस समय लोग चच्योट, मोवीसेरी , गोहर , जंजैहली व कुल्लू के लिए मंडी सकरोह मार्ग से होकर जाते थे। इसी रास्ते से होकर एक दिन एक गद्दी अपनी भेड़ बकरियां लेकर इस रास्ते से गुजर रहा था। चढ़ाई चढ़ने के बाद वो आराम के लिए उसी चट्टान के समीप बैठ गया। उसने चट्टान से घी टपकने की बात सुन रखी थी इसलिए वह वहां बैठ कर खाना खाने लग गया और अपनी जूठी रोटी पर घी लगाने के लिए चट्टान पर रगड़ने लगा। जूठन के फलस्वरूप उसी दिन से चट्टान से घी टपकना बंद हो गया। देवी के ऐसे कई चमत्कार लोगों को देखने को मिलते रहे इसलिए देवी व स्थान की मान्यता आज भी बनी हुई है। हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले में स्थित यह मंदिर धार्मिक आस्था के अनुसार वह स्थान है जहां मां शक्ति ने चमत्कार दिखाया था। राजगढ़ की पहाड़ी पर बना ये मंदिर पहले मात्र एक बड़ी सी चट्टान के रूप में ही हुआ करता था। मां ने भक्तों को घास के पुतले जलाने की प्रथा से मुक्त किया था। हिमाचल प्रदेश के इस मंदिर की पहाड़ी से कभी घी टपकता था। एक बार एक झूठी रोटी के कारण साक्षात टपकने वाला घी अचानक बहना बंद हो गया। भक्तों का मानना है कि भक्त सच्चे मन से जो भी मां से मांगते हैं मां उनकी इच्छा अवश्य पूरी करती है।
पुराणों में देवभूमि हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर को छोटी काशी कहा गया है। मंडी में लगभग 80 देवी-देवताओं के विभिन्न शैलियों के प्राचीन मंदिर व शिवालय हैं। इन्ही में से एक है बाब भूतनाथ मंदिर। मंडी के बाबा भूतनाथ मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू है। बाबा भूतनाथ का मंदिर राजा अजबर सेन ने 16वीं शताब्दी में बनवाया था। कहा जाता है कि पुरानी मंडी से व्यास नदी के दूसरी ओर जहां पर वर्तमान मंडी शहर बसा है, वहां जंगल हुआ करता था। पुरानी मंडी के एक ग्वाले की कपिल नाम की गाय हर दिन नदी पार करके जंगल में घास चरने आती थी और शाम को वापस घर लौटते वक्त वह गांव भूतनाथ मंदिर के पास खड़ी हो जाती थी। गाय के थनों से अपने आप ही दूध की धारा निकलने लगती थी और भोलेनाथ का दूधाभिषेक होता था। ग्वाले ने जब इस घटना को देखा तो उसने इसकी सूचना राजा अजबर सेन को दी। राजा ने मौके पर जाकर इस घटना को देखा।इसके पश्चात स्वयं भोलेनाथ ने राजा अजबर सेन को स्वप्न में दर्शन दिए और शिव मंदिर स्थापित करने तथा इसके आसपास नई मंडी नगर बसाने का आदेश दिया। स्वप्न के अनुरूप ही राजा ने भव्य शिखर शैली के शिव मंदिर का निर्माण किया और इस तरह नया मंडी शहर बसा। 1527 इस्वी में राजा अजबेर सैन ने शिखारा शैली से मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर निर्माण से आज तक यहां पर भगवान भूतनाथ की श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना की जाती है। देश विदेश से आने वाले सैलानियों के लिए भी मंडी शहर में बसा यह मंदिर का आकर्षण का केंद्र बना रहता है। यहां होता है अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव मंदिर के आसपास राजा ने नई मंडी नगर बसाया जो आज शिवरात्रि पर्व के नाम से जाना जाता है। बाबा भूतनाथ के प्रकाट्य के कारण ही महा शिवरात्रि का पर्व अस्तित्व में आया है जो आज अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि मेले के रूप में विख्यात हो चुका है। बाबा भूतनाथ के दर्शनार्थ समूचे प्रदेश के अलावा विदेशी पर्यटकों का भारी सैलाब उमड़ता रहता है।
प्रदेश सरकार ने समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को गम्भीर रोग की स्थिति में त्वरित सहायता पंहुचाने के उद्देश्य से ‘सहारा’ योजना आरम्भ हो गई है। योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के रोगियों को शीघ्र सहायता प्रदान की जाएगी। सहारा योजना पूरे प्रदेश में 15 जुलाई, 2019 से आरम्भ कर दी गई है। योजना के तहत कैंसर, पार्किंसनस रोग, लकवा, मस्कुलर डिस्ट्राफी, थैलेसिमिया, हैमोफिलिया, रीनल फेलियर इत्यादि ये ग्रस्त रोगियों को वित्तीय सहायता के रूप में 2000 रुपए प्रतिमाह प्रदान किए जाएंगे। योजना के तहत किसी भी आयुवर्ग का इन रोगों से ग्रस्त रोगी आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकता है। इस योजना के तहत बीपीएल परिवार से सम्बन्धित रोगियों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। रोगी को अपना चिकित्सा सम्बन्धी रिकाॅर्ड, स्थाई निवासी प्रमाण पत्र, फोटोयुक्त पहचान पत्र, बीपीएल प्र्रमाण पत्र अथवा पारिवारिक आय प्रमाण पत्र तथा बैंक शाखा का नाम, अपनी खाता संख्या, आईएफएससी कोड से सम्बन्धित दस्तावेज प्रदान करने होंगे। चलने-फिरने में असमर्थ रोगी के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा जारी जीवित होने का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा। सहारा योजना का लाभ उठाने के लिए पात्र रोगी को अपना आवेदन सभी दस्तावेजों सहित मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय में जमा करवाना होगा। आशा कार्यकर्ता व बहुदेशीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी रोगी के सभी दस्तावेज खण्ड चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय में जमा करवा सकते हैं। खण्ड चिकित्सा अधिकारी इन दस्तावेजों को मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय को प्रेषित करेंगे। योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए आवेेदन पत्र जिला स्तर के अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तथा हेल्थ वेलनेस केन्द्रों में 03 अगस्त, 2019 से उपलब्ध होंगे। जिला चिकित्सा अधिकारी सोलन डाॅ. आर.