हिमाचल प्रदेश में होने वाले शहरी निकाय चुनाव के लिए वीरवार को नामांकन वापिस लेने की आखरी तारीक तय की गयी थी। राज्य चुनाव आयोग से मिली जानकारी के मुताबिक वीरवार शाम 6 बजे तक कुल 310 उम्मीदवारों ने अपने नाम वापस ले लिए हैं। हिमाचल के पचास शहरी निकाय के चुनाव में अब 1191 उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान में रह गए है । नाम वापस लेने वाले प्रत्याशी चुनाव मैदान छोड़ गए हैं। इसके साथ ही उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न भी आवंटित कर दिए गए हैं। बता दें की शहरी निकाय चुनाव के लिए 10 जनवरी को मतदान होगा। मतदान के बाद मतों की गणना होगी और इसी दिन चुनाव नतीजे भी घोषित कर दिए जाएंगे। 12 जनवरी को चुनाव प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। उधर, राज्य चुनाव आयोग के अधिकारियों के अनुसार अब शहरी निकाय चुनाव में 1191 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमाएंगे। जिला नामांकन वापस कुल मैदान में कुल्लू 27 82 मंडी 28 152 सिरमौर 02 92 बिलासपुर 11 76 चंबा 43 94 ऊना 73 125 कांगड़ा 31 230 हमीरपुर 09 118 सोलन 46 93 शिमला 40 129
नगर पंचायत अर्की के 07 वार्डों के निर्वाचन के लिए नामांकन वापसी के उपरान्त अब कुल 19 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इन सभी को आज चुनाव पर्यवेक्षक हेमिस नेगी की उपस्थिति में नियमानुसार चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिए गए। यह जानकारी उपमण्डलाधिकारी एवं निर्वाचन अधिकारी विकास शुक्ला ने दी। नगर पंचायत अर्की के वार्ड संख्या-1 में कान्ता देवी तथा निर्मला देवी चुनाव मैदान में है। कान्ता देवी को चुनाव चिन्ह के रूप में कुर्सी तथा निर्मला देवी को चुनाव चिन्ह के रूप में ताला-चाबी आवंटित किया गया है। नगर पंचायत अर्की के वार्ड संख्या-2 में गौरव ठाकुर, दीवान चन्द, लक्ष्मी सिंह तथा सुरेन्द्र कुमार चुनाव मैदान में हैं। चुनाव चिन्ह के रूप में गौरव ठाकुर को कुर्सी, दीवान चन्द को ताला-चाबी, लक्ष्मी सिंह को सिलाई मशीन तथा सुरेन्द्र कुमार को हवाई जहाज आवंटित किया गया है। नगर पंचायत अर्की के वार्ड संख्या-3 में भारती वर्मा तथा श्यामा मैदान में हैं। भारती वर्मा को कुर्सी तथा श्यामा को ताला-चाबी चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है। नगर पंचायत अर्की के वार्ड संख्या-4 में अनुज गुप्ता, नरेन्द्र कुमार तथा राजीव कुमार चुनाव मैदान में हैं। चुनाव चिन्ह के रूप में अनुज गुप्ता को कुर्सी, नरेन्द्र कुमार को ताला-चाबी तथा राजीव कुमार को सिलाई मशीन आवंटित किया गया है। नगर पंचायत अर्की के वार्ड संख्या-5 में कमलेश गुप्ता तथा हेमेन्द्र कुमार चुनाव मैदान में हैं। कमलेश गुप्ता को कुर्सी चुनाव चिन्ह तथा हेमेन्द्र कुमार को ताला-चाबी चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है। नगर पंचायत अर्की के वार्ड संख्या-6 में अंकुश शर्मा, गौरव गुप्ता तथा धर्मपाल चुनाव मैदान में हैं। अंकुश शर्मा को कुर्सी चुनाव चिन्ह, गौरव गुप्ता को ताला-चाबी चुनाव चिन्ह तथा धर्मपाल को सिलाई मशीन चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है। नगर पंचायत अर्की के वार्ड संख्या-7 में भावना, रूचिका गुप्ता तथा संतोष चुनाव मैदान में हैं। भावना को कुर्सी चुनाव चिन्ह, रूचिका गुप्ता को ताला-चाबी चुनाव चिन्ह तथा संतोष को सिलाई मशीन चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है। नगर पंचायत अर्की के लिए मतदान 10 जनवरी, 2021 को प्रातः 8.00 बजे से सांय 4.00 बजे तक होगा।
तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सुपरस्टार रजनीकांत ने बड़ा ऐलान किया है। रजनीकांत ने मंगलवार को एक बयान जारी करते हुए कहा कि वो कोई राजनीतिक दल नहीं बनाने जा रहे हैं। हालांकि, तमिलनाडु के लोगों के लिए काम करते रहेंगे। रजनीकांत ने अपने बयान में कहा कि बीते दिनों उनकी तबीयत में जो गिरावट हुई है, वो इसे भगवान की चेतावनी मानते हैं और राजनीतिक पार्टी नहीं बनाने का फैसला करते हैं। रजनीकांत ने कहा है कि वो ऐसा नहीं चाहते हैं कि लोग ये समझें कि उन्हें बलि का बकरा बना दिया गया है। बता दें, इससे पहले रजनीकांत की ने ऐलान किया था कि वह 31 दिसंबर को अपने राजनीतिक दल का ऐलान करेंगे जिसके बाद तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनाव में उनका लड़ना तय होगा और रजनीकांत मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बन सकते हैं। लेकिन कुछ समय पहले जब रजनीकांत हैदराबाद में अपनी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे, तब उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। रजनीकांत को इसके बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां बीते दिन ही उन्हें छुट्टी मिली थी।
बिहार में चुनाव भले ही ख़त्म हो गए हो मगर सियासी घमासान जारी है, अब RJD (राष्ट्रीय जनता दल) के वरिष्ठ नेता और पू्र्व विधानसभा स्पीकर उदय नारायण चौधरी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ा ऑफर दे दिया है। उदय नारायण चौधरी ने कहा है कि 'अगर नीतीश कुमार तेजस्वी को मुख्यमंत्री बना दें तो उनको 2024 में प्रधानमंत्री के लिए विपक्षी पार्टियां समर्थन कर सकती हैं। यानी आरजेडी ने सरकार में आने की उम्मीद अब भी नहीं छोड़ी है और वो एक बार फिर से नीतीश कुमार के साथ जाने के लिए तैयार नजर आ रही है और इसके लिए नीतीश कुमार को दिल्ली भेजने का ऑफर तक दे दिया है। हालांकि, इसकी वजह बीजेपी और जेडीयू के बीच बढ़ रही खींचतान ही है। बिहार में नई सरकार बनने के बाद अब तक कैबिनेट का विस्तार नहीं हुआ है, सत्ता मिले अभी कुछ ही दिन हुए है कि सत्ताधारी एनडीए में अंतर्कलह की सुगबुगाहट नज़र आ रही है । ज्यादा सीटें जीतने वाली बीजेपी ने भले ही वादे के मुताबिक नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना दिया हो लेकिन भाजपा को अब उनकी मौजूदगी खेलने लगी है। वहीं अरुणाचल में जेडीयू विधायकों का बीजेपी में जाना बिहार की सियासत को सुलगा गया है । एनडीए की इस खलबली पर विपक्ष पैनी नजर बनाए हुए है और जीत की दहलीज तक पहुंचने वाली RJD को इस आपसी मतभेद में संभावनाएं नजर आने लगी हैं। बीजेपी को मिलीं ज्यादा सीटें दरअसल, 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में एनडीए को 125 सीटों पर जीत मिली थी। इनमें 74 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी जबकि जेडीयू 43 पर सिमट गई थी। यानी बीजेपी को जेडीयू से काफी ज्यादा सीटें मिली थीं। बावजूद इसके बीजेपी ने नीतीश कुमार का नेतृत्व ही स्वीकार किया क्योंकि उनके चेहरे पर ही पूरा चुनाव लड़ा गया था। लेकिन नीतीश कैबिनेट में बीजेपी अपनी सीटों के हिसाब से ज्यादा भागीदारी चाहती है। इस बात पर विवाद भी गहरा रहा है। जवाब में जेडीयू ने बीजेपी को 2010 के चुनाव की याद दिलाई है।
- नगर परिषद् परवाणु चुनाव को 37 ने भरा नामांकन - नामंकन वापसी के बाद स्पष्ट होगी तस्वीर नगर परिषद् परवाणु चुनाव में कुल 37 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किए है। सोमवार को नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि थी और 10 प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किए। इससे पहले शनिवार तक कुल 27 प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किए थे। कुल 9 वार्डों के लिए ये 37 नामांकन दाखिल हुए है। इनमे से 9 - 9 प्रत्याशियों को कांग्रेस व भाजपा का समर्थन प्राप्त है जबकि 19 बिना किसी राजैनतिक दल के समर्थन के मैदान में है। अब इन 19 प्रत्याशियों में से कितने मैदान में डटे रहते है ये तो नामांकन वापसी की अंतिम तिथि यानी 30 दिसंबर के बाद ही स्पष्ट होगा। भाजपा समर्थित उम्मीदवारों की बात करें तो वार्ड एक से खुद महिला आयोग अध्यक्ष डेज़ी ठाकुर मैदान में उतरी है। वहीँ वार्ड 2 से रजनी सिंगला प्रत्याशी है। वार्ड नम्बर 3,4,5 महिला आरक्षित है जहाँ किरन चौहान, गायत्री देवी व रचना रानी उम्मीदवार है। वहीँ वार्ड 6 में अनीता शर्मा, वार्ड 7 में रंजीत ठाकुर, वार्ड 8 से शकुंतला पांटा और वार्ड 9 से पूजा गोयल प्रत्याशी हैं। वहीँ कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों की बात करे तो वार्ड एक से काजल उम्मीदवार है जो पिछले चुनावों में भी डेज़ी ठाकुर को कड़ी टककर दे चुकी हैं। वार्ड 2 से लखविंदर सिंह उम्मीदवार है जो चुनावी दंगल में नया पर मजबूत चेहरा माना जा रहा हैं। वहीँ वार्ड 3, 4 व 5 से शशि गर्ग, चंद्रावती व सोनिया शर्मा उम्मीदवार है. वहीँ वार्ड 6 से निवर्तमान नगर परिषद् अध्यक्ष ठाकुरदास शर्मा चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि वार्ड 7 से प्रेमलता व वार्ड 8 से मोनिशा उम्मीदवार हैं। वार्ड नंबर 9 से कांग्रेस ने निशा शर्मा का समर्थन करने का फैसला लिया हैं। वहीँ निर्दलीय उम्मीदवारों की बात करें तो सबसे ज्यादा चर्चा राकेश भाटिया की है, जो वार्ड 1 से उम्मीदवार हैं. भाटिया की एंट्री से इस वार्ड के समीकरण बदल सकते हैं। ऐसे में उन पर सबकी निगाहें होगी।
-डेजी ठाकुर और ठाकुरदास शर्मा दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है ये चुनाव नगर परिषद् परवाणु के चुनाव 10 जनवरी को होने है. सभी 9 वार्डों में इस मर्तबा रोचक टक्कर देखने को मिल सकती है. बेशक चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं हो रहे पर अध्यक्ष पद पर कब्ज़ा ज़माने के लिए दोनों पार्टी के दिग्गजों की नज़र टिकी है. अध्यक्ष पद कब्जाने के लिए इन दिग्गजों को खुद तो चुनाव जीतना ही होगा, साथ ही उनके समर्थित कम से कम 4 अन्य पार्षद भी चुनाव जीतने चाहिए. आज चर्चा करते है उन दो चेहरों के बारे में जो अध्यक्ष पद के बड़े दावेदार है. प्रदेश महिला आयोग अध्यक्ष डेजी ठाकुर की एंट्री ने इस चुनाव को रोचक बना दिया है. वह वार्ड 1 से भाजपा समर्थित प्रत्याशी है, वर्तमान में पार्षद भी है और पहले नगर परिषद् की अध्यक्ष भी रह चुकी है. उनका निकाय चुनाव में फिर उतरने के मतलब है स्पष्ट है की अध्यक्ष पद पर उनकी नज़र टिकी है. डेजी ठाकुर एक बड़ा नाम है, स्वास्थ्य मंत्री और स्थानीय विधायक डॉ राजीव सैजल का समर्थन भी उन्हें प्राप्त है और भाजपा का मजबूत संगठन भी उनके पक्ष में जाता है. पर उनकी राह इतनी आसान भी नहीं है. कांग्रेस के समर्थन से इस बार फिर वार्ड 1 से काजल मैदान में है जिन्होंने पिछले चुनाव में डेजी ठाकुर को जमकर टक्कर दी थी. काजल की सादगी और जमीनी जुड़ाव उनके पक्ष में जाता है. बेशक कांग्रेस का संगठन भाजपा के मुकाबले कमजोर है, लेकिन परवाणु में स्थानीय कांग्रेस को कम आंकना भाजपा की भूल हो सकती है. वहीँ सोमवार को निर्दलीय उम्मीदवार राकेश भाटिया ने भी ताल ठोक दी है, जो इस मुकाबले का समीकरण बदल सकते है. बहरहाल नाम वापसी की तिथि के बाद ही असल तस्वीर स्पष्ट होगी. उधर राज्य महिला आयोग अध्यक्ष का नगर परिषद् चुनाव लड़ना विरोधियों को उनका डिमोशन लग रहा है . वहीँ समर्थक इसे डेजी ठाकुर का परवाणु से प्यार और जुड़ाव करार दे रहे है. पर इतना तय है की ये नतीजा सीधे तौर पर भविष्य में डेजी ठाकुर का राजनैतिक कद तय कर सकता है. कांग्रेस की बात करें तो वार्ड 6 से ठाकुरदास शर्मा मैदान में है जो निवर्तमान अध्यक्ष भी है . इस चुनाव में ठाकुरदास शर्मा फ्रंट से कांग्रेस की तरफ से लीड कर रहे है. मकसद साफ़ है की कैसे भी कम से कम 5 वार्डों में पार्टी समर्थित लोग जीते और दोबारा अध्यक्ष पद कब्जाया जा सके. कई वार्डों में कांग्रेस ने बाहरी उम्मीदवारों को भी समर्थन दिया है जो ठाकुरदास की रणनीति का ही हिस्सा है. ठाकुरदास अपने पांच साल के कामकाज पर वोट मांग रहे है. पिछले चुनाव में ठाकुरदास वार्ड 8 से चुनाव जीते थे किन्तु इस मर्तबा वार्ड 8 महिला आरक्षित है ऐसे में ठाकुरदास ने वार्ड 6 का रुख किया है जहाँ भाजपा समर्थित अनीता शर्मा से उनका सीधा मुकाबला है. आज़ाद उम्मीदवार भी इस वार्ड से मैदान में है किन्तु फिलहाल टक्कर ठाकुरदास शर्मा और अनीता शर्मा के बीच ही दिख रही है. ठाकुरदास शर्मा कसौली ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष भी है और पिछले चुनाव रिकॉर्ड मार्जिन से जीते थे. ऐसे में इस बार उनके सामने खुद को फिर साबित करने की चुनौती तो है ही , अन्य वार्डों में भी पार्टी समर्थित उम्मीदवारों को अच्छा करवाने का ज़िम्मा भी है . इस दोहरी चुनौती में ठाकुरदास शर्मा कितना खरा उतारते है ये तो 10 जनवरी को ही पता चलेगा. बहरहाल इतना तय है की परवाणु नगर परिषद् का मुकाबला बराबरी का है जहाँ कुछ भी संभव है.