के. दरोच ने सहारा योजना के विषय में अधिक जानकारी देते हुए कहा कि इस महत्वाकांक्षी योजना से जिला के सभी लोगों को अवगत करवाने के लिए विभाग ने आशा कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर जागरूक बनाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि सहारा योजना के तहत पात्र रोगियों को 2000 रुपए प्रतिमाह की वित्तीय सहायता आरटीजीएस के माध्यम से ही उपलब्ध करवाई जाएगी। उन्होंने लोगों से आग्रह किया है कि सहारा योजना के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त करें ताकि आवश्यकता के समय विभिन्न गम्भीर रोगों से पीड़ित रोगियों के परिजनोें को जानकारी देकर लाभान्वित किया जा सके। उन्होंने कहा कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी सोलन के कार्यालय के कक्ष संख्या 132 में योजना के सम्बन्ध में सम्पर्क किया जा सकता है। डाॅ. आर.के. दरोच ने कहा कि सहारा योजना आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने एवं उनकी देखभाल की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगी।
राज्यसभा में बुधवार को मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित हो गया। यह न केवल एक मोटर वाहन अधिनियम है, बल्कि एक सड़क सुरक्षा बिल भी है। इस बिल का मकसद सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाना है, इसके लिए नियमों को और कड़ा किया गया है। वहीं जुर्माने में भी वृद्धि की गई है। जानिए क्या है मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019 में यातायात नियमों और विनियमों के उल्लंघन के लिए न्यूनतम जुर्माना 100 रुपए से बढ़ाकर 500 रुपए कर दिया गया है। कई अपराधों के लिए अधिकतम जुर्माना 10,000 रुपए तय किया गया है। बिना लाइसेंस के वाहन चलाने के मामले में जुर्माना 500 रुपए से बढ़ाकर 5,000 रुपए कर दिया गया है। सीट बेल्ट नहीं पहनने पर 1,000 रुपए का जुर्माना लगेगा। यह अब तक केवल 100 रुपए था। शराब पीकर वाहन चलाने के मामलों में जुर्माना 2,000 रुपए से 10,000 रुपए तक का है। खतरनाक ड्राइविंग के लिए जुर्माना 5,000 रुपए है। इमरजेंसी वाहनों को पास नहीं देने पर 10 हजार रुपए जुर्माना के रूप में लगेगा। पिछले कानून के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं था। ओवर-स्पीडिंग के मामलों में चालक को हल्के मोटर वाहनों जैसे कारों के लिए 1,000 रुपए और भारी वाहनों के लिए 2,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। रेसिंग में लिप्त पाए जाने पर चालक को 5,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। यदि आपके वाहन का बीमा कवरेज समाप्त हो गया है और आप अभी भी इसे चला रहे हैं, तो आपको 2,000 रुपए का जुर्माना देना होगा। जुर्माने में हर साल 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। मौजूदा कानून के तहत हिट-एंड-रन मामलों में क्षतिपूर्ति 25,000 रुपए है। इसे बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर दिया गया है। चोटों के मामलों में, मुआवजा 12,500 रुपए से बढ़ाकर 50,000 रुपए कर दिया गया है। सभी सड़क उपयोगकर्ताओं को अनिवार्य बीमा कवरेज और सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के लिए केंद्रीय स्तर पर एक मोटर वाहन दुर्घटना निधि बनाई जाएगी।
हिमाचल में स्क्रब टायफस बीमारी से निपटने की तैयारी व नियंत्रण को लेकर अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) आरडी धीमान की अध्यक्षता में समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया। आरडी धीमान ने कहा कि स्क्रब टायफस बीमारी की जांच व इलाज की सुविधा सरकारी अस्पतालों में निशुल्क उपलब्ध है और सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में इसके इलाज के लिए दवाइयों भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश में जनवरी, 2019 से अब तक स्क्रब टायफस के 220 मामले दर्ज किए गए हैं। बिलासपुर में सर्वाधिक मामले दर्ज हुई हैं। आरडी धीमान ने कहा कि पिछले चार सालों में स्क्रब टायफस के मामलों में वृद्धि हुई हैं। स्क्रब टायफस फैलाने वाला पिस्सू शरीर के खूले भागों को ही काटता है। इसके लिए उन्होंने लोगों को सलाह दी घरों के आसपास खरपतवार आदि न उगने दें व शरीर की सफाई का विशेष ध्यान रखें। उन्होंने बताया कि 104 से 105 डिग्री का तेज बुखार, सिर व जोड़ों में दर्द व कंपकंपी, शरीर में ऐंठन, अकड़न या शरीर टूटा हुआ लगना आदि स्क्रब टायफस के लक्षण हैं। यदि ये लक्षण दिखाई दें तो तुरंत नज़दीकी अस्प्ताल में संपर्क करें।
देवों के देव महादेव के इस मंदिर में भोलेनाथ और माता पार्वती युगल रूप में स्थापित हैं और यहाँ आने वाले भक्त खाली हाथ नहीं लौटते। हम बात कर रहे है ममलेश्वर महादेव मंदिर की। शिमला से लगभग 100 किमी की दूरी पर करसोग शहर में स्थित यह मंदिर एक ऊंचे मंच पर स्थित पत्थर और लकड़ी का बना है। लोगों की मान्यता है कि यहां 5 हजार साल पहले पांडवों ने समय बिताया था। मंदिर के मुख्य भवन की चारों ओर दीवारों पर काष्ठ मूर्तियां बनी हैं। मंदिर की मुख्य इमारत लकड़ी की है। लकड़ी की दीवारों पर बेहतरीन नक्काशी है, जिसमें देवी-देवताओं के साथ अन्य मूर्तियां उकेरी गई हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शंकर व मां पार्वती की मूर्ति युगल के रूप में स्थापित है। मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर भी शिव-पार्वती की युगल मूर्ति है। मंदिर के पुजारी का कहना है कि यह दुनिया का इकलौता मंदिर है, जिसमें शिव-पार्वती की मूर्तियां युगल के रूप में हैं। यह मंदिर सतयुग, त्रेत , द्वापरयुग व कलयुग का गवाह है ।इस स्थान पर भृगु ऋषि जी के द्वारा तपस्या की गई थी। हिमयुग के अंत में किन्नर कैलाश में हुए पृथ्वी के भीतर के बदलाव के कारण किन्नर इस स्थान पर आ गये और भृगु ऋषि ने एक किन्नर लड़की से विवाह किया जिसका नाम माम्लिषा था और उसके नाम पर ही इस स्थान का नाम ममेल पड़ । इनकी दो पुत्रियाँ हुई इमला व बिमला, जो की नदियों के रूप में यहाँ स्थित है और पुरे क्षेत्र की भूमि को सिंचित करती है। मंदिर में रखा गया है भीम का ढोल इस मंदिर का पांडवो से गहरा नाता है। पांडव यहाँ अपने अजातवास के समय आये थे। इस मंदिर में एक प्राचीन ढोल है जिसके बारे में कहा जाता है की ये भीम का ढोल है। ये ढोल भेखल की लकड़ी से बना है। इसके अलावा मंदिर में स्थापित पांच शिवलिंगों के बारे में कहा जाता है की इसकी स्थापना स्वयं पांडवों ने की थी। मंदिर में सबसे प्रमुख गेहूं का दाना है जिसे की पांडवों के समय का बताया जाता है। यह गेहूं का दाना एक खास प्रकार के डिब्बे में रखा जाता है। महाभारत काल से जल रहा है अग्निकुंड इस मंदिर में एक धुना है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां जो अग्निकुंड है वो महाभारत काल से निरंतर जल रहा है। इस के पीछे एक कहानी है की जब पांडव अज्ञातवास में घूम रहे थे तो वे कुछ समय के लिए इस गाँव में रूके। तब इस गांव में एक राक्षस ने एक गुफा में डेरा जमाया हुआ था। उस राक्षस के प्रकोप से बचने के लिये लोगों ने उस राक्षस के साथ एक समझौता किया था कि वो रोज एक आदमी को खुद उसके पास भेजेंगें उसके भोजन के लिये जिससे कि वो सारे गांव को एक साथ न मारे। एक दिन उस घर के लडके का नम्बर आया जिसमें पांडव रूके हुए थे। उस लडके की मां को रोता देख पांडवो ने कारण पूछा तो उसने बताया कि आज मुझे अपने बेटे को राक्षस के पास भेजना है। अतिथि के तौर पर अपना धर्म निभाने के लिये पांडवो में से भीम उस लडके की बजाय खुद उस राक्षस के पास गया। भीम जब उस राक्षस के पास गया तो उन दोनो में भयंकर युद्ध हुआ और भीम ने उस राक्षस को मारकर गांव को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। कहते है की भीम की इस विजय की याद में ही यह अखंड धुना चल रहा है। यह मंदिर अपनी खूबसूरती के साथ अपने चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध है। ममलेश्वर मंदिर में एक अग्निकुंड है, जो हमेशा जलता रहता है। मान्यता है कि 5 हजार साल पहले पांडवों ने इस अग्निकुंड को जलाया था और तब से यह जल रहा है। यहाँ के स्थानीय लोगों का मानना है कि अज्ञातवास के दौरान पूजा करने के लिए पांडवों ने इस अग्निकुंड को बनवाया था। ममलेश्वर महादेव के मंदिर भगवान शिव और मां पार्वती को समर्पित है। कहा जाता है कि सावन के महीने में यहां पार्वती और शिव कमल पर बैठकर मंदिर में मौजूद रहते हैं। कहा जाता है कि ममलेश्वर मंदिर में 5 हजार साल पुराना गेहूं का दाना है, जिसका वजन 250 ग्राम है। मान्यता है कि इसे पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान खाने के लिए उगाया था। ममलेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए पांच शिवलिंग का एक साथ मौजूद होना भी इस मंदिर को खास बनाता है। कई साल पहले मंदिर के पास कई शिवलिंग, शिव और विष्णु भगवान की मूर्तियां भी मिली थीं। ममलेश्वर मंदिर में एक बड़ा ढोल भी रखा गया है। लोगों का कहना है कि अज्ञातवास के दौरान भीम ने इसे बनवाया था। भीम खाली समय के दौरान इस ढोल को बजाया करते थे और वहां से जाते समय उन्होंने इन ढोल मंदिर में रख दिया था। मंदिर में पांच शिवलिंग भी स्थापित है , मान्यता है कि यह पांडवों ने ही यहां स्थापित किए हैं। इस मंदिर के पास एक प्राचीन विशाल मंदिर और है जो की सदियों से बंद है। माना जाता है कि इस मंदिर में प्राचीन समय में भूडा यज्ञ किया जाता था जिसमे की नर बलि भी दी जाती थी। इस मंदिर में केवल पुजारी वर्ग को ही जाने की आज्ञा है।
“Food doesn’t have a religion. It is a religion.” it is a tweet from Zomato’s official Twitter handle. Actually, a customer from Zabalpur wanted food to be delivered by a Hindu rider. Zomato declined to accept his preference based on the religion of the delivery boy, after which the customer asked Zomato to cancel the order and issue a refund. Zomato hadn’t processed a refund after cancelling the order and tweeted. Zomato Founder Deepinder Goyal also tweeted, “We are proud of the idea of India - and the diversity of our esteemed customers and partners. We aren’t sorry to lose any business that comes in the way of our values. ” People from every corner of India are praising the move by Zomato and company is getting huge public support for their stand.