- जिला अध्यक्ष को साइडलाइन कर शांडिल घोषित कर चुके हैं तीन उम्मीदवार - जिला अध्यक्ष ने घोषित किये 12 समर्थित उम्मीदवार, एक शांडिल की पसंद - 12 में शामिल नहीं कुनिहार और सिरिनगर से उम्मीदवार जिला परिषद् प्रत्याशियों को लेकर कांग्रेस के जिला संगठन और सोलन विधायक कर्नल डॉ धनीराम शांडिल की तकरार खुल कर सामने आ गई है। संगठन दो फाड़ हैं, कुछ शांडिल के साथ हैं तो कुछ जिला अध्यक्ष के साथ. शांडिल जिला परिषद् के तीन प्रत्याशी घोषित कर एलान कर चुके हैं कि उनके द्वारा घोषित प्रत्याशी ही कांग्रेस द्वारा समर्थित प्रत्याशी हैं और इनमें कोई बदलाव नहीं होगा। शांडिल के तेवरों ने कांग्रेस के कई खेमों की नींद उड़ा दी हैं। हालात ये हैं कि धुरविरोधी भी अब एक मंच पर आ रहे हैं। दरअसल, शांडिल ने पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के ख़ास माने जाने वालों के टिकट काट दिए हैं, ऐसे में हंगामा बरपना तो लाज़मी हैं। माना जा रहा हैं कि वीरभद्र सिंह निकाय चुनाव जैसे मसले पर शायद ही सीधे तौर पर दखल दें, वहीँ बतौर शांडिल आलाकमान सम्बंधित विधायकों को उम्मीदवार चुनने की आज़ादी दें चूका हैं, साथ ही शांडिल कांग्रेस की इलेक्शन स्ट्रेटेजी कमेटी के सदस्य भी हैं। ऐसे में इस मर्तबा शांडिल की चाल ने कई दिग्गजों को बेहाल कर दिया हैं। गौरतलब हैं कि जिला सोलन में 17 जिला परिषद् वार्ड है जिनमें से 4 पूर्ण या आंशिक तौर पर सोलन निर्वाचन क्षेत्र के तहत आते है। इनमें सपरून, सलोगड़ा, कुनिहार और सिरिनगर वार्ड शामिल है। कर्नल शांडिल इनमें से सलोगड़ा, कुनिहार और सिरिनगर के प्रत्याशी घोषित कर चुके हैं और दो टूक कह चुके हैं कि ये ही चेहरे मैदान में होंगे। वहीँ जिला कांग्रेस अध्यक्ष शिवकुमार ने भी सोमवार को 12 नामों का एलान किया हैं। इनमें से शांडिल द्वारा घोषित 3 में से सिर्फ सलोगड़ा से उम्मीदवार बलदेव ठाकुर को स्थान मिला हैं। बाकी कुनिहार और सिरिनगर से फिलहाल उम्मीदवार घोषित नहीं किये हैं। यानी शांडिल द्वारा घोषित उम्मीदवारों की काट नहीं की गई हैं। स्वाभाविक हैं कि इस मसले को लेकर शांडिल पर दबाब जरूर होगा, पर जो तेवर शांडिल ने इख्तियार किए हैं इसे देख लगता नहीं हैं कि वे झुकेंगे। बाकी राजनीती में कभी भी कुछ भी संभव हैं। उधर संगठन और विधायक के बीच की ये रार और पार्टी में हावी गुटबाज़ी निकाय चुनाव में कांग्रेस की मुश्किलों में और इजाफा कर सकती हैं। संगठन कई खेमों में बंटा हुआ हैं। शहरी कांग्रेस और सोलन ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष शांडिल की छत्रछाया में हैं, तो शिवकुमार को भी कुछ नेताओं का साथ मिला हुआ हैं। जानकार मानते हैं की शांडिल की नज़र 2022 पर टिकी हैं और ऐसे में वे हर उस गुट को सेटल करना चाहते हैं जो उनकी लाइन से बाहर जा सकता हैं।
- युवा विवेकानंद परिहार का मुकाबला अनुभवी रविंद्र परिहार से - बागियों की भूमिका हो सकती है निर्णायक सोलन जिला परिषद् के वार्ड नंबर 4 कुनिहार में इस मर्तबा काफी रोचक जंग देखने को मिल सकती है. इस जिला परिषद् वार्ड में कुल 15 पंचायतें आती है जिनमें से 6 सोलन निर्वाचन क्षेत्र में, 6 कसौली निर्वाचन क्षेत्र में और 3 अर्की निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती है. यानी ये जिला परिषद् वार्ड तीन विधानसभा क्षेत्रों से सीधे तौर पर जुड़ा है. कसौली स्वास्थ्य मंत्री डॉ राजीव सैजल का क्षेत्र है तो अर्की पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का और सोलन पूर्व मंत्री कर्नल धनीराम शांडिल का. ऐसे में जाहिर है इस हाई प्रोफाइल वार्ड में जंग भी उतनी ही रोचक देखने को मिलेगी. भाजपा ने यहाँ से अनुभवी रविंद्र परिहार को समर्थन देकर मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने उनके मुकाबले एक युवा को मौका दिया है. कांग्रेस ने विवेकानंद परिहार पर दांव खेला है जो एक मजबूत राजनैतिक परिवार से आते है, काफी वक्त से कांग्रेस सेवादल में काम कर रहे है और उनका सरल व्यक्तित्व उनकी सबसे बड़ी ताकत है. हैवी वेट रविंद्र परिहार और युवा विवेकानंद की इस जंग को बागियों की एंट्री और अधिक रोचक बना सकती है. बहरहाल अभी रूठने मनाने का दौर ज़ारी है और नामांकन दाखिल होने के बाद ही सही आंकलन किया जा सकता है. नतीजा जो भी रहे भाजपा के अनुभवी परिहार बनाम कांग्रेस के युवा परिहार के बीच का ये मुकाबला दिलचस्प होना तय है.
-कुनिहार से विवेकानंद चौहान, सीरिनगर से निर्मला ठाकुर और सलोगड़ा से बलदेव ठाकुर प्रत्याशी -कहा पार्टी विरोधी काम करने वालो के खिलाफ होगी कार्रवाई सोलन जिला परिषद् के वार्ड नंबर 4 कुनिहार से विवेकानंद चौहान, वार्ड नंबर 5 सीरिनगर से निर्मला ठाकुर और वार्ड नंबर 6 सलोगड़ा से बलदेव सिंह ठाकुर ही कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी होंगे. सोलन विधायक और पूर्व मंत्री डॉ कर्नल धनीराम शांडिल ने रविवार को मीडिया के सामने ये एलान कर दिया. उनके साथ तीनो प्रत्याशी भी मौजूद रहे. शांडिल ने कहा की आम कार्यकर्ताओं के बातचीत करने के बाद ही बहुमत की राय को तवज्जो देते हुए तीनो प्रत्याशियों का एलान किया गया है. बतौर विधायक उनके निर्वाचन क्षेत्र के तहत आने वाले जिला परिषद् वार्डों में उम्मीदवार तय करने का हक़ उन्हें है. शांडिल ने दो टूक कहा की हर कार्यकर्ता को पार्टी के साथ चलना चाहिए, और जो लोग इस चुनाव में पार्टी समर्थित उम्मीदवारों के खिलाफ काम करेंगे उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. सीरिनगर व कुनिहार वार्ड में असंतोष के विषय पर उन्होंने स्पष्ट कहा की हर कार्यकर्ता को टिकट नहीं मिल सकता. ऐसे में ये सामान्य बात है. सभी रुष्ट लोगों को साथ लेकर चलने का प्रयास होगा. उन्होंने कहा कि राजनीति में कई तरह के दबाब होते है लेकिन पार्टी का हित उनके लिए सर्वोपरी है. सभी घोषित तीन उम्मीदवारों के नाम फाइनल है और इसमें कोई बदलाव नहीं होगा.
After Rahul Gandhi claimed “lack of democracy in India” PM Modi on Saturday hit back at him and said some people in Delhi "are trying to teach me lessons in democracy". Congress leader Rahul Gandhi in his recent attack on the government and PM Modi said there was “no democracy in India ” and that those who stood up against the PM were labeled terrorists "even if it were Mohan Bhagwat" (RSS chief). Retorting to this PM said "there are people in Delhi who always taunt and insult me. They want to teach me lessons in democracy. I want to show them Jammu and Kashmir DDC (District Development Council) polls as an example of democracy," PM Modi said after launching the Ayushman Bharat scheme for health insurance coverage to all residents of the union territory. PM Modi said that even after the Supreme Court has directed that Panchayati and municipal elections should be conducted in Puducherry, the state is not conducting it. “Despite SC order, panchayat and municipal polls are not being held in Puducherry. Those in power in Puducherry not carrying out local polls and are giving me lessons in democracy. Those who keep on teaching me lessons on democracy are the ones who are running their government there,” he said. He said the recent local body election in Jammu and Kashmir "strengthened roots of democracy" and congratulated voters for exercising their franchise in the eight-phase election.
- इस मर्तबा निकाय चुनाव में सोशल मीडिया बेहद महत्वपूर्ण इस बार के निकाय चुनाव में सोशल और वेब मीडिया निर्णायक भूमिका निभा सकता हैं। पांच साल पहले हुए चुनाव के मुकाबले लोगों का रुझान सोशल और वेब मीडिया की तरफ बहुत अधिक बढ़ चूका हैं, जिससे मतदाता का निर्णय प्रभावित हो सकता हैं। चुनाव प्रचार में इस मर्तबा सोशल मीडिया की एंट्री तमाम समीकरण बदल सकती है, खासतौर से न्यूट्रल मतदाता पर इसका काफी असर देखने को मिल सकता हैं। यही कारण हैं कि चुनाव की जंग जितनी जमीन पर लड़ी जा रही है उतनी ही सोशल मीडिया के अखाड़े में। हर उम्मीदवार सोशल मीडिया और वेब मीडिया का इस्तेमाल कर वोटर्स को साधने की जुगत में हैं। अब कोरोना काल में इसे मौके की नजाकत समझें या फिर तकनीक का स्मार्ट इस्तेमाल, लेकिन इस मर्तबा निकाय चुनाव के प्रत्याशी सोशल और वेब मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल करने से जरा भी पीछे नहीं हैं। वहीँ पार्टी स्तर पर यदि सोशल मीडिया पर जंग की बात करें तो निसंदेह इसमें भाजपा का कोई मुकाबला नहीं हैं। बेशक चुनाव बिना पार्टी सिंबल के लड़े जा रहे हैं लेकिन भाजपा का आईटी सेल पूरी तरह सक्रीय दिख रहा हैं। सोशल मीडिया पर, खासतौर से फेसबुक पर भाजपा के पास सैकड़ों आधिकारिक एक्टिव पेज हैं। इसके अतिरक्त पार्टी ने आईटी व सोशल मीडिया के लिए कई पदाधिकारी नियुक्त किये हुए हैं जिनके कौशल और अनुभव का लाभ भी पार्टी समर्थित उम्मीदवारों को मिलेगा। मतदाता के साथ संवाद साधने में ये बेहद कारगर सिद्ध होगा। सुनियोजित तरीके से भाजपा ने सोशल मीडिया पर अपनी दमदार उपस्तिथि बनाई हुई हैं जो उसे लाभ दे सकती हैं। उधर, कांग्रेस जमीनी संगठन की तरह ही सोशल मीडिया पर भी दिशाहीन दिख रही हैं। औपचारिकता के लिए पार्टी का सोशल मीडिया सेल तो हैं, पदाधिकारी भी हैं पर उनका काम असरदार नहीं दिख रहा। कुछ नेता सोशल मीडिया पर एक्टिव भी हैं तो अपने बुते पर, पार्टी की तरफ से न कोई आवश्यक दिशा निर्देश हैं और न ही मार्गदर्शन। खासतौर से जब कोरोना के चलते डोर टू डोर प्रचार भी सिमित रहने वाला हैं, सोशल मीडिया पर पार्टी की ये कमजोरी इस निकाय चुनाव में भारी पड़ सकती हैं।
हिमाचल के 50 शहरी निकायों की चुनाव प्रक्रिया शुरू हो गई है। पहले दिन प्रदेश के 10 जिलों में कुल 254 प्रत्याशियों ने नामांकन भरे। प्रदेश की 29 नगर परिषदों और 21 नगर पंचायतों के लिए सदस्य चुने जाने हैं। राज्य चुनाव आयोग ने पहली बार ऑनलाइन व्यवस्था की है कि वोटर प्रत्याशियों की शैक्षणिक योग्यता और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी हासिल कर सकेंगे। पहले दिन कई चिकित्सक, वकील, सिविल इंजीनियर, एमएससी पास चुनाव में उतरे हैं। जिला शहरी निकायों के लिए सोलन में 50 नामांकन भरे गए जबकि मंडी व कांगड़ा में 35-35 नामांकन भरे गए। वहीं, सिरमौर में 25, कुल्लू व हमीरपुर में 21-21, चंबा में 19, शिमला में १७ नामांकन भरे गए। उधर ऊना में 16 व बिलासपुर में 15 नामांकन भरे गए।