Sanjay Balraj Dutt is celebrating his 60th birthday today. The life of Sanjay Dutt is no less than a Bollywood blockbuster. Let's know interesting facts about his life. Bollywood actor Sanjay Dutt was born to actor parents Sunil Dutt and Nargis in Mumbai. Sanjay received his education from The Lawrence School, Sanawar near Kasauli. His debut film was Rocky, which released in 1981. Just three days before the release of Rocky, his mother Nargis died. After death of Nargis, Sanjay plunged into drug addiction. Manyata is his third wife Dutt married actress Richa Sharma in 1987. She died of a brain tumour in 1996. Dutt's second marriage was to air-hostess-turned-model Rhea Pillai in February.The divorce finalised in 2008. Dutt married Manyata in 2008. He is the father of twins born in 2010. After rehabilitation, Sanjay joined back the industry in 1985 to resume his career. In 1993, Sanjay was arrested on charges of involvement in the 1993 Mumbai bomb blasts. He spent 18 months in jail and got bail in April 1995. Later, the Supreme Court of India, in a judgement on 21 March 2013, convicted Dutt of illegal possession of arms relating to the 1993 Mumbai blasts case and sentenced him to five years imprisonment. Sanjay Dutt has been part of some memorable films like "Naam", "Khalnayak", "Vaastav: The Reality", "Mission Kashmir", "Munna Bhai M.B.B.S.", "Lage Raho Munna Bhai" and many more. The Playboy Image Sanjay was rumoured to be dating Tina Munim, who is now the wife of Anil Ambani. He himself admitted that he was in three relationships at one point of time. People also say that after working together in several movies like Saajan, Thaanedar, Khalnayak etc, Sanjay and Madhuri fell in love with each other. Sanjay’s first wife Richa’s sister, Ena Sharma outrightly accused Madhuri of breaking her sister’s marriage with Sanjay.
हिमाचल प्रदेश की हरियाली बढ़ाने के लिए यूं तो वन विभाग हर साल हर संभव प्रयास करता है। पर अब नई योजना से यह जन अभियान बन सकेगा। अब नवजात कन्या के नाम पर बूटा लगाकर हिमाचल प्रदेश में हरियाली बढ़ाई जाएगी । हिमाचल इस तरह की अनूठी पहल करने जा रहा है। प्रदेश में जहां भी बेटी पैदा होगी, उस परिवार को वन विभाग पौधा भेंट करेगा। इसे संबंधित क्षेत्र में रोपा जाएगा। कन्या कहां पैदा हुई, इसका पता लगाने की जिम्मेदारी वन रक्षक की रहेगी। वह पंचायतों से लेकर तमाम विभागों से संपर्क में रहेगा। किस प्रकार की भूमि में कौन से पौधे रोपे जाएंगे, यह जल्द ही तय होगा। इस सिलसिले में सरकार ने प्रारंभिक खाका खींच लिया है। इस योजना का नाम ‘एक बूटा बेटी के नाम’ होगा। इसे मंजूरी के लिए सरकार के पास भेजा जाएगा। रोपे पौधे की देखभाल बेटी के मां-बाप करेंगे। बजट सत्र में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने नई योजना शुरू करने का ऐलान किया था। इसका प्रस्ताव तैयार किया गया है। जैसे ही सरकार स्वीकृति देगी, यह धरातल पर उतरेगी।
The Central Board of Direct taxes has extended the deadline for filing income tax return for FY2018-19 by individuals. The last date to file ITR is extended to August 31, 2019 from July 31, 2019. Late ITR Filling Fee: If the ITR is not filed by an individual before August 31, then the individual would have to pay a late filing fee of Rs 5,000, if filed by December 31. But If the ITR is filed between January 1 and March 31, then late filing fees of Rs 10,000 will be levied.
हिमाचल प्रदेश के ज़िला मंडी के रामनगर में वेश्यावृत्ति का धंधा चलाने वाली एक महिला को पुलिस ने रंगे हाथ गिरफ्तार किया है। महिला पुलिस थाना में आरोपित के खिलाफ वेश्यावृत्ति का मुकदमा दर्ज कर लिया है। बता दें कि पुलिस प्रशासन को सूचना मिली थी कि रामनगर में कवाटर में रहने वाली एक महिला वेश्यावृत्ति में संलिप्त है। तभी पुलिस ने पैसे देकर नकली ग्राहक भेजा और मामले का फंडाफोड़ किया। पुलिस अधीक्षक गुरदेव शर्मा ने बताया कि पुलिस ने महिला को गिरफ्तार कर लिया है, मामले की जांच चल रही है।
बिजली खपत पर रहेगी निगरानी अब आप जल्द ही मोबाइल फ़ोन के ज़रिये अपने घर और कार्यालय में हो रही बिजली की खपत में नज़र रख सकेंगे। इसके लिए हिमाचल सरकार सभी पुराने मीटरों को बदल कर स्मार्टबिजली मीटर लगाने जा रही है। राज्य बिजली बोर्ड के प्रबंध निदेशक जे पी कालटा ने बताया कि स्मार्ट मीटर लगाने का काम जल्द शुरू होगा। एक मोबाइल एप्लीकशन करनी होगी डाउनलोड स्मार्ट बिजली मीटर लगने के बाद उपभोक्ताओं को एक मोबाइल ऐप्प अपने फ़ोन पर डाउनलोड करनी होगी। इसकी मदद से उपभोक्ता किसी भी समय यह जान सकेंगे कि उन्होंने कितनी बिजली इस्तेमाल की। इस मीटर को उपभोक्ता प्री-पेड मीटर के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकेंगे। प्री-पेड मीटर मोबाइल फ़ोन की तरह ही इस्तेमाल होंगे। इसके अलावाउपभोक्ताओं को बिल जमा करवाने का विकल्प भी मिलेगा। अब रीडिंग लेने के लिए उपभोक्ताओं के घर नहीं जायेंगे बिजली बोर्ड कर्मचारी स्मार्ट बिजली मीटर लगने के बाद बिजली बोर्ड कर्मचारियों को उपभोक्ता के घर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इस मीटर से ऑनलाइन रीडिंग ले ली जाएगी। लो वोल्टेज, बिजली बंद होने और बिजली चोरी होने की भी कण्ट्रोल रूम में जानकारी पहुंचेगी। बिल जमा न करने पर कंट्रोल रूम से ही कनेक्शन काट लिया जाएगा। मीटर लगाने के लिए उपभोक्ताओं को भी चुकाना होगा शुल्क एक स्मार्ट बिजली मीटर 2800 से 3000 रूपए में पडेगा। इसके लिए केंद्र करीब 1200 रूपए प्रति मीटर सब्सिडी देगा। शेष खर्च राज्य बिजली बोर्ड और उपभोक्ताओं को उठाना पडेगा। पुराने बिजली मीटरों की राशि उपभोक्ताओं के शेयर में एडजेस्ट करने की भी योजना है। 2022 तक लगेंगें प्रदेश में 24 लाख स्मार्ट बिजली मीटर पहले चरण में शिमला और धर्मशाला दोनों शहरों में इस साल 1.35 लाख मीटर बदले जायेंगें। इसके बाद पुरे प्रदेश में साल 2021-22 तक 24 लाख स्मार्ट बिजली मीटर लगाने का लक्ष्य है।
भारत एक धार्मिक देश है और यहां पर ऐसे मंदिर हैं जहां जो भी चढ़ावा आता है उसे तिजोरियों में बंद करके रखा जाता है। पर क्या आपने ऐसा मंदिर देखा है जहां अरबों का चढ़ावा सामने खुले में ही पड़ा रहता है। इसेआप अपनी आँखों से देख तो सकते हैं मगर उसे छू नहीं सकते।जी हाँ ये वो खजाना है जिसे सरकार तक नहीं छू पाई। आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे ही रहस्मयी मंदिर की, जो हज़ारों भक्तों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है। हिमाचल प्रदेश के मंडी से लगभग 68 किलोमीटर दूर रोहांडा में स्थित है कमरुनाग मंदिर। यह मंदिर कमरूनाग देवता को समर्पित है। मंदिर के पास ही एक झील है, जिसे कमरुनाग झील के नाम से जाना जाता है। इसी झील में अरबों का खजाना दबा पड़ा है। दरअसल मान्यता है कि भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए इस झील में सोने-चांदी के गहने और पैसे चढ़ाते हैं।भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए ऐसा करते हैं और ऐसा हजारों साल पहले से ही होता आ रहा है। इसलिए झील पर आप अरबों - खरबों के खजाने की चमक दूर से ही देख सकते हैं। झील के खजाने पर लोगों की बुरी नज़र नहीं रहती क्योंकि इसकी रक्षा नाग करता है। एक मान्यता ये भी है कि इस पूरे पहाड़ पर और इस झील के आस-पास नाग रूपी छोटे-छोटे पौधे लगे हुए हैं, जो कि दिन ढलते ही इच्छाधारी नाग के रूप में आ जाते हैं। अगर कोई भी इस झील में इस खजाने को हाथ लगाने की कोशिश करता है, तो यही इच्छाधारी नाग इस खजाने की रक्षा करते हैं। ये हैं इतिहास:- पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर का इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है। दरअसल महाभारत के सबसे महान योद्धा ‘बर्बरीक’ जब युद्ध में लड़ने के लिए आए तो भगवान श्री कृष्ण जान चुके थे कि वह सिर्फ कमज़ोर पक्ष की तरफ से ही लड़ेंगे, तो रास्ते में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का भेष बनाकर उन्हें रोक लिया। उन्हें मालूम था कि बर्बरीक अगर कौरवों की तरफ से लड़े तो पांडवों की हार तय है। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी धनुष विद्या की परीक्षा ली। इस दौरान बर्बरीक ने एक ही तीर से पीपल के सारे पत्ते बींध डाले। एक पत्ता श्रीकृष्ण ने अपने पांव के नीचे दबा रखा था लेकिन वह भी बींध चुका था। ब्राह्मण बने भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से वरदान के रूप में उनका शीश मांग लिया। बर्बरीक ने अपना शीश उन्हें दे दिया लेकिन बदले में वचन मांगा कि जब तक महाभारत युद्ध खत्म नहीं होता उनके शीश में प्राण रहे और वह पूरा युद्ध देख सके। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वचन दिया कि ऐसा ही होगा। युद्ध खत्म होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण पांडवों को उनके पास लाए और उनकी पूजा अर्चना की तथा उन्हें वरदान दिया युगों युगों तक तुम्हारी महिमा जारी रहेगी तथा लोग तुम्हें देवता के रूप में पूजा करेंगे। इसके बाद पांडवों ने उन्हें अपना कुलदेवता मानकर पूजा की। माना जाता है कि कमरूनागघाटी में स्थापित मूर्ति भी पांडवों ने आकर स्थापित की थी। युद्ध के बाद इस झील का निर्माण भीम द्वारा किया गया। इसलिए विशेष है कमरुनाग मंदिर :- कमरुनाग झील मंडी जिले से 9 हजार फीट ऊपर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए 8 किलोमीटर ऊंचे पहाड़ों और घने जंगलों से होकर गुज़रना पड़ता है। कमरुनाग मंदिर के समीप स्थित है कमरुनाग झील जिसके अंदर अरबों का खजाना है। भगवान कमरुनाग को सोने-चांदी व पैसे चढ़ाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। झील के खजाने पर नहीं लोगों की बुरी नज़र नहीं पड़ती क्योंकि इसकी रक्षा नाग करता है। बरसात के दिनों में कमरूनाग मंदिर में गहरी धुंध होती है। कमरुनाग मंदिर में ठंड के दिनों में जाना काफी कष्टकारी होता है। इस वक्त पूरा इलाका बर्फ की मोटी चादर से ढक जाता है। कमरूनाग को बड़ा देव और बारिश का देवता भी कहा जाता है। मंदिर को जाने वाली खड़ी चढ़ाई वाले रास्तों पर पेयजल की व्यवस्था नहीं है। ऐतिहासिक कमरूनाग झील की हर चार साल के बाद एक बार मंदिर कमेटी की ओर से सफाई की जाती है। हर साल जून महीने में 14 और 15 जून को बाबा कमरुनाग भक्तों को दर्शन देते हैं। कमरुनाग में लोहड़ी पर भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है। कमरुनाग मंदिर के पहाड़ों पर नाग की तरह दिखने वाले कई पेड़ हैं। किसी भी सरकार ने नहीं ली सुध:- इस मंदिर का आकार काफी छोटा है। यहां हर साल आने वाले भक्तों की तादाद बढ़ती ही जाती है। विडम्बना की बात यह है कि महाभारत कालीन कमरूनाग मंदिर को सहेजने में प्रदेश की अब तक की सरकारों की ओर से कोई ईमानदार प्रयास नहीं हुए हैं। यही कारण है कि कमरूनाग के मंदिर तक पहुँचने के लिए उपयुक्त सड़क तो दूर की बात, पैदल चलने वालों के लिए मुकम्मल रास्ते तक नहीं बनाए गए हैं।
हमारे देश में ऐसे कई देवी-देवताओं के मंदिर हैं जिनके पीछे अद्भुत और रोचक रहस्य छुपे हुए हैं। आदिकाल के मंदिरों और देवी-देवताओं से सम्बंधित कई बातें आज के वैज्ञानिक युग में हमें रहस्यमय लगती हैं, पर आस्था के आगे विज्ञान कहाँ ठहरता हैं। ऐसा ही एक मंदिर जिला मंडी में है जहां माता की शक्ति के आगे कभी भी मंदिर में छत नहीं लग पाई। बारिश हो, आंधी हो, या तूफान हो, ये मां खुले आसमान के नीचे रहना ही पसंद करती हैं। हम बात कर रहे हैं शिकारी देवी मंदिर के बारे में। हिमाचल के मंडी में 2850 मीटर की ऊंचाई पर बना यह शिकारी माता का मंदिर जंजैहली से लगभग 18 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर अध्भुत चमत्कारों के लिए विख्यात है। सर्दियों के दौरान इस स्थान पर चारों तरफ बर्फ की चादर होती हैं, लेकिन मंदिर परिसर बर्फ से अछूता रहता हैं। हैरत की बात ये हैं कि इस मंदिर पर कोई छत नहीं है। मंदिर से जुड़ी हैं कई पौराणिक कथाएं पौराणिक कथाओं के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि ने यहां सालों तक तपस्या की थी। उन्हीं की तपस्या से खुश होकर माता दुर्गा अपने शक्ति के रूप में इस स्थान पर स्थापित हुई।एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब पांडव अपना वनवास काट रहे थे तो वो इस क्षेत्र में आये और कुछ समय यहाँ पर रहे।