आज पूरा भारत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती मना रहा है। एक सुलझे राजनेता, प्रखर वक्ता और बेहतरीन कवि अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। वह तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने। भारत के दसवें प्रधानमंत्री रहे अटल को भारत रत्न भी दिया जा चुका है। साल 1996 में वे पहली बार भारत के प्रधानमंत्री बने थे, हालांकि इस दौरान उनका कार्यकाल काफी छोटा यानी सिर्फ 13 दिनों का था। इसके बाद उनका दूसरा कार्यकाल 13 महीने का था और फिर 1999 में जब वह पीएम बने तो उन्होंने 2004 तक पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक रहे हैं, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी नाम से राजनैतिक पार्टी बनी। अटल बिहारी वाजपेयी राजनेता बनने से पहले एक पत्रकार थे। वह देश-समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा से पत्रकारिता में आए थे। देश की स्थिति समझने को बने पत्रकार अटल बिहारी राजनीति में कैसे आए, इसके पीछे एक प्रेरणादायक कहानी है। अटल बिहारी वाजपेयी के पिता पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी उत्तर प्रदेश में आगरा जिले के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी थे। एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए अटल बिहारी वाजपेयी के लिए जीवन का शुरुआती सफर आसान नहीं था। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी। छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे। उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर कि। एम० ए० के बाद उन्होंने कानपुर में ही एल०एल०बी० की पढ़ाई भी शुरू की लेकिन उसे बीच में ही छोड़कर पूरी निष्ठा से संघ-कार्य में जुट गए। फिर पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया तथा, राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन जैसे अखबारों-पत्रिकाओं का संपादन किया। जब राजनीती में आने का लिआ निर्णय वे बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे और इस संगठन की विचारधारा (राष्ट्रवाद या दक्षिणपंथ) के असर से ही उनमें देश के प्रति कुछ करने, सामाजिक कार्य करने की भावना मजबूत हुई। उनके पत्रकार से राजनेता बनने का जो जीवन में मोड़ आया, वह एक महत्वपूर्ण घटना से जुड़ा है। इसके बारे में खुद अटल बिहारी ने एक इंटरव्यू में बताया था वे बतौर पत्रकारिता अपना काम बखूबी कर रहे थे। 1953 की बात है, भारतीय जनसंघ के नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर को विशेष दर्जा देने के खिलाफ थे। जम्मू-कश्मीर में लागू परमिट सिस्टम का विरोध करने के लिए डॉ. मुखर्जी श्रीनगर चले गए। परमिट सिस्टम के मुताबिक किसी भी भारतीय को जम्मू-कश्मीर राज्य में बसने की इजाजत नहीं थी। यही नहीं, दूसरे राज्य के किसी भी व्यक्ति को जम्मू-कश्मीर में जाने के लिए अपने साथ एक पहचान पत्र लेकर जाना अनिवार्य था। डॉ. मुखर्जी इसका विरोध कर रहे थे। वे परमिट सिस्टम को तोड़कर श्रीनगर पहुंच गए थे। इस घटना को एक पत्रकार के रूप में कवर करने के लिए वाजपेयी भी उनके साथ गए। वाजपेयी इंटरव्यू में बताते हैं, ‘पत्रकार के रूप में मैं उनके साथ था। वे गिरफ्तार कर लिए गए। लेकिन हम लोग वापस आ गए।' डॉ. मुखर्जी ने मुझसे कहा कि वाजपेयी जाओ और दुनिया को बता दो कि मैं कश्मीर में आ गया हूं, बिना किसी परमिट के।’ इस घटना के कुछ दिनों बाद ही नजरबंदी में रहने वाले डॉ. मुखर्जी की बीमारी की वजह से मौत हो गई। इस घटना से वाजपेयी काफी आहत हुए। वह इंटरव्यू में कहते हैं, ‘मुझे लगा कि डॉ. मुखर्जी के काम को आगे बढ़ाना चाहिए।’ इसके बाद वाजपेयी राजनीति में आ गए। सन 1955 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, पर सफलता नहीं मिली पर हिम्मत नहीं हारी और 1959 में बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुंच कर ही दम लिया। 1957 से 1977 जनता पार्टी की स्थापना तक अटल जी बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। बस 13 दिन चली सरकार मोरारजी देसाई की सरकार में वह 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनाई। न्यूयोर्क में संयुक्त राष्ट्र संहघ के 32 वीन अधिवेशन में हिन्द में दिया गया उनका भाषण आज भी याद किआ जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी जब पहली बार संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में बोले तो पुरे विश्व ने उनकी आवाज़ सुनी। 1980 में जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर इन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की। 6 अप्रैल, 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व भी वाजपेयी जी को सौंपा गया। अटल बिहारी वाजपेयी दो बार राज्यसभा के लिए भी निर्वाचित हुए। अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् 1996 में प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली। पहली बार 16 से 31 मई, 1996 तक वे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। पोखरण में परमाणु परिक्षण करवा देश को दी अलग पहचान 19 मार्च, 1998 को फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में 13 दलों की गठबंधन सरकार ने देश के अंदर प्रगति के अनेक आयाम छुए। सन 1998 में पोखरण में परमाणु परिक्षण करके उन्होंने देश को दुनिया के कुछ गिने-चुने परमाणु संपन्न देशों में शुमार करवा दिया। पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण कराया और उन्होंने अमेरिका की सीआईए को भनक तक नहीं लगने दी। पोखरण की परमाणु परिक्षण के बाद भारत को अमेरिका और जापान के कई प्रतिबन्ध झेलने पड़े , देश की विरोधी पार्टियों ने भी आलोचना की, लेकिन वाजपेयी सरकार ने तमाम पाबंदियों का मज़बूती से सामना किआ। पोखरण परमाणु परिक्षण के बाद वाजपेयी के नेतृत्व में देश की तर्रक्की की रफ़्तार में कमी नहीं आई। वाजपेयी पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री थे जिन्होंने पुरे 5 साल सरकार चलाई, जब उनपर सत्ता का लोभी होने का आरोप लगा तो उन्होंने विरोधियों को इसका करारा जवाब दिया। वाजपेयी ने खरीद फरोख्त कर मिलने वाली सत्ता को चिमटे से भी छुने से मना कर दिया। अटल के भाषणों की गूँज आज भी सुनाई देती है अटल ने विवाह नहीं किया था। उन्होंने अपना जीवन देश की भलाई के लिए एक राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया था। वो एक तेजस्वी नेता होने के साथ एक प्रभावी कवी भी थे। वीर रस में लिखी उनकी कविताएं देश के लिए मर मिटने को प्रेरित करती है। वे एक अद्बुध वक्त थे उनके दिए भाषण आज भी याद किए जाते है। उनके दिए भाषणों ने ही बीजेपी की वर्तमान वर्चस्व को दिशा दी।
- दोहरी चुनौती: एक तो बलदेव मजबूत प्रत्याशी, दूसरा भाजपा में अंतर्कलह हावी जिला परिषद् सोलन के वार्ड 6 का मुकाबला सोलन भाजपा के राजनैतिक भविष्य की चाल निर्धारित कर सकता है। इस वार्ड से कुमारी शीला भाजपा समर्थित उम्मीदवार है जो यूँ तो बेहद मजबूत प्रत्याशी है पर इस मर्तबा कांग्रेस ने एक सशक्त उम्मीदवार देकर उनकी डगर कठिन कर दी है। दरअसल कांग्रेस ने बलदेव सिंह ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है जिनकी ग्राम पंचायत नौणी अन्य पंचायतों के लिए एक रोल मॉडल है। मुकाबला बराबरी का है और बेहद रोचक होने की उम्मीद है। इस चुनाव से न सिर्फ कुमारी शीला का राजनैतिक भविष्य तय होगा बल्कि सोलन भाजपा के एक गुट विशेष के लिए भी शीला की जीत बेहद मायने रखती है। विदित रहे की शीला 2012 में सोलन निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी रही है। 2017 में उनका टिकट काट कर डॉ राजेश कश्यप को टिकट दिया गया था जिसके बाद से ही सोलन भाजपा में घमासान आम है। अब यदि शीला ये चुनाव हार जाती है तो जाहिर है 2022 के लिए उनका दावा भी कमजोर पड़ जाएगा। साथ ही उनका समर्थन करने वाले गुट विशेष की उम्मीदों के लिए भी ये बड़ा झटका साबित हो सकता है। भाजपा के उक्त गुट पर ये आरोप लगते रहे है की उन्होंने 2017 में डॉ राजेश कश्यप के लिए पूरी क्षमता से काम नहीं किया अन्यथा नतीजा कुछ और होता। ऐसे में इस सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा का अंतर्कलह कांग्रेस के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकती है।
वो तारीख थी 27 फरवरी 1994, पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (OIC) के जरिए एक प्रस्ताव सामने रखा। पाकिस्तान कश्मीर में हो रहे कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर भारत की निंदा कर रहा था। भारत के लिए एक बड़ा संकट उजागर हो गया, संकट यह था कि अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता तो भारत को UNSC के कड़े आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता। उस समय केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी। चौतरफा चुनौतियों का सामना कर रहे तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने इस मसले को खुद अपने हाथों में लिया और जीनेवा (Geneva) में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए सावधानीपूर्वक एक टीम बनाई। इस प्रतिनिधि मंडल में तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री सलमान खुर्शीद, ई. अहमद, नैशनल कॉन्फ़्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला और हामिद अंसारी तो थे ही, इनके साथ अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे। वाजपेयी उस समय विपक्ष के नेता थे और उन्हें इस टीम में शामिल करना मामूली बात नहीं थी। यही वह समय था जब देश के बचाव में सभी पार्टियों और धर्म के नेता एकसाथ खड़े हो गए थे। शायद राव का यही अंदाज़ उन्हें भारतीय राजनीति का चाणक्य बनाता है। अटल का स्वभाव अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा से ही एक ऐसे नेता थे जिन्हें न सिर्फ अपनी पार्टी में बल्कि विपक्षी पार्टियों में भी मान-सम्मान मिला। इसका सटीक उदाहरण था साल 1994 में उन्हें पि.वि नरसिम्हा राव द्वारा, एक विपक्ष के नेता होने के बावजूद उन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग भेजा गया। कैसे मिली जीत? इस फैसले के बाद नरसिम्हा राव और वाजपेयी ने उदार इस्लामिक देशों से संपर्क शुरू किया। राव और वाजपेयी ने ही OIC के प्रभावशाली 6 सदस्य देशों और अन्य पश्चिमी देशों के राजदूतों को नई दिल्ली बुलाने का प्रबंध किया। दूसरी तरफ, अटल बिहारी वाजपेयी ने जीनेवा (Geneva) में भारतीय मूल के व्यापारी हिंदूजा बंधुओं को तेहरान से बातचीत के लिए तैयार किया। वाजपेयी इसमें सफल हुए। प्रस्ताव पर मतदान वाले दिन जिन देशों के पाकिस्तान के समर्थन में रहने की उम्मीद थी उन्होंने अपने हाथ पीछे खींच लिए। इंडोनेशिया और लीबिया ने OIC द्वारा पारित प्रस्ताव से खुद को अलग कर लिया। सीरिया ने भी यह कहकर पाकिस्तान के प्रस्ताव से दूरी बना ली कि वह इसके रिवाइज्ड ड्राफ्ट पर गौर करेगा। 9 मार्च 1994 को ईरान ने सलाह-मशवरे के बाद संशोधित प्रस्ताव पास करने की मांग की। चीन ने भी भारत का साथ दिया। अपने दो महत्पूर्ण समर्थकों चीन और ईरान को खोने के बाद पाकिस्तान ने शाम 5 बजे प्रस्ताव वापस ले लिया और भारत की जीत हुई। आखिर राव ने अटल को क्यों चुना? भारत की जीत हुई, अटल की जीत हुई, राव की जीत हुई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है की राव द्वारा अटल को संयुक्त राष्ट्र भेजा जाना किसी बड़े राजनीतिक दाव से कम नहीं था। अटल की बात करें तो उनकी आम लोगों में लोकप्रियता पर कभी कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा। उनकी छवि राजनीति और सार्वजनिक जीवन में बेदाग रही है। अटल अगर इस प्रस्ताव को रुकवा कर वापिस आते तो इसमें साफ़ तौर पर अटल के साथ-साथ राव की वाह-वाही होती कि, राव का दिल इतना बड़ा है की किसी विपक्ष के नेता को वो इतना सम्मान दे रहे है। लेकिन अगर इस कार्य में अटल सफल नहीं होते तो राव पूरा का पूरा भन्दा अटल के सर फोड़ते। इन दोनों ही स्थितियों में राव कि जीत होती। यानि चित भी उनकी और पट्ट भी उनकी। जब संसद में बोले थे अटल इस तथ्य कि जानकारी खुद वाजपेयी ने एक बार सदन में दी थी। उनका कहना था कि जब वह संयुक्तत राष्ट्र में पहुंचे तो हर किसी की ज़ुबान खासतौर पर पाकिस्तान के नेताओं में यह चर्चा खासा जोर पकड़ रही थी कि आखिर भारत सरकार ने नेता प्रतिपक्ष को अपनी बात रखने के लिए क्यों चुना। उन्होंने इस बात पर यह कहते हुए चुटकी भी ली कि कई नेताओं ने उनसे यहां तक कहा कि एक राजनीतिक साजिश के तहत ही उन्हें संयुक्त राष्ट्र भेजा गया है। यदि वहां पर सफलता मिली तो नरसिम्हा अपनी पीठ थपथपाएंगे और यदि हार मिली तो इसका ठीकरा उनके ऊपर फोड़ देंगे। हालांकि उन्होंने कभी इन विचारों को नहीं माना। उनका कहना था कि पाकिस्तान के नेता इस बात को लेकर भी हैरान थे कि उनके यहां पर विपक्ष के नेता का वजूद कुछ नहीं होता है और भारत का नेता प्रतिपक्ष सरकार का पक्ष रखता है।
अटल बिहारी वाजपेयी वो महान हस्ती जिन्हें एक बार नहीं बल्कि तीन बार भारत के प्रधानमंत्री होने का गौरव प्राप्त हुआ। अटल का साहित्य से लगाव जग ज़ाहिर था, वे उन विरले नेताओं में से थे, जिनका महज साहित्य में झुकाव भर नहीं था, बल्कि वे खुद लिखते भी थे। उनकी कविताएं आज भी पढ़ी जाती है। अटल विविध मंचों से और यहां तक कि संसद में भी अपनी कविताओं का सस्वर पाठ करते थे। एक बार जब अटल अपने मनाली वाले घर में छुट्टियां मनाने आए तो ख़राब सड़कें देख उन्हें बहुत निराशा हुई। उन्हें मनाली पहुँचने में खासी दिक्क्तों का सामना भी करना पड़ा, साथ ही मनाली में उस समय बिजली और नेटवर्क को लेकर भी बहुत सी समस्याएं थी। उस समय हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह की सरकार थी। तो मनाली के खस्ता हालात को देख अटल ने वीरभद्र पर तंज कस्ते हुए बड़े हलके फुल्के अंदाज़ में एक कविता लिख डाली और इसी कविता के माध्यम से खालिस्तानियों का ज़िक्र भी कर डाला। पढ़िए वो कविता : मनाली मत जइयो मनाली मत जइयो, गोरी राजा के राज में। जइयो तो जइयो, उड़िके मत जइयो, अधर में लटकीहौ, वायुदूत के जहाज़ में। जइयो तो जइयो, सन्देसा न पइयो, टेलिफोन बिगड़े हैं, मिर्धा महाराज में। जइयो तो जइयो, मशाल ले के जइयो, बिजुरी भइ बैरिन अंधेरिया रात में। जइयो तो जइयो, त्रिशूल बांध जइयो, मिलेंगे ख़ालिस्तानी, राजीव के राज में। मनाली तो जइहो। सुरग सुख पइहों। दुख नीको लागे, मोहे राजा के राज में।