एक दिन अर्जुन एवं अन्य भाईयों ने एक सुंदर मृग देखा तो उन्होंने उसका शिकार करना चाहा, मगर वो मृग उनके हाथ नहीं आया। सारे पांडव उस मृग की चर्चा करने लगे कि वो मृग कहीं मायावी तो नहीं। तभी आकाशवाणी हुई कि मैं इस पर्वत पर वास करने वाली शक्ति हूँ और मैनें पहले भी तुम्हें जुआ खेलते समय सावधान किया था, पर तुम नहीं माने। इसलिए आज वनवास भोग रहे हो। इस पर पांडवो ने उनसे क्षमा प्रार्थना की तो देवी ने उन्हें बताया कि मैं इसी पर्वत पर नवदुर्गा के रूप में विराजमान हूँ और यदि तुम मेरी प्रतिमा को यहाँ स्थापना करोगे तो तुम अपना राज्य पुन हासिल कर सकोगे। इस दौरान उन्होंने माता की पत्थर की मूर्ति तो स्थापित कर दी मगर पूरा मंदिर नहीं बना पाए। चूंकि माता मायावी मृग के शिकार के रूप में मिली थी इसलिये माता का नाम शिकारी देवी कहा गया। एक अन्य मान्यता यह भी है कि इस वन क्षेत्र में शिकारी वन्य जीवों का शिकार करने आते थे। शिकार करने से पहले शिकारी इस मंदिर में सफलता की प्रार्थना करते थे और उनकी प्रार्थना सफल भी हो जाती था।इसी के बाद इस मंदिर का नाम शिकारी देवी पड़ गया। रोचक पहलु :- हिमाचल के मंडी ज़िले की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है माता शिकारी देवी का यह चमत्कारी मंदिर। हर साल यहाँ बर्फ तो खूब गिरती है मगर माता की पिंडियों पर कभी नहीं टिकती बर्फ। माता मंदिर में छत नहीं करती सहन, खुले आसमान के नीचे रहना चाहती है विराजमान। मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बेहद ही सुंदर हैं, चारों तरफ दिखती है हरियाली ही हरियाली । सर्वोच्च शिखर होने के नाते इसे मंडी का क्राउन कहा जाता है। विशाल हरे चरागाह, मनोरंजक सूर्योदय और सूर्यास्त, बर्फ सीमाओं के मनोरम दृश्य प्रकृति प्रेमियों को अपनी और आकर्षित करते हैं। माता का दर्शन करने हर साल पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु। करीब तीन माह बंद रहते हैं कपाट माता शिकारी देवी मंदिर हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। शिकारी देवी मंदिर परिसर में चौसठ योगनियों का वास है जो सर्व शक्तिमान है। मंडी जनपद में शिकारी देवी को सबसे शक्तिशाली माना जाता है।देवी के दरबार में प्रदेश ही नहीं अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु देवी के दरबार में शीश नवाने दूर-दूर से पहुंचते हैं।बर्फबारी में माता शिकारी देवी में कड़ाके की ठंड पड़ने से देवी के मंदिर के कपाट करीब तीन माह के लिए बंद हो जाते हैं। बर्फबारी में माता के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं और पर्यटकों पर प्रशासन प्रतिबंध लगाता है। मगर, माता के अनेक भक्त बर्फबारी में भी देवी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुंच जाते हैं।
हनुमान जी के पद चिह्न देखने यहां पर लोग दूर- दूर से आते हैं। प्रकृति की गोद में बसे इस स्थान पर लोगों को बेहद सुकून मिलता हैं। मान्यता हैं कि जो भी भक्त यहाँ सच्चे मन से आते हैं, उन्हें हनुमान जी खाली हाथ नहीं भेजते। शिमला मुख्य शहर से 7 कि.मी और रिज से दो कि.मी की दूरी पर स्थित जाखू हिल्स शिमला की सबसे ऊंची चोटी है और यहीं विराजमान हैं भगवान हनुमान। जाखू मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति देश की सबसे ऊंची मूर्तियों में से एक है जो 33 मीटर (108 फीट) ऊंची है। इस मूर्ति के सामने आस-पास लगे बड़े-बड़े पेड़ भी बौने लगते हैं। ये स्थान बजरंबली के भक्तों में लिए बेहद ख़ास हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब श्री राम और रावण के बीच हुए युद्ध में लक्ष्मण शक्ति लगने से घायल हो गए थे, तो उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय पर्वत पर गए थे। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी जब संजीवनी लेने जा रहे थे तो वो कुछ देर के लिए इस स्थान पर रुक गए थे, जहां पर अब जाखू मंदिर है। ऐसा भी माना जाता है कि औषधीय पौधे (संजीवनी) को लेने जब हनुमान जी जा रहे थे तो इस स्थान पर उन्हें ऋषि ‘याकू’ मिले थे। हनुमान संजीवनी पौधे के बारे में जानकारी लेने के लिए यहां उतरे थे। हनुमान द्रोणागिरी पर्वत पर आगे बढ़े और उन्होंने वापसी के समय ऋषि याकू से मिलने का वादा दिया था लेकिन समय की कमी के कारण और दानव कालनेमि के साथ उनके टकराव के कारण हनुमान उस पहाड़ी पर नहीं जा पाए। इसके बाद ऋषि याकू ने हनुमान जी के सम्मान में जाखू मंदिर का निर्माण किया था। पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर को हनुमान जी के पैरों के निशान के पास बनाया गया है। इस मंदिर के आस-पास घूमने वाले बंदरों को हनुमान जी का वंशज कहा जाता है। माना जाता हैं कि जाखू मंदिर का निर्माण रामायण काल में हुआ था। इसलिए ख़ास हैं जाखू मंदिर :- भगवान हनुमान को समर्पित जाखू मंदिर 'रिज' के निकट स्थित है। घने देवदार के पेड़ों के बीच हनुमान की मूर्ति लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। जाखू मंदिर में हनुमान जी की एक विशाल प्रतिमा हैं जिसकी ऊँचाई 108 फीट हैं। ये मूर्ति दूर से दिखाई देती हैं। जाखू मंदिर में दर्शन सुबह 5 से दिन के 12 बजे तक और फिर शाम को 4 से रात के 9 बजे तक होते है। जाखू मंदिर के दर्शन करने के लिए आप को लगभग एक से दो घंटा लग सकता है। मंदिर तक गाड़ी या पदयात्रा कर के भी पहुंचा जा सकता है। रोपवे यात्रा के दौरान आस-पास के दृश्य अपनी सुंदरता से आपको हैरान कर देंगे। जाखू मंदिर में दशहरे (विजयदशमी) का त्योहार बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है। यात्रा के दौरान बंदरों से सावधान रहे और उनके सामने खाने की कोई भी चीज अपने हाथ में न लें। बंदरों को दूर रखने के लिए अपने हाथ में छड़ी लेकर चलें। मंदिर परिसर से बाहर निकलने से पहले घंटी बजाना अच्छा माना जाता है। पहाड़ी पर राज्य सरकार द्वारा विभिन्न ट्रैकिंग और पर्वतारोहण गतिविधियाँ भी आयोजित की जाती है। जाखू मंदिर में स्थित भगवान हनुमान की मूर्ति से बच्चन परिवार का भी खास कनेक्शन हैं। अमिताभ बच्चन की पुत्री श्वेता नंदा के ससुर ने इस मूर्ति का निर्माण करवाया था। सोलन में हैं सबसे ऊँची हनुमान जी की मूर्ति वर्तमान में जाखू स्थित भगवान हनुमान की मूर्ति हिमाचल प्रदेश में हनुमान जी की सबसे ऊँची मूर्ति हैं। पर अब सोलन के सुल्तानपुर स्थित मानव भारती विवि में दुनिया की सबसे ऊँची बजरंबली की मूर्ति बनकर तैयार हैं। ये मूर्ति 156 फ़ीट ऊँची हैं और जल्द इसका अनावरण होने जा रहा हैं।
नाचन हलके के जड़ोली में परिवहन निगम की बस में न बिठाने पर यात्रियों ने जमकर हंगामा किया। विरोध करते हुए यात्रियों ने सड़क पर बैंच लगाकर बस रोक दी। इसके बाद ग्रामीण बैंच पर बैठ गए और बस को रूट पर चलने नहीं दिया। ये विरोध करीब सवा घंटा चला , जिसके baad परिवहन निगम के अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर दूसरी बस में यात्रियों को गंतव्य की ओर रवाना किया। ये मामला सुंदरनगर से स्यांजी रूट पर चलने वाले निगम की बस का है। इस रूट पर प्रतिदिन निगम की बस खचाखच भरी होती है, लेकिन बस 42 सीट होने के कारण कई यात्रियों को बस में जगह नहीं मिल पाती। वीरवार सुबह पौने नौ बजे यह बस जयदेवी से सुंदरनगर के लिए रवाना हुई। 42 सीटर बस में कंडक्टर द्वारा 71 सवारियों के टिकट काट दिए गए, जिसके बाद यात्रियों ने विरोध स्वरुप बस रोक दी।
मोदी सरकार भाग दो का पहला बजट शुक्रवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश कर दिया है। बजट में पेट्रोल-डीजल पर एक रूपया सेस बढ़ाने की घोषणा की गई है जिससे आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ सकती है। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई पर आने वाला खर्च बढ़ जाएगा, जिसका प्रभाव लगभग हर सामान की कीमत पर होना तय माना जा रहा है।बजट में सोना पर शुल्क 10 फीसद से बढ़ाकर 12.5 फीसदी कर दिया गया है। साथ ही ये भी घोषणा की गई है कि आने वाले दिनों में तंबाकू पर भी अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। सरकार ने इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल को भी प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया हैं। बजट में इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर जीएसटी रेट 12 पर्सेंट से घटाकर 5 पर्सेंट कर दिया गया। इसके अलावा, इलेक्ट्रिक गाड़ियां खरीदने हेतु लिए गए लोन पर चुकाए जाने वाले ब्याज पर 1.5 लाख रुपये की अतिरिक्त इनकम टैक्स छूट भी देने का एलान किया है। मुख्य बिंदु... ''हर घर जल, हर घर नल'' के तहत 2024 तक हर घर में नल से होगी जल की आपूर्ति। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तीसरे चरण में 1,25,000 किलोमीटर लंबी सड़क को अगले पांच सालों में अपग्रेड किया जाएगा। मार्च 2020 तक 45 लाख रुपये तक की घर खरीद पर ब्याज के पुनर्भुगतान पर 1.5 लाख की अतिरिक्त छूट मिलेगी। 114 दिनों में जरूरतमंदों को घर बनाकर देने का लक्ष्य। 1.95 करोड़ घर बनाने का लक्ष्य। सालाना एक करोड़ रुपये से अधिक की नकदी निकासी पर अब दो फीसदी टीडीएस। सोने के आयात शुल्क पर 2.5 फीसदी की बढ़ोतरी की है। सालाना 2-5 करोड़ रुपये की कमाई वाले व्यक्तियों के सरचार्ज में 3 फीसदी व 5 करोड़ रुपये से अधिक की आय पर सरचार्ज में सात फीसदी का इजाफा। 400 करोड़ रुपये तक के रेवेन्यू वाले कंपनियों को अब 30 फीसदी के मुकाबले 25 फीसदी कॉरपोरेट टैक्स देना होगा। ये हुआ सस्ता - साबुन, शैंपू, हेयर ऑयल, टूथपेस्ट, डिटरजेंट वाशिंग पाउडर, बिजली का घरेलू सामानों पंखे, लैम्प, ब्रीफकेस, यात्री बैग, सेनिटरी वेयर, बोतल, कंटेनर, रसोई में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों के अलावा गद्दा, बिस्तर, चश्मों के फ्रेम, बांस का फर्नीचर, पास्ता, मियोनीज, धूपबत्ती, नमकीन, सूखा नारियल, सैनिटरी नैपकिन, ऊन खरीदना सस्ता हुआ।