बंद कमरों में चर्चा और ज़ीरो कोर्डिनेशन, जिला सोलन कांग्रेस की कार्यशैली की इससे बेहतर व्याख्या नहीं हो सकती। निकाय चुनाव की जंग शुरू हो चुकी है पर कांग्रेस संगठन के हाल देखकर लगता नहीं है की पार्टी की मौजूदा ब्रिगेड बेडा पार लगा पाएगी। जिला संगठन की सक्रियता मीटिंग्स तक ही सिमित दिख रही है। जिला अध्यक्ष से पार्टी की अपेक्षा मैदान में उतर कर लीड करने की होती है। खासतौर से जब पार्टी विपक्ष में है तो अपेक्षा ये ही है की संगठन सड़क पर उतर सरकार की नाकामियां उजागर करे, पर जिला कांग्रेस अब तक ऐसा करने में पूरी तरह विफल रही है। जिला मुख्यालय सोलन की बात करें तो यहाँ कांग्रेस की शहरी इकाई ही कुछ हद तक सक्रीय दिखती है। जिला मुख्यालय होने के बावजूद यहाँ कांग्रेस की जिला इकाई का होना न होना एक ही बात है। जिला कांग्रेस कभी कभार पत्रकार वार्ता कर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने का प्रयास करती है, पर दिलचस्प बात तो ये है की अकसर इस बारे में उनकी शहरी इकाई को भी जानकारी नहीं होती। अब आप तालमेल का अंदाजा खुद लगा सकते हैं। जो मुद्दे सड़क पर उतर कर उठाए जाने चाहिए उन्हें जिला कांग्रेस का बंद कमरे से उठाने का प्रयास महज खानापूर्ति से ज्यादा नहीं है। अमूमन जिला के सभी क्षेत्रों में कांग्रेस का ऐसा ही हाल है। एकाध अपवाद है, पर वहां स्थानीय नेता जिला संगठन के भरोसे नहीं है बल्कि खुद मोर्चा संभाले हुए है। मौजूदा जिला अध्यक्ष की पार्टी कार्यकर्ताओं में कितनी स्वीकार्यता है, इसे लेकर भी सबकी अपनी-अपनी राय है। पर एक बात तय है की यदि कांग्रेस को वापसी करनी है तो संगठन में लगे जंग को अतिशीघ्र हटाना अनिवार्य है। साथ ही संगठन में ऐसे लोगों को लाने की आवश्यकता है जिनकी कार्यशैली में आक्रामकता भी हो और सभी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर फ्रंट फुट से पार्टी को लीड कर सके।
ये चुनाव नहीं आसान। कांग्रेस इस बात से भलीभांति वाकिफ है। जयराम ठाकुर को एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री कहने वाली कांग्रेस पर स्थानीय निकाय चुनाव में खुद को साबित करने का दबाव है ताकि 2022 में जनता उसे गंभीरता से ले। प्रदेश के नव नियुक्त प्रभारी राजीव शुक्ला का भी ये पहला इम्तिहान है। इस इम्तिहान में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है पार्टी के तमाम गुटों को एकसाथ लेकर चलना। कांग्रेस के दिग्गज साथ चले तो मंजिल शायद आसां रहे पर खींचतान ज़ारी रहती है और नतीजे मनमुताबिक नहीं आते तो कांग्रेस का बैकफुट पर आना तय है। इसी बीच बुधवार को कांग्रेस ने अपनी इलेक्शन स्ट्रेटेजी कमेटी का एलान कर दिया है जो राजीव शुक्ला की सरदारी में काम करेगी। इस 14 सदस्यीय कमेटी में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, विप्लव ठाकुर, कर्नल धनीराम शांडिल, सुखविंदर सिंह सुक्खू, आशा कुमारी, सुधीर शर्मा, जीएस बाली, हर्षवर्धन चौहान, रामलाल ठाकुर, राजेंदर राणा, जगत सिंह नेगी और पवन काजल को स्थान मिला है। इसमें मुख्यमंत्री के गृह जिला मंडी के किसी नेता को स्थान नहीं मिला है। सीधे तौर पर कहे तो इलेक्शन स्ट्रेटेजी कमेटी में कौल सिंह ठाकुर को स्थान नहीं मिला है। एक और खासबात इस लिस्ट में है। इन 14 में से तीन नेता ऐसे है जिन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। पर पार्टी के लिए मंडी से चुनाव लड़ने वाले आश्रय शर्मा को इस लिस्ट में स्थान नहीं मिला है। हालाँकि इन दोनों नेताओं को अन्य कमेटियों में शामिल कर संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है, किन्तु मंडी जिला के किसी नेता का इलेक्शन स्ट्रेटेजी कमेटी में न होना फिलवक्त चर्चा का विषय जरूर है। जाहिर है किसी स्थानीय नेता का कमेटी में होना रणनीतिक तौर पर ज्यादा असरदार होता। वैसे एक तर्क ये भी है की जब मंडी से सांसद रह चुके पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह खुद इस कमेटी में शामिल है तो बाकी नेताओं की शायद कोई जरुरत नहीं है। लिस्ट से कौल सिंह ठाकुर की गैरमौजूदगी को कुछ राजनैतिक माहिर राजा गुट की तरफ आलाकमान के झुकाव के तौर पर देख रहे है तो कुछ चिट्ठी बम के साइड इफ़ेक्ट के तौर पर। बहरहाल लकवाग्रस्त संगठन के बावजूद अगर कांग्रेस को निकाय चुनाव में अच्छा करना है तो पार्टी के दिग्गजों को आपसी रंज भुलाकर एक साथ आना होगा।
टिक्कर क्षेत्र से संबंध रखने वाले स्टैटिस्टिकल असिस्टेंट के पद से सेवानिवृत्त तपेन्दर टेगटा पूर्व संसदीय सचिव एवं विधायक रोहित ठाकुर के नेतृत्व पर विश्वास जताया हैं। शराचली क्षेत्र की मांदल पंचायत से सम्बंध रखने वाले अनिल शर्मा ने भाजपा की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ़ भाजपा छोड़कर कांग्रेस पार्टी में परिवार सहित घर वापसी की हैं। तपेंदर टेगटा और अनिल शर्मा पूर्व मुख्य संसदीय सचिव रोहित ठाकुर की उपस्थिति में विधिवत रूप से कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। ब्लॉक कांग्रेस कमेटी जुब्बल-नावर-कोटखाई के अध्यक्ष मोतीलाल डेरटा ने पार्टी कार्यालय जुब्बल में तपेन्दर तेगटा और अनिल शर्मा का कांग्रेस पार्टी में शामिल होने पर स्वागत किया।
#Shimla देखिये पंडित सुखराम की तारीफ में क्या बोले डॉ राम लाल मार्कंडेय ... मार्कंडेय बोले हिमाचल में खाता भी नहीं खोल पाएंगे राजन सुशांत... #FirstVerdict #RamLalMarkande #SamikshaRana #Himachal Rajan Sushant
कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत किसानों को हर वर्ग से समर्थन मिल रहा है। किसानों के आंदोलन के समर्थन में पंजाब और अन्य राज्यों के कई मौजूदा और पूर्व खिलाड़ियों ने अपने अवार्ड लौटाने का निर्णय लिया है। इसी के चलते सोमवार को 30 पूर्व और मौजूदा खिलाड़ी कृषि कानूनों का विरोध में अपना अवार्ड वापस लौटाने राष्ट्रपति भवन की ओर मार्च करने निकले। हालांकि पुलिस ने इन्हें रास्ते में ही रोक लिया। बता दें कृषि कानूनों के विरोध में कुछ दिन पहले ही अवार्ड वापस करने की शुरुआत हुई थी। सबसे पहले पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल ने अपना पद्म विभूषण लौटाया था, इसके बाद कई लेखकों ने साहित्य अकादमी अवार्ड लौटाए थे। पहलवान करतार सिंह के मुताबिक, अभी 30 खिलाड़ी मार्च कर राष्ट्रपति को अपना सम्मान लौटाने जा रहे हैं, लेकिन पंजाब और अन्य इलाकों से कुछ और खिलाड़ी भी ऐसा करना चाहते हैं। बीते दिन बॉक्सर विजेंद्र सिंह भी किसानों का समर्थन करने सिंधु बॉर्डर पहुंचे थे। यहां विजेंद्र सिंह ने कहा था कि अगर केंद्र सरकार ये कानून वापस नहीं लेती है तो वो अपना खेल रत्न वापस लौटा देंगे। विजेंद्र सिंह से पहले रेसलर द ग्रेट खली ने भी किसानों का समर्थन किया था और दिल्ली में प्रदर्शन करने की बात कही थी।
Before the Cabinet expansion in Rajasthan, political uproar was again highlighted. Congress leader and state Chief Minister Ashok Gehlot has alleged that the game of toppling the government is about to begin again. There are also talks of toppling the government in Maharashtra. Gehlot said that Congress leader Ajay Maken has been a witness to the false attempt made by BJP for toppling the government. He said that Ajay Maken, the Congress in-charge in Rajasthan, was also involved in this program. During this incident, Maken stayed with our MLAs in the hotel for 34 days. Ashok Gehlot accused the home minister of the country, Amit Shah that he was sitting with our MLAs, feeding them tea and snacks and was telling them that five have dropped the government, the sixth is about to fall. Dharmendra Pradhan was talking to the judges to raise their morale. said that Amit Shah had met our MLAs for one hour and after declining five governments, Shah had said that the sixth was also dropped. Gehlot said that Congress leaders Ajay Maken, Randeep Surjewala, Avinash Pandey sat here during this development. He decided to sack the leaders, then the government survived. He said that the people of the entire Rajasthan wanted that the government should not fall.
केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन 10वें दिन भी जारी है। आज किसानों और सरकार के बीच 5वें दौर की बातचीत होनी है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया की ये बैठक दोपहर 2 बजे होगी। उन्होंने कहा की मुझे बहुत उम्मीद है कि किसान सकारात्मक सोचेंगे और अपना आंदोलन समाप्त करेंगे। वहीं, इस मुद्दे को लेकर गृहमंत्री अमित शाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने पहुंचे। आज किसान संगठनों से होने वाली बैठक से पहले ये अहम बैठक हो रही है। इस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल भी शामिल होने पहुंचे हैं। 8 दिसंबर को भारत बंद का ऐलान इस बीच, किसान संगठनों ने प्रधानमंत्री का पुतला फूंकने की घोषणा की है। साथ ही 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान भी किया है। किसान चिल्ला बॉर्डर (दिल्ली-नोएडा लिंक रोड) पर प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि अगर सरकार के साथ बातचीत में आज कोई नतीजा नहीं निकला तो फिर वह संसद का घेराव करेंगे।
तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार रजनीकांत ने राजनितिक पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है। सुपरस्टार ने 2021 में विधानसभा चुनावों में उतरने की भी घोषणा की है। रजनीकांत ने ट्वीट कर अपने इस फैसले के बारे में जानकारी दी है। उन्होंने कहा की पार्टी के बारे में औपचारिक घोषणा 31 दिसंबर को की जाएगी। रजनीकांत की यह घोषणा करीब तीन साल बाद आई है, जब उन्होंने 31 दिसंबर 2017 को राजनीति में प्रवेश का ऐलान किया था। उन्होंने कहा कि हम कड़ी महनत करेंगे और जीतेंगे। रजनीकांत ने तीन साल पहले यह भी एलान किया था कि अगर सत्ता में आने के तीन साल के भीतर उन्होंने अपने वादे पूरे नहीं किए तो वह राजनीतिक पार्टी छोड़ देंगे। ऐसा नहीं है कि दक्षिण भारतीय फिल्मों के महानायक रजनीकांत पहली बार राजनीति में दिख रहे है। पिछले कई महीनो से रजनीकांत राजनीती में सक्रिय हैं, हालांकि यह पहली बार है कि उन्होंने सियासी पारी को लेकर अपने पत्ते खोले है।
कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का विरोध लगातार जारी है। आज किसानों के विरोध का आठवां दिन है। किसानों व सरकार के बीच लगातार बातचीत का सिलसिला भी जारी है। इसी बीच अब पंजाब के पूर्व सीएम और अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल किसानों के समर्थन में उतरे हैं। बादल ने उन्हें 2015 में मिला पद्म विभूषण सम्मान लौटा दिया है। बादल की पार्टी शिरोमणि अकाली दल 22 साल से NDA के साथ थी, लेकिन कृषि कानों के विरोध में सितंबर में संगठन से अलग हो गई थी। इससे पहले हरसिमरत कौर ने भी मोदी कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया था। उधर, विरोध में शामिल 40 किसान नेताओं की सरकार के साथ विज्ञानं भवन में बातचीत हो रही है। सरकार की तरफ से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर बैठक की अध्यक्षता कर रहे हैं।
शिमला। हिमाचल प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र को लेकर आज जयराम कैबिनेट की महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है। बैठक दोपहर 2 बजे प्रदेश सचिवालय में होगी। कैबिनेट की बैठक में फ़ैसला लिया जाएगा कि सत्र शिमला में बुलाया जाए या धर्मशाला में या फ़िर सत्र को टाल दिया जाए। प्रदेश में कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण शीतकालीन सत्र को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सर्वदलीय बैठक में सत्र को लेकर कोई नतीजा नहीं निकल पाया था। विपक्ष के नेता सत्र करवाने के पक्ष में थे तो वहीं विपक्ष के कई विधायक सत्र को टालने की मांग भी कर रहे हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सत्र को शिमला में ही करवाने की बात कही है। बता दे कि हिमाचल में कोरोना के बढ़ते मामले लगातार चिंता का कारण बने हुए हैं। ऐसे में सत्र को धर्मशाला में करवाने के बजाए शिमला में भी करवाया जा सकता है ताकि कोरोना काल में अतिरिक्त प्रबंधन न करना पड़े।
हिन्दुस्तान के इतिहास में पहले शायद ही किसी स्थानीय निकाय चुनाव की इतनी चर्चा हुई हो, जितना ख़ास ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव बन चुका है। ये चुनाव ख़ास इसलिए हैं क्योंकि विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा ने इसमें सारी ताकत झोंक दी है। पहले शुक्रवार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हैदराबाद में रोड शो करते है, फिर शनिवार को फायर ब्रांड नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रचार के लिए पहुंचते है और हैदराबाद बनाम भाग्यनगर की जंग शुरू करते है। वहीं रविवार को खुद गृह मंत्री अमित शाह प्रचार में उतरे और विवादों में रहे भाग्य लक्ष्मी मंदिर में पूजा अर्चना कर एक और नया संदेश देने की कोशिश की। स्पष्ट है भाजपा की नजर ध्रुवीकरण के रथ पर सवार होकर हैदराबाद के रास्ते पूरा दक्षिण भारत जीतने पर टिकी है। बीजेपी और एआईएमआईएम आमने सामने हैदराबाद में सीधा मुकाबला दिख रहा है बीजेपी ओवैसी की AIMIM में। ओवैसी वर्तमान में सबसे बड़े मुस्लिम नेताओं में है तो बीजेपी खुद को हिन्दुओं की सबसे बड़ी हमदर्द बताने से नहीं चूकती। ऐसे में ध्रुवीकरण तो होना ही है। पहली बार है जब किसी ने हैदराबाद में ओवैसी को खुलकर इस तरह चुनौती दी हो। देश के अन्य क्षेत्रों में भी ओवैसी की पार्टी मजबूत हो रही है। हाल ही में हुए बिहार चुनाव में भी उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है । यही कारण है कि भाजपा ने सीधे उनके घर में घुसकर उन्हें घेरने की रणनीति बनाई है। हालांकि यदि भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो उसकी खूब किरकिरी होना तय है पर यदि भाजपा ठीक ठाक भी कर ले तो पूरे दक्षिण भारत की राजनीतिक तस्वीर बदल सकती है। वैसे इस चुनाव में यदि किसी का नुकसान होना तय है तो वो है केसीआर और बात करें कांग्रेस कि तो होना न होना ज्यादा मायने नहीं रखता। आखिर क्यों इतना महत्वपूर्ण है ये चुनाव ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम देश के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है l यह नगर निगम 4 जिलों में है, जिनमें हैदराबाद, रंगारेड्डी, मेडचल-मलकजगिरी और संगारेड्डी आते हैं. इस पूरे इलाके में 24 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं और तेलंगाना के 5 लोकससभा सीटें आती हैं l यही वजह है कि ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में केसीआर से लेकर बीजेपी, कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी तक ने ताकत झोंक दी है. इसके अलावा इस नगर निगम का सालाना बजट लगभग साढ़े पांच हजार करोड़ का है l तेलंगाना की जीडीपी का बड़ा हिस्सा यहीं से आता है l यहां की आबादी लगभग 82 लाख लोगों की है l तो ऐसे में बीजेपी के ये तेवर लाज़मी है l दरअसल ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव को 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है l यहीं कारण है कि बीजेपी ने केसीआर और असदुद्दीन ओवैसी के मजबूत दुर्ग में अपने दिग्गज नेताओं की फौज उतार दी है l दक्षिण में अपनी पकड़ तेज़ करने का मौका इससे बेहतर कोई और नहीं हो सकताऔर बीजेपी ये बात बखूबी समझती है l पिछले चुनाव में ये थी स्थिति ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम कि 150 पिछले चुनाव में 99 सीटें तेलंगाना राष्ट्र समिति को मिली थी l असदुद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी l बीजेपी को महज चार सीटों से संतोष करना पड़ा था मगर इस बार के प्रचार ने गेम को पूरी तरह पलट दिया है l बीजेपी ओवैसी के गड में अपनी पैठ बनाने में कामयाब होती नज़र आ रही है l
बिहार विधानसभा के अंदर राज्यपाल फागू चौहान के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर आग बबूला हो गए और उन्हें खूब लताड़ लगायी l नीतीश कुमार का ये रवैया आज से पहले शायद ही किसी ने देखा हो l तेजस्वी यादव पर हमला करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि वो उनके भाई जैसे दोस्त (लालू प्रसाद) का बेटा है इसी वजह से वह उनको सुनते रहते हैं l दरअसल, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सदन में बोलते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधा और उन पर आरोप लगाया कि वह 1991 में हुई एक हत्या के मामले में शामिल हैं. साथ ही तेजस्वी ने नीतीश के ऊपर कंटेंट चोरी के मामले में उन पर लगे 25 हजार रुपये जुर्माने का भी जिक्र करते हुए हमला बोला l जिसके तुरंत बाद संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी ने नीतीश कुमार का बचाव करते हुए कहा कि सीएम के ऊपर हत्या का जो मामला चल रहा था उसे सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त कर दिया है और इसी कारण से इस मुद्दे को सदन में उठाना ठीक नहीं है l इसपर नितीश कुमार आग बबूला हो गए और बोले की, “जो बात ये बोल रहा है उसकी जांच होनी चाहिए और इसके खिलाफ कार्रवाई होगी l ये झूठ बोल रहा है l मेरे भाई समान दोस्त का बेटा है, इसीलिए मैं सुनता रहता हूं l इसके पिता को विधायक दल का नेता किसने बनाया था क्या उसको पता है? इसको उपमुख्यमंत्री किसने बनाया था इसको पता है ? इसके ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप लगा तो हमने उससे कहा कि जवाब दो, मगर जब जवाब नहीं दिया तो हम अलग हो गए l हम कुछ नहीं बोलते हैं l तेजस्वी पर चार्जशीट है l 2017 में क्यों नहीं स्थिति स्पष्ट किया था ?” नीतीश कुमार आग बबूला होकर बोले इसके बाद सदन के अंदर जमकर हंगामा मचा और स्पीकर ने विधानसभा की कार्यवाही को स्थगित कर दिया l
जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनाव को धार देने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर दो दिवसीय दौरे पर हैं। उनका दौर आज 11 बजे से शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री पहले जम्मू कश्मीर के कठुआ जिले के मछेड़ी में जनसभा को सम्भोदित करेंगे। फिर वह बिलावर के लिए रवाना होन्हे। वहां वह 1:45 बजे जनसभा को संबोधित करेंगे। दोपहर का भोजन भी मुख्यमंत्री यहीं पर करेंगे। इसके बाद मुख्यमंत्री मंडली के लिए रवाना होंगे। वह वहां 4:45 बजे के बाद जनसभा को संबोधित करेंगे। उसके बाद वह कठुआ जिला के बिलावर में रात्रि विश्राम करेंगे। 26 नवंबर को मुख्यमंत्री मंडली में जनसभा को संबोधित करेंगे। फिर वह करीब 1:30 बजे मंडली से महानपुर के लिए रवाना होंगे, जहां वह दोपहर 2:00 बजे जनसभा को संबोधित करेंगे। जनसभा संबोधित करने के बाद वह महानपुर से धानकोट रणजीत सागर डैम पहुंचेंगे। रणजीत सागर डैम में वह हेलीकॉप्टर से 5:15 के करीब शिमला के लिए वापस लौटेंगे।
बिहार विधानसभा में स्पीकर पद को लेकर सियासी हलचल जारी है। आज होने वाली वोटिंग से पहले राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का एक ऑडियो वायरल हो रहा है। यह ऑडियो खुद भाजपा ने जारी किया है। इस ऑडियो में लालू, भाजपा विधायक ललन पासवान से बात कर रहे हैं। लालू कहते हैं कि विधानसभा में स्पीकर के चुनाव की वोटिंग से एब्सेंट हो जाओ। यह बात वह 3 बार कहते हैं। साथ ही वह कहते हैं कि तुम्हें आगे बढ़ाएंगे। पूरी बातचीत… सबसे पहले लालू का सहायक : हैलो, प्रणाम सर, विधायक जी बोल रहे हैं… नहीं, उनका पीए बोल रहा हूं लालू का सहायक : दीजिए तो, साहब बात करेंगे माननीय लालू प्रसाद यादव… विधायक का पीए : हैलो, कहां से सर… लालू का सहायक : रांची से..साहब बात करेंगे.. लालू : हां, पासवान जी, बधाई.. पासवान : प्रणाम, चरण स्पर्श… लालू : हां, सुनो, हम तुमको आगे भी बढ़ाएंगे वहां…कल (25 नवंबर) जो स्पीकर का चुनाव है…हम तुमको मंत्री बनाएंगे…कल इनको (जदयू-भाजपा सरकार) गिरा देंगे… पासवान : हम तो पार्टी में हैं न सर… लालू : पार्टी में हो तो एबसेंट हो जाओ…कोरोना हो गया था, स्पीकर (यहां बात साफ सुनाई नहीं दी)…फिर हम लोग देख लेंगे न.. पासवान : पार्टी में हैं सर, थोड़ा सा…(हिचकिचाते हुए) ठीक है सर… लालू : एबसेंट हो जाओ तुम पासवान जी… पासवान : आपके संज्ञान में हो गए हैं हम सर…बात करेंगे..ठीक है.. लालू : ठीक है..एबसेंट हो जाओ स्पीकर पद के लिए वोटिंग को लेकर बिहार की राजनीति में 24 घंटे पहले खासी हलचल रही। महागठबंधन अपने उम्मीदवार के लिए अपने विधायकों को एकजुट रखकर और सत्ता पक्ष के विधायकों से अंतरात्मा की आवाज पर वोटिंग करने की अपील कर चुका है। इस बीच पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने एक ट्वीट कर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। उन्होंने आरोप लगाया है कि रांची में सजा काट रहे लालू यादव NDA विधायकों को फोन करके लालच दे रहे हैं। इस पर सत्ता और विपक्ष, दोनों तरफ से बयानबाजी भी हो रही है। सुशील मोदी ने अपने ट्वीट में एक नंबर जारी किया है। उन्होंने कहा की जब इस नंबर पर फ़ोन घुमाए सीधा लालू प्रसाद रिसीव करते हैं। उन्होंने आरोप लगाया है की लालू इस नंबर से विधायकों को भड़काने का काम कर रहे हैं।
30 अक्टूबर 1984, हत्या के एक दिन पहले इंदिरा गांधी ओडिशा के दौरे पर थीं। वहां उन्होंने तत्कालीन ओडिशा सचिवालय के सामने परेड ग्राउंड में अपना आखिरी भाषण दिया था। उस भाषण में उन्होंने कुछ ऐसा कहा था जिसे आज भी लोग उनकी आसन्न मृत्यु का पूर्वानुमान मानते हैं। उन्होंने कहा था : "मैं आज जीवित हूं, शायद में कल न रहूं। मैं तब तक देश की सेवा करती रहूंगी जब तक मेरी अंतिम सांस है और जब मैं मर जाउंगी, तो मैं कह सकती हूं कि मेरे खून की हर बूंद भारत को सबल बनाएगी और इसे मजबूत करेगी। यहां तक कि अगर मैं राष्ट्र की सेवा में मर गई, तो मुझे इस पर गर्व होगा। मेरा खून, इस राष्ट्र की वृद्धि और इसे मजबूत और गतिशील बनाने में योगदान देगा।" शायद उस समय कोई नहीं जनता था ये इंदिरा गाँधी का आखिरी भाषण होगा या शायद इंदिरा को भी इसका पूर्णभास हो गया था। ये कहा नहीं जा सकता। 31 अक्टूबर 1984, की सुबह भी इंदिरा के लिए अन्य दिनों की तरह थी। वह रोज़ की तरह इस दिन भी जल्दी उठीं। आज का दिन उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण था। आज उनका एक विदेशी टीवी चैनल के साथ इंटरव्यू था इसलिए वह आज खासतौर से तैयार हो रहीं थी। पर वो जानती नहीं थी आज का ये दिन उनकी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होगा। उस सुबह एक और आदमी था जो खास तौर से तैयार हो रहा था। पर वह जनता था शायद यह दिन उसकी ज़िंदगी का आखिरी दिन होगा। उसका नाम था बेअंत सिंह। वह इंदिरा के अंगरक्षकों में से एक था। 1 सफदरजंग रोड के अंदर इंदिरा जल्दी में थी और बाहर उनके कातिल भी उनके इंतज़ार में बैठे थे। इंदिरा के दूसरे कातिल सतवंत सिंह ने उस रोज़ बीमारी का बहाना बना कर अपनी ड्यूटी बेअंत सिंह के साथ करवा ली थी। इंदिरा के दोनों कातिल अब एक साथ एक ही जगह घात लगाए बैठे थे। समय : 9 बजकर 15 मिनट, इंदिरा अपने इंटरव्यू के स्थान के लिए निकल पड़ी या यूँ कहें की उनके आखिरी रास्ते पर। तेज़ क़दमों से इंदिरा उस गेट के पास पहुँच गई जो 1 सफदरजंग और 1 अकबर मार्ग को जोड़ता है। ठीक इसी जगह उनके दोनों कातिल भी खड़े थे। बेअंत सिंह के हाथ में रिवाल्वर थी तो सतवंत सिंह के हाथ में एक मशीन गन। जब इंदिरा गेट के करीब पहुंची, उन्होंने बेअंत को देखा और बेअंत ने उन्हें नमस्ते कहा। इसके बाद बेअंत ने अचानक अपनी सरकारी रिवाल्वर निकली और इंदिरा पर गोली दाग दी। उस समय इंदिरा केवल इतना ही कह पाईं "ये क्या कर रहे हो?", लेकिन तब तक बेअंत ने कई और गोलियां इंदिरा पर चला दी। बेअंत को देख सतवंत सिंह ने भी मशीन गन से इंदिरा पर गोलियां दागना शुरू कर दिया। इस घटना के तत्काल बाद, उपलब्ध सूचना के अनुसार, बेअंत सिंह ने उनपर तीन बार गोली चलाई और सतवंत सिंह ने उन पर 22 गोली दागी। इसके बाद उन्होंने अपने हथियार गिरा दिए और आत्मसमर्पण कर दिया। बाद में उन्हें अन्य गार्डों द्वारा एक बंद कमरे में ले जाया गया, जहां बेअंत सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। आस पास मौजूद लोगों ने शोरगुल मचाया जल्द एम्बुलेंस को बुलाने में लग गए, लेकिन उस समय तक काफी देर हो गई थी। इंदिरा लहूलुहान होकर ज़मीन पर गिर गईं। समय था 9 बजकर 17 मिनट। इन चंद पलों में देश की तक़दीर बदल गई। इंदिरा को उनके सरकारी कार में अस्पताल ले जाया गया पर वहां पहुंचाते पहुँचाते उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में लाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उनका ऑपरेशन किया। उस वक्त के सरकारी हिसाब 29 प्रवेश और निकास घावों को दर्शाती है, तथा कुछ बयाने 31 बुलेटों के उनके शरीर से निकाला जाना बताती है। जानकारी के मुताबिक 23 गोलियां उनके शरीर से होकर गुज़री थीं जबकि 7 गोलियां उनके शरीर के अंदर ही थीं। उनका अंतिम संस्कार 3 नवंबर को राज घाट के समीप हुआ और यह जगह शक्ति स्थल के रूप में जानी गई। उनके अंतिम संस्कार को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्टेशनों पर लाइव प्रसारित किया गया। उनके मौत के बाद, दिल्ली में बड़े पैमाने पर सिख विरोधी दंगे हुए और साथ भारत के कई अन्य शहरों, जिनमे कानपुर, आसनसोल और इंदौर में सांप्रदायिक अशांति घिर गई और हजारों सिखों के मौत दर्ज किए गए। एक लाइव टीवी शो में राजीव गांधी ने इस नरसंहार के बारे में कहा था, "जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तो पृथ्वी हिलती है।"
आज हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक दोपहर तीन बजे आयोजित होगी। इस बैठक में कई अहम मुद्दों पर फैसले लिए जाएंगे। मुख्यमंत्री स्कूलों को लेकर फैसला सुना सकते हैं। बता दें प्रदेश में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। प्रदेश के कई स्कूलों में शिक्षक और विद्यार्थी संक्रमित पाए गए जिस के बाद अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतरा रहे हैं। ऐसे में दिवाली से दो-तीन पहले और दो-तीन बाद स्कूलों को बंद रखने को लेकर मंत्रिमंडल के समक्ष विकल्प रखा जा सकता है। हालाँकि स्कूल बंद होंगे या नहीं इसका अंतिम फैसला मंत्रिमंडल की बैठक में ही होगा। इस के साथ नारकंडा से हाटु पीक के लिए रोपवे को लेकर भी फैसला हो सकता है। जिला शिमला के नारकंडा का हाटु पीक क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से विकसित होगा। नारकंडा से हाटु पीक के लिए सरकार रोप-वे बनाएगी। रोप-वे एंड रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम डेवलपमेंट कारपोरेशन ने इसका प्रस्ताव तैयार कर लिया है। इस बैठक में शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह और परिवहन मंत्री बिक्रम सिंह ठाकुर बैठक में शामिल नहीं होंगे। आखिरी ऑफ लाइन बैठक आज की यह बैठक मंत्रिमंडल की अंतिम ऑफलाइन बैठक होगी। इसके बाद आगामी सभी बैठकें ई-कैबिनेट सॉफ्टवेयर की मदद से आयोजित की जाएंगी। इसमें बैठक का एजेंडा ऑनलाइन ही मंत्रियों के पास पहुंचेगा। बुधवार को सचिव स्तर के अधिकारियों को इस सॉफ्टवेयर की आखिरी ट्रेनिंग दी जाएगी।
हिमाचल की राजनीति में जल्द ही कुछ नए फेर बदल होने की सुगबुगाहट तेज़ हो रही है। ज्वालामुखी प्रकरण के बाद संगठन में उठे बवाल के बीच मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को हाईकमान ने दिल्ली तलब किया है। मुख्यमंत्री शनिवार को दिल्ली रवाना होंगे। यहाँ केंद्रीय नेतृत्व के नेताओं के साथ मुख्यमंत्री बैठक करेंगे। आशंका जताई जा रही है कि इस बैठक के बाद मंत्रिमंडल में कई मंत्रियों के विभाग बदल सकते हैं, तो साथ ही कइयों की कुर्सी भी खतरे में पड़ सकती है। बता दें कि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप ने हाईकमान से चर्चा के बाद ज्वालामुखी मंडल को भंग किया था, जिसके बाद धवाला मुख्यमंत्री से मिले थे। वहीं हिमाचल मंत्रिमंडल के कुछ मंत्रियों की परफारमेंस से हाईकमान अभी भी संतुष्ट नहीं कर पाई है। इन्ही चुनिंदा मंत्रियों के विभाग बदलने की चर्चा की जा रही है। हाल ही में भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे एक मंत्री कि कुर्सी पर भी खतरा मंडरा सकता है। मुख्यमंत्री का दिल्ली दौरा तय होते ही भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप और तीन महासचिव त्रिलोक कपूर, त्रिलोक जम्वाल और राकेश जम्वाल उनसे मिलने उनके आवास पर ओकओवर पहुंचे। इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों पर चर्चा की।
अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे से सटे शाही बाग में इतिहास के कुछ धूल खाते पन्ने आज भी अपना अस्तित्व बनाए रखने का संघर्ष लड़ रहे हैं। जहाँ आज की आधुनिक दुनिया में लोग अपना इतिहास और मूल्यों को भूल गए हैं वहीं कुछ ऐसे समारक हमारे इतिहास को संजोए बैठे हैं। मोती शाही महल 1618-1622 के बीच मुग़ल शासक शाहजहाँ के द्वारा बनवाया गया था। यह अब सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय स्मारक की मेजबानी करता है। हरे-भरे बाग़ से घिरा शाही बाग, वल्लभभाई पटेल को समर्पित एक संग्रहालय और प्रदर्शनी केंद्र है। पटेल का जन्म खेड़ा जिले के एक छोटे से शहर नडियाद में हुआ था। वह एक किसान परिवार से थे। अपने शुरुआती वर्षों में, पटेल को कई लोगों ने एक आम आदमी की नौकरी के लिए किस्मत वाला माना था। हालाँकि, पटेल ने उन्हें गलत साबित कर दिया। उन्होंने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह अक्सर उधार की पुस्तकों से पढ़ा करते थे। पटेल ने बार परीक्षा पास करने के बाद गुजरात के गोधरा, बोरसद और आनंद में कानून का अभ्यास किया। उन्होंने एक उग्र और कुशल वकील होने की प्रतिष्ठा अर्जित की। पटेल हमेशा से इंग्लैंड जा कर कानून का अध्ययन करने का सपना रखते थे। अपनी मेहनत से बचाए गए पैसों से उन्होंने इंग्लैंड जाने के लिए एक पास और टिकट प्राप्त करने में भी कामयाबी हासिल की। हालांकि वह टिकट वि.जे पटेल को सम्बोधित किया गया था। विट्ठलभाई, वल्लभभाई के बड़े भाई भी, अपना नाम भी उनकी तरह वि.जे लिखा करते थे। सरदार पटेल को जब पता चला की उनके भाई भी इंग्लैंड जा कर पढ़ाई करने का सपना संजोए हुए हैं, उन्होंने छोटे भाई का कर्तव्य निभाते हुए, अपनी जगह बड़े भाई को इंग्लैंड जानें दिया। 1909, उनकी पत्नी झावेरबा का निधन हो गया जब वह केवल 33 वर्ष की थीं, लेकिन उन्होंने उनसे गहरा प्यार किया और इसलिए कभी पुनर्विवाह नहीं किया। उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश अपनी परिवार की मदद से की और उन्हें बॉम्बे के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में भेज दिया। 1911, पत्नी के निधन के दो साल बाद, करीब 36 साल की उम्र में पटेल ने अपना इंग्लैंड जा कर पढ़ने का सपना पूरा किया। उन्होंने लंदन में मिडल टेंपल इन में दाखिला लिया और 36 महीने का कोर्स 30 महीने में पूरा किया। भारत लौटकर, पटेल अहमदाबाद में बस गए और शहर के सबसे सफल बैरिस्टर बन गए। स्वतंत्रता संग्राम में योगदान स्वतंत्रता आंदोलन के शुरुआती चरणों में, पटेल न तो सक्रिय राजनीति के लिए उत्सुक थे और न ही महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर। हालांकि, गोधरा (1917) में गांधी के साथ बैठक ने पटेल के जीवन को मूल रूप से बदल दिया। गांधी के आह्वान पर, पटेल ने अपनी नौकरी छोड़ दी और प्लेग और अकाल (1918) के समय खेड़ा में करों में छूट के लिए संघर्ष करने के लिए आंदोलन में शामिल हो गए। पटेल ने 1920 में गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हुए और 3 लाख सदस्यों की भर्ती के लिए पश्चिम भारत की यात्रा की। उन्होंने पार्टी फंड के लिए 15 लाख रुपये से अधिक एकत्र किए। 1923, जब महात्मा गांधी को कैद किया गया था, तो यह पटेल ही थे जिन्होंने नागपुर में ब्रिटिश कानून के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व किया था। यह 1928 का बारदोली सत्याग्रह था जिसने वल्लभभाई पटेल को 'सरदार’ की उपाधि दी और उन्हें पूरे देश में लोकप्रिय बना दिया। उनका प्रभाव इतना गहरा था कि पंडित मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस की अध्यक्षता के लिए वल्लभभाई का नाम गांधी को सुझाया। 1930 में, अंग्रेजों ने नमक सत्याग्रह के दौरान सरदार पटेल को गिरफ्तार किया और उन्हें बिना गवाहों के मुकदमे में डाल दिया। फिर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, अंग्रेजों ने पटेल को गिरफ्तार किया। वह 1942 से 1945 तक अहमदनगर के किले में पूरी कांग्रेस वर्किंग कमेटी के साथ कैद रहे। जब 1945 में पटेल को रिहा किया गया तो उन्हें एहसास हुआ कि ब्रिटिश भारत को सत्ता हस्तांतरित करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर रहे थे। 16 मई 1946, ब्रिटिश मिशन ने सत्ता हस्तांतरण के लिए दो योजनाओं का प्रस्ताव रखा, तो कांग्रेस के भीतर दोनों का ही काफी विरोध हुआ। इस योजना ने भारत की धार्मिक सीमाओं पर विभाजन का प्रस्ताव रखा। वल्लभभाई पटेल भारत के विभाजन को स्वीकार करने वाले पहले कांग्रेस नेताओं में से एक थे। जब लीग ने 16 मई की योजना को मंजूरी दे दी, तो वायसराय लॉर्ड वेवेल ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। अब प्रश्न ये था की आखिर भारत का नेतृत्व किसके हाथ में होगा। सबकी नज़रे कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर थी। ज़ाहिर था की जो अध्यक्ष पद पर बैठेगा वो ही देश का अगला प्रधानमंत्री बनेगा। हालांकि गांधी ने पहले ही अपनी पसंद जाहिर कर दी थी, इसके बावजूद 15 में से 12 प्रदेश कांग्रेस समितियों ने पटेल को पार्टी अध्यक्ष मनोनीत कर दिया। बाकी के भी तीन राज्यों ने भी कोई एक नाम भेजने की बजाए बहुमत का सम्मान किए जाने का संदेश भेजा। इसके बाद नेहरू के पक्ष में अपना नाम वापस लेने के लिए पटेल को राजी करने की कवायद शुरू हो गई। जब गांधी को बताया गया की नेहरू नंबर दो नहीं बनना चाहते, तो उन्होंने पटेल को अपना नाम वापस लेने का दबाव डाला। कहा जाता है की गांधी को नेहरू ने इस बात के लिए मजबूर किया था। साथ उन्होंने गांधी पर दबाव डालने के लिए कांग्रेस को तोड़ देने की भी धमकी दी थी। गांधी को यह भी आशंका थी की इस आपसी झगडे का फायदा उठाकर अंग्रेज़ भारत को आज़ाद करने से मना न कर दे। हालांकि पटेल जानते थे की गांधी इन आशंकाओं की आढ़ में नेहरू को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, पर उनके अंदर का देशभक्त नहीं चाहता था की वह देश की आज़ादी में वह रोहड़ा बने और उन्होंने गांधी की बात मान ली। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नेहरू को ब्रिटिश वाइसरॉय ने अंतरिम सरकार के गठन के लिए आमंत्रित किया। इस प्रकार यदि घटनाक्रम सामान्य रहता तो सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते। सरदार पटेल का निधन 15 दिसम्बर 1950 को मुम्बई में हुआ था। सरदार पटेल को उनकी मृत्यु के 41 साल बाद 1991 में मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया जो उन्हें बहुत पहले मिलना चाहिये था। वर्ष 2014 में केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयन्ती (31 अक्टूबर) को देश भर में राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाना शुरू कर उनको सम्मानित किया है।
शिमला। मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर की अध्यक्षता में आज राज्य मंत्रिमंडल की बैठक राज्य सचिवालय में हुई। जिसमें मंडी, सोलन और पालमपुर को नगर निगमों में अपग्रेड करने का निर्णय लिया गया। इसमें छह नई नगर पंचायतों को बनाने का भी निर्णय लिया जिसमें सोलन जिले के कंडाघाट, ऊना जिले के अंब, कुल्लू जिले के आनी और निरमंड,शिमला जिले के चिरगांव और नेरवा शामिल है। इसने इन अर्बन लोकल बॉडीज (ULBs) के री-ऑर्गनाइजेशन के लिए भी अपनी मंजूरी दी है। इसमें जिला मंडी में नेर चौक और करसोग और कांगड़ा जिले में नगर पंचायत ज्वाली भी शामिल हैं। मंत्रिमंडल ने इन शहरी स्थानीय निकायों के नए शामिल क्षेत्रों में भूमि और भवनों को तीन साल की अवधि के लिए सामान्य कर के भुगतान से छूट देने और वजीब-उल-उरज़ में प्रदान किए गए प्रथा गत अधिकारों को बनाए रखने का निर्णय भी लिया है। इसमें यह भी निर्णय लिया गया है कि राज्य में ULB (नवगठित नगर पंचायतों सहित) और मंडी, सोलन और पालमपुर के नए बनाए गए नगर निगमों का चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग के परामर्श के बाद जनवरी, 2021 में किया जाएगा। नगर निगम धर्मशाला के चुनाव भी जनवरी 2021 में सभी यूएलबी के साथ किए जाएंगे, दोहराए जाने वाले चुनाव और संबंधित व्यय से बचने के लिए। 2022 में शिमला नगर निगम के लिए चुनाव का आयोजन किया जाएगा। मंत्रिमंडल ने इस साल 8 नवंबर से जनमंच कार्यक्रम को बहाल करने का फैसला किया गया, ताकि उनके घरों के पास जनता की शिकायतों का त्वरित निवारण हो सके। इसी के साथ मंत्रिमंडल ने 2 नवंबर, 2020 से राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में 9 वीं से 12 वीं कक्षा तक नियमित कक्षाएं आयोजित करने का निर्णय लिया गया। इसके अलावा राज्य के कॉलेज गृह मंत्रालय, भारत सरकार के एसओपी / दिशानिर्देशों का पालन करके कक्षाएं फिर से शुरू कर सकेंगे। मंत्रिमंडल ने कांस्टेबलों के 1334 रिक्त पदों को भरने के लिए अपनी मंजूरी दी है। जिसमें 976 पुरुष और 267 महिलाएं शामिल हैं और सीधी भर्ती के माध्यम से 91 ड्राइवर शामिल हैं। मंत्रिमंडल ने 1 अप्रैल, 2020 से शिक्षा विभाग में आउटसोर्स आधार पर लगे आईटी शिक्षकों के मानदेय को 10 प्रतिशत बढ़ाने का निर्णय लिया। इससे 1345 आईटी शिक्षकों को लाभ होगा। इसमें शैक्षणिक सत्र 2020-21 के लिए प्राथमिक और उच्च शिक्षा विभागों में विभिन्न श्रेणियों के पहले से ही कार्यरत एसएमसी शिक्षकों की सेवाओं में विस्तार प्रदान करने के लिए अपनी मंजूरी दे दी है साथ ही अंतिम सत्र के परिणाम के लिए उनके शैक्षणिक सत्र 2020-21 के लिए उन्हें पारिश्रमिक भी वितरित किया जा सकता है। कैबिनेट ने अग्रणी फायरमैन के 32 पदों को भरने के लिए अपनी सहमति दी, कांगड़ा जिले के संसारपुर टेरेस में किन्नौर जिले के संसारपुर टेरेस और कुल्लू जिले के पतलीकुहल में ड्राइवर के 12 पद भरे। इसमें नियमित आधार पर राज्य के 22 अधीनस्थ न्यायालयों में प्रतिलिपि के 22 पदों को बनाने और भरने का निर्णय लिया। मंत्रिमंडल ने अपनी सुचारू कार्यप्रणाली के लिए राज्य खाद्य आयोग में विभिन्न श्रेणियों के 9 पदों को भरने के लिए अपनी अनुमति दी। मंत्रिमंडल में कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए यूजी दिशानिर्देशों के आधार पर शैक्षणिक सत्र 2019-20 के लिए प्रथम और द्वितीय वर्ष के यूजी पाठ्यक्रमों में नामांकित छात्रों को प्रमोट करने के लिए अपनी मंजूरी दे दी है। कांगड़ा जिले के सरकारी कॉलेज टाकीपुर का नाम बदलकर अटल बिहारी वाजपेयी गवर्नमेंट कॉलेज, टाकीपुर कर दिया। कैबिनेट ने कांगड़ा जिले में हेल्थ सब सेंटर टोडा को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनाने और विभिन्न श्रेणियों के तीन पदों को भरने के लिए अपनी मंजूरी दी। इसने इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज, शिमला में सुपर स्पेशियलिटी सर्जिकल ऑन्कोलॉजी सेल में सहायक प्रोफेसर के एक पद को बनाने और भरने के लिए अपनी सहमति भी दी। मंत्रिमंडल ने औद्योगिक क्षेत्र कालाअंब में कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना के लिए मेसर्स कालाअंब इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंपनी को 19-13 बीघा जमीन विशेष प्रयोजन वाहन के रूप में 95 रुपये प्रति वर्ग मीटर के पट्टे पर प्रति वर्ष प्रदान करने का निर्णय लिया। इसने मेसर्स काला अंब डिस्टिलरी एंड ब्रेवरी प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में सोलन जिले के तहसील नालागढ़ के ग्राम भंगला में डिस्टिलरी स्थापित करने के लिए लेटर ऑफ इंटेंट (एलओआई) की वैधता अवधि में विस्तार के लिए अपनी मंजूरी दे दी।
आज सीएम जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में हिमाचल कैबिनेट की बैठक की जाएगी। इस बैठक में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। कैबिनेट स्कूल पूरी तरह खोलने और कॉलेज के फर्स्ट और सेकेंड ईयर के विद्यार्थियों को बिना परीक्षा अगली कक्षाओं में प्रमोट करने को लेकर भी फैसला कर सकता है। इसके अलावा उपभोक्ताओं को घर-द्वार पर सस्ता राशन मुहैया कराने के लिए 50 राशनकार्डों पर भी डिपो खोलने और प्याज की आसमान छूतीं कीमतों पर मंथन किया जाएगा। सरकार ने उपायुक्तों को निर्देश दिए हैं कि वे प्याज के भाव पर नजर रखें। प्रतिदिन प्याज के दाम सरकार को भेजने के लिए कहा गया है। सरकार डिपो में भी आलू और प्याज बेचने पर विचार कर रही है। हालांकि, पूर्व में भी प्याज के दाम बढ़ने से सरकार ने डिपो में प्याज भेजा था, लेकिन सप्ताह बाद दाम गिरने से यह प्याज डिपो में ही खराब हो गया था। दसवीं और बारहवीं की बोर्ड कक्षाओं के लिए नवंबर से नियमित कक्षाएं शुरू हो सकती हैं। शिक्षा विभाग ने दो विकल्पों सहित इस बारे में सरकार को प्रस्ताव भेजा है। पहले विकल्प के तहत दसवीं और बारहवीं, दूसरे विकल्प के तहत नौवीं से बारहवीं तक की कक्षाओं को खोलने की योजना है। पहली से आठवीं तक की कक्षाओं को शुरू करने को लेकर अभी सरकार का कोई विचार नहीं है।
अभी 10 -12 दिन पुरानी ही बात होगी जब लोकसभा में पीएम केयर्स पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व सदन में नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी अनुराग ठाकुर को हिमाचल का छोकरा बोल गए थे। उनके इस बात पर सड़क से संसद तक हंगामा खड़ा हो गया था और बात इतनी बढ़ी की अधीर रंजन को इस पर सफ़ाई देनी पड़ गई थी। हालाँकि अनुराग ने इसे सकारात्मक तौर पर लिया व खुद पर चिपके हिमाचल का छोकरा टैगलाइन पर गर्व होने की बात कही और हिमाचल प्रदेश में भी इसका व्यापक असर देखने को मिला जहां युवाओं ने खुद को इस स्लोगन से जोड़ लिया। आज अटल टनल के उद्घाटन के लिए मनाली पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण के शुरुआत में अनुराग ठाकुर को हिमाचल नू छोकरो कह के सम्बोधित किया और मुस्कुरा कर उनकी तरफ़ देख पड़े। लोग प्रधानमंत्री के इस सम्बोधन के कई मायने निकाल रहे हैं। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी के नवरत्नों में शामिल अनुराग ठाकुर के ऊपर उनका गहरा विश्वास है और मानो हिमाचल नू छोकरो कह के मोदी विपक्ष को संदेश दे रहे हैं कि आप मेरे अपनों का अपमान करोगे तो मैं आपको बख्शुंगा नहीं। मोदी का यह कहना उनके और अनुराग ठाकुर के बीच की अतरंगता दिखाता है। बहरहाल एक बात तो साफ़ है मोदी कभी कुछ भूलते नहीं और उन्हें किसे कब कहां और कैसे जवाब देना है यह भली भांति मालूम है।
कांग्रेस पार्टी के के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी आज फिर हाथरस जाएंगे। बता दें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दो दिन पहले ही पीड़िता के परिजनों से मिलने हाथरस के लिए निकले थे पर तब पुलिस ने दोनों को ग्रेटर नोएडा के परी चौक में रोक लिया था और वापस दिल्ली भेज दिया था। पर राहुल गांधी आज फिर हाथरस जा सकते हैं। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा है की उन्हें इस दुखी परिवार से मिलने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘दुनिया की कोई भी ताक़त मुझे हाथरस के इस दुखी परिवार से मिलकर उनका दर्द बांटने से नहीं रोक सकती।’’ बताया जा रहा है कि वे दोपहर के समय हाथरस के लिए निकलेंगे। उनके साथ कांग्रेस सांसदों का एक दल भी जाएगा। राहुल गांधी के नेतृत्व में यह प्रतिनिधिमंडल पीड़िता के परिजनों से मुलाकात कर उनका दर्द साझा करेगा।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हिमाचल आने पर स्वागत है, लेकिन इस बार प्रदेश प्रेम भाषणों में नहीं हकीकत में दिखा कर जाएं। यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने यहां जारी प्रेस बयान में कही है। राणा ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हों या इंदिरा गांधी हो, जब-जब हिमाचल आए हैं, तब-तब उन्होंने हिमाचल के प्रति अपना स्नेह प्रदर्शित करते हुए हिमाचल को बड़े-बड़े पैकेज व बड़ी-बड़ी विकास योजनाएं समर्पित की हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस रोहतांग टनल का उद्घाटन करने आज हिमाचल पहुंचे हैं। वह रोहतांग टनल भी कांग्रेस के हिमाचल के स्नेह व सम्मान की देन है, जो अब देश और प्रदेश के विकास के बड़े सपने को साकार कर रही है। हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने वाली पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने सपना देखा था। रोहतांग टनल का सपना 1983 में इंदिरा गांधी द्वारा जनजातीय जिला की पहली महिला विधायक स्वर्गीय लता ठाकुर के आग्रह पर देखा था। 1984 में इसका जियोलॉजिक्ल सर्वे किया गया। 2005 यूपीए वन में इस प्रोजेक्ट को कैबिनेट क्लीयरेंस मिली जबकि 2009 में यूपीए टू ने इस प्रोजेक्ट को बजट के प्रावधान के सहित पूर्व पीएम मनमोहन सिंह द्वारा क्लीयर किया गया। 28 जनू 2010 को रोहतांग टनल का शिलान्यास कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी द्वारा किया गया। जिसका उद्घाटन करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब हिमाचल पहुंचे हैं। राणा ने कहा कि सरकारें आती है, जाती हैं। विकास सतत क्रिया है, जो कि सरकारों के दम पर आगे बढ़ता है, लेकिन इसमें यह कह देना कि रोहतांग टनल बीजेपी ने बनाई है, तो यह गलत होगा जबकि असलियत यह है कि कांग्रेस के काम को बीजेपी ने आगे बढ़ाकर अब उद्घाटन तक पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री रहते हुए संभवत यह तीसरा दौरा है जबकि प्रधानमंत्री बनने से पहले वह सुजानपुर भी आए थे। प्रधानमंत्री के हर दौरे में जन संवाद के दौरान हिमाचल प्रेम खूब छलका है, लेकिन यह प्रेम अब तक सिर्फ भाषणों तक ही सीमित रहा है। उन्होंने कहा, मेरा प्रधानमंत्री से निवेदन है कि अगर बकौल मोदी वह हिमाचल को अपना दूसरा घर मानते हैं व सच में हिमाचल की देवभूमि व वीरभूमि से प्रेम करते हैं तो महंगाई, बेरोजगारी व महामारी के साथ कर्जे के पहाड़ के नीचे दबे प्रदेश को इस दौरे में कोई बड़ा पैकेज देकर राहत देकर जाएं। राणा ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री मोदी के हिमाचल से दूसरे घर जैसे रिश्ते हैं तो रिश्ते दिखाने के लिए नहीं निभाने के लिए होते हैं? और इस बार वह बड़े पैकेज की घोषणा करके इन रिश्तों को निभाकर जाएं।
President Ram Nath Kovind has given his consent to the bills related to farmers and farming passed by Parliament in the Monsoon session on Sunday, amid the continuous protests from farmers and political parties. Farmers and political parties were demanding withdrawal of this bill, but their appeal did not work. The Farmers Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020, the Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Agricultural Services Bill, 2020 and the Essential Commodities (Amendment) Bill, 2020 were brought in the Monsoon Session of Parliament before both the Houses of Parliament and has been approved both. Now the President's seal has also been approved on this. These three bills will replace the three ordinances announced on June 5 in the Corona period.
Bihar assembly election dates have been announced. Election results will come on 10 November. The parties have claimed their victory with electoral preparation. On the one hand, the Bharatiya Janata Party (BJP) -Janta Dal United (JDU) alliance has spoken of a return to power, on the other hand Rashtriya Janata Dal (RJD) leader Tejashwi Yadav has reiterated the change in Bihar. Before the election, Tejashwi Yadav said in a claim that if his government is formed then in the very first cabinet meeting, 10 lakh jobs would be provided to the youth of Bihar. Tejashwi Yadav said, there are already 4 lakh 50 thousand vacancies in Bihar. According to the national average standards in education, health, home department and other departments, there is a great need of 5 lakh 50 thousand appointments in Bihar. Tejashwi Yadav wrote in his tweet, with the first pen in the first cabinet,I will give jobs to 10 lakh youth of Bihar. Tejashwi Yadav has been besieging the Nitish government since long on the issue of employment. They also accused the Central Government of cheating the youth in the name of giving jobs. On the previous day, Tejashwi Yadav said, Bihar is at number 26 in industry promotion and internal trade. Bihar is the worst state in investment and industry. Why do the Chief Minister Nitish Kumar and the NDA government, which has been in power for 15 years since liberalization, do not discuss these figures?
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट कर कहा कि जबकि कांग्रेस की हार भारत में चर्चा का विषय रही है। वर्तमान स्थिति से बदलाव की आवश्यकता है और जिसे प्रियंका गांधी चुपचाप ला रही हैं। गलतियों और सुधार को स्वीकार करने के लिए बदलाव का यह पहला कदम है। आजादी के बाद कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर में चल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के कई नेता अपने भाषणों में कांग्रेस मुक्त देश की बात अक्सर करते ही रहते हैं। लेकिन पार्टी का आलाकमान अपने स्तर पर कांग्रेस की चमक फिर से लौटाने की कोशिशों में जुटा हुआ है। इस बीच कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने दावा किया है कि प्रियंका गांधी चुपचाप तरीके से काम करते हुए एक बदलाव ला रही हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आज 88 साल के हो गए है। डॉ मनमोहन सिंह 2004 से 2014 तक दो बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके है और वर्तमान में राजस्थान से राज्यसभा सदस्य है। भारत के तेरवें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह विचारक और विद्वान के रूप में प्रसिद्ध है। वह अपनी नम्रता, कर्मठता और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं। डॉ मनमोहन सिंह जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गाँधी के बाद सबसे ज़्यादा समय तक देश के प्रधानमंत्री रहे है सिर्फ ये ही नहीं मनमोहन सिंह को भारत के सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्रियों में से एक भी माना जाता है। मनमोहन का शुरुआती जीवन मनमोहन का जनम 26 सितम्बर 1932 में अविभाजित भारत के पंजाब प्रान्त में हुआ था, जो की बटवारे के बाद अब पाकिस्तान का हिस्सा है। कहा जाता है की मनमोहन सिंह के पिता चाहते थे की वो डॉक्टर बने और इसीलिए उन्होंने 1948 में अमृतसर के खालसा कॉलेज के प्री मेडिकल कोर्स में दाखिला भी ले लिए था, लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी जिसके बाद उन्होंने हिन्दू कॉलेज में एडमिशन लिया और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 1957 में उन्होंने अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी से ऑनर्स की डिग्री अर्जित की। 1962 में उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के नूफिल्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल भी किया। मनमोहन की कैसे हुई राजनीति में एंट्री साल था 1991 का। देश में राजनैतिक अस्थिरता का माहौल था। बीते दो वर्ष में देश तीन प्रधानमंत्री देख चूका था। सबसे बड़े राजनैतिक दल कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे राजीव गाँधी की हत्या हो चुकी थी। एक बार फिर सरकार बनाने का ज़िम्मा कांग्रेस पर था। पर सवाल ये था कि प्रधानमंत्री बनेगा कौन। कई नाम सामने आये, कयास लगे, प्रयास भी हुए पर आखिरकार सहमति बनी पीवी नरसिम्हा राव के नाम पर। वहीं पीवी नरसिम्हा राव जो एक किस्म से रिटायरमेंट मोड में चले गए थे, दिल्ली छोड़ने का फैसला भी ले चुके थे मगर दिल्ली उन्हें छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। राव जो हर विभाग के विशेषयज्ञ माने जाते थे, जो सवास्थ्य, शिक्षा और विदेश मंत्रालय पहले ही संभाल चुके थे, देश के प्रधान मंत्री बन गए। मगर एक विभाग ऐसा भी था जो राव के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकता था, ये था वित्त मंत्रालय। नरसिम्हा राव ये अच्छे से जानते थे की देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है ऐसे में कोई ऐसा व्यक्ति ही देश की आर्थिकता को संभाल सकता है जो अर्थशास्त्र के कौशल्य में परिपूर्ण हो। तभी राव के सलहाकार पि सी ऐलेक्सेंडर ने राव को डॉ. मनमोहन सिंह का नाम सुझाया और शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले मनमोहन सिंह के सामने ये प्रस्ताव रखा गया। बतौर वित्त मंत्री किए गए काम अपना पहला बजट प्रस्तुत करते हुए डॉ. सिंह ने इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी का नाम बार बार ज़रूर लिया मगर वो इनकी आर्थिक नीतियों को बदलते हुए ज़रा भी नहीं हिचकिचाए। मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के कार्यकाल के दौरान विदेश व्यापार उदारीकरण, वित्तीय उदारीकरण, कर सुधार और विदेशी निवेश का रास्ते जैसे अहम फैसले लिए। उनके इन फैसलों ने अर्थव्यवस्था को ना सिर्फ नई गति दी बल्कि मजबूती भी प्रदान की। वित्त मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह ने कई अहम फैसले लिए। खास तौर पर ऐसे निमयों में बदलाव लाए जिनकी वजह से अर्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ रही थी, उन्हें तेजी मिले। इसके साथ ही उन्होंने भारत को दुनिया के बाजार के लिए भी खोला और देश में आर्थिक क्रांति और ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत की। जब मनमोहन प्रधानमंत्री बने जब डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनें तो उन्हें एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर कहा गया। बात है 18 मई 2004 की, इलेक्शन के बाद जश्न का माहौल था, कांग्रेस की अगुवाई वाली UPA ने नई संसद में 335 सीटों पर जीत दर्ज की थी और NDA को काफी अंतर से हराया था। सोनिआ गाँधी जीती ज़रूर थी मगर बीजेपी अब भी ये नहीं चाहती थी की कोई विदेशी प्रधान मंत्री बने, मगर निष्ठावान कोंग्रेसियों की निष्ठां सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी में थी। 18 मई को कांग्रेस हाई कमान का दफ्तर खचा खच भरा था। सोनिया गांधी आई और प्रंधानमंत्री पद स्वीकार करने से इंकार कर दिया। सियासी महकमा और पुरे देश की जनता अब असमंजस में थी की आखिर कौन होगा उनका प्रधान मंत्री। जब तमाम कांग्रेसी चमचे प्रधान मंत्री बनने की चाह में पालक पावड़े बिछाये बैठे थे तब सोनिया गांधी ने नाम लिया डॉ मनमोहन सिंह का। उन्होंने कहा की उनसे अच्छा प्रधान मंत्री भारत को नहीं मिल सकता। सियासी दिग्गजों का मानना है की अगर सोनिया गांधी सत्ता से मुँह न मोड़ती तो मनमोहन को ये सौभाग्य प्राप्त न होता पर इस वाक्य से कहीं भी ये तो साबित नहीं किया जा सकता की मनमोहन की काबिलियत में कोई कमी थी। बतौर प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने रोजगार के क्षेत्र में बड़ा फैलसा लिया और मनरेगा के जरिए ऐतिहासिक कदम उठाया। हर हाथ को काम देने की उनकी सोच ने लोगों के घरों में चूल्हे जलाने में बड़ी अहम भूमिका निभाई जिससे देश अंदर से सशक्त हो सके।
The Himachal Pradesh Cabinet in a meeting held today under the chairmanship of Chief Minister Jai Ram Thakur gave its approval to restore Vidhayak Kshetra Vikas Nidhi Yojana fund of Rs. 50 lakh for the year 2020-21. The first instalment of Rs. 25 lakh per legislative constituency would be released in October, 2020 and second instalment of Rs. 25 lakh would be released after the elections to the Panchayati Raj Institutions. A presentation was made before the Cabinet on the proposed visit of Prime Minister Narendra Modi to the State. The Cabinet decided to set up a statue of former Prime Minister Atal Bihari Vajpayee at The Ridge Shimla. It also decided to allot this work to famous sculptors Padam Shri and Padam Vibhushan Awardee Ram V. Sutar and Anil Sutar under Himachal Pradesh Finance Rule-104 as proposed by Language, Art and Culture Department. The Cabinet gave its nod to resume training activities in Industrial Training Institutes of the State with effect from 1st October, 2020 by strictly following the guidelines of the Ministry of Home Affairs, Ministry of Health and Family Welfare and Ministry of Skill Development and Entrepreneurship (MSDE). The Cabinet gave its nod to the Draft of Memorandum of Understanding to be executed and entered between the State Government and Temple Trust Chamunda with regard to transfer of land for Lower Terminal Point of Himani-Chamunda Ropeway Project in Kangra district. It also gave its approval to fill up seven posts of Deputy Director in Sainik Welfare Department on Contract basis. The Cabinet gave its consent to create and fill up 35 posts of panchkarma masseur in Ayurveda department on a daily wage basis to provide better Ayurveda medical service to the people. It also decided to rename Ayurveda Department as Ayush Vibhag, Himachal Pradesh. The Cabinet gave its approval to signing of MoU between Director Ayurveda and M/s HLL Lifecare Limited, a Government of India Enterprises for upgradation of Ayurvedic Health Centre to Ayush Health and Wellness Centres. It gave its approval to fill up eight posts of different categories in the Planning Department through direct recruitment.
शनिवार, हिमाचल कैबिनेट की बैठक मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में हो रही है। इस बैठक में प्रधानमंत्री के दौरे के साथ साथ पर्यटन विकास, कोरोना व ऐसे कई अन्य अहम मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। आज की इस बैठक में बाहरी राज्यों के लिए बसें चलाने और डिपुओं में पॉस मशीनों से राशन देने पर भी फैसला हो सकता है। बैठक में शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज, शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर, मंत्री सरवीण चौधरी व अन्य नेतागण शामिल हुए है। हालांकि बैठक से सरकार के दो मंत्री नदारद रहे। उद्योग एवं परिवहन मंत्री बिक्रम ठाकुर और पंचायती राज एवं पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कंवर अनुपस्थित रहे। बिक्रम ठाकुर स्टाफ सदस्य के संक्रमित पाए जाने के बाद क्वारंटाइन हैं।
Rahul Gandhi on Saturday wished the former Prime Minister on his birthday by a tweet and wrote “India feels the absence of a PM with the depth of Manmohan Singh, Congress leader”. Singh, who headed the UPA coalition government between 2004 and 2014, turned 88 on Saturday. "India feels the absence of a PM with the depth of Dr. Manmohan Singh. His honesty, decency, and dedication are a source of inspiration for us all. Wishing him a very happy birthday and a lovely year ahead”. Rahul Gandhi has completely tried to target the leadership in the Modi led government amid the protests going on against the three contentious Farm bills passed by the parliament earlier.
कवि जब बात करे तो बातों से फूल ही झड़ें ये ज़रूरी तो नहीं, कभी-कभी मन से उमड़ते क्रोध भाव की वर्षा भी तो हो सकती है एक कविता। ऐसा ही क्रोध एक बार रामधारी सिंह दिनकर को भी आया। राष्ट्रकवि दिनकर ने खुद कहा "एक राष्ट्रकवि को शायद इतना क्रोध शोभा न दे मगर, इतिहास में याद रखा जाएगा कि एक ऐसी स्थिति आई थी जब राष्ट्रकवि को भी इतना क्रोध आया था।" आखिर ऐसी क्या स्तिथि थी भला कि इतने सुलझे हुए कवि दिनकर, इतना उलझ गए कि उन्होंने इस पर पूरा कविता संग्रह लिख दिया। बात है 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध की, और बात है टूटते भरोसे और हौंसले की। चीन भारत की पीठ पर छुरा घोंपने का कार्य भारत तब भी कर रहा था और आज भी कर रहा है। भारत को चीन की ओर से हमला होने की आशंका भी नहीं थी जब यह हमला हुआ, और युद्ध के लिए तैयार न होने के कारण भारत यह युद्ध हार गया। इसी बात से क्रोधित राष्ट्रकवि दिनकर ने कविता संग्रह "परशुराम की प्रतीक्षा" लिखा। यह संग्रह 1963 में प्रकाशित हुआ। दिनकर भारत चीन के बीच हुए समझौते व भारत के झुकने पर आहत थे। उनका मानना था कि इस हार से जन जन का खून खुलना चाहिए। दिनकर ने इस काव्य संग्रह के माध्यम से जन-जन तक आक्रोश का संकेत पहुंचाया। दिनकर यूँ तो जवाहरलाल नेहरू के करीब माने जाते थे परंतु उन्होंने कवि धर्म निभाते हुए उन पर भी तंज कस डाले। उन्होंने कहा- "घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है, लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है। जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है, समझो, उसने ही हमें यहां मारा है। जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है, या किसी लोभ के विवश मूक रहता है।" दिनकर को साहित्य के साथ-साथ देशप्रेम के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने 1957 से पहले कई विद्रोही कविताएं लिखी जिन्होंने आम जनता में आज़ादी के प्रति आक्रोश पैदा किया। ब्रिटिश शासन के दौरान उन्हें जेल भी हुई व उनके इसी देश प्रेम को देखते हुए उन्हें आज़ादी के बाद राष्ट्रकवि घोषित किया गया। भारत चीन के युद्ध में भारत की हार पर दिनकर बेहद क्रोधित हुए। दिनकर को जन जन का कवि कहा जाता है क्योंकि उन्हें हर युग में हर वर्ग के लोगों ने पढ़ा। साफ स्पष्ट शब्दों में आम आदमी की आवाज़ को बड़े तख्तों तक पहुंचाने वाले राष्ट्रकवि दिनकर ने जनता कानून का भी समर्थन किया। उन्होंने इस पर एक विद्रोही कविता लिखी जिसने समय के साथ नारे का रूप ले लिया व आज भी उसकी गूंज सुनाई पड़ती है। उन्होंने लिखा- "सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।" हिंदुस्तान के सिंहासनों व उनपर विराजमान शासकों पर प्रश्नचिन्ह तो अक़्सर उठते ही आए हैं, खैर वर्तमान स्थिति को देखते हुए दिनकर याद आ ही जाते हैं। दुनिया से विदा लेने के सालों बाद भी दिनकर ज़िंदा हैं चाहने वालों के दिलों में, साहित्य प्रेमियों की स्मृतियों में।
The Delhi health minister, Satyendar Jain, has said that there is no shortage of oxygen in Delhi for treatment of COVID-19 patients but some suppliers have been told that they will supply first in Rajasthan. He said this problem is being resolved by negotiation. The supply of oxygen to Delhi comes from Uttar Pradesh and Rajasthan. Health Minister Satyendra Jain said that at present there is no problem of oxygen in Delhi. Delhi government hospitals have a stock of 6 to 7 days of oxygen. On monday the Health Minister said, there are around 1,000 ICU beds available inDelhi , and 30 percent of the COVID-19 patients admitted to delhi hospitals are from other states.
राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने भाजपा पर तीखा हमला किया है। जारी प्रेस बयान में राणा ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा की बीजेपी जनादेश से विश्वासघात कर रही है व जनादेश के बहुमत का भी लगातार दुरुपयोग कर रही है। राणा ने खुलासा किया है कि केंद्र की तर्ज पर सत्ता को कारोबार का जरिया मान चुकी बीजेपी प्रदेश के संसाधनों को भी दोनों हाथों से लूटने में लगी है। राणा ने कहा कि केंद्रीय कांगड़ा बैंक में हुए खुलासे के मुताबिक बैंक के चेयरमैन को नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए कागजों के हेरफेर के तिकड़मों के चलते लाखों रुपए का लाभ दिया जा रहा है। राणा ने कहा कि हिमाचल प्रदेश कॉर्पोरेशन एक्ट 1968 तथा नियम 1971 की धारा 41एफ के चलते किसी ऐसे व्यक्ति को बैंक का निदेशक नहीं बनाया जा सकता है, जो कि बैंक से कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष लाभ ले रहा हो। यही प्रावधान बैंक के उपनियमों की धारा 29सी में भी रखा गया है, लेकिन केंद्रीय कांगड़ा बैंक की कलाकारी का नमूना यह रहा कि बैंक के चेयरमैन को लाखों का लाभ देने के लिए 1 मार्च 2018 को एफिडेविट दायर करवाया गया कि वह अपने पारिवारिक जसूर स्थित भवन के अपने हिस्से का किराया नहीं लेंगे। यह भवन केंद्रीय कांगड़ा बैंक को किराए पर दिया गया है। इतना ही नहीं परोक्ष लाभ की इस जुगाड़बंदी में किराया न लेने व अन्य कार्य करने का अधिकार बैंक के चेयरमैन ने अपने चाचा को दे दिया। 3890 रुपए से शुरू हुए इस बैंक के किराए को यकायक बढ़ाकर 1 मार्च 2019 को 28 हजार रुपए कर दिया और गजब यह रहा कि किराए की बढ़ोतरी का फैसला बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की बैठक में किया गया। जिसके चेयरमैन खुद केंद्रीय कांगड़ा बैंक के चेयरमैन रहे, तथा बैंक के प्रबंधक निदेशक भी इस बैठक में मौजूद रहे। इतना ही नहीं 1 मई 2007 से 30 अप्रैल 2012 तक 32280 रुपए किराए की बढ़ोतरी 22 मार्च 2019 को की गई। फिर 1 मई 2012 से लेकर 28 फरवरी 2019 तक फिर से किराए की बढ़ोतरी करके 48544 कर दी, जिसका भुगतान भी आनन-फानन में 22 अप्रैल 2019 को बैंक द्वारा कर दिया गया। राणा ने कहा कि बीजेपी का यह कारनामा यह बताने के लिए काफी है कि लोग इस पार्टी में सत्ता का कारोबार करने के लिए पद हासिल करते हैं व संसाधनों की लूट के लिए नियमों को ताक पर रखते हैं। वहीं, आम आदमी को महंगाई व बेरोजगारी की सौगात देते हैं।
मॉनसून सत्र के नौवें दिन सभी निलंबित आठ सांसदों ने अपना धरना प्रदर्शन खत्म कर दिया और इसके साथ ही कांग्रेस ने पूरे मानसून सत्र के बहिष्कार का ऐलान किया। कांग्रेस राजयसभा सदस्यों ने आज सदन से वाक आउट किया है। कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), डीएमके, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), आम आदमी पार्टी (आप), वामदल, आरजेडी, टीआरएस और बीएसपी ने भी कार्यवाही का बहिष्कार किया है। 20 सितम्बर को इन सांसदों द्वारा किसान बिल पर हंगामे के बाद इन्हे एक हफ्ते के लिए निलंबित कर दिया गया था जिसके बाद सभी सांसद, संसद परिसर में ही धरने पर बैठ गए थे। सभी सांसद गांधी प्रतिमा के पास धरने पर थे और पूरी रात संसद परिसर में गुजार दी। मंगलवार सुबह जैसे ही राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई, कांग्रेस ने यह मसला उठाया। कांग्रेस सांसद गुलाम नबी आजाद ने कहा कि जब तक हमारे सांसदों के संस्पेंशन को वापस नहीं लिया जाता और किसान के बिलों से संबंधित हमारी मांगों को नहीं माना जाता विपक्ष सत्र से बायकॉट करती है। इसके बाद समाजवादी पार्टी के सांसद राम गोपाल यादव ने कहा कि मैंने न केवल सांसदों की सदन वापसी की मांग की बल्कि मैंने विपक्ष की तरफ से माफी भी मांगी, लेकिन मेरी माफी के बदले कोई रिस्पांस नहीं दिया गया। इससे मुझे बहुत कष्ट हुआ। इसलिए मैं और मेरी पूरी पार्टी संसद के इस पूरे सत्र का बहिष्कार करती